RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
हड़बड़ा उठे पालीवाल दम्पत्ति !
जबकि जगदीश पालीवाल तो कुर्सी से उछलकर खड़ा हो गया था ।
“क...क्या बात है ?” जगदीश पालीवाल बौखलये स्वर में बोला- “क...क्या हम लोगों ने कोई गलत सवाल पूछ लिया ?”
“न...नहीं साहब !” डॉली ने सुबकते हुए ही कहा- “आप लोगों ने कोई गलत सवाल नहीं पूछा ।”
“फ...फिर तुम रो क्यों रही हो ?”
“जिसकी किस्मत में ही रोना लिखा हो साहब ।” डॉली भाव-विह्वल स्वर में बोली- “वह रोने के अलावा और कर भी क्या सकती है । यूं तो यह दुनिया इतनी बड़ी है साहब, लेकिन इस इतनी बड़ी दुनिया में मेरा कोई घर नहीं, कोई ठिकाना नहीं ।”
“यह कैसे हो सकता है ।” पालीवाल दम्पत्ति चौंके- “कि इतनी बड़ी दुनिया में तुम्हारा कोई घर नहीं, कोई ठिकाना नहीं ?”
“ऐसा ही है साहब ।”
“तुम्हारे मा-बाप नहीं ?”
“नहीं ।”
“बहन-भाई, कोई नहीं ?” जगदीश पालीवाल के स्वर में हैरत उमड़ी ।
“नहीं साहब ।”
“कमाल है, एकाएक यकीन नहीं आता ।”
“मुझे खुद भी यकीन नहीं आता साहब ।” डॉली नौकरी हासिल करने के लिये शानदार ड्रामा करती हुई बोली- “क्योंकि आज से सिर्फ तीन महीने पहले मेरे पास सब कुछ था, सब कुछ । मेरे मां-बाप थे, एक बड़ा भाई था । मैं चण्डीगढ़ की रहने वाली हूँ, वहीं मेरे पिताजी का कपड़े का बड़ा अच्छा कारोबार था । नीचे दुकान थी और ऊपर मकान । उ...उस रात मैं अपनी एक सहेली के घर गयी हुई थी, जिसकी अगले दिन बारात आने वाली थी । और...और उसी रात सब कुछ तबाह हो गया, सब कुछ ।”
“क...क्या हुआ था ?” जगदीश पालीवाल के चेहरे पर जबरदस्त सस्पैंस झलका ।
“द...दरअसल उस रात पंजाब पुलिस से बचकर भागते हुए दो आतंकवादी हमारे घर में घुस आये थे, उन्होंने जब हमारे घर में शरण चाही, तो पिताजी और भैया ने उनका विरोध किया, बस इसी बात से क्रोधित होकर आतंकवादियों ने मम्मी सहित मेरे पिताजी और भैया की हत्या कर दी । इतना ही नहीं, उन्होंने हमारे घर और दुकान में भी आग लगा डाली ।”
“ओह, वैरी सैड !” पालीवाल दम्पत्ति सन्न रह गये ।
जबकि डॉली अब पहले से भी ज्यादा जोर-जोर से सुबक रही थी ।
☐☐☐
डॉली के उस ड्रामें का मिसेज पालीवाल पर और भी गहरा असर हुआ ।
वह अपने बच्चे को गोद में उठाये-उठाये डॉली के नजदीक आ गयी तथा फिर उसके कंधे पर स्नेह से हाथ रखा- “धीरज रखो संध्या, धीरज रखो । इसमें कोई शक नहीं कि तुम्हारे साथ बहुत भयंकर दुर्घटना घटी है, लेकिन भगवान बहुत बड़ा है, वो सबकी मदद करता है ।”
डॉली फिर भी धीरे-धीरे सुबकती रही ।
“हमारी सहानुभूति तुम्हारे साथ है संध्या ।” जगदीश पालीवाल ने भी उसे ढांढस बंधाया- “तुम्हें चिन्ता करने की कोई जरुरत नहीं ।”
“इ...इसका मतलब आपने मुझे नौकरी दे दी साहब ?”
“क्यों नहीं, और यह नौकरी देकर मैं तुम्हारे ऊपर कोई अहसान नहीं कर रहा संध्या ।” जगदीश पालीवाल बोला- “बल्कि यह नौकरी कबूल करके तुम मेरे ऊपर अहसान कर रही हो । मुझे अपने आप पर गर्व है कि मैं तुम्हारे जैसी बेसहारा लड़की के काम आ सका ।”
“थैंक्यू-थैंक्यू पालीवाल साहब ।” डॉली ने जल्दी-जल्दी अपनी आंखों के आंसू पोंछे ।
“और हाँ ।” तभी मिसेज पालीवाल बोली- “आज से तुम इसी कोठी में रहोगी, हमारे साथ । अब यही तुम्हारा घर है ।”
"ल...लेकिन... ।” डॉली के चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव उभरे ।
“प्लीज संध्या, इंकार मत करना । अब तुम इसी घर की एक सदस्य हो ।”
“ठ...ठीक है ।” वह शब्द कहते हुए डॉली ने उन दिनों के सामने अपनी गर्दन झुका ली थी ।
☐☐☐
इस तरह डॉली, जगदीश पालीवाल के यहाँ न सिर्फ गवर्नेस की नौकरी पाने में सफल हो गयी बल्कि उसी कोठी के अंदर उसे रहने के लिये एक बैडरूम भी मिल गया ।
जगदीश पालीवाल के जिस बच्चे की डॉली को देखभाल करनी थी, उसका नाम ‘गुड्डू’ था ।
यह बात डॉली को बाद में पता चली कि मिसेज पालीवाल कृषि डॉलीलय में सचिव थीं ।
वह अपने गुड्डू बेटे को डॉली के हवाले करके उसी दिन सरकारी काम से एक सप्ताह के लिये उदयपुर चली गयीं ।
डॉली का काम अब और भी आसान हो गया ।
अब वो और ज्यादा सहूलियत से जगदीश पालीवाल को अपने फंदे में फांस सकती थी ।
☐☐☐
उसी रात से डॉली का ‘खेल’ शुरू हुआ ।
रात के लगभग ग्यारह बज रहे थे, जब डॉली की ह्रदय विदारक चीख से पूरी कोठी दहल गयी ।
जगदीश पालीवाल उस समय तक जाग रहा था और अपने बैडरूम में लेटा “कमांडर करण सक्सेना सीरीज” का एक जासूसी नॉवेल पढ़ रहा था ।
डॉली की हृदयविदारक चीख सुनते ही उसने नॉवेल एक तरफ रखा तथा फिर अद्वितीय फुर्ती के साथ डॉली के बैडरूम की तरफ झपटा ।
बैडरूम का दरवाजा खुला था ।
वह दनदनाता हुआ अंदर दाखिल हो गया ।
वह जैसे ही अंदर घुसा-फौरन डॉली बेहद दहशतजदां अवस्था में चीखती हुई उसके शरीर से आ लिपटी तथा बचाओ-बचाओ चिल्लाने लगी ।
वह अभी भी नींद के आगोश में थी ।
“संध्या ! संध्या !!” पालीवाल ने उसे बुरी तरह झंझोड़ा ।
डॉली ने चौंकने का जबरदस्त अभिनय किया ।
उसकी आंखें खुलीं ।
फिर वो एकदम झटके से पीछे हटी ।
उसके वक्ष वेग से ऊपर-नीचे उठ गिर रहे थे, सांसों में तूफान था, कपड़े अस्त-व्यस्त थे ।
“संध्या-क्या हुआ संध्या ?” पालीवाल ने उसे हैरान निगाहों से देखा-“तुम चिल्लाई क्यों थीं ?”
जवाब देने की बजाय डॉली धम्म से बैड पर बैठ गयी और अपनी सांसों को संतुलित करने का प्रयास करने लगी ।
“तुमने क्या कोई बुरा सपना देखा था ।”
“कैसा सपना ?”
“वही सपना !” डॉली की आंखें उदास हो गयीं-“हमारे घर में आग लग रही है-मेरे मम्मी, डैडी और भाई का खून बहाया जा रहा है-खून के छींटे उड़ रहे हैं-उनकी चीखें गूंज रही हैं । म...मुझे यह सपना अक्सर दिखाई देता है साहब-और जब भी मैं इस सपने को देखती हूँ-तो इसी तरह चिल्लाकर उठ बैठती हूँ ।” बोलते-बोलते डॉली की आंखों में आंसुओं का समंदर तैर गया ।
उसने जोर से एक सुबकी ली ।
“धीरज रखो ।” जगदीश पालीवाल ने उसे ढांढस बंधाया-“वक्त के साथ-साथ हर जख्म भर जायेगा ।”
“सॉरी साहब !” डॉली ने अपने आंसू साफ किये-मेरी वजह से आपको इतनी रात को परेशानी उठानी पड़ी ।”
“इसमें परेशनी की कोई बात नहीं-वैसे भी अभी तो मैं जाग ही रहा था ।”
“म...मैं आपसे एक विनती करूं साहब ?”
“क्यों नहीं-जो कहना है, बे-हिचक कहो ।”
“दरअसल जिस रात मुझे यह सपना दिखाई देता है उस रात अगर मैं अपने कमरे में अकेली सोती हूँ, तो यह सपना मुझे बार-बार आता है ।”
“क्या मतलब ?”
“अगर आप इजाजत दें साहब-तो आज की रात मैं आपके कमरे में सोना चाहती हूँ । म...मैं जमीन पर ही सो जाऊंगी-वरना यह सपना बार-बार मुझे परेशान करता रहेगा ।”
“ल...लेकिन... ।” जगदीश पालीवाल, डॉली के उस प्रस्ताव पर हक्का-बक्का रह गया ।
“लेकिन क्या ?”
पालीवाल चुप ।
“शायद आपको कोई ऐतराज है साहब ?”
“नहीं-नहीं-ऐतराज जैसी कोई बात नहीं ।”
“फिर ?”
पालीवाल को सूझा नहीं-वो उस लड़की को क्या कहे ?
“ठीक है साहब-मैं यहीं सो जाऊंगी ।”
“नहीं-नहीं-अगर तुम्हें सपने की वजह से ज्यादा परेशानी होती है-तो तम मेरे बैडरूम में ही सो जाओ ।”
“थैंक्यू-थैंक्यू साहब ।”
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