RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
डॉली तुरन्त जगदीश पालीवाल के बैडरूम में एक चटाई पर जाकर लेट गयी थी ।
गुड्डू-जो थोड़ी देर पहले तक उसके साथ सो रहा था-डॉली ने अब उसे जगदीश पालीवाल के बिस्तर पर सुला दिया ।
बेचारा पालीवाल !
वो अपने अंदर अजीब-सी बेचैनी महसूस कर रहा था ।
उस रात लाख कोशिश करने के बावजूद भी उसे नींद न आ सकी ।
वह बिस्तर पर लेटा करवट-पर-करवट बदलता रहा ।
उसकी आंखें बार-बार डॉली के जिस्म पर टिक जाती थीं ।
डॉली !
जो सचमुच जन्नत की हूर थी ।
स्वर्ग की अप्सरा थी ।
वह रात पालीवाल पर बड़ी भारी गुजरी ।
डॉली के रूप का जादू उसके ऊपर चल चुका था ।
और !
इस राज से नावाकिफ डॉली भी नहीं थी ।
वह बंद पलकों की झिर्री में से जगदीश पालीवाल की प्रत्येक हरकत देख रही थी ।
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अगले दिन-सुबह के वक्त ।
जगदीश पालीवॉल नेशनल म्यूजियम जाने के लिये तैयार हो रहा था-तभी उसने देखा कि डॉली भी गुड्डू को तैयार कर रही है ।
“क्या बात है ।” जगदीश पालीवाल थोड़ा हँसकर बोला -“आज सुबह-ही-सुबह इस शैतान को दूल्हा कैसे बनाया जा रहा है ?”
“सोचती हूँ-थोड़ी देर के लिये इसे कहीं बाहर घुमा लाऊं ।”
“ख्याल तो अच्छा है-लेकिन कहाँ जाओगी ?”
“आप ही बताओ न कि कहाँ ले जाऊं ?”
“मैं क्या बता सकता हूँ ।”
“फिर भी कोई तो आइडिया तो दीजिये ।”
पालीवाल सोच में डूब गया ।
“तुमने नेशनल म्यूजियम देखा है ?” एकाएक पालीपाल बोला ।
“नेशनल म्यूजियम-नहीं तो ।”
“मैं म्यूजियम में राउण्ड पर जा रहा हूँ ।” जगदीश पालीवाल अपनी बेल्ट कसता हुआ बोला-“अगर तुम चाहो-तो तुम भी गुड्डू को लेकर मेरे साथ चल सकती हो-इसी बहाने सैर भी हो जायेगी । वैसे भी आजकल म्यूजियम में कजाखिस्तान से एक बेशकीमती ताज प्रदर्शन के लिये आया हुआ है ।”
“ठीक है-फिर तो वहीं चलते हैं ।” डॉली ने उत्साहित होकर कहा-“वहाँ आपका साथ भी रहेगा ।”
“गुड !” मुस्करा दिया पालीवाल ।
जबकि डॉली भी मन-ही-मन अपनी सफलता पर प्रसन्न हो रही थी ।
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कुछ देर पश्चात् वो जगदीश पालीवाल के साथ ‘सिएलो’ गाड़ी में सवार होकर नेशनल म्यूजियम पहुँची ।
वहाँ उपस्थित तमाम सुरक्षा कर्मियों ने फौरन एड़ियां बजा-बजाकर पालीवाल को सेल्यूट मारा ।
फिर पालीवाल ने तीन-चार सुरक्षा कर्मियों से सिक्योरिटी के सम्बन्ध में कुछेक सवाल पूछे थे ।
उसके बाद वो आगामी आधा घण्टे तक राउण्ड लगाने के साथ-साथ डॉली को म्यूजियम के अलग-अलग हिस्सों में घुमाता रहा ।
सबसे ज्यादा टाइम उन्होंने नम्बर चार में गुजारा ।
हॉल नम्बर चार-यानि म्यूजियम का वह हॉल कमरा, जहाँ दुर्लभ ताज प्रदर्शन के लिये रखा था ।
उस ताज की भव्यता देखकर डॉली भी भौंचक्की रह गयी ।
उसके दिमाग में अंधड़ से चलने लगे ।
जबकि जगदीश पालीवाल इस बीच डॉली को उस दुर्लभ ताज से जुड़ी अनेक रहस्यमयी गाथायें सुनाता रहा था ।
सारा समय इसी तरह गुजर गया ।
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