RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
लौटते वक्त ।
“क्या सोच रही हो संध्या ?” कार ड्राइव करते समय जगदीश पालीवाल ने डॉली की तरफ देखा ।
“कुछ भी नहीं ।”
“कुछ तो !”
“मैं दरअसल उस दुर्लभ ताज के बारे में सोच रही हूँ ।”
“क्या सोच रही हो ?”
“यही कि वह कितना सुंदर है-कितना अद्वितीय-वह तो मूलयवान भी बहुत होगा साहब ?”
“एकदम सही कहा तुमने-वह न सिर्फ मूलयवान है बल्कि बेहद मूल्यवान है ।” जगदीश वालीवाल बोला-“अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उस दुर्लभ ताज की कीमत कई अरब रुपये है ।”
“क...कई अरब रुपये !” डॉली के नेत्र फैल गये ।
“हाँ ।”
“तब तो उसे कोई भी चुराने की कोशिश कर सकता है ।”
“बिल्कुल कर सकता है-आज से पहले भी कजाखिस्तान में कई बार उस दुर्लभ ताज को चुराने की कोशिशें हो चुकी हैं-लेकिन हर बार चोरों को असफलता का मुँह देखना पड़ा ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि उस ताज के बारे में प्रसिद्ध है कि वो अपनी सिक्योरिटी खुद करता है-जिस किसी ने भी उस दुर्लभ ताज को चुराने की कोशिश की, वह ताज तो न चुरा सका- हाँ पूरी तरह बर्बाद जरूर हो गया । उदाहरण के तौर पर रूस के एक ग्लासतोनोत नामक नौजवान ने उस ताज को चुराने की कोशिश की थी-वह ताज चुराने में तो कामयाब न हुआ-हाँ पुलिस के हत्थे जरूर चढ़ गया । फिर किसी तरह अपने हथकण्डों की बदौलत वो पुलिस के शिकंजे से भी बचकर भाग निकला था-लेकिन उसी रात जब वो छिपता-छिपाता अपने किसी परिचित के यहाँ जा रहा था-तभी उसका ट्रक के अगले-पिछले दोनों पहिये उसके ऊपर से गुजर गये । बहरहाल अगले दिन उसका क्षत-विक्षिप्त शव पुलिस को सड़क पर पड़ा मिला ।”
“ओह !” डॉली के शरीर में सनसनी-सी दौड़ गयी ।
“ऐसी ही एक घटना और सुनो ।” जगदीश पालीवाल कार ड्राइव करता हुआ बोला-“एक दूसरे चोर ने भी उस दुर्लभ ताज को चुराने का प्रयास किया था-वह अपने मकसद में तो कामयाब न हो सका-लेकिन असफल होकर जब वो अपने घर लौटा तो उसी रात उसके घर में बड़ी भयंकर आग लग गयी-जिसमें उस चोर के साथ-साथ उसका पूरा परिवार जलकर खाक हो गया ।”
डॉली भौचक्की-सी बैठी रह गयी ।
दाता !
दाता !!
इतना हंगामाखेज है वो ताज ?
फ...फिर राज का क्या होगा ?
क...क्या उसके साथ भी ऐसा ही कोई हादसा पेश आना था ? डॉली के जिस्म का एक-एक रोआं खड़ा हो गया ।
☐☐☐
फिर डॉली ने थोड़ा रुककर पूछा-“साहब-उस दुर्लभ ताज को चुराने की जैसी कोशिशें कजाखिस्तान में हो चुकी हैं-ऐसी ही कोई कोशिश इधर दिल्ली शहर में भी तो हो सकती है ।”
“बिलकुल हो सकती है ।” जगदीश पालीवाल बोला-हमें खुद इस बात का पूरा शक है कि ऐसी कोई कोशिश यहाँ होगी-संभव है कि किसी संगठन ने इस दिशा में अपनी कोशिशें भी शुरू कर दी हों । इसीलिये भारत सरकार ने उस दुर्लभ ताज की सिक्योरिटी के खास इंतजाम किये हैं-तुमने देखा नहीं, नेशनल म्यूजियम पर कितने ढेर सारे सिक्योरिटी गार्ड तैनात थे-इसके अलावा प्रत्येक दर्शक की कितनी सजगता से तलाशी ली जा रही थी ।”
“क्या सुरक्षा का सिर्फ वही इंतजाम है ?”
“क्यों ?” जगदीश पालीवाल चौंका-“क्या वो इंतजाम कम है ?”
“यह बात नहीं-मैं यह पूछना चाहती हूँ कि दुर्लभ ताज के लिये कुछ गुप्त सिक्योरिटी भी तो की गयी होगी ।”
“ग...गुप्त सिक्योरिटी !”
पालीवाल के दिमाग में धमाका-सा हुआ ।
उसके हाथ कार के स्टेयरिंग पर कांप गये ।
“क्यों-क्या हुआ ?”
“क...कुछ नहीं । वह जल्दी से सम्भला-“कुछ नहीं । तुमने सही कहा-हमने गुप्त सिक्योरिटी का बंदोबस्त भी किया है ।”
“क्या है वो बंदोबस्त ?”
“सॉरी !” जगदीश पालीवाल के होठों पर हलकी-सी मुस्कान दौड़ी-“गुप्त सिक्योरिटी के बारे में किसी को कुछ नहीं बताया जा सकता ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि हमें यह आदेश भारत सरकार की तरफ से मिले हुए हैं ।”
बड़े दिलफरेब अंदाज में मुस्कराई डॉली-“लेकिन मुझे बताने में क्या फर्क पड़ता है ।”
“फर्क पड़ता है भई !” पालीवाल ने थोड़े शरारती अंदाज में उसकी आंखें में झाका-“हो सकता है कि तुम भी अपराधियों से मिली हुई होओ ।”
डॉली की ‘मुस्कान’ भक्क् से उड़ गयी ।
उसका दिल जोर से उछला ।
जबकि कार अपनी रफ्तार से दौड़ती रही थी ।
☐☐☐
जल्द ही कारण कोठी के लॉन में जाकर रुकी ।
डॉली, नन्हें गुड्डू को अपनी गोद में संभाले बाहर निकली थी और उसके पीछे-पीछे ही जगदीश पालीवाल भी कार को लॉक करके बाहर निकला ।
“संध्या-कल मैं तुमसे एक सवाल पूछना तो भूल ही गया था ।”
“कैसा सवाल ?”
“तुम्हारे पिताजी का क्या नाम था ?”
“द...दीनदयाल-दीनदयाल मिश्रा जी !”
“ओह ! थैंक्स ! थैंक्स अ लॉट !”
“ल...लेकिन आपने पिताजी का नाम क्यों पुछा साहब ?”
“यूं ही !” जगदीश पालीवाल मुस्कराया-“मधुर स्मृति के लिये ।”
डॉली का दिल धाड़-धाड़ करके बजने लगा ।
जरूर कोई और वजह थी ।
☐☐☐
उसी दिन-आधी रात के समय जब पूरा पालीवाल भवन गहन सन्नाटे में डूबा था-चारों तरफ गहन खामोशी थी-तभी किसी ने डॉली के दरवाजे पर बड़े सांकेतिक अंदाज में तीन बार दस्तक दी ।
डॉली के फौरन बिस्तर से उछलकर खड़ी हो गयी ।
उसने लपककर दरवाजा खोला-फिर झट् से बोली-“त...तुम यहाँ क्यों आये हो ?”
“अंदर तो आने दो ।” काला साया सरसराये लहजे में बोला-“फिर सब कुछ बताता हूँ ।”
डॉली दरवाजे से एक तरफ हट गयी ।
फौरन साये ने अंदर कदम रखा-वह राज था ।
“त...तुम्हें यहाँ आते देखा तो नहीं ?” डॉली ने जल्दी से दरवाजा वापस बंद किया ।
“न...नहीं-किसी ने नहीं देखा ।” राज सरसराये लहजे में बोला-“लेकिन तुम इतना घबरायी हुई क्यों हो-कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं हो गयी ?”
“अभी तक तो नहीं हुई-लेकिन आने वाले समय में हो सकती है ।”
“क...क्या मतलब ?” राज का दिल उछला-“त...तुम कहना क्या चाहती हो-क...कैसी गड़बड़ हो सकती है ?”
डॉली हिचकिचाई ।
“तुम कुछ बोलती क्यों नहीं ?”
डॉली ने दबी-दबी जबान में उसे शाम वाली घटना के बारे में बताया ।
“य...यानि तुम यह कहना चाहती हो ।” राज बोला-“कि जगदीश पालीवाल को तुम्हारे ऊपर शक हो गया है-इसलिये उसने तुमसे तुम्हारे पिताजी का नाम पूछा ।”
“और नहीं तो क्यों पूछा ?”
“ऐसे भी तो पूछा हो सकता है-फिर जगदीश पालीवाल ने वजह भी तो बयान की थी-उसने कहा था कि वो मधुर स्मृति के लिये पूछ रहा है ।”
“यह सब बेकार बातें हैं राज !” डॉली आन्दोलित लहजे में बोली-“यह कोई ठोस वजह नहीं-मैं गारण्टी से कहती हूँ कि पालीवाल के उस साधारण सवाल के पूछने के पीछे जरूर कोई महत्वपूर्ण वजह थी ।”
राज भी सोच में डूब गया ।
“म...मुझे डर लग रहा है राज-म...मुझे लग रहा है, जैसे कोई अनर्थ होने वाला है ।”
“तुम पागल हो गयी हो ।”
“मैं पागल नहीं हुई राज !”
“लेकिन यह तुम्हारे दिल का वहम भी तो हो सकता है डॉली-जगदीश पालीवाल को आसमान से आवाज तो नहीं आने वाली कि तुम किन्हीं अपराधियों से मिली हुई हो और... ।”
राज की जबान से निकलने वाले शब्द पूरे हो पाते-उससे पहले ही किसी ने बाहर से दरवाजा थपथपाया ।
राज के शब्द हलक में ही घुट गये ।
“क...कौन ?” डॉली ने कंपकंपाये स्वर में पूछा ।
“मैं हूँ-जगदीश पालीवाल ।” बाहर से बड़ी कड़कदार आवाज उभरी -“दरवाजा खोलो डॉली !”
दोनों के शरीर में करेंट-सा प्रवाहित हो गया ।
दोनों घबरा उठे ।
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