RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
अगले ही पल एक सनसनीखेज घटना का जन्म हुआ ।
उस वक्त जब उन्होंने बैडरूम से निकलकर कोठी के गलियारे में कदम रखा-तभी उनके कानों में किसी के भागते कदमों की आवाज पड़ी ।
एक क्षण-सिर्फ एक क्षण के लिये राज की नजर साये पर पड़ी-क्योंकि अगले ही क्षण वो काला साया गलियारे का मोड़ काटकर अंधेरे में गायब हो चुका था ।
और !
उसी क्षण में राज साये को पहचान गया ।
वो काला भुजंग बल्ले था ।
बल्ले !
खौफ से कांप गया राज ।
शरीर में एक साथ हजारों चीटियां रेंगती चली गयीं ।
ब...बल्ले वहाँ क्या करनी आया था
उ...उसे यह कैसे पता चला कि वो वहाँ है ☐
राज और डॉली ने बल्ले के बारे में जितना सोचा -उतनी ही उनकी रूह कांपी ।
☐☐☐
बल्ले, जगदीश पालीवाल की कोठी से निकलकर भागता चला गया ।
जल्द ही वो एक टेलीफोन बूथ के अंदर जा घुसा था ।
उसने रिसीवर उठाया-फिर बड़ी तेजी से कुछ नम्बर डायल किये ।
शीघ्र ही दूसरी तरफ घण्टी जाने लगी थी ।
कुछ देर बेल बजती रही-बजती रही ।
“हैलो !” फिर लाइन पर एक उनींदा-सा स्वर उभरा-“इंस्पेक्टर योगी स्पीकिंग !”
“इंस्पेक्टर साहब !” बल्ले ने फौरन कॉयन-हॉल में एक रुपये का सिक्का डाल दिया-“मैं बोल रहा हूँ-पहचाना मुझे ?”
“कौन ?”
“यानि नहीं पहचाना ?”
एक पल के लिये खामोशी छा गयी ।
“त...तुम बल्ले हो ।” योगी की नींद अब पूरी तरह उड़ चुकी थी ।
“बिलकुल ठीक ।” बल्ले चहका -वाकई आपकी तारीफ करनी होगी इंस्पेक्टर साहब-जो मुझे सिर्फ आवाज से ही पहचान लिया ।”
“इसमें तारीफ जैसी कोई बात नहीं ।” इंस्पेक्टर योगी खुंरदुरे लहजे में बोला-“हम पुलिस वाले हैं बल्ले-ओर अपराधियों को सिर्फ आवाज से पहचान लेना ही हमारी फितरत होती है । खैर यह बताओ-तुमने इतनी रात को मुझे फोन किसलिये किया है ? क्या वकील यशराज खन्ना की हत्या करने के इल्जाम में अपने आपको कानून के हवाले करना चाहते हो ?”
“नहीं-हरगिज नहीं ।” बल्ले की आवाज में सख्ती उभर आयी-“मैंने आपसे पहले भी कहा था इंस्पेक्टर साहब -आज फिर कहता हूँ-मैं तब तक अपने आपको कानून के हवाले करने वाला नहीं, जब तक मैं राज से अपने चाचा के खून का बदला नहीं चुका लेता ।”
“फिर फोन क्यों किया है ।?”
“मैं राज के बारे में आपको एक बड़ी सनसनीखेज जानकारी देना चाहता हूँ ।”
“कैसी जानकारी ?”
“राज आजकल एक बेहद खतरनाक योजना पर काम कर रहा है इंस्पेक्टर साहब !” बल्ले ने और ज्यादा सस्पैंस क्रियेट किया-“मैंने आपको जो बताना था-बता दिया । एक पुलिस इंस्पेक्टर होने के नाते अब आगे की इन्वेस्टीगेशन करना आपका काम है -हाँ, मैं आपको इंवेस्टीगेशन करने के लिये एक हिंट जरूर दे सकता हूँ ।”
“क...कैसा हिंट ?”
“डॉली भी उस योजना में राज की मदद कर रही है-अब बंदे को इजाजत दीजिये-नमस्ते !”
“बल्ले-बल्ले !” इंस्पेक्टर योगी चीखता रह गया ।
जबकि बल्ले बड़े निर्विकार अंदाज में टेलीफोन का रिसीवर हुक पर लटका चुका था ।
उसके होठों पर मुस्कान खेल रही थी ।
वो मुस्कान -जो किसी बेहद चालाक व्यक्ति के होठों पर उस समय खेला करती है, जब वो अपने दो दुश्मनों को लड़ाने के लिये कोई बढ़िया चाल चल दे ।
☐☐☐
सुबह के दस बजने जा रहे थे ।
उस दिन का मौसम पिछले दिन के मुकाबले ज्यादा गरम था ।
एक बार फिर सब लोग कॉफ्रेंस हॉल में जमा थे ।
सेठ दीवानचन्द आयातकार मेज के एक कोने पर ऊंची पुश्त वाली रिवॉल्विंग चेयर पर विराजमान था-उसने आज अपने चेहरे को नकाब से ढका हुआ था-जिसमें से उसकी सिर्फ दो आंखें बाहर झांक रही थीं ।
साफ लगता था-आज कोई खास बात है ।
कॉफ्रेंस हॉल की अन्य कुर्सियों पर दशरथ पाटिल कान्तिपाण्डे, राज, डॉली ओर उन सबके अलावा , उस दिन का सबसे ज्यादा खास मेहमान जगदीश पालीवाल भी वहाँ बैठा था ।
जगदीश पालीवाल की वहाँ उपस्थिति निःसंदेह चौंका देने वाली थी ।
पालीवाल की वहाँ उपस्थिति से एक बात और भी साबित होती थी कि उसने अपने मासूम बच्चे की जिंदगी बचाने के लिये उन शैतानों के सामने घुटने टेक दिये हैं ।
आज उसने अपने उसूलों को अपने आदर्शों की बलि दे दी है ।
इसके अल्वा एक बाप और कर भी क्या सकता है ?
☐☐☐
सिर्फ एक घण्टा पहले की बात है ।
जगदीश पालीवाल उस समय अपनी कोठी के ड्राइंग हॉल में बेचैनी पूर्वक टहल रहा था ।
उसकी आंखों में आतंक की छाया थी ।
होंठ खुश्क !
जब से वह दोनों गुड्डू का अपहरण करके ले गये थे-तब से उसका यही हाल था ।
कभी वो इस कमरे में चहलकदमी करता-तो कभी उस कमरे में ।
सारी रात सिगरेट-पर-सिगरेट फूंकते हुए गुजरी ।
कई बार उसके दिमाग में यह ख्याल भी आया कि वह उदयपुर टेलीफोन करके उस घटना की अपनी पत्नी को सुचना दे दे ।
लेकिन फिर वो रुक गया ।
उसे सुचना देने से ही क्या होना था-वह परेशान और होती ।
रह-रहकर पालीवाल की आंखों के गिर्द अपने मासूम बेटे का मुखड़ा चक्कर काट जाता ।
एक बाप की बेताब बाहें अपने जिगर के टुकड़े को कलेजे से लगाने के लिये मचल रही थी ।
☐☐☐
और !
तभी गरम लोहे पर चोट हुई ।
मारुती वैन में सवार होकर दुष्यंत पाण्डे उसकी कोठी पर पहुँचा था ।
जगदीश पालीवाल को एक टाइपशुदा पात्र दिया-जिसमें सिर्फ चंद लाइनें लिखी थीं ।
“अगर अपने बेटे की जिंदगी के लिये हमारी शर्त मंजूर है-तो फौरन पत्रवाहक के साथ वैन में बैठकर आ जाओ-इसी में तुम्हारी भलाई है ।”
तुम्हारे बेटे का शुभचिन्तक
गुमनाम संगठन
पत्र पढ़ते ही जगदीश पालीवाल ने गुस्से में उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले ।
“और अगर मै तुम्हारे साथ न गया ।” जगदीश पालीवाल झपटकर दुष्यंत पाण्डे का गिरेहबान पकड़ लिया तथा हलक फाड़कर चिल्ला उठा-“तो तुम क्या कर लोगे-क्या कर लोगे ?”
खतरनाक ढंग मुस्कराया दुष्यंत पाण्डे !
उसकी मुस्कान खून को बर्फ की तरह जमा देने वाली थी ।
गिरेहबान पकड़ने का उसने जरा भी बुरा नहीं माना ।
“अगर तुम मेरे साथ न गये-तो वह हो जायेगा ऑफीसर !” दुष्यंत पाण्डे फुंफकारता-सा बोला-“जिसकी कल्पना भी तुम्हारे लिये दुश्वार है-तुम्हारे गुड्डू के खून के छीटें दूर-दूर तक उड़ेंगे-दूर-दूर तक । और हमारी उस दरिंदगी के जिम्मेदार तुम होओगे-सिर्फ तुम ।”
तत्काल दुष्यंत पाण्डे का गिरेहबान पालीवाल के हाथ से छूट गया ।
सारी गर्मी जाती रही ।
वह अपने आपको सौ साल के वृद्ध की तरह कमजोर महसूस करने लगा ।
रात भर की बेचैनी और विवशता के कारण उसमें इतना भी साहस न बचा था-जो ज्यादा विरोध कर सके ।
वह एक हारे हुए जुआरी की तरह निर्जीव कदमों से चलता हुआ चुपचाप मारूति वैन में सवार हो गया ।
उसे आंखों पर पट्टी बांधकर अड्डे पर लाया गया था ।
वहाँ जब उसकी आंखों से पट्टी खोली गयी-तो उसने अपने आपको उसी कॉफ्रेंस हॉल में पाया-जिसमें इस वक्त बैठा था ।
☐☐☐
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