RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
जगदीश पालीवाल गला खंखार कर बोला-“दुर्लभ ताज की जो सिक्योरिटी की गयी है-सिक्योरिटी के सम्बन्ध में मैंने तुम लोगों को लगभग पूरी डिटेल बता दी है । अब इस पूरी सिक्योरिटी के बाद-इस पूरे परफैक्ट इंतजाम के बाद एक आखिरी सिक्योरिटी और है, जो उस दुर्लभ ताज के लिये की गयी है ।”
“क...क्या ?” सेठ दीवानचन्द के नेत्र अचम्भे से फट पड़े-“वडी क्या अभी कोई और सिक्योरिटी भी बची है ?”
“हाँ ।” जगदीश पालीवाल सहज स्वर में बोला-“अभी एक आखिरी सिक्योरिटी और बची है-और मैं समझता हूँ कि वो सिक्योरिटी इन तमाम सिक्योरिटी से ज्यादा परफैक्ट है-ज्यादा सिक्केबंद है ।”
“वडी ऐसी क्या सिक्योरिटी है वो ।” सेठ दीवानचन्द जबरदस्त सस्पैंस के बीच झूलता हुआ बोला-उसके बारे में भी बता ।”
“अब उसी के विषय में बताने जा रहा हूँ । दरअसल ज्यूरी के मैंम्बरों ने दुर्लभ ताज की सुरक्षा व्यवस्था के लिये जो चक्रव्यूह रचा है-वह सिक्योरिटी उस चक्रव्यूह का सबसे आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है । यूं तो म्यूजियम में जितने भी सुरक्षा प्रबन्ध किये गये हैं-वह सब अपने आप में कम्पलीट हैं और उन्हें भेद पाना असंभव है । लेकिन... ।”
“लेकिन क्या ?”
“सुरक्षा रुपी चक्रव्यूह के उस आखिरी हिस्से को भेदने की बाबत सोचना भी, मैं समझता हूँ कि पागलपन होगा-क्योंकि वहाँ ज्यूरी के मैम्बरों ने इतना जबरदस्त मायाजाल बिछाया है कि अगर उस मायाजाल को भेदने के लिए आज के युग में अर्जुन, अभिमन्यु, भीम, नुकूल, सहदेव या युधिष्ठिर जैसे महान योद्धा भी आ जायें-तो उन्हें भी असफलता का मुँह देखना पडेगा । सुरक्षा रुपी चक्रव्यूह का वे आखिरी चरण ‘हॉल नम्बर चार’ है । उस हॉल की सिक्योरिटी यह सोचकर की गयी है कि अगर कोई अपराधी किसी तरह तमाम सिक्योरिटी को भेदता हुआ ‘हॉल नम्बर चार’ तक पहुँचने में सफल हो जाता है-तो फिर उसके हाथों से दुर्लभ ताज को किस तरह बचाया जाये ।”
“क...किस तरह बचाया जायेगा नी ?”
“मान लो ।” जगदीश पालीवाल बोला-“जो अपराधी तमाम सिक्योरिटी सिस्टम को भेदकर हॉल नम्बर चार तक पहुँचने में सफल होता है-वह अपराधी तुम हो । अब तुम मुझे यह बताओ कि वहाँ पहुँचने के बाद तुम क्या करोगे ?”
“वडी और क्या करता-अंदर घुसने की कोशिश करूंगा नी ।”
“एग्जेक्टली !” जगदीश पालीवाल चहक उठा-“तुम अंदर ही घुसने की कोशिश करोगे-लेकिन सवाल ये है कि तुम अंदर ही घुसोगे कैसे ? क्योंकि हॉल नम्बर चार के दरवाजे पर तो बड़े भारी-भरकम ताले और चोर ताले लगे हुए हैं-जिन्हें ‘मास्टर की’ कि सहायता से भी नहीं खोला जा सकता ।”
“पालीवाल साईं !” सेठ दीवानचन्द थोड़ा झुंझलाकर बोला-“वडी अगर ताला खुल नहीं सकता-तो टूट तो सकता है नी । और अगर ताला टूट भी नहीं सकता-कम-से-कम दरवाजा तो टूट-ही-टूट सकता है ।”
“आई एण्टायरली एग्री विद यू ।” जगदीश पालीवाल पहले की तरह ही चहककर बोला-“मैं तुमसे बिलकुल सहमत हूँ-बल्कि मैं खुद भी यही कहना चाहता हूँ कि प्रत्येक अपराधी की उस अवस्था में यही मोनोपली होगी । क्योंकि जो इतने पावरफुल सिक्योरिटी सिस्टम को भेदकर हॉल नम्बर चार तक पहुंचेगा-उसे वहाँ पहुँचकर खाली हाथ लौटना तो किसी भी हालत में गंवारा न होगा । चाहे उसे कुछ भी क्यों न करना पड़ेगा-कैसा भी जायज या नाजायज तरीका इस्तेमाल क्यों न करना पड़े । अपराधी की इसी मोनोपली को ध्यान में रखकर ज्यूरी के मैम्बरों ने हॉल नम्बर चार की सुरक्षा व्यवस्था की है । अगर तुममें से कोई फिलहाल हॉल नम्बर चार में गया है-तो उसने वहाँ जाकर देखा भी होगा कि उस हॉल की छत और दीवारें फॉल्स सीलिंग तथा प्लास्टर पेरिस की बनी हुई हैं । जिनकी मोटाई लगभग एक फुट के करीब है-दीवार तथा छत को इतनी मोटाई में डेकोरेट करने के पीछे एक खास कारण है ।”
“कैसा कारण ?”
“दीवार और छत-दोनों जगह स्वचालित गनें छिपी हुई हैं । कोई भी अपराधी जैसे ही किसी गलत तरीके से हॉल में घुसेगा-तभी दीवार तथा छत में छिपी हुई स्वचालित गनें हरकत में आ जायेंगी और वो हॉल के हर हिस्से पर हर ऐंगल पर गोलियों की बौछार करना शुरू कर देंगी । यानि अपराधी हॉल में चाहे किसी भी जगह क्यों न खड़ा हो-गोलियां उसे वहीं आकर लगेंगी और वो पलक झपकते ही एक लाश में बदल जायेगा ।”
सेठ दीवानचन्द सहित सब के चेहरों पर कालिख पुत गयी ।
“और अगर अपराधी किसी तरह उन गोलियों से भी बच गया ।”
जगदीश पालीवाल बोला-“जोकि बिल्कुल नामुमकिन काम है-तब भी वो उस दुर्लभ ताज को नहीं चुरा पायेगा ।”
“क...क्यों ?” दशरथ पाटिल के दिमाग पर बिजली-सी गिरी-“फिर उस ताज को चुराने में क्या मुश्किल है ?”
“बहुत बड़ी मुश्किल है । क्योंकि अपराधी उस ताज को निकालने के लिये जैसे ही उसके शीशे के बॉक्स को छुएगा-तभी उस बॉक्स के अंदर बंद दुर्लभ ताज बीस फुट नीचे एक कुएं जैसी गहराई में चला जायेगा । अपराधी बॉक्स से हाथ हटायेगा तो वह फिर ऊपर आ आयेगा । हाथ लगायेगा-तो फिर नीचे चला जायेगा । बस यही नाटकीय और बेहद तिलिस्मी प्रक्रिया चलती रहेगी-लेकिन दुर्लभ ताज अपराधी के हाथ नहीं लगेगा ।”
“साईं !” दीवानचन्द सनसनाये स्वर में बोला-इसका मतलब वह तिलिस्तमी सिस्टम तो शीशे के बॉक्स में ही फिट हुआ-क्योंकि उसे हाथ लगाते ही दुर्लभ ताज ऊपर-नीचे होता है ।”
बिलकुल ठीक ।”
और अगर हम शीशे के उस बॉक्स को ही तोड़ डालें-तो क्या होगा ?”
“कुछ नहीं होगा-उस पोजीशन में वो दुर्लभ ताज बीस फुट नीचे चला जायेगा तथा फिर ऊपर नहीं आयेगा । फिर तो वही इंजीनियर उस दुर्लभ ताज को बीस फुट नीचे से निकाल सकते हैं-जिन्होंने वहाँ वो सारे सिक्योरिटी डेवायसिज फिट किये हैं ।”
“ओह !”
वहाँ पुनः शमशान घाट जैसा सन्नाटा छ गया ।
सब स्तब्ध थे ।
बिलकुल मौन !
“पालीवाल साईं !” सेठ दीवानचन्द नकाब के पीछे से उसे देखता हुआ हिचकिचाये स्वर में बोला-“वडी यह तो वाकई बड़ा जबरदस्त इंतजाम है ।”
“मैं पहले ही कहता था ।” जगदीश पालीवाल के होठों पर मुस्कान दौड़ी-“कि उस दुर्लभ ताज को चुराना आसान नहीं है-उसका सिक्योरिटी सिस्टम बेइन्तिहाँ मजबूत है । शायद भारत में पहली बार किसी एण्टीक आइटम के लिये इतनी जबरदस्त सिक्योरिटी की गयी है ।”
“वडी इसमें कोई शक नहीं ।” दीवानचन्द बोला-“कि सिक्योरिटी वाकई बहुत पावरफुल है-लेकिन एक बात मैं फिर भी कहूँगा ।”
“क्या ?”
“सिक्योरिटी चाहे कितनी भी जबरदस्त हो-लेकिन उसे तोड़ा जा सकता है । साईं-दिमाग के ब्लेड से हर धांसू सिक्योरिटी की काट पैदा की जा सकती है ।”
“य... यानि !” राज के नेत्र हैरत से फटे-“यानि तुम यह कहना चाहते हो कि तुम इस सिक्योरिटी को भेदने की कोई योजना बना लोगे ?”
“मैं अभी कोई दावा नहीं कर रहा-लेकिन पालीवाल साईं, मेरा यह मानना है कि दुनिया का कोई काम मुश्किल नहीं-कोई काम असंभव नहीं । जरुरत है तो इंसान के अंदर बस लगन की-हौंसले की-और एक तंदरुस्त दिमाग की ।”
“म...मुझे तो नहीं लगता कि कोई अपराधी यह करिश्मा कर पायेगा ।”
“वडी तुम हमें चैलेन्ज दे रहे हो नी ?”
पालीवाल सकपकाया ।
“साईं-अगर तुम हमें चैलेन्ज दे रहे हो, तो हमें तुम्हारा यह चैलेन्ज कबूल है ।”
ठीक है-आप इसे मेरा चैलेन्ज ही समझें । क्योंकि मुझे पूरा यकीन है कि इस परफैक्ट सिक्योरिटी को दुनिया का कोई व्यक्ति नहीं भेद सकता ।”
बढ़िया बात है ।” सेठ दीवानचन्द ने गरमजोशी के साथ कहा-“वडी हम तुम्हें यह करिश्मा करके दिखायेंगे ।”
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फिर वो मीटिंग वहीं बर्खास्त हो गयी ।
जगदीश पालीवाल को जिस तरह आंखों पर पट्टी बांधकर वहाँ लाया गया था । उसी तरह वहाँ से विदा कर दिया गया ।
लेकिन जाने से पहले वो अपने बेटे ‘गुड्डू’ से मिला और बड़े ही जज्बाती होकर मिला ।
“मैं तुमसे एक विनती करना चाहता हूँ मैडम ।” फिर उसने जाने से पहले डॉली से कहा था ।
“क...कहिये ।” डॉली का स्वर कांप उठा ।
“तुम एक स्त्री हो ।” जगदीश पालीवाल की आवाज भावनाओं से भरी हुई थी-“मैं जानता हूँ कि तुम चाहे कितना ही इन अपराधियों से मिली हुई होओ-लेकिन फिर भी तुम उतनी कठोर नहीं हो सकतीं-जितना यह सब हैं-इसीलिये मैं तुमसे यह विनती करने की हम्मत कर पा रहा हूँ । गुड्डू मेरा इकलौता बेटा है-इसकी अच्छी तरह देखभाल करना ।”
डॉली भी जज्बाती हो उठी ।
वह एकदम गुड्डू की तरफ झपटी और उसने उसे अपनी छाती से चिपटा लिया ।
“इ...इसे कुछ नहीं होगा ।” डॉली बोली-“ज...जब तक मैं जिन्दा हूँ- कोई आंच नहीं आयेगी पालीवाल साहब ।”
“मुझे तुम पर भरोसा है ।” जगदीश पालीवाल की आंखें भीग गयीं-“हालांकि तुमने मुझे धोखा दिया-लेकिन फिर भी न जाने क्यों मुझे तुम्हारे ऊपर ऐतबार करने को दिल चाहता है ।”
तड़प उठी डॉली !
जबकि पालीवाल फिर वहाँ से चला गया था ।
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