Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
12-05-2020, 12:41 PM,
#55
RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
राज की जिंदगी अब एक बिल्कुल नया मोड़ ले चुकी थी ।
कल का ऑटो रिक्शा ड्राइवर हालात की चक्की में पिसकर अब पूरी तरह एक अपराधी बन चुका था ।
सेठ दीवानचन्द ने उसे अपने संगठन का मेम्बर बना लिया था ।
इतना ही नहीं- उसे अड्डे से बाहर आने-जाने की इजाजत भी सेठ दीवानचन्द ने दे दी थी ।
तब राज को पहली बार यह मालूम हुआ कि वो अड्डा सेठ दीवानचन्द की विशाल ज्वैलरी शॉप के नीचे तहखाने में बना हुआ था ।
लेकिन उस अड्डे में आने का रास्ता एक तीन मंजिले मकान के अंदर से था- वह मकान ज्वैलरी शॉप के बिल्कुल पीछे वाली गली में था । वह पुराना-सा मकान भी सेठ दीवानचन्द की मिल्कियत था- वह ढाई सौ वर्ग गज में फैला था और उस मकान के तहखाने से होकर एक छोटी-सी सुरंग पार करते हुए अड्डे तक पहुँचा जाता था ।
वह सुरंग सीधे कांफ्रेंस हॉल में खुलती थी ।
दरअसल कॉफ्रेंस हॉल में एक अर्द्धनग्न लड़की की विशाल पेंटिंग लगी थी- उस पेंटिंग के बराबर में एक नन्हा-सा लाल बटन था जब वह बटन दबाया जाता, तो वह पेंटिंग किसी स्लाइडिंग डोर की तरह एक तरफ सरक जाती ।
फिर उस पेंटिंग के पीछे स्टेयरिंग व्हील जैसा लोहे का एक चक्कर नजर आता ।
इस चक्के को घुमाने पर ही दीवार का एक बड़ा भाग दायीं तरफ सरकता था । और तब कहीं सुरंग का दहाना दिखाई देता ।
वह अड्डा उस विशालकाय ज्वैलरी शॉप के नीचे जरूर बना हुआ था- लेकिन उस अड्डे में आने-जाने का रास्ता पिछली गली में बना वही पुराना मकान था ।
राज ने जब पहली बार दशरथ पाटिल के साथ उस रास्ते के दर्शन किये- तो वह उस पूरे सिस्टम से बड़ा प्रभावित हुआ ।
हद से ज्यादा प्रभावित हुआ ।
ऐसे करिश्मे तो उसने सिर्फ कभी-कभार फिल्मों में ही देखे थे । आम जिन्दगी में भी इस तरह का कुछ होता है- यह तो उसने सोचा भी न था ।
☐☐☐
बहरहाल- फिर दुर्लभ ताज चुराने के लिये योजना पर काम शुरू हुआ ।
सेठ दीवानचन्द, दशरथ पाटिल और दुष्यंत पाण्डे- वह तीनों उस ताज को चुराने का दृढ़ संकल्प ले चुके थे ।
हालांकि सिक्योरिटी वाकई बहुत पावरफुल थी- लेकिन वो निराश नहीं थे ।
उन्हें लग रहा था कि वो वाकई कोई ‘करिश्मा’ कर डालेंगे ।
उस सिक्योरिटी को भेदने के लिए उन्होंने खूब दिमाग लड़ाया ।
उसी शाम उन तीनों के बीच उस सब्जेक्ट पर एक मीटिंग हुई ।
काफी देर तक उन्होंने विचार-विमर्श किया ।
लेकिन ‘नतीजा’ कुछ न निकला ।
वह सारा दिन और सारी रात उस सिक्योरिटी को भेदने की कोशिश करते रहे ।
प्रत्येक दो-दो घण्टे के बाद उनके बीच मीटिंग होती । इन दो घण्टे में जिसने जो कुछ सोचा होता- वह अपना आइडिया एक-दूसरे के सामने रखता ।
कुल मिलाकर उनके बीच सात मीटिंगें हुई ।
लेकिन नतीजा फिर भी जीरो ही रहा ।
उनके द्वारा खूब दिमाग भिड़ाकर सोचा गया आइडिया कूड़े का ढेर साबित हुआ ।
☐☐☐
शनिवार- सुबह दस बजे ।
वह तीनों कॉफ्रेंस हॉल में पुनः सिर-से-सिर जोड़े बैठे थे ।
लेकिन इस समय उनके चेहरे पर ऐसी फटकार बरस रही थी- जैसी सारी रात किसी ने उनकी जमकर धुनाई की हो ।
कल का उत्साह अब निराशा में बदल चुका था ।
राज भी उनके बीच बिल्कुल खामोश काठ का उल्लू बना बैठा था ।
“बॉस- अब उस दुर्लभ ताज को वापस कजाखिस्तान लौटने में तीन दिन रह गये हैं ।” दशरथ पाटिल शुष्क स्वर में बोला- “सिर्फ तीन दिन ! और अभी तक हमारे पास उस दुर्लभ ताज को चुराने की कोई सॉलिड योजना नहीं है ।”
“मैं एक बात कहूँ बॉस ?” राज बोला ।
“वडी तू भी बोल- तू ही क्यों खामोश रहता है नी ।”
“उस दुर्लभ ताज की सिक्योरिटी वाकई बहुत मजबूत है बॉस ।” राज बोला- “हमें उसे चुराने का ख्याल भी अपने दिमाग से निकाल देना चाहिये ।”
“वडी तू पागल है ।” सेठ दीवानचन्द भड़क उठा- “साई, तू क्या समझता है - अगर अभी तक योजना नहीं बनी, तो आगे भी नहीं बनेगी ? ऐसा भी कहीं होता है ? साईं- हमें निराशा से भरी बातें अपने दिमाग में नहीं लानी । इंसान वो होता है- जो हारने के बावजूद दिल से अपनी हार कबूल नहीं करता- बल्कि वो और संघर्ष करता है- और लड़ाई लड़ता है । वडी ऐसे ही लोगों की जिंदगी में करिश्मे होते हैं- ऐसे ही लोगों को फतेह मिलती है ।”
“ल...लेकिन... ।” दुष्यंत पाण्डे ने कुछ कहना चाहा ।
“कुछ नहीं- कुछ नहीं सुनना मुझे ।” दीवानचन्द भुनभुना उठा- “वडी हमने वो ताज चुराना है- हर हालत में चुराना है- अंडरस्टैंड ?”
सब खामोश हो गये ।
तभी एक बेहद सनसनीखेज घटना घटी ।
ऐसी घटना- जिसने सबको चौंकाकर रख दिया ।
लम्बे फल वाला एक चाकू बड़े अकस्मात् ढंग से सनसनाता हुआ कॉफ्रेंस हॉल में घुसा था- और फिर वह खचाक की तेज आवाज करता आयताकार मेज के बीचों-बीच जा धंसा ।
चारों उछल पड़े ।
हलचल-सी मच गयी ।
सबके सब बिजली जैसी रफ्तार से दौड़ते हुए कॉफ्रेंस हॉल से बाहर निकले ।
पूरा गलियारा सुनसान पड़ा था ।
कहीं कोई नहीं ।
उन चारों ने पूरा अड्डा छान मारा- लेकिन उस व्यक्ति के कहीं दर्शन न हुए जिसने चाकू फेंककर मारा था ।
आखिरकार वो थक-हारकर वापस कांफ्रेंस हाल में लौटे ।
चारों बुरी तरह डरे हुए थे ।
वापस कॉफ्रेंस हॉल में लौटते ही एक और धमाका हुआ ।
तेज धमाका!
उनकी नजर मेज में धंसे चाकू पर पड़ी थी- उन्होंने देखा कि उस चाकू की नोंक में एक कागज भी फंसा हुआ है ।
जरूर किसी ने वो कागज उन तक पहुँचाने के लिये ही चाकू वहाँ फेंककर मारा था ।
दुष्यंत पाण्डे बेपनाह फुर्ती से चाकू की तरफ झपटा ।
जल्द ही उसने चाकू की नोंक में फंसा कागज निकाल लिया और फिर उसे खोलकर जल्दी-जल्दी पढ़ने लगा ।
जैसे-जैसे उसने कागज पढ़ा- ठीक वैसे-वैसे उसकी आंखें हैरत से फटती चली गयीं ।
कागज के अन्त तक पहुँचते-पहुँचते उसकी आंखें अचम्भे के मारे अपनी कटोरियों से बाहर निकलने को तैयार थीं ।
☐☐☐
“ब...बॉस !” पूरा कागज पढ़ते ही दुष्यंत पाण्डे खुशी से चिल्ला उठा- “बॉस- ह...हमें योजना मिल गयी- हमें दुर्लभ ताज चुराने की मास्टरपीस योजना मिल गयी ।”
“वडी तू क्या कह रहा है ?” सेठ दीवानचन्द भी बौखलाया-सा उसकी तरफ झपटा- क्या कह रहा है ?”
“य...यह देखो बॉस !” दुष्यंत पाण्डे ने वह कागज उन सबके सामने लहराया- उसका खुशी से बुरा हाल था- य...यह देखो- एकाएक हमारे हाथ कितनी जबरदस्त योजना लग गयी है ।”
“लेकिन यह योजना आयी कहाँ से साईं- वडी किसने भेजी ?”
दुष्यंत पाण्डे ने फौरन उस कागज पर लिखे आखिरी दो शब्द पढ़े- तत्काल उसके चेहरे पर गंभीरता छा गयी ।
“वही क्या हुआ- चुप क्यों हो गया ?”
“इ...इस पर तो डॉन मास्त्रोनी का नाम लिखा है बॉस ।”
“ड...डॉन मास्त्रोनी !” कांप उठी दीवानचन्द की भी आवाज- “य...यानि सुपर बॉस !”
सबके नेत्र हैरत से फैल गये ।
जबकि सेठ दीवानचन्द ने दुष्यंत पाण्डे के हाथ से अब वो कागज झपट लिया था- फिर वो एक ही सांस में पूरी योजना पढ़ता चला गया ।
ज्यों-ज्यों उसने योजना पढ़ी- ठीक उसी अनुपात में उसकी आंखों की चमक बढ़ती चली गयी ।
पूरी योजना पढ़ते ही उसकी आंखें भी कई-कई हजार वाट के बल्ब की मानिन्द जगमगाने लगी थीं ।
“स...साई- पाण्डे साईं !” दीवानचन्द ने हर्षनाद-सा किया- “वडी यह तो सचमुच बड़ी धांसू योजना है ।”
“हाँ बॉस- हाँ ।”
इस बीच दशरथ पाटिल भी योजना को पढ़ गया था ।
“अगर हम इस योजना पर काम करें साईं ।” दीवानचन्द पागलों की तरह बोला- “तो हमें ताज चुराने से कोई नहीं रोक सकता- फिर तो हमने हर हालत में कामयाब होना ही है ।”
“अ...आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं बॉस !” दशरथ पाटिल भी खुशी से कंपकंपाये स्वर में बोला- “म...मुझे तो अब यह सोच-सोचकर हैरानी हो रही है कि इतनी साधारण-सी योजना हमारे दिमाग में क्यों नहीं आयी- सुपर बॉस के दिमाग में ही क्यों आयी ।”
“वडी मैं पहले ही बोलता था ।” दीवानचन्द ने कहा- “पहले ही बोलता था कि इस दुनिया में हर चीज की काट मौजूद है । वडी देखा तुमने- देखा- ज्यूरी के मेम्बर जिस सिक्योरिटी को परफेक्ट समझ रहे थे- सिक्के बंद समझ रहे थे- सुपर बॉस ने उस सिक्योरिटी को भेदने की योजना भी बना डाली । वडी जब ज्यूरी के मेम्बरों को यह पता चलेगा कि दुर्लभ ताज इतनी जबरदस्त सिक्योरिटी के बावजूद यूं आसानी से चोरी हो गया- तो वह अपना माथा पीठ लेंगे- कलप कर रह जायेंगे ।”
वह शब्द कहते हुए जोर-जोर से खिलखिलाकर हँसने लगा दीवानचन्द- और जोर-जोर से- ऐसा लग रहा था जैसे उसके ऊपर खुशी का दौड़ा पड़ गया हो ।
☐☐☐
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RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात - by desiaks - 12-05-2020, 12:41 PM

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