RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
थोड़ी देर बाद ही कॉफ्रेंस हॉल में फिर एक मीटिंग हुई ।
उस मीटिंग में इंडियन म्यूजियम का चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर जगदीश पालीवाल भी मौजूद था ।
यह सुनकर पालीवाल के दिमाग में बम-सा फटा कि उन्होंने दुर्लभ ताज को चुराने की कोई मास्टरपीस योजना बना ली है ।
वाकई वो अचम्भे की बात थी ।
“ल....लेकिन योजना क्या है ?” जगदीश पालीवाल ने उत्सुकतापूर्वक पूछा ।
मुस्कराया दीवानचन्द ।
उसने इस समय भी अपने चेहरे पर नकाब धारण की हुई थी ।
“पालीवाल साईं !” दीवानचन्द अपनी चिर-परिचित ‘सिन्धी’ भाषा में बोला- “वडी हमने सुना है कि कल शाम पांच बजे बंगलुरू से हवाई जहाज द्वारा दो ताबूतों में शेर और चीते की खालें दिल्ली लायी जा रही हैं जिनमें पहले भूसा भरा जायेगा और फिर उन्हें प्रदर्शनी
के लिये म्यूजियम में रखा जायेगा।"
पालीवाल चौंका।
"त...तुम्हें यह सब कैसे मालूम?"
“वडी हमें तो यह भी मालूम है नी ।” सेठ दीवानचंद मुस्कराया- “कि जिन ताबूतों में यह खालें लाया जायेंगी- उन ताबूतों को एअरपोर्ट पर रिसीव करने भी तुम जाओगे ।”
“यह झूठ है- गलत है ।”
“वडी यह सच है ।” दीवानचन्द उससे भी ज्यादा, जोर से चिल्लाया- “साईं- हमें सब मालूम है- हमसे कुछ नहीं छिपा ।”
“लेकिन... ।”
“वडी हमें तो यह भी मालूम है ।” दीवानचन्द पालीवाल की बात काटकर बोला- “कि उन ताबूतों को रिसीव करने का एक अथॉरिटी लैटर तुम्हें मिल भी चुका है ।”
जगदीश पालीवाल भौंचक्का रह गया ।
वह हक्का-बक्का-सा सेठ दीवानचन्द की नकाब में छुपी सूरत को देखने लगा ।
“ल...लेकिन तुम ताबूतों के सम्बन्ध में इतनी छानबीन क्यों कर रहे हो- कहीं तुम्हारा मकसद उन खालों को चुराने का तो नहीं है ?”
“नहीं पालीवाल साईं !” वडी जब दुर्लभ ताज जैसी बेशकीमती चीज आंखों के सामने हो- तो चिड़िया की बीट हाथ लगाना कौन पसन्द करता है ।”
“फिर तुम ताबूतों के बारे में इतने सवाल-जवाब क्यों कर रहे हो ?”
“दरअसल वह दोनों ताबूत दुर्लभ ताज चुराने की दिशा में हमारी बहुत बड़ी मदद करने वाले हैं ।”
“त...ताबूत मदद करने वाले हैं ।” जगदीश पालीवाल की आंखें और ज्यादा आश्चर्य से फैल गयीं- “व...वो कैसे ?”
“वडी- मैं तुम्हें पूरी योजना बताता हूँ- दरअसल कल शाम ठीक पांच बजे वह दोनों ताबूत सफदरजंग एयरपोर्ट पहुंचेंगे- ठीक ?”
“ठीक ।”
“उन ताबूतों को रिसीव करने तुम इंडियन म्यूजियम की एक स्टेशन वैगन लेकर एयरपोर्ट जाओगे- उस स्टेशन वैगन को एक ड्राइवर चला रहा होगा । सफदरजंग एयरपोर्ट पहुँचते ही खालों के वह ताबूत वैगन में लाद दिये जायेंगे तथा फिर वो स्टेशन वैगन जिस तरह बिना कहीं रुके म्यूजियम से एयरपोर्ट पहुँची थी । फिर वो उसी तरह सफदरजंग एयरपोर्ट से वापस इंडियन म्यूजियम पहुंचेगी ।”
जगदीश पालीवाल बड़ी उत्सुकता से सेठ दीवानचन्द की एक-एक बात सुन रहा था ।
“वडी तभी एक घटना घटेगी ।” सेठ दीवानचन्द योजना की रूपरेखा समझाता हुआ बोला- “स्टेशन वैगन ताबूतों को लेकर अभी सफदरजंग एयरपोर्ट से थोड़ी ही दूर आयेगी कि तभी तुम्हारे सिर में एकाएक बड़ा तेज दर्द उठेगा ।”
“म...मेरे सिर में दर्द उठेगा ?” पालीवाल चौंका ।
“हाँ ।”
“क्यों उठेगा ?”
“वडी तुमने एक स्पॉट पर पहुँचकर सिरदर्द का नाटक करना है- जानबूझकर स्टेशन वैगन के ड्राइवर के सामने ऐसा शो करना है जैसे तुम्हारे सिर में बहुत तेज दर्द उठ रहा हो ।”
“ल...लेकिन मुझे नाटक करने की क्या जरूरत है ?”
“क्योंकि यही हमारी योजना है पालीवाल साईं ।”
“मैं तुम्हारी किसी योजना पर काम करने वाला नहीं ।” एकाएक जगदीश पालीवाल गुस्से में बोला ।
“काम तो तुम करोगे ।”
“नहीं करूंगा ।”
“वडी अगर नहीं करोगे ।” दीवानचन्द ने दांत किटकिटाये- “तो तुम्हारी खैर नहीं- तुम्हारे मासूम बच्चे की खैर नहीं ।”
बच्चे के नाम सुनते ही पालीवाल का सारा गुस्सा हवा हो गया ।
“तुम लोग जबरदस्ती कर रहे हो ।” पालीवाल आन्दोलित लहजे में बोला- तुमने गुड्डू की जान के बदले में मुझसे सिक्योरिटी की जानकारी मांगी थी- वह जानकारी मैंने तुम्हें दे दी- किस्सा खत्म । अब मैं तुम्हारी कोई बात मानने के लिये बाध्य नहीं हूँ ।”
“वडी तुम्हें अपने बच्चे की जान प्यारी है या नहीं ?”
पालीवाल सकपकाया ।
“वडी मुझे मेरे सवाल का जवाब दो ।” दीवानचन्द चिंघाड़ा- तुम्हें बच्चे की जान प्यारी है या नहीं ?”
“अ...अपने बच्चे की जान किसे प्यारी नहीं होती ।”
“अगर उसकी जान प्यारी है पालीवाल साईं- तो तुम्हें वही करना होगा, जो हम कहेंगे- हमारी हर बात माननी होगी ।”
जगदीश पालीवाल कसमसाकर रह गया ।
“वडी अब आगे सुनो ।” दीवानचन्द बोला- “तुमने स्टेशन वैगन के ड्राइवर के सामने भयंकर सिरदर्द का नाटक इसलिये करना है- ताकि तुम ड्राइवर को टेबलेट लेने किसी केमिस्ट की दुकान पर भेज सको । इस पूरे ड्रामे का अभिप्राय सिर्फ इतना है कि ड्राइवर को कुछ देर के लिये स्टेशन वैगन से थोड़ा दूर भेजा जा सके । अब यह पूछो कि ड्राइवर को स्टेशन वैगन से दूर भेजने की क्या जरूरत है ।”
“क...क्या जरूरत है ?”
“साईं- जिस समय तुम्हारी स्टेशन वैगन सफदरजंग एयरपोर्ट से चलेगी- उसी क्षण तुम देखोगे कि एक फियेट स्टेशन वैगन के पीछे लगी हुई है । वडी वो फियेट, हमारी फियेट होगी और उसमें हमारे आदमी सवार होंगे । एक पूर्व निधारित तन्हा-सी जगह पर पहुँचकर जैसे ही तुम सिरदर्द का ड्रामा करोगे और ड्राइवर को टेबलेट लेने के लिये भेजोगे- उसी क्षण फियेट के अंदर से निकलकर हमारा एक आदमी तेजी से तुम्हारे पास पहुंचेगा । वडी हमें यह भी मालूम है कि इंडियन म्यूजियम की स्टेशन वैगन दो पोर्शन में बंटी हुई है । आगे वाला जोकि ड्राइविंग पोर्शन है- सिर्फ चार फुट का है । जबकि पिछला पोर्शन, जिसे बॉक्स पोर्शन कहा जाता है- उसकी लम्बाई पंद्रह फुट है । बॉक्स पोर्शन में ही ताबूत जैसे आइटम रखे जाते हैं और उसके लोहे के मजबूत दरवाजे पर हमेशा एक भारी-भरकम ताला झूलता रहता है । एनी वे- उस दिन भी दोनों ताबूत स्टेशन वैगन की उसी बॉक्स पोर्शन में होंगे और उसके दरवाजे पर ताला लगा होगा । लेकिन ड्राइवर जैसे ही स्टेशन वैगन खड़ी करके टेबलेट लेने केमिस्ट की दुकान की तरफ जायेगा- तभी हमारा आदमी तुम्हारे पास पहुंचेगा और तुमने उसे फौरन बॉक्स पोर्शन के ताले की चाबी दे देनी है ।”
“च...चाबी दे देनी है क्यों ?”
“वही बता रहा हूँ साईं । ताले की चाबी मिलते ही हमारा आदमी आनन-फानन में बॉक्स पोर्शन का दरवाजा खोलेगा- दरवाजा खुलते ही हमारे और दो आदमी जो फियेट में बैठे होंगे, वह डकैती डालने वाले थोड़े से साज-सामान के साथ फुर्ती से स्टेशन वैगन के बॉक्स पोर्शन में दाखिल हो जायेंगे । उसके बाद हमारे बॉक्स पोर्शन का ताला वापस लगायेगा- चाबी तुम्हें देगा- और उसके बाद फियेट लेकर पहले की तरह ही सड़क पर आगे बढ़ जायेगा । यह पूरा काम ड्राइवर द्वारा टेबलेट लेकर लौटने से पहले ही कम्पलीट हो जाना है ।”
“ल...लेकिन तुम्हारे दो आदमी बॉक्स पोर्शन में घुसकर क्या करेंगे ?” जगदीश पालीवाल ने जिज्ञासावश पूछा ।
“दरअसल उन दोनों का काम बड़ा महत्वपूर्ण है ।” दीवानचन्द बोला- वडी उन्होंने ही दुर्लभ ताज की चोरी करनी है । बॉक्स पोर्शन में पहुँचने के बाद उन दोनों का सबसे पहला काम ताबूतों के अंदर घुसना होगा । वडी इस बात से तो तुम भी अच्छी तरह वाकिफ होओगे कि ताबूतों में खाल रखे जाने के बाद साधारणतया इतनी जगह जरूर बची रहती है कि उस खाली जगह में एक आदमी आ जाये- ताबूतों में वह खाली जगह छोड़ने के पीछे भी एक साइंटिफिक रीजन होता । वडी ताबूत में वो खाली जगह इसलिये छोड़ी जाती है- ताकि खाल को हवा सही तरह मिलती रहे और खाल मसाला लगी होने की वजह से खराब न हो ।”
जगदीश पालीवाल पूरी योजना बड़े विस्मय से सुन रहा था ।
“लेकिन यह तो तुमने अभी बताया ही नहीं ।” जगदीश पालीवाल बोला- “कि तुम्हारे वह दोनों आदमी ताबूतों में घुसकर क्या करेंगे ?”
“साईं- यह बात भी तुम्हें योजना में आगे चलकर मालूम होगी कि उन दोनों आदमियों ने ताबूतों में घुसकर क्या करना है । फिलहाल तुम्हारे लिये इतना समझ लेना ही काफी है कि बॉक्स पोर्शन में पहुँचने के बाद उनका एकमात्र उद्देश्य ये होगा- कि वो जल्द-से-जल्द उन ताबूतों के अंदर इस तरह घुस जायें कि बाहर से देखने पर किसी को इस बात की भनक तक न मिले- उन ताबूतों के साथ कैसी भी छेड़खानी की गयी है ।”
“वो इस तरह ताबूतों में कैसे घुस सकते हैं ?”
“क्यों नहीं घुस सकते नी ?”
“क्योंकि ताबूत सीलबन्द होते हैं- उन पर सरकारी मुहर लगी होती है ।”
“साईं- हमारे आदमी सील नहीं तोड़ेंगे- उसे हाथ भी नहीं लगायेंगे ।” दीवानचन्द बोला- “वडी वो ताबूत के नीचे से तख्ते उखाड़ कर उसके अंदर घुसेंगे और अंदर घुसते ही ताबूत के तख्ते ठीक उसी तरह वापस ठोंक देंगे- जैसे वो पहले ठुके थे । इस तरह ताबूतों की सील भी लगी रहेगी- ताला भी पड़ा रहेगा- और हमारे दोनों आदमी अपने पूरे साज-सामान के साथ ताबूत के अंदर भी घुस जायेंगे ।”
पालीवाल हक्का-बक्का रह गया ।
“उ...उसके बाद क्या होगा ?” पालीवाल ने सस्पेंसफुल स्वर में पूछा ।
“वडी उसके बाद स्टेशन वैगन इंडियन म्यूजियम पहुंचेगी । म्यूजियम में हॉल नम्बर चार सहित कुल छः हाल कमरे हैं पालीवाल साईं । यहाँ एक बात ध्यान देने के काबिल है- म्यूजियम के बाकी पांच हॉल शाम के पांच बजे ही बंद हो जाते हैं । सिर्फ चार नम्बर हॉल ही एकमात्र ऐसा हॉल है- जो शाम के छः बजे तक खुला रहता है । जबकि शेर-चीते की खाल के जो ताबूत बंगलुरू से दिल्ली आ रहे हैं- उनके सफदरजंग-एयरपोर्ट पहुँचने का टाइम भी शाम के पांच बजे का ही है । तुम क्या समझते हो- उन ताबूतों को एयरपोर्ट से इंडियन म्यूजियम तक पहुँचने में कितना समय लग जायेगा ?”
“लगभग आधा घण्टा !”
“आधा घण्टा !” दीवानचन्द बोला- “और वडी कल चूंकि स्टेशन वैगन बीच रास्ते में भी रुकेगी- इसलिये उसका इंडियन म्यूजियम पौने छः बजे तक ही पहुँचना मुमकिन होगा । करैक्ट ?”
“करैक्ट ।”
“साईं- पौने छः बजे इंडियन म्यूजियम पहुँचने के बाद तुम दोनों ताबूत किस हॉल कमरे में रखोगे ?”
“तीन नम्बर हॉल में ।”
“लेकिन तब तक तो वह हॉल बंद हो चुका होगा ?”
“निःसन्देह तब तक वह हॉल बंद हो चुका होगा ।” जगदीश पालीवाल बोला- “लेकिन हॉल नम्बर तीन और चार की चाबियां हमेशा म्यूजियम के हेड सिक्योरिटी गार्ड सरदार गुरचरन सिंह के पास रहती है- जो चौबीस घण्टे म्यूजियम में मिलता है । दरअसल इंडियन म्यूजियम की बैक साइड का एक क्वार्टर सरदार गुरचरन सिंह के नाम अलॉट किया गया है- इसलिये वह या तो म्यूजियम में मिलेगा या फिर अपने क्वार्टर में मिलेगा ।”
“और वडी बाकी हॉल कमरों की चाबियां किसके पास रहती हैं ?”
“वह अलग-अलग हॉल कमरों के अलग-अलग चीफ एग्जीक्यूटिव के पास रहती है ।”
“यानि अगर तुम कल शाम पौने छः बजे एकदम से उन हॉल कमरों की चाबियां हासिल करना चाहोगे, तो वह चाबियां तुम्हें हासिल नहीं होंगी ।”
“हाँ ।”
“वैरी गुड !” दीवानचन्द की आंखों में खुशी की चमक दौड़ी साईं- अब मैं योजना को दोबारा आगे बढ़ाता हूँ । वडी कल शाम पौने छः बजे जब तुम्हारी स्टेशन वैगन इंडियन म्यूजियम पहुंचेगी- तो सरदार गुरचरन सिंह ताबूतों को रखवाने के लिये हॉल नम्बर तीन का दरवाजा खोलना चाहेगा- लेकिन कल उस हॉल का दरवाजा नहीं खुलेगा पालीवाल साईं ।”
“क्यों ?” पालीवाल के दिमाग में धमाका-सा हुआ- “कल उस हॉल का दरवाजा क्यों नहीं खुलेगा ?”
“क्योंकि कल मैं म्यूजियम जाऊंगा- और खुद अपने हाथों से हॉल नम्बर तीन का ताला खराब करके आऊंगा ।”
“वो कैसे ?”
“वडी यह कोई बड़ी बात नहीं । मुझे मालूम हुआ है कि हॉल नम्बर तीन पूरे म्यूजियम में सबसे ज्यादा तन्हा जगह पर है । इतना ही नहीं- पेशाबघर भी उसके काफी नजदीक है । मैंने कल किसी भी वक्त पेशाब करने के बहाने उस तन्हा जगह पर जाकर हॉल नम्बर तीन के ताले में चाबी डालनी है और उसे कसकर इधर-उधर हिला देना है । वह चाबी चूंकि उस ताले की नहीं होगी- इसलिये कसकर इधर-उधर हिलाने से उस ताले के अंदर के कलपुर्जे हिल जायेंगे तथा फिर थोड़ी देर बाद गुरचरन सिंह के खूब कोशिश करने पर भी वो ताला नहीं खुलेगा ?”
“इससे क्या फायदा होगा ?”
“वडी सारा फायदा ही इससे होगा- पूरी योजना ही इस छोटी-सी घटना पर टिकी है ।”
“वो- कैसे ?”
“पालीवाल साईं !” दीवानचन्द- “वडी जब हॉल नम्बर तीन का दरवाजा तो सरदार गुरुचरन सिंह से खुलेगा नहीं और बाकी हॉल कमरों की चाबियाँ उसके पास होंगी नहीं- तो तुम्हीं बताओ साईं वह उन दोनों ताबूतों को किस हॉल में रखवायेगा ?”
पालीवाल सकपका उठा ।
पलक झपकते ही सारी योजना उसकी समझ में आ गयी ।
“जवाब दो साईं ।” दीवानचन्द मुस्कराकर बोला- “वडी वो उन ताबूतों को किस हॉल कमरे में रखवायेगा नी?
“ए...ऐसी परिस्थिति में तो सरदार गुरचरन सिंह को वह ताबूत हॉल नम्बर चार में ही रखवाने होंगे ।”
“सही- बिल्कुल सही कहा तुमने ।” दीवानचन्द प्रफुल्लित हो उठा ।” और वडी यही हम लोग चाहते हैं- यही हमारी योजना है । पालीवाल साईं- सिर्फ वह ताबूत ही हॉल नम्बर चार में बंद नहीं होंगे बल्कि हमारे दोनों आदमी भी उन ताबूतों के साथ-साथ निर्विघ्न उस हॉल में बंद हो जायेंगे । उस हॉल नम्बर चार में जिसकी सिक्योरिटी के इतने जबरदस्त इंतजाम भारत सरकार ने किये हैं । जिस सिक्योरिटी पर ज्यूरी के मेम्बरों को गर्व है । हमारे दोनों आदमी जिस तरह नीचे से तख्ते उखाड़कर ताबूत में घुसे थे- वह हॉल बंद होने के बाद उसी प्रकार तख्ते उखाड़कर ताबूतों से बाहर निकल आयेंगे । अब एक दूसरी बात सुनो- ऐसी परिस्थिति में फॉल्स सीलिंग की छत और प्लास्टर पेरिस की दीवारों में छिपी स्वचालित गनें भी हमारे आदमियों का कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगी । क्योंकि वह स्वचालित गनें भी उसी वक्त हरकत में आती हैं जब हॉल बंद होने के बाद उसमें कोई गलत तरीके से घुसता है । बिल्कुल यही स्थिति शीशे के तिलिस्मी बॉक्स में बंद दुर्लभ ताज की है- वडी वह बॉक्स भी ताज को ऊपर-नीचे ले जाने वाला करामाती प्रदर्शन तभी दिखाता है, जब कोई हॉल में गलत तरीके से घुस जाये- वरना साधारण स्थिति में वो दुर्लभ ताज अपनी जगह फिक्स ही रहता है । पालीवाल साईं- अब तुम अंदाजा लगा सकते हो कि वो ताज, वह युगों पुराना कजाखिस्तान का दुर्लभ ताज कितनी आसानी से हमारे हाथ लग जायेगा ।”
जगदीश पालीवाल भौंचक्की-सी अवस्था में दीवानचन्द का नकाबशुदा चेहरा देखता रह गया ।
उसे अभी भी अपने कानों पर यकीन नहीं आ रहा था ।
वो विश्वास नहीं कर पा रहा था कि उन अपराधियों ने इतनी जबरदस्त सिक्योरिटी को भेदने की कोई योजना बना ली है ।
वो वाकई करिश्मा था ।
करिश्मा!
“पालीवाल साईं !” दीवानचन्द खुश होता हआ बोला- “वडी ज्यूरी के मेम्बर उस दुर्लभ ताज की सिक्योरिटी करने में बस एक ही जगह मात खा गये- उन्होंने नम्बर चार में तिलिस्मी मायाजाल तो बिछाया साईं , लेकिन उस मायाजाल में बस एक ही लूज पॉइंट छोड़ दिया कि वो सिक्योरिटी सिस्टम तभी हरकत में आयेगा- जब कोई उस हॉल में गलत तरीके से प्रवेश करे- वरना सब कुछ सामान्य रहेगा । अगर इस सिक्योरिटी सिस्टम में यह लूज पॉइंट न होता- शायदा आज हम किसी भी हालत में उस दुर्लभ ताज को चुराने की योजना न बना पाते । लेकिन इसमें ज्यूरी के उन मेम्बरों की भी क्या गलती है साईं- वडी उन्हें यह कोई ख्वाब थोड़े ही चमका होगा कि कोई इस तरह भी हॉल में घुस सकता है ।”
जगदीश पालीवाल सकते जैसी अवस्था में बैठा ।
“साईं !” दीवानचन्द दोबारा बोला- “मुझे अब शायद यह कहने की जरूरत नहीं कि तुमने मुझे जो चैलेन्ज दिया था- उसमें मैं जीत चुका हूँ । वडी इस परफेक्ट योजना से साबित हो चुका है कि सचमुच इस दुनिया में कोई काम नामुमकिन नहीं ।”
“एक बात बताओ ।” पालीवाल शुष्क स्वर में बोला ।
“पूछो ।”
“मैं मानता हूँ । कि तुम्हारे दोनों आदमी, उस दुर्लभ ताज को आसानी से चुरा लेंगे- लेकिन फिर वो उस दुर्लभ ताज को लेकर हॉल नम्बर चार से किस तरह बाहर निकलेंगे ? क्योंकि हॉल नम्बर चार के दरवाजे पर बाहर से ताला पड़ा है और म्यूजियम में चप्पे-चप्पे पर सिक्योरिटी गार्डों का पहरा है ।”
सेठ दीवानचन्द ने उनके हॉल नम्बर चार से बाहर निकलने की भी योजना बतायी ।
वह योजना हॉल में घुसने वाली योजना से भी ज्यादा जबरदस्त थी ।
पालीवाल हतप्रभ रह गया ।
पूरी योजना में कहीं सुई की नोंक के बराबर भी लूज पॉइंट नहीं था ।
“इसमें कोई शक नहीं ।” फिर जगदीश पालीवाल थोड़ा रुककर प्रभावित स्वर में बोला- “कि तुमने इतने मजबूत विश्वस्तर के सिक्योरिटी सिस्टम को भेदने की एक मास्टर पीस योजना बना ली है- लेकिन इस योजना को बनाते समय तुम एक बहुत महत्वपूर्ण बात भूल गये ।”
“वो क्या ?”
दीवानचन्द के साथ-साथ सब चौंके ।
सब हैरान हुए ।
“दुर्लभ ताज तो तुम चुरा लोगे- लेकिन उस दुर्लभ ताज के बारे में कहा जाता है कि वो अपनी सुरक्षा खुद करता है । और यह सच भी है- आज तक जिसने भी उस दुर्लभ ताज को चुराने का प्रयास किया- वही किसी-न-किसी दुर्घटना में मारा गया या बर्बाद हो गया । आज तक ऐसी दर्जनों कहानियां उस दुर्लभ ताज के साथ जुड़ चुकी हैं- जब अपराधियों ने तुम्हारी तरह ही बड़े जोर-शोर के साथ का प्रयास किया- लेकिन वो अपने मकसद में सफल न हुए ।”
“वडी इस बार हम सफल होंगे ।” दीवानचन्द ने दृढ़ शब्दों से कहा- “यह सब कहानियां, सिर्फ कहानियां है- जिसमें सच्चाई नहीं- हकीकत नहीं । इन कहानियों को सिर्फ इसलिये गढ़ा गया है- ताकि हमारे जैसे अपराधियों के दिलों में खौफ पैदा किया जा सके और उन्हें दुर्लभ ताज चुराने से रोका जा सके ।”
पालीवाल कुछ न बोला ।
वो भांप गया कि उन्हें समझाना बेकार है ।
वह अब कोई-न-कोई गुल खिलाकर रहेंगे और अपने मासूम बच्चे की जिंदगी के लिये उसे भी मजबूरन उनकी योजना में शामिल होना पड़ेगा ।
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