RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
बहरहाल फिर जगदीश पालीवाल को कुछ जरूरी निर्देश देकर वहाँ से विदा कर दिया गया ।
उसे विदा करते ही सेठ दीवानचन्द ने आनन-फानन योजना में काम आने वाले सामान की एक लिस्ट बनायी ।
एक फायर ब्रिगेड वैन ।
चार अग्निशमन कर्मचारियों की खाकी वर्दियां ।
गैस मास्क ।
गैस टैंक ।
हेलमेट ।
.32 या .38 कैलिबर की स्मिथ एण्ड वैसन या कोल्ट जैसी बेहद उम्दा किस्म की चार रिवॉल्वरें- जो खतरे के समय में सुरक्षा कवच का काम अंजाम दे सकें ।
दुर्लभ ताज से ही मेल खाता एक नकली पीतल का ताज ।
दस-दस लीटर वाली कैरोसीन ऑयल की दो केनें ।
हथौड़ा ।
कीलें ।
आदि-आदि ।
सामान की लिस्ट तैयार होते ही वह सब फौरन सामान जुटाने के काम में लग गये ।
शनिवार की रात दस बजे तक उन्होंने लगभग सारा सामान एकत्रित कर लिया ।
सबसे ज्यादा परेशानी फायर बिग्रेड वैन के हासिल होने में पेश आयी ।
लेकिन आखिरकार उन्हें प्राइवेट संस्थान द्वारा बेची जा रही बिल्कुल चालू हालत में फायर ब्रिगेड पच्चीस हजार रुपये में मिल गयी ।
अग्निशमन कर्मचारियों का सामान बेचने वाली एक रिटेल शॉप से उन्होंने अग्निशमन कर्मियों की चार सिली सिलाई वर्दियां, बेज, गैस मास्क, गैस टैंक और हेलमेट वगैरह सब खरीद लिये ।
दुर्लभ ताज से ही मेल खाता एक नकली पीतल का ताज उन्हें जामा मस्जिद के मीना बाजार से हासिल हो गया- उसमें थोड़ी बहुत जो कमी थी, वो दशरथ पाटिल ने ठीक कर दी ।
बाकी इंग्लिश रिवॉल्वरें, कैरोसीन ऑयल, कील, हथौड़ा जैसी बेहद साधारण चीजें भी उन्हें आसानी से उपलब्ध हो गयी ।
वह फिर इकट्ठे हुए ।
इस बार सेठ दीवानचन्द ने सबको यह बताया कि किसने क्या-क्या करना था ।
हॉल नम्बर तीन के ताले को खराब करने की जिम्मेदारी सेठ दीवानचन्द ने खुद संभाली- जो कि सबसे आसान काम था ।
दुष्यंत पाण्डे को सफदरजंग एयरपोर्ट से स्टेशन वैगन का पीछा करते समय फियेट ड्राइव करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी ।
और सबसे खतरनाक मुहिम पर, ताबूतों में घुसकर दुर्लभ ताज चुराने का काम दशरथ पाटिल और राज को सौंपा गया ।
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खुद को इतने जोखिम भरे काम पर नियुक्त होते देख राज का दिल नगाड़े की तरह बज उठा ।
उसका कलेजा मुँह को आ गया ।
वह अपने सवेंट क्वार्टर जैसे छोटे से कमरे में लेटा बेइन्तहा बेचैनी का अनुभव कर रहा था ।
उसे यह पता तक न चला कि डॉली कब उसके नजदीक आकर खड़ी हो गयी ।
“राज !” डॉली ने उसे आहिस्ता से पुकारा ।
राज चुपचाप पड़ा रहा ।
“राज !” इस मर्तबा डॉली ने आवाज देने के साथ-साथ उसे झंझोड़ा भी- तो वह चौंककर पलटा ।
“त...तुम !” डॉली को देखकर उसकी आवाज कांपी- “तुम !”
“क्या सोच रहे हो ?”
“क...कुछ भी तो नहीं ।”
“मुझसे झूठ बोलते हो ।” डॉली उसके नजदीक ही बैठ गयी- “क्या मैं नहीं जानती कि तुम इस वक्त क्या सोच रहे हो ।”
“क...क्या सोच रहा हूँ ?”
“तुम कल की योजना को लेकर डर हुए हो- यह सोच-सोचकर तुम्हारी जान निकल रही है कि सेठ दीवानचन्द ने तुम्हें कितने खतरनाक काम पर नियुक्त किया है ।”
“न...नहीं ।” राज की आवाज फिर कांपी- “य...यह सच नहीं ।”
“मुझसे झूठ बोलते हो ।” डॉली की आवाज कड़वाहट से भर गयी- “मैं क्या तुमसे वाकिफ नहीं । आज तक पूरी जिंदगी में कभी एक मक्खी तक नहीं मारी- कभी किसी के दस पैसे चुराने तक का हौसला दिल में पैदा नहीं हो सका- और कल तुम्हें इतनी जबरदस्त सिक्योरिटी में रखा दुर्लभ ताज चुराने के लिये भेजा जा रहा है । ऐसी परिस्थिति में अगर तुम डरोगे नहीं- तो क्या करोंगे ।”
राज अब साफ-साफ सहमा हुआ नजर आने लगा ।
“राज !”
राज चुप रहा ।
“मेरी बात ध्यान से सुनो राज !” डॉली फुसफुसा उठी- “उस दुर्लभ ताज को चुराना तुम्हारे जैसे चूहे दिल वाले आदमी के बस का काम नहीं है । मुझे तो बार-बार यह सोचकर हैरानी हो रही है कि सेठ दीवानचन्द ने इतने खतरनाक काम को अंजाम देने के लिये तुम्हारे जैसे डरपोक व्यक्ति को ही क्यों चुना । एक बात बोलूं राज ?”
“क...क्या ?” राज का सस्पेंसफुल स्वर ।
“मुझे तो इसमें भी सेठ दीवानचन्द की कोई चाल नजर आती है । तुम मानो या मानो- लेकिन मुझे साफ-साफ लगता है कि वह तुम्हें जरुर किसी नये चक्कर में फंसाने जा रहा है वरना वह खुद भी तो हॉल नम्बर चार के अंदर जा सकता था- दशरथ पाटिल के साथ दुष्यंत पाण्डे को भी तो भेजा जा सकता था । लेकिन नहीं- उसने ऐसा कुछ नहीं किया । उसने तुम्हें चुना- तुम्हें- एक बिल्कुल नये, बेहद डरपोक तथा, नातजुर्बेकार आदमी को ।”
“त...तुम कहना क्या चाहती हो ?”
“मैं सिर्फ यह कहना चाहती हूँ कि अब तुम्हारा यहाँ एक मिनट और भी रुकना खतरे से खाली नहीं है- तुम्हारी जान जोखिम में है- इसलिये जितना जल्द-से-जल्द संभव हो, यहाँ से भाग चलो ।”
“न...नहीं- यह नहीं हो सकता ।”
“क्यों नहीं हो सकता ? क्या तुम अड्डे से बाहर निकलने का रास्ता नहीं जानते ?” डॉली फुसफुसाई ।
“वह सब जानता हूँ- ल...लेकिन मैं भागकर कहाँ जाऊंगा डॉली ? राज की आवाज में पीड़ा थी- “कहाँ मुझे आसरा मिलेगा ? म...मेरी जिंदगी अब शै और मात के खतरनाक खेल में फंस चुकी है । पूरे दिल्ली की पुलिस मुझे इस तरह तलाशती घूम रही है- जैसे भूसे के ढेर में सुई तलाश की जाती है ।”
“फ...फिर, तुम क्या करोगे ?”
“मैं कर भी क्या सकता हूँ ।” राज के स्वर में बेहद निराशा थी- “अब तो मेरे सामने यही एक रास्ता है कि मैं सेठ दीवानचन्द के आदेश का पालन करूं । ल...लेकिन मेरे दिमाग में अब एक योजना और है डॉली ।”
“य...योजना- कैसी योजना ?”
“मैंने इन शैतानों को चुपचाप बातें करते सुना है कि दुर्लभ ताज हाथ में आते ही यह तीनों हिन्दुस्तान छोड़कर खामोशी से अपने सुपर बॉस के साथ अमरीका भाग जायेंगे । इसके लिये जाली पासपोर्ट और वीजे वगैरह की भी तैयारियां हो चुकी हैं ।”
“कहीं तुम इस गलतफहमी में तो नहीं ।” डॉली तुरन्त बोली- “कि यह तुम्हें भी अपने साथ अमरीका ले जायेंगे ?”
“मैं इतना बड़ा पागल नहीं हूँ- जो इस तरह के लोगों से ऐसी उम्मीद रखूंगा ।”
“फ...फिर क्या योजना है तुम्हारी ?”
राज अब डॉली की तरफ झुक गया तथा और धीमे स्वर में फुसफुसाया- “अब यह लोग कभी अमरीका नहीं जा सकेंगे डॉली ।”
“य...यह तुम क्या कह रहे हो ?” डॉली के नेत्र आश्चर्य से फैल गये ।
“मैं ठीक ही कह रहा हूँ । इस वक्त तुम मेरी कोई बात अच्छी तरह नहीं समझ सकोगी- लेकिन अब एक बात ध्यान रखना । आज तक तुम मुझे डरपोक और बुजदिल समझती थी न- तो सुनो अब डरपोक राज मर गया । आज से एक एसा नया राज जन्म लेगा- जो अपने आपमें बहादुरी की मिसाल होगा । आज तक लोग मेरे खिलाफ षड्यन्त्र रचते थे- लेकिन अब मैं षड्यन्त्र रचूंगा । ऐसा षडयन्त्र- जो सबके छक्के छुटा देगा ।” बोलते-बोलते राज की आंखों में खून उतर आया- “और...और उस व्यक्ति को तो मैं किसी भी हालत में माफ नहीं करूंगा डॉली- जिसकी वजह से आज मेरी यह हँसती-खेलती जिंदगी नरक बन गयी है ।”
राज का चेहरा ज्वालामुखी की तरह दहकने लगा ।
होंठ गुस्से से कंपकंपाने लगे ।
वह एक ही पल में दरिन्दा बन चुका था- साक्षात दरिन्दा ।
राज का वह रौद्र रूप देखकर उस साये का कलेजा पत्ते की तरह कांप उठा- जो उस छोटे से कमरे के दरवाजे से आंख और कान सटाये खड़ा उनका वार्तालाप सुन रहा था ।
अगले ही पल वो तेजी से पलटा ।
उसके शरीर में फुर्ती-सी समा गयी थी ।
फिर वो लम्बे-लम्बे डग रखता हुआ कांफ्रेंस हॉल की तरफ बढ़ गया ।
गहन अंधकार में भी उस साये के कदम इस तरह उठ रहे थे- मानो वह उस अड्डे के एक-एक हिस्से से वाकिफ हो ।
वह बल्ले था ।
बल्ले!
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