Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
12-05-2020, 12:42 PM,
#58
RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
फिर आखिरकार वो महत्वपूर्ण समय भी आ ही गया- जिसका सेठ दीवानचन्द और उसके संगठान के मेम्बरों को पिछले कई दिनों से इंतजार था ।
सचमुच वह रोमांचकारी क्षण थे ।
रोमांचकारी भी और रहस्य से भरे हुए भी ।
कोई नहीं जानता था कि आगामी कुछ घण्टों में अब क्या होने वाला है ।
खेल शुरू हुआ ।
पत्ते बिछाये जाने लगे ।
वह रविवार की खून में डूबी हुई शाम थी- जैसे ही पांच बजे, इंडियन म्यूजियम की एक स्टेशन वैगन ताबूत लेने के लिये सफदरजंग एयरपोर्ट की विशाल मारकी में जाकर रुकी ।
स्टेशन वैगन में उस समय जगदीश पालीवाल के अलावा छत्रपाल सिंह नाम का एक बेहद लम्बा-चौड़ा ड्राइवर भी मौजूद था- जो हरियाणा का रहने वाला था और जिसके कंधे पर हमेशा एक दुनाली बंदूक टंगी रहती थी । वह बंदूक सरकारी थी और म्यूजियम की तरफ से उसे इसलिये हासिल हुई थी- ताकि कोई भी खतरा देखते ही वह उसका इस्तेमाल कर सके ।
लगभग दस मिनट बाद ही शेर और चीते की खालों के दोनों ताबूत स्टेशन वैगन के बॉक्स पोर्शन में रख दिये गये ।
फिर छत्रपाल सिंह के सामने ही जगदीश पालीवाल ने दरवाजे पर पीतल का भारी-भरकम ताला लगाकर चाबी अपनी जेब में रखी ।
उसके बाद स्टेशन वैगन तूफानी रफ्तार से म्यूजियम की तरफ दौड़ पड़ी ।
छत्रपाल सिंह पूरी तन्मयता से वैगन ड्राइव कर रहा था ।
वैसे भी वो दिलखुश आदमी था ।
हमेशा मस्त रहता ।
उसकी बराबर में बैठे जगदीश पालीवाल ने रियर व्यू में देख लिया था कि एयरपोर्ट से ही सफेद रंग की एक फियेट उनकी वैगन के पीछे लग गयी है ।
वैगन अपना फासला तय करती रही ।
वह अभी मुश्किल से एक किलोमीटर भी न चली होगी कि जगदीश पालीवाल ने एकाएक जोर से सिसकारी भरकर अपना सिर पकड़ा और फिर एकदम से ड्राइविंग सीट पर ढेर होता चला गया ।
वो सीधा छत्रपाल सिंह की गोद में जाकर गिरा ।
“साहब जी- साहब जी !” छत्रपाल सिंह के हाथ-पांव फूल गये- उसने जल्दी से स्टेशन वैगन के ब्रेक अप्लाई किये- “के होया साहब जी ?”
पालीवाल कुछ न बोला ।
वह जख्मी सांड की भांति बुरी तरह हाँफता रहा- जोर-जोर से हाँफता रहा ।
“कुछ तो बोलो साहब जी- क...के होया जी?” छत्रपाल सिंह बुरी तरह दहशतजदां हो उठा था ।
“म...मेरे सिर में बहुत तेज दर्द हो रहा है छत्रपाल ।” पालीवाल पीड़ा से बुरी तरह कराहकर बोला- “द...दर्द के मारे सिर फटा जा रहा है ।”
“स...सिरदर्द में इतनी बुरी हालत साहब जी ?”
“यह कोई साधारण सिरदर्द नहीं है छत्रपाल ।” वह पीड़ा से और बुरी तरह छटपटाया- “क...कभी-कभी मेरे सिर में एक गोला-सा टकराता है- त...तुम एक काम करोगे छत्रपाल ।”
“हुकुम करो साहब जी- हुकुम ।”
“तुम फौरन कहीं से सिरदर्द की एक टेबलेट ले आओ- वरना आज मेरे यहीं प्राण निकल जाने हैं ।”
बेचारा छत्रपाल !
घबरा तो वह पहले ही काफी चुका था ।
उसकी आंखें बड़ी तेजी से चारों तरफ घूम गयीं ।
आसपास के इलाके में केमिस्ट की दुकान तो क्या कैसी भी कोई दुकान न थी ।
हाँ- पांच या छः सौ गज के फासले पर उसे एक कॉलोनी जरूर दिखाई दी ।
अगले ही पल वो बदहवास स्थिति में पैदल ही कॉलोनी की तरफ दौड़ पड़ा ।
सफेद फियेट जो मन्थर गति से चलती हुई वैगन से आगे निकल गयी थी- छत्रपाल सिंह के कूच करते ही टर्न होकर दोबारा वैगन के नजदीक पहुँची ।
फिर फियेट में- से बेहद आनन-फानन दुष्यंत पाण्डे बाहर निकला ।
जगदीश पालीवाल भी अब बड़ी चुस्त अवस्था में, वापस सीट पर बैठ चुका था ।
पलक झपकते ही दुष्यंत पाण्डे ने जगदीश पालीवाल से चाबी हासिल की ।
फिर उसने दौड़कर बॉक्स पोर्शन का दरवाजा खोला ।
उसके बॉक्स पोर्शन का दरवाजा खोलते ही फियेट में पहले से तैयार बैठे दशरथ पाटिल और राज तुरन्त केरोसीन ऑयल की केनें तथा डकैती में काम आने वाला कुछ जरूरी साज-सामान लेकर फुर्ती के साथ फियेट से बाहर निकले तथा फिर चीते की तरह दौड़ते हुए बॉक्स पोर्शन के अंदर घुस गये ।
उस वक्त दोनों ने अग्निशमन कर्मचारियों की ड्रेस पहन रखी थी ।
उन दोनों के बॉक्स पोर्शन में घुसते ही दुष्यंत पाण्डे ने फौरन बाहर से दरवाजे का ताला लगा दिया ।
चाबी जगदीश पालीवाल को सौंपी ।
उसके बाद वो पहले की तरह ही आनन-फानन फियेट में जाकर बैठ गया ।
फिर फियेट यह जा और वह जा ।
मुश्किल से एक मिनट में ही सारा काम हो गया था ।
☐☐☐
थोड़ी देर बाद ही छत्रपाल सिंह की वापसी हुई- वह सांड की तरह हाँफ रहा था ।
जगदीश पालीवाल को बिल्कुल ठीक-ठाक अवस्था में सीट पर बैठे देखकर वह चौंका ।
“अ...आपका सिरदर्द ठीक हो गयो साहब जी ?” छत्रपाल सिंह के स्वर में हैरानी थी ।
“हाँ छत्रपाल ।” पालीवाल ने गहरी सांस ली- “तुम्हारे जाते ही सिर का दर्द बड़े आश्चर्यजनक ढंग से ठीक हो गया था । मैंने तुम्हें पीछे से कई आवाजें भी दीं- लेकिन तुमने सुना ही नहीं- क्या तुम टेबलेट ले आये ?”
“हाँ साहब जी- टेबलेट तो मैं ले आया ।” छत्रपाल सिंह ने टेबलेट फौरन पालीवाल की तरफ बढ़ा दी ।
“कोई बात नहीं ।” पालीवाल ने टेबलेट जेब में रखी- “यह टेबलेट फिर कभी काम आयेगी । चलो- तुम अब जल्दी से म्यूजियम चलो ।”
अगले ही पल स्टेशन वैगन पुनः इंडियन म्यूजियम की तरफ भागी जा रही थी ।
☐☐☐
छः बजने में उस समय दस मिनट बाकी थे- जब स्टेशन वैगन म्यूजियम के विशाल प्रांगण में जाकर रुकी ।
जगदीश पालीवाल के लिये वो सबसे ज्यादा नाजुक क्षण थे ।
हेड सिक्योरिटी गार्ड सरदार गुरचरन सिंह और छत्रपाल सिंह- उन दोनों ने मिलकर वैगन के बॉक्स पोर्शन में- से वह दोनों ताबूत उतारे ।
लेकिन ताबूत उतारने में उन्हें अपनी भरपूर ताकत का इस्तेमाल करना पड़ा ।
“साहब जी !” छत्रपाल सिंह एक ताबूत उतारते ही बुरी तरह हाँफने लगा- “यह बक्से आते-आते इत्ते भारी कैसे ही गयो जी ?”
पालीवाल हड़बड़ाया ।
“ओये पापे !” सरदार गुरचरनसिंह अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए बोला- “रास्ते में चुड़ैल-शुड़ैल तो नहीं घुस गयी इन ताबूतों विच ।”
छत्रपाल सिंह की चुड़ैल-शुड़ैल के नाम हंसी छूट गयी ।
पालीवाल भी मुस्करा दिया ।
इस तरह मजाक में ही वो बात आई-गई हो गयी ।
दोनों ताबूत उठाकर हॉल नम्बर तीन के नजदीक लाये गये ।
सरदार गुरचरन सिंह ने हॉल का ताला खोलना चाहा- तो ताला न खुला ।
जरूर सेठ दीवानचन्द वहाँ आकर अपने हाथों की कारीगरी दिखाने में सफल हो गया था ।
सरदार गुरचरन सिंह ने फिर कोशिश की- लेकिन इस बार भी उसे असफलता ही मिली ।
“क्या हुआ ?” पालीवाल जानबूझ कर अंजान बना- “ताला कैसे नहीं खुल रहा ?”
“असी पता नहीं शाह जी ।” गुरचरन सिंह के चेहरे पर उलझनपूर्ण भाव उभरे- “पंज बजे तब मैंने ताला बंद किया था- तब तो सब कुछ ठीक-ठीक था ।”
“फिर इतनी जल्दी क्या हो गया ?”
गुरचरन सिंह से एकाएक जवाब देते न बना ।
“सरदार जी!” छत्रपाल सिंह थोड़ा हेकड़ी से बोला- “जरा ताल्ली मेरे को दिखाना जी- मैं देख्खूं यह ससुरा कैसे ना खुले ।”
सरदार गुरचरन सिंह ने चाबियों का गुच्छा छत्रपाल सिंह को सौंप दिया ।
अगले ही पल गैंडे जैसा शक्तिशाली छत्रपाल सिंह ताले से उलझ गया ।
जबकि पालीवाल के चेहरे पर अब सस्पेंसफुल भाव उभर आये थे ।
छत्रपाल सिंह ने बेइन्तहा कोशिश की ।
चाबी की मूठ पकड़कर खूब जोर लगाये- लेकिन आखिरकार ताला उससे भी न खुला ।
“अब क्या होगा ?” जगदीश पालीवाल ने नकली चिन्ता जाहिर की- “कहाँ रखेंगे इन ताबूतों को ?”
“शाह जी !” एकाएक सरदार गुरचरन सिंह बोला- “असी-अभी एक ताले वाले को बुलाकर लाता है- उसने पंज मिनट में ताला खोल देना है ।”
“नहीं ।” जगदीश पालीवाल फौरन बोला- “ऐसी गलती कभी मत करना गुरचरन सिंह ।”
“क्यों शाहजी ?”
“यह सारे ताले वाले एक नम्बर के बदमाश होते हैं- इन्होंने एक बार जिस ताले की चाबी बना ली, दोबारा उसी की डुप्लीकेट खुद-ब-खुद बना लेते हैं । फिर तुम्हें तो मालूम ही है कि इस हॉल में कितना कीमती सामान रखा रहता है- अगर यहाँ कभी चोरी हो गयी, तो तुम्हारी आफत आ जायेगी ।”
“आप बिल्कुल ठीक बोले साहब जी ।” छत्रपाल सिंह फौरन सहमति में गर्दन हिलाई- “हमारे गांव में ससुरों एक बिल्कुल ऐसा ही केस हो गयो था ।”
“फिर असी क्या करें शाहजी ?” सरदार गुरचरन सिंह विचलित हुआ ।
“करना क्या है- इन ताबूतों को रात भर के लिये किसी भी सुरक्षित जगह पर रख दो । सुबह इस हॉल का ताला तोड़कर जब नया ताला लगाया जायेगा- तभी इन ताबूतों को भी इसके अन्दर रख देना ।”
“ऐसी चंगी जगह तो अब बस एक ही है शाह जी- जहाँ इन ताबूतों को रातभर के लिये रखा जा सकता है ।”
“कौन-सी जगह ?”
“चार नम्बर हॉल ।”
“तो फिर पूछते क्या हो- उसी में रख दो । सुबह निकाल लेना ।”
ठीक छ: बजे उन दोनों ताबूतों को हॉल नम्बर चार में रखकर हॉल बंद कर दिया गया ।
इस तरह दशरथ पाटिल और राज सिक्योरिटी के इतने बड़े तामझाम को भेदकर सहज ही हॉल नम्बर चार में घुसने में सफल हो गये ।
वह हॉल में बंद हो गये थे ।
लेकिन किसी को पता तक न था कि थोड़ी ही देर बाद वहाँ कितना बड़ा हंगामा होने वाला है ।
☐☐☐
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RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात - by desiaks - 12-05-2020, 12:42 PM

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