Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
12-05-2020, 12:42 PM,
#62
RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
अगला दिन- एक बार फिर समाचार-पत्रों की धुआंधार बिक्री का दिन था ।
न सिर्फ दिल्ली शहर के बल्कि पूरे हिन्दुस्तान के अखबारों में उस संगठन के पकड़े जाने की बड़े व्यापक रूप से चर्चा हुई ।
सबने कवर पेज पर उस स्टोरी को छापा ।
आम नागरिकों में भी यह जानने की तेज जिज्ञासा पायी गयी कि राज ने उस संगठन के विरुद्ध जो जाल बिछाया- वह जाल किस तरह का था ।
आम नागरिकों की जिज्ञासा को देखते हुए राज ने यह घोषणा की, कि वह आज रात नौ बजे उस पूरे केस का पर्दाफाश करेगा । इतना ही नहीं- वह उस पूरे केस पर पर्दाफाश भी सेठ दीवानचन्द के अड्डे में ही बैठकर करेगा ।
कॉफ्रेंस हॉल के अन्दर ही ।
☐☐☐
यही वजह थी कि रात के नौ बजते-बजते छोटे-बड़े सभी किस्म के पत्रकारों और प्रेस फोटोग्राफरों का भी एक बड़ा हुजूम सेठ दीवानचन्द के अड्डे में जमा हो चुका था ।
कल तक जिस अड्डे में चंद लोग नजर आते थे- आज वहाँ भीड़-ही-भीड़ थी ।
पुलिस का वहाँ इतना जबरदस्त बंदोबस्त किया गया था कि कॉफ्रेंस हॉल में पैर रखने तक को जगह न बची थी ।
दिल्ली दूरदर्शन, स्टार टी.वी. और जी.टी.वी. जैसे टेलीविजनों की कई टीमें वहाँ आयी हुई थीं ।
दिल्ली दूरदर्शन ने तो आम नागरिकों की जिज्ञासा को मद्देनजर रखकर उस बेहद सनसनीखेज मीटिंग का सीधा प्रसारण राष्ट्रीय चैनल पर करने का फैसला किया था ।
कॉफ्रेंस हॉल में काफी ऊपर लकड़ी का एक मचान बनाया गया था- जिस पर टेलीविजनों की टीमें अपने शानदार ड्यूमेटिक कैमरों के साथ मौजूद थीं ।
विशाल आयताकार मेज के दोनों तरफ पड़ी कुर्सियों पर इस समय डॉन मास्त्रोनी, सेठ दीवानचन्द, दुष्यंत पाण्डे और दशरथ पाटिल बैठे थे । उनके अलावा इंस्पेक्टर योगी और जगदीश पालीवाल भी उन्हीं कुर्सियों पर विराजमान थे ।
तभी उस विशाल हुजूम को चीरकर टवीड का काला सूट और लाल फूलदार टाई लगाये राज ने कॉफ्रेंस हॉल में इस तरह कदम रखा, जैसे रंगमंच पर सबका चहेता कोई अभिनेता प्रकट हुआ हो ।
आज उसके व्यक्तित्व में विचित्र-सी आभा दैदीप्यमान हो रही थी । राज को देखते ही सब लोग उसके सम्मान में खड़े हो गये ।
राज आज उस रिवॉल्विंग चेयर पर जाकर बैठा- जिस पर कभी सेठ दीवानचन्द बैठता था ।
रिवॉल्विंग चेयर पर बैठते ही उसने एक मधुर मुस्कान सबकी तरफ उछाली ।
फिर भूमिका बांधते हुए अपने सामने रखे माइक पर बोला- मैं जानता हूँ कि आप सब लोग यहाँ इसलिये उपस्थित हुए हैं- ताकि इस केस के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर सकें । इसमें कोई शक नहीं कि यह एक काफी दिलचस्प केस था जिसमें दिमाग का भरपूर इस्तेमाल किया गया । दरअसल यह सारा ड्रामा तीन जुलाई दिन बुधवार की रात से ही शुरू नहीं हुआ बल्कि हमारा क्राइम ब्रांच पिछले कई महीने से इस ड्रामे की तैयारी कर रहा था । संग्रहालयों से दुर्लभ वस्तुओं की जो चोरी हो रही थी- उसने पूरी दिल्ली पुलिस में हड़कम्प मचा दिया था । अपराधियों ने दो साल के छोटे से अंतराल में ही बाइस करोड़ रुपये मूल्य की कई दुर्लभ वस्तुएं चोरी कर लीं- जो कि काफी सनसनीखेज बात है । लेकिन दुर्भाग्य ये था कि दिल्ली पुलिस उन चोरों को पकड़ना तो बहुत दूर उनके बारे में कोई सूत्र तक पता नहीं लगा पा रही थी । तब यह केस हमारी क्राइम ब्रांच ने अपने हाथ में लिया और मुझे ऑटो रिक्शा ड्राइवर बनकर अपराधियों का पता लगाने का आदेश दिया । इस तरह बहुरूपिया रूप धारण करने के कारण पुलिस को कई बार बड़े फायदे होते हैं- जिनमें सबसे बड़ा फायदा तो यही है कि इस तरह का रूप धारण करने से पुलिस का आदमी आम नागरिकों से कोई भी सवाल पूछ सकता है और उसे अपने उस सवाल का जवाब भी बड़ा सही मिलेगा- जबकि किसी ऑफिसर के सवालों के जवाब देने में आम आदमी थोड़ा कतराते हैं । ऐनी वे- अपनी विभाग से आदेश मिलते ही मैं ऑटो रिक्शा ड्राइवर बनकर दुर्लभ वस्तु चुराने वाले संगठन की टोह में लग गया ।”
बोलते-बोलते रुका राज !
पूरे कॉफ्रेंस हॉन में सन्नाटा था ।
गहन सन्नाटा !
अपना गला खंखारने के बाद राज ने फिर बोलना शुरू किया- “मैं सिर्फ नाम के लिये ही ऑटो रिक्शा ड्राइवर नहीं बना था- बल्कि मैं अपने कैरेक्टर को ज्यादा सजीव रूप देने के लिये दिल्ली शहर में सवारियां भी ढोता था । उसी दौरान मेरी डॉली से मुलाकात हुई- जो अपने ऑफिस आते-जाते हुए कई बार मेरी ऑटो रिक्शा में बैठी । इसे इत्तेफाक ही कहा जायेगा कि जल्द ही मेरी डॉली से अच्छी जान-पहचान हो गयी । बाद में जब मुझे यह मालूम हुआ कि डॉली जरायमपेशा लोगों की बस्ती सोनपुर में रहती है तो मैं उससे और ज्यादा सम्पर्क बढ़ाने की कोशिश करने लगा- क्योंकि मैं जानता था कि डॉली कभी भी मेरे लिये सूत्रधार का काम कर सकती है ।”
“एक्सक्यूज मी सर !” इंस्पेक्टर योगी बोला- “क्या डॉली को यह बात पहले से मालूम नहीं थी कि आप क्राइम ब्रांच के ऑफिसर हैं ?”
“नहीं- बिल्कुल भी नहीं ।’ राज की गर्दन इंकार में हिली- “दरअसल जो ड्रामा मैं आप सब लोगों के साथ खेल रहा था- वही ड्रामा मैं डॉली के साथ भी खेल रहा था । यह बात अलग है कि कई बार मेरे दिल ने चाहा- मैं कम-से-कम डॉली को अपनी सारी हकीकत बता दूं । लेकिन नहीं- मैं हर बार जज्बातों के उस बवंडर को अपने सीने में दफन करके रह गया । क्योंकि अगर मैं ऐसा न करता- तो यह अपने डिपार्टमेंट के साथ, अपने फर्ज के साथ गद्दारी होती ।”
सब मन्त्रमुग्ध अंदाज में राज की एक-एक बात सुन रहे थे ।
“खैर !” राज आगे बोला- “मैं डॉली से सम्पर्क बढ़ाता चला गया । उन्हीं दिनों जब मुझे पहली बार इस बात का अहसास हुआ कि डॉली मुझसे प्यार करने लगी है तो मैं सन्न रह गया । मुझे सूझा नहीं कि ऐसी परिस्थिति में मुझे क्या करना चाहिये । जिस दिन मुझे डॉली के प्यार का अहसास हुआ- उसी दिन क्राइम ब्रांच के एक दूसरे ऑफिसर को यह भेद मालूम पड़ गया कि दुर्लभ वस्तु चोरी करने वाले संगठन का चीना पहलवान भी एक मेम्बर है । इतना ही नहीं उन्हें यह भी मालूम हो गया कि चीना पहलवान सोनपुर में रहता है । फौरन मुझे हेडक्वार्टर बुलाया गया- डॉली और मेरे सम्बन्धों के बारे में भी उन्हें आश्चर्यनजक ढंग से जानकारी मिल चुकी थी । हेडक्वार्टर से मुझे नया आदेश मिला कि मैं चीना पहलवान पर नजर रखने के लिये सोनपुर में एक किराये का मकान लेकर रहना शुरू कर दूं । विभाग के चीफ ने मुझे यह भी सलाह दी कि इस पूरे सिलसिले में डॉली मेरी काफी मदद कर सकती है ।”
पूरे कॉफ्रेंस हॉल में सन्नाटा था ।
सबकी निगाहें एक ही व्यक्ति पर केन्द्रित थीं ।
राज पर !
“अब मैं एक अजीब उलझन में फंस गया था ।” राज एक के बाद एक रहस्य की गुत्थियां खोलता हुआ बोला- “एक तरफ मेरा कर्तव्य था- जो मुझे लगातार डॉली के साथ ड्रामा करने के लिये प्रेरित कर रहा था क्योंकि इसी में पूरे केस की भलाई थी । जबकि मेरी आत्मा मुझे धिक्कार रही थी- एक मासूम-सी लड़की के साथ धोखा- नहीं कभी नहीं । लेकिन दोस्तों !” बोलते-बोलते राज की आवाज भारी हो गयी- “आखिर में जीत फर्ज की हुई- कर्तव्य की हुई । कानून की वेदी पर अपनी आत्मा की बलि चढ़ा दी । मैंने न सिर्फ डॉली को धोखे में रखा बल्कि उसके साथ प्रेम का नाटक भी किया । उसी की मदद से मैंने सोनपुर में एक किराये का मकान हासिल किया और वहाँ रहने लगा । इसी तरह एक महीना गुजर गया- पूरा एक महीना । फिर आयी तीन जुलाई की रात- हादसे की वो रात जिस रात से इस पूरे घटनाक्रम की आधारशिला रखी गयी ।”
“इसी सारी घटना की शुरुआत कैसे हुई ?” योगी ने उत्सुकतापूर्वक पूछा ।
“वही बता रहा हूँ ।” राज बोला- “दरअसल इस पूरे घटनाक्रम की शुरुआत यूं तो तीन जुलाई की दोपहर से ही हो गयी थी । हुआ यूं कि तीन जुलाई की दोपहर के समय हमारे विभाग को एक मुखबिर के द्वारा बड़ी महत्वपूर्ण सूचना मिली कि जो छः नटराज मूर्तियों इंडियन म्यूजियम से चुराई गयी थीं- उन्हें चीना पहलवान किसी को सौंपने चार बजे होटल मेरीडियन जायेगा । फौरन हमारे विभाग के एक-से-एक धुरंधर जासूस चीना पहलवान के पीछे लग गये- लेकिन इसे बदकिस्मती कहो कि न जाने कैसे चीना पहलवान को यह भनक मिल गयी कि उसका पीछा किया जा रहा है- उसने पुलिस के शिकंजे से भाग निकलने की बेइन्तहा कोशिश की और इसी भागा दौड़ी के चक्कर में चीना पहलवान पुलिस की गोली का शिकार हो गया तथा घटनास्थल पर ही मारा गया । चीना पहलवान के रूप में दुर्लभ वस्तु चोरी करने वाले संगठन तक पहुँचने की जो आशा की किरण दिल्ली पुलिस को नजर आ रही थी- वह भी उसकी मौत के साथ लुप्त हो गयी । चीना पहलवान की लाश के पास से हमें दो महत्वपूर्ण चीजें मिलीं ।”
“वो महत्वपूर्ण चीजें क्या थीं ?”
“पहली चीज- सेठ दीवानचन्द की ज्वैलरी शॉप का एक विजिटिंग कार्ड था । दूसरी चीज- सोने की वो छः नटराज मूर्तियाँ थी जिन्हें इंडियन म्यूजियम से चुराया गया था ।”
“अ...आपको सोने की वो असली नटराज मूर्तियां थीं ?” इंस्पेक्टर योगी ने बुरी तरह चौंककर पूछा था ।
“हाँ- वो नटराज मूर्तियां हमें मिल गयी थीं ।”
कई और दिमागों में भी धमाके से हुए ।
“फ...फिर वो नकली मूतियां कहाँ से आयीं ?” योगी ने पूछा ।
“वह भी बताता हूँ । दरअसल चीना पहलवान की हत्या बुधवार के दिन दोपहर के तीन बजे हो गयी थी लेकिन क्राइम ब्रांच ने इस बात को पूरी तरह गुप्त रखा कि चीना पहलवान मारा गया है । उसकी हत्या के बाद फौरन ही आनन-फानन क्राइम ब्रांच के हेडक्वार्टर में एक मीटिंग बुलायी गयी । उस मीटिंग में इस सवाल पर शिद्दत से विचार किया गया कि अब किस तरह दुर्लभ वस्तु चोरी करने वाले संगठन तक पहुँचा जाये । काफी सोच-विचार के बाद एक जबरदस्त योजना तैयार हुई । योजना ये थी कि किसी साधारण नागरिक की जिंदगी बसर करते क्राइम ब्रांच के ऑफिसर को लोगों के सामने यह शो करना था- जैसे चीना पहलवान की हत्या उसी ने की है इतना ही नहीं- उसे अब यह भी शो करना था- मानो सोने की छः नटराज मूर्तियां उसके पास है । ज्यूरी के मेम्बरों की राय थी कि जब दुर्लभ वस्तु चोरी करने वाले संगठन को चीना पहलवान की हत्या के बारे में खबर मिलेगी- तो वह बौखला उठेंगे- इतना ही नहीं, वह लोग चीना पहलवान के हत्यारे को भी तलाश करने के लिये जमीन-आसमान एक कर देंगे । सिर्फ इसलिये भी, क्योंकि उसके पास सोने की छः बहुमूल्य नटराज मूर्तियां हैं । हत्यारे को तलाशने की इस कोशिश में संगठन के आदमी स्वाभाविक रूप से हमारे जासूस तक पहुँचते और इस तरह इस संगठन का पर्दाफाश हो जाता ।”
“वैरी गुड! एक रिपोर्टर बड़ा प्रभावित होकर बोला- “वाकई ज्यूरी के मेम्बरों ने संगठन तक पहुँचने के लिये लाजवाब योजना बनायी थी ।”
वहाँ मौजूद तमाम लोग उस योजना से बेहद प्रभावित हुए ।
“उसके बाद क्या हुआ ?” पत्रकारों की भीड़ में से किसी महिला पत्रकार ने उत्सुकतापूर्वक पूछा ।
“उसके बाद उस लाजवाब योजना को कार्यरूप देने का काम मुझे सौंपा गया ।” राज ने धाराप्रवाह ढंग से बोलने हुए कहा- “लेकिन मैंने ज्यूरी केसम्मानित सदस्यों के सामने एक शर्त रखी और कहा- अगर मैं इस केस पर काम करूंगा, तो सिर्फ और सिर्फ एक साधारण ऑटो रिक्शा ड्राइवर बनकर । मेरे सामने परिस्थितियों चाहे कितनी भी मुश्किल क्यों न आ जायें- लेकिन मुझे इस मिशन के दौरान किसी भी हालत में अपने पद का इस्तेमाल नहीं करना है और न मेरा विभाग ही मुझे कोई सहायता देने की कोशिश करेगा । मेरी शर्त ज्यूरी के मेम्बरों ने कबूल कर ली- फिर योजना के तहत बेहद आनन-फानन में पीतल की पांच नकली नटराज मूर्तियां बनवायी गयीं ।”
“पांच ही क्यों ?” आकाशवाणी के एक संवाददाता ने फौरन राज की बात काटी- “छः क्यों नहीं ?”
“यह रहस्य भी आप लोगों को आगे चलकर मालूम हो जायेगा । बहरहाल उसके बाद पूरा ड्रामा शुरू हो गया । मुझे अब सबसे पहले चीना पहलवान की हत्या का दोबारा से ड्रामा स्टेज करना था । इसलिये मैंने तीन जुलाई की रात रूस्तम सेठ के ठेके में जमकर शराब पी । योजना बनाते समय हमने उन दिनों दिल्ली शहर में चल रही ऑटो रिक्शा ड्राइवरों की हड़ताल का भी भरपूर फायदा उठाया । इत्तेफाक से रूस्तम सेठ की मेरे ऊपर पिछले कई दिन की उधारी बकाया थी- मुझे मालूम था कि मैं जब उसके ठेके पर बैठकर ज्यादा शराब पीऊंगा- तो एक ऐसी स्टेज जरूर आयेगी, जब रूस्तम सेठ झुंझलाकर या तो मुझे शराब पीने से रोकेगा या फिर मुझसे उधारी के रुपये मांगेगा । और यही मैं चाहता था- मैं ऐसा माहौल पैदा करना चाहता था जिससे झड़प हो और मुझे ऑटो रिक्शा ड्राइवरों की हड़ताल होने के बावजूद अपना ऑटो चलाने का बहाना मिल सके । लेकिन रूस्तम सेठ की और मेरी झड़प कोई तूल पकड़ पाती- उससे पहले ही डॉली ने वहाँ प्रकट होकर मेरी सारी योजना पर पानी फेर दिया । परन्तु फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी- मैं जो ड्रामा रूस्तम सेठ के साथ खेलना चाहता था- फिर वही ड्रामा मैंने डॉली के साथ खेला और यह कहता हुआ ऑटो रिक्शा लेकर गुस्से में निकल पड़ा कि अब तुम्हारी उधारी के रुपये कमाकर ही लौटूंगा । सोनपुर से मैं योजना के अनुसार रीगल सिनेमा पर पहुँचा । एक बात और- ऑटो रिक्शा की नम्बर प्लेट पर मैंने मिट्टी भी पहले ही पोत दी थी ।”
सेठ दीवानचन्द- जो राज की एक-एक बात बड़े गौर से सुन रहा था- वह पूछे बिना न रह सका- “वडी जब चीना पहलवान की मौत बुधवार को तीन बजे ही हो गयी थी- तो वह व्यक्ति कौन था, जो रीगल सिनेमा के सामने तुम्हारी ऑटो रिक्शा में आकर बैठा ?”
“वह हमारे विभाग का ही एक जासूस था और उस वक्त चीना पहलवान का रोल अदा कर रहा था ।”
“ओह ।”
“लेकिन साईं तुम्हें चीना पहलवान की हत्या का नाटक दोबारा स्टेज करने की क्या जरूरत थी ।”
“दरअसल वह नाटक ही हमारी योजना का मुख्य आधार था मिस्टर दीवानचन्द ।” राज बोला- “हत्या का वह नाटक दोबारा स्टेज करते समय मुझे अपने खिलाफ कुछ सबूत इस तरह छोड़ने थे- जैसे वह मेरे न चाहने पर भी अकस्मात् छूट गये हों । अगर मैं वह सारा ड्रामा स्टेज न करता तो तुम्हीं बताओ कि इंस्पेक्टर योगी को या फिर तुम्हें इस बात का भ्रम कैसे होता कि चीना पहलवान की हत्या मैंने की थी । पुलिस की और तुम्हारी दृष्टि में अपने आपको चीना पहलवान का हत्यारा साबित करने के लिये मुझे कोई-न-कोई ड्रामा तो स्टेज करना ही था- अपने खिलाफ ऐसे सबूत तो छोड़ने ही थे, जिनको आधार मानकर पुलिस मुझे चीना पहलवान का हत्यारा समझती । फिर वह ड्रामा रचना इसलिये भी जरूरी था- क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि डॉली को मेरे ऊपर कैसा भी कोई शक हो । जबकि सच्चाई ये है कि आई.टी.ओ. के ओवर ब्रिज से आगे जब फ्लाइंग स्कवॉयड दस्ते ने मेरी ऑटो रिक्शा रोकी तो वह भी मेरी योजना का ही एक अंग था ।”
“कैसे- वडी वो कैसे नी?”
“दरअसल फ्लाइंग स्क्वॉयड की नीली जिप्सी को देखकर मैंने जानबूझकर ऑटो रिक्शा की रफ्तार तेज कर दी थी- क्योंकि मैं जानता था कि स्पीडिंग के अपराध में फ्लाइंग स्क्वॉयड दस्ता फौरन मेरे पीछे लग जायेगा- ऐसा ही हुआ भी । मैंने फ्लाइंग स्क्वॉयड दस्ते को जानबूझकर अपने पीछे इसलिये लगाया था- ताकि मैं उन्हें डॉली के प्रेग्नेंट होने के बारे में बता सकूँ । इंडिया गेट पर चीना पहलवान की लाश भी मैंने योजना के तहत ही फेंकी । मैं फ्लाइंग स्क्वॉयड दस्ते के सब-इंस्पेक्टर को अपनी ऑटो रिक्शा का नम्बर नोट करते भी देख चुका था । मुझे मालूम था कि सुबह जब पुलिस को इंडिया गेट पर चीना पहलवान की लाश पड़ी मिलेगी तो स्वाभाविक रूप से उनका शक सीधा मेरे ऊपर जायेगा । मेरे ऊपर शक जाना इसलिये भी जरूरी था- क्योंकि हड़ताल होने के बावजूद मेरी ऑटो रिक्शा उस इलाके में देखी गयी थी । हाँ- इंस्पेक्टर योगी ने मेरे खिलाफ एकदम एक्शन लेने की बजाय पहले मेटरनिटी वार्डों की जो भी रजिस्ट्री चेक की- उसके लिये मैं वाकई उनके दिमाग की दाद दूंगा । यह बात अलग है कि मिस्टर योगी द्वारा उठाये गये इस कदम से भी आखिरकार मुझे ही फायदा हुआ ।चीना पहलवान की लाश इंडिया गेट पर फेंकने के बाद मेरी योजना का सबसे पहला काम था- किसी भी तरह पुलिस के शिकंजे में फंस जाना । ताकि मैं दुर्लभ वस्तु चोरी करने वाले संगठन की दृष्टि में यानि !” राज ने सभी अपराधियों की तरफ उंगली उठाई- “आप सब महानुभावों की नजरों में खुलकर आ सकूँ ।”
“एक सवाल का जवाब और दीजिये सर !” इंस्पेक्टर योगी बोला- “जब आप इंडिया गेट की तरफ जा रहे थे, उस समय आपकी ऑटो रिक्शा में चीना पहलवान की लाश कहाँ थी ? वह तो आपके विभाग का वो जासूस था जो चीना पहलवान की हत्या का ड्रामा रच रहा था । फिर दिल्ली पुलिस को इंडिया गेट पर बृहस्पतिवार की सुबह जो असली चीना पहलवान की लाश पड़ी मिल- वो वहाँ कहाँ से आयी ?”
“वैरी सिम्पल- इसके लिये एक बड़ा साधारण-सा तरीका अपनाया गया ।” राज बोला- “दरअसल बृहस्पतिवार की सुबह इंडिया गेट पर जो लाश पड़ी मिली- चीना पहलवान की उस असली लाश को हमारे विभाग के आदमी पहले ही इंडिया गेट की झाड़ियों में छिपा गये थे । मैंने जब चीना पहलवान का रोल अदा करते जासूस को वहाँ फैंका- तो वह हमारे दृष्टि से ओझल होते ही वहाँ से कूच कर गया था । इस तरह बृहस्पतिवार की सुबह पुलिस को जो लाश झाड़ियों से बरामद हुई- वह वास्तव में ही असली चीना पहलवान की लाश थी ।”
इंस्पेक्टर योगी की आंखों में बेइन्तहा प्रशंसा के भाव उभर आये ।
“सर!” तभी ‘नवभारत टाइम्स’ अखबार का विशेष संवाददाता बोला- “मेरे दिमाग में बहुत देर से एक सवाल हलचल मचा रहा है- अगर साथ-के-साथ उस सवाल का भी जवाब मिल जाये, तो कैसा रहे ?”
“क्यों नहीं- जरूर पूछो ।”
“सर- हमारे नवभारत टाइम्स अखबार में चीना पहलवान की मौत की बाबत जो खबर प्रकाशित हुई थी- उस खबर को मैंने ही तैयार किया था । जहाँ तक मुझे याद पड़ता है सर- उस खबर में यह लिखा था कि चीना पहलवान जब रीगल सिनेमा के पास से ऑटो रिक्शा में बैठकर भागा, तो उससे पहले बुलेट पर सवार पुलिसकर्मियों ने पास की गली में दो फायर की आवाज सुनी थी ।”
“जी हाँ- यह खबर बिल्कुल सही है ।”
“फिर वह गोलियां किसने चलायी सर ?”
“गुड क्वेश्चन!” राज ने जवाब दिया- “दरअसल चीना पहलवान का रोल अदा करते हमारे जासूस ने ही दो हवाई फायर किये थे । वह भी इसलिये- ताकि बुलेट पर सवार पुलिस कर्मियों को योजना अनुसार अपनी तरफ आकर्षित किया जा सके और बाद में यह साबित करने में आसानी रहे कि चीना पहलवान की हत्या वास्तव में किसी ऑटो रिक्शा ड्राइवर ने ही की थी ।”
“वैरी इंटरेस्टिंग ।” एक रिपोर्टर बे-साख्ता कह उठा- “वाकई क्या खूब योजना थी ।”
राज आहिस्ता से मुस्कराया ।
“खैर- मैं अब आगे की योजना के बारे में बताता हूँ ।” राज थोड़ा रुककर पुनः बोला- “उसके बाद मैं पीतल की मूर्ति बेचने खासतौर पर सेठ दीवानचन्द की दुकान पर इसलिये गया- ताकि यह मालूम हो सके कि सेठ दीवानचन्द और चीना पहलवान के बीच आपस में क्या रिश्ता था । यह बात मैं पहले ही बता चुका हूँ कि चीना पहलवान की जेब से हमें सेठ दीवानचन्द की ज्वैलरी शॉप का एक विजिटिंग कार्ड मिला था । हाँ- इस स्पॉट पर एक करिश्मा जरूर हुआ ।”
“करिश्मा ।” दीवानचन्द चौंका- “वडी कैसा करिश्मा नी ?”
“भई- यह क्या कम बड़ा करिश्मा था ।” राज के होठों पर मुस्कान रेंगी- “कि मैं तुम्हारी ज्वैलरी शॉप पर मूर्ति बेचने गया और इत्तेफाक से तुम ही दुर्लभ वस्तु चुराने वाले संगठन के बॉस निकले । जब तुमने मुझे तलाशने के लिये मेरे पीछे आदमी दौड़ाये थे- मैं तभी समझ गया था कि इस अवैध धंधे में जरूर तुम्हारा कोई-न-कोई रिश्ता है । उसके बाद मेरे द्वारा छोड़े गये लीक पॉइंटों की जांच-पड़ताल करते हुए इंस्पेक्टर योगी का मेरे तक पहुँचना और फिर मेरा सोनपुर से भाग निकलना सामान्य घटना थी ।”
“मुझे तो अब इस बात का भी शक होने लगा था । योगी बोला- “कि सोनपुर से भागते समय आपकी जो जेब कटी उसके पीछे भी आपकी ही कोई चाल थी ।”
“बिल्कुल ठीक कहा तुमने ।” राज मुस्कराया- “दरअसल बस में चढ़ते समय मैं जानबूझकर एक शराबी से टकरा गया था और मेरी जेब में उस समय जो बीस रुपये थे- उन्हें मैंने खुद ही उसकी जेब में डाल दिये थे ।”
“ऐसा क्यों किया आपने ?”
“क्योंकि मैं चाहता था कि मैं टिकट न लेने के अपराध में गिरफ्तार हो जाऊं- “पुलिस के शिकंजे में जल्द-से-जल्द फंसू ।”
“ओह- लेकिन अगर आपको गिरफ्तार ही होना था ।” योगी ने पूछा- “तो आप मेरे आने पर डॉली के घर से भागे ही क्यों- गिरफ्तार तो मैं आपको तभी कर लेता ।”
“निःसन्देह तुम मुझे गिरफ्तार कर लेते- लेकिन मैं यह ड्रामा करते हुए गिरफ्तार होना चाहता था- जैसे मैं पुलिस से बचने की कोशिश कर रहा होऊं । क्योंकि ऐसी स्थिति में दिल्ली पुलिस का तथा संगठन के लोगों का संदेह मेरे ऊपर और दृढ़ होता ।”
“वाकई ।” खामोश बैठे जगदीश पालीवाल ने भी राज की खुलेदिल से तारीफ की- “आपने एक-एक पॉइंट पर काफी बारीकी से काम किया मिस्टर राज ।”
“वह तो किया ।” राज के होठों पर मुस्कान रेंगी- “लेकिन मुझे गिरफ्तार करने के बाद मिस्टर योगी ने मेरी जो जमकर धुनाई की- वह बारीक काम नहीं था ।”
“सॉरी सर!” योगी के चेहरे पर खेदपूर्ण भाव उभरे- “मैं वाकई अपने किये के प्रति बहुत शर्मिन्दा हूँ ।”
“इसमें शर्मिन्दा होने जैसी कोई बात नहीं मिस्टर योगी ।” राज फौरन बोला- “इट्स रादर ए मेटर ऑफ प्लेजर- आइ एम प्राउड ऑफ यू । उस समय तुम अपने कर्तव्य का पालन कर रहे थे इसलिये सिर्फ मुझे ही नहीं बल्कि पूरे पुलिस डिपार्टमेन्ट को तुम्हारे ऊपर गर्व होना चाहिये ।”
“यू आर वैरी काइंड सर ।”
राज आहिस्ता से मुस्करा दिया ।
“अब अदालत वाला स्पॉट आता है ।” राज आगे बोला- “यह तो अब आप लोग भी समझ गये होंगे कि मैं गिरफ्तार ही इसलिये हुआ था- क्योंकि मुझे यकीन था कि संगठन के लोग मुझे पुलिस के शिकंजे से किसी-न-किसी तरह जरूर निकाल लेंगे ।”
“आपको ऐसा यकीन क्यों था सर?” एक पत्रकार ने पूछा ।
“सवाल अच्छा है ।” राज बोला- “दरअसल मेरे इस यकीन का सबसे बड़ा ठोस कारण ये था कि संगठन के लोगों को मेरे बारे में पता चल चुका था और वह पुलिस की तरह मुझे न सिर्फ चीना पहलवान का खूनी समझ रहे थे बल्कि उन्हें इस बात का भी पूरा भरोसा था कि नटराज मूर्तियां मेरे ही पास हैं- यही मेरे यकीन की असली वजह थी- मैं जानता था कि नटराज मूर्तियां हासिल करने के लिये वह किसी-न-किसी तरह मुझे पुलिस के शिकंजे से जरूर आजाद करायेंगे- जैसा कि इन्होंने किया भी । डिफेन्स लॉयर यशराज खन्ना के तर्क वाकई लाजवाब थे- और मैं जीवन में पहली बार किसी वकील से इतना प्रभावित हुआ था । इस प्रकार संगठन के लोग मुझे अदालत से रिहा कराकर खुद ही अपने अड्डे पर ले गये- इन्होंने अपनी मौत को खुद ही दावत दी । हाँ- धुनाई मेरी वहाँ भी खूब हुई ।”
पूरे कांफ्रेंस हाल में हंसी का फव्वारा छूट गया ।
“उसके बाद दिल्ली पुलिस द्वारा मेरे ऊपर जो एक लाख रुपये का इनाम घोषित किया गया- वह भी हमारी ही योजना थी ।”
“उससे क्या फायदा मिला आपको ?”
“बहुत बड़ा फायदा मिला । उसी घोषित इनाम की वजह से मैं सेठ दीवानचन्द की रहनुमाई हासिल कर सका- उसका कृपापात्र बन सका- और इन सबसे ऊपर मैं उसी घोषित इनाम की वजह से संगठन का सक्रिय मेम्बर बन सका ।”
“लेकिन आपको इनके संगठन में शामिल होने की क्या जरूरत थी सर ।” दूरदर्शन टीम के एक सदस्य ने पूछा- “आपका मिशन तो वहीं खत्म हो गया था- आपने फौरन ही इन लोगों को गिरफ्तार क्यों नहीं करा दिया ?”
“मैं बिल्कुल यही कदम उठाता ।” राज बोला- “लेकिन जब मुझे यह मालूम हुआ कि इनका कोई सुपर बॉस डॉन मास्त्रोनी भी है- तो मैं रुक गया । मैंने फैसला कर लिया कि मैं इन सबको रंगे हाथों सुपर बॉस के साथ गिरफ्तार करूंगा ।”
“ओह !”
“घटनाक्रम आगे बताने से पहले मैं आपको एक बात और बता देना मुनासिब समझता हूँ- वो यह कि इंस्पेक्टर योगी को जो असली सोने की नटराज मूर्ति बल्ले ने दी, उस मूर्ति को मैंने ही जानबूझकर घटनास्थल पर फेंका था । और मेरे पास मौजूद छः मूर्तियों में से वही एक असली सोने की मूर्ति थी । मैं समझता कि अब आप लोगों को यह बताने की जरूरत नहीं कि पीतल की पांच ही मूर्तियां क्यों गढ़वाई गयी थी । मैं फिर स्पष्ट करता हूँ- दरअसल पीतल की पांच मूर्तियां इसलिये गढ़वाई गईं थी- क्योंकि आवश्यकता ही पांच मूर्तियों की थी ।”
सब स्तब्ध भाव से राज को देख रहे थे ।
“इस पूरे घटनाक्रम के बाद ।” राज बोला- “दुर्लभ ताज का नाटक रचा गया ।”
“क...क्या ?” डॉन मास्त्रोनी के नेत्र अचम्भे से फटे- “दुर्लभ ताज का कजाखिस्तान से यहाँ आना भी एक नाटक था ?”
“जी हाँ ।” राज के होठों पर चालाकी से भरी मुस्कान रेंगी- “दरअसल तुम लोगों ने इंडियन म्यूजियम से जो दुर्लभ ताज चुराया- वो असली ताज नहीं था । वह तो असली ताज की डमी मात्र था । सच्चाई ये है कि असली ताज तो कजाखिस्तान से यहाँ आया ही नहीं- वह कजाखिस्तान में अपनी जगह मौजूद है । यह सारा नाटक कजाखिस्तान गणराज्य की सहमति लेने के बाद तुम्हें गिरफ्तार करने के लिये रचा गया । यहाँ तक कि मिस्टर जगदीश पालीवाल की तरफ से अखबार में गवर्नेस की आवश्यकता के लिये जो विज्ञापन छपा- वह विज्ञापन भी हमारे ही मायाजाल का एक हिस्सा था । मिसेज पालीवाल को जानबूझकर एक सप्ताह के लिये उदयपुर भेजा गया । डॉली को गवर्नेस बनाकर भेजना भी हमारी पहले से सोची-समझी योजना थी- और यह सारा खेल इसलिये खेला गया, ताकि पूरे ड्रामे को हकीकत का रंग दिया जा सके ।”
“इ...इसका मतलब मिस्टर पालीवाल को यह रहस्य पहले से ही मालूम था ।” योगी हैरानी से बोला- “कि आप क्राइम ब्रांच के ऑफिसर हैं ?”
“पहले से ही नहीं बल्कि बहुत पहले से मिस्टर पालीवाल को यह रहस्य मालूम था- दरअसल वह मेरे बचपन के मित्र हैं । हमारे साथ-साथ पढ़ने से लेकर लगभग हर काम साथ-साथ किया है । हाँ- एक काम में, मैं इनसे जरूर पिछड़ गया ।”
“किस काम में सर ?”
“शादी इन्होंने मुझसे पहले कर ली ।”
पूरे कांफ्रेंस हॉल में हंसी का तेज फव्वारा छूट गया ।
“अन्त में मैं एक रहस्य और बताकर इस पूरी कहानी का पटाक्षेप करता हूँ ।” राज बोला- “दुर्लभ ताज चुराने की जो मास्टर पीस योजना दीवानचन्द को सुपर बॉस के नाम से मिली- दरअसल योजना भी मेरे दिमाग की ही उपज थी । डॉली की मदद से मैंने वह कागज कांफ्रेंस हॉल में फिंकवाया था ।”
एक बार फिर सब सन्न रह गये ।
“तो दोस्तों- यह थी वो योजना ।” राज थोड़ा रुककर बोला- “जिसे क्राइम ब्रांच ने इस संगठन को गिरफ्तार करने के लिये रचा था- हमें इस बात की खुशी है कि हम अपने मकसद में कामयाब हुए । इसके अलावा अगर आपमें से किसी के दिमाग में कोई सवाल मंडरा रहा है- तो वह बे-हिचक उसका जवाब पूछ सकता है ।”
“सर ।” अखबार का एक रिपोर्टर बोला- “आप बल्ले के बारे में कोई टिप्पणी करना चाहेंगे?”
“जरूर! इस पूरी योजना को अंजाम देते समय बल्ले एकमात्र एक कैरेक्टर था- जो हमेशा मौत की नंगी तलवार बनकर मेरे सिर पर लटका रहा । अगर मैं पूरी योजना में किसी से आतंकित हुआ तो वह बल्ले था । यशराज खन्ना की हत्या उसने जिस प्रकार देखते-ही-देखते कर डाली थी- वह वाकई उसके जुनून की इन्तेहा थी। फिर मुझे अंदर-ही-अंदर बल्ले से हमदर्दी भी थी- क्योंकि वह जो कुछ कर रहा था, भावनाओं में बहकर कर रहा था । मैं बल्ले को बचाने की हर मुमकिन कोशिश करता- लेकिन डॉन मास्त्रोनी ने जितनी तेजी से उस पर गोली चलाई, उस पोजिशन में कोई कुछ नहीं कर सकता था ।”
“एक आखिरी सवाल और सर !” दूरदर्शन टीम का इन्चार्ज थोड़ा मुस्कराकर बोला- “आपने सबके विषय में बता दिया लेकिन यह नहीं बताया कि मिस डॉली अब क्या रोल अदा करने वाली हैं ?”
“थोड़ा धीरज रखो ।” राज ने भी मुस्कराकर ही जवान दिया- “बहुत जल्द इस सवाल का जवाब भी आपको मिल जायेगा ।”
“थैंक्यू सर ।”
“ऐनी क्वेश्चन ?”
“नो सर !”
“ऐनीथिंग ऐल्स ?”
सब खामोश रहे ।
फिर वो सनसनीखेज मीटिंग वहीं बर्खास्त हो गयी थी ।
☐☐☐
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RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात - by desiaks - 12-05-2020, 12:42 PM

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