RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
उसने मेरी आँखों में देखा और सर हिलाया तो मैंने उसे छोड़ा.
वो- जान निकालेगा क्या
मैं- और जो तूने चोर समझा उसका क्या
वो- कोई भी समझेगा, बे टेम क्यों घूमता है
मैं- आगे से नहीं घुमुंगा, वैसे तेरा शुक्रिया उस दिन के लिए
वो- किस दिन के लिए, ओह अच्छा उस दिन के लिए , वैसे तू भाग क्यों रहा था उस दिन
मैं- झगडा हुआ था उन लडको से
वो- आवारा लड़के है सबसे उलझते रहते है , अच्छा हुआ जो तू उनके हाथ नहीं लगा वर्ना मारते तुझे,
मैं- सही कहा
वो मंदिर के अन्दर गयी और एक थाली लायी, जिसमे कुछ फल थे
वो- खायेगा
मैं- न,
वो- तेरी मर्जी , वैसे तू किस गाँव का है , यहाँ का तो नहीं है
मैं- बताऊंगा तो तू भी दुसरो जैसा ही व्यवहार करेगी
वो- अरे बता न
मैं अर्जुन्गढ़ का
वो- सच में , सुना है काफी अच्छा गाँव है
मैं- तू गयी है वहां कभी
वो- ना रे, चल बहुत बात हुई मैं चलती हु, कही बाबा न आ जाये मुझे तलाशते हुए.
मैं- हाँ , ठीक है , मैं भी चलता हूँ
वो- मंदिरों में लोग दिन में आते है रातो को नहीं , राते सोने के लिए होती है .
मैं- दिन में आ जाऊँगा ,
वो- आ जाना सब आते है ,
मैं- दिन में दुश्मनों को लोग रोकते भी तो है ,
वो- इस चार दिवारी में कोई दुश्मन नहीं , लोग सब कुछ छोड़कर आते है , कभी दिन में आके मन्नत मांगना सब की पूरी होती है तेरी भी होगी .
मैं- तू मिले तो आ जाऊंगा .
वो- परसों ..................... दोपहर ....
मैं मुस्कुरा दिया . न जाने कैसे उस अजनबी लड़की से इतनी बात कर गया मैं , चलते समय मैंने थाली से दो सेब उठाये और रस्ते भर उसके बारे में ही सोचते हुए आ गया, कब जंगल पार हुआ , कब खेत कुछ ध्यान नहीं, ध्यान था तो बस एक बात वो गहरी आँखे
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