RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#7
“इतनी हिमाकत आज तक किसी ने नहीं की ”वो बोली
मैं-सच कडवा होता है, शायद नहीं बताया होगा किसी ने पर मैं सच बोलता हु,
वो- उफ्फ्फ्फ़ ये, अदा तेरी लड़के, चल तेरी बात मान ली, वैसे नाम क्या है तेरा.
मैं- कबीर, वैसे इस हालत में तुम्हे घर जाना चाहिए था और तुम यहाँ हो , क्या कोई फ़िक्र नहीं तुम्हे अपने आप की , शराब के नशे में देखो क्या हालत हुई है , अपने बारे में नहीं तो घर वालो का सोचा करो, क्या उन लोगो को मालूम है तुम पीती हो,
औरत- किसे परवाह है किसी की, सब मोह है कबीर कोई किसी का नहीं इस जहाँ में
तभी चंपा आई बोली- खाना तैयार है
मैं- ले आओ
वो औरत उठी, और लडखडाते कदमो से बाहर को चलने लगी,
मैं- चंपा ये कहा जा रही है तुम ले जाओ इसे
औरत- नहीं, मुझ किसी की मदद नहीं चाहिए, मैं खुद जाउंगी.
वो बहार चली गयी , थोड़ी देर बाद एक आवाज सी हुई तो मैं बाहर गया, चंपा भी बाहर आई, उसने मुझे कोने की तरफ इशारा किया . वो बाथरूम था मैंने देखा चंपा की मालकिन फर्श पर गिरी हुई थी , सलवार पैरो में फंसी थी फर्श पर मूत की धार बह रही थी , बस यही देखना बाकि था .
“चंपा, इसकी दशा सुधारो, साफ करो सब ” मैंने कहा
चंपा ने अगले कुछ मिनट बाथरूम में बिताये और फिर वो बाहर आई , बोली- साहब, मालकिन के बदन को साफ़ कर दिया है वो बेहोश है और अब कपडे नहीं है इनके पास, ये वाले तो गीले है ,
मैं- यहाँ कपडे नहीं रखती, दारू रखती है
चंपा कुछ नहीं बोली.
मैं अन्दर से एक चादर लाया और उस औरत के बदन पर लपेटा, उसके नंगे बदन को देखा मैंने पर चंपा पास थी तो बस ..... अन्दर बिस्तर पर लाके पटका उसे. पहली बार उसके चेहरे पर एक मासूमियत देखि मैंने , खैर मुझे तो भूख लगी थी मैंने खाना खाया. चंपा ने कहा की वो पास वाले कमरे में है कुछ चाहिए तो मैं उसे बुला लू.
न जाने कब कुर्सी पर बैठे बैठे मेरी आँख लग गयी, मालूम नहीं कितनी देर सोया होऊंगा , रात की कौन सी घडी थी जग गिलास निचे गिरने की आवाज से नींद खुल गयी , मैंने देखा वो पानी पीने की कोशिश कर रही थी, चादर बदन से हटी हुई थी, मैंने अब पूरी तरह से उसके नंगे बदन को देखा.
दूध सा गोरा रंग , जैसे सफेदी की चमकार , मध्यम आकार की छातिया , पतली कमर और थोड़े से बाहर निकले कुल्हे, पतली सुराही सी गर्दन , लरजते लाल होंठ . हालाँकि कायदे से ऐसा नहीं होना था पर उस समय हालात ही ऐसे थे,. मैं उठा और जग उसके होंठो पर लगाया. हाँफते हुए वो पानी ऐसे पीने लगी जैसे बरसो बाद आज मिला हो उसे.
कुछ पीया कुछ उसके बदन पर गिर गया. मैं उसे संभाल ही रहा था की वो मेरी बाँहों में झूल गयी, ताई के साथ हुई टेम्पो वाली घटना के बाद ये दूसरा अवसर था जब कोई औरत मेरे इतने करीब थी, मेरे हाथ ने उसकी पीठ सहलाई, मुझे मेरे तन की तरंगे अहसास करवाने लगी थी,और कोई भी मर्द का ईमान डोल जाये जब इतनी सुंदर औरत उसकी बाँहों में नंगी हो.
उसने अपना सर मेरे आगोश में छुपा लिया , uffffffffff कितनी मासूम लग रही थी वो, उस लम्हे में, कुछ देर उसे ऐसे ही लिए बैठा रहा फिर उसे सुला दिया. .पिछले कुछ दिनों में मेरी जिन्दगी इस तरह से खेल खेल रही थी की मैं हैरान था, , खैर सुबह जब आंख खुली तो सूरज सर पर था, पर वो देवीजी अभी तक सो रही थी.
चंपा ने मुझे चाय पिलाई, फिर मैंने उस से कहा की कपडे सुख गए हों तो उसे पहना दे, और कुछ खिला पिला दे , जब वो उठे तो. मैं थोडा बाहर चला गया , मैंने आस पास देखा इलाके को, इस तरफ मैं जिन्दगी में पहली बार आया था . थोडा आगे जाने पर मुझे बस्ती दिखाई दी पर मैं गया नहीं उस तरफ.
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