Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
12-07-2020, 12:11 PM,
#16
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#10

हम दोनों ने एक ऐसी मंजिल को पा लिया था जिसको हर कोई बार बार पाना चाहेगा , एक बार और ली मैंने और फिर पूरा दिन तबियत से सोया. ताई के जिस्म को तो पा लिया था मैंने पर दिल पर एक बोझ भी था जिसका भार बीते सालो से उठा रहा था मैं , शायद ताई को ऐसे प्यार करना मेरा प्रायश्चित था ,

पर अगले दिन में मेरे जेहन में था माँ तारा का मंदिर , ऐसा नहीं था की मैंने कोशिश नहीं की थी वजह जानने की आखिर क्यों दुश्मनी थी इन दोनों गाँवो की , बुजुर्गो से भी पूछा पर हर किसी ने बस इतना ही कहा की उन्हें नहीं मालूम. आखिर क्यों उस पुजारी ने कहा था की दुश्मन नहीं आएगा इस मंदिर में , और ऐसा था तो क्यों पुजारी की बेटी ने वहीँ बुलाया था एक नहीं बल्कि दूसरी बार.

खैर, उसके लिए भी कहा आसान था ऐसे ही किसी का साथ पकड़ लेना, जिसे वो जानती ही नहीं , मैंने उसे कहाँ असलियत बताई थी उसे, और दुश्मन से कोई भी रिश्ता रखना ,सोचने वाली बात तो थी ही. अगले दिन रतनगढ़ पहुँचते पहुचते दोपहर ही हो गयी थी .

वैसे भी अब तो जैसे ये सब रोज का हो गया था , खैर, मैं एक बार फिर से मंदिर प्रांगन में था , शायद दोपहर को यहाँ कोई नहीं होता था , मैंने अपना शीश झुकाया और मंदिर के पीछे वाले तालाब की तरफ चल पड़ा. ये कुछ सीढिया थी जो निचे को जाती थी .मैंने जेब से दिया और बाती निकाली जिन्हें मैंने कल ही खरीद लिया था .

तीली जलाई पर लौ नहीं जली, हवा भी ऐसी नहीं चल रही थी जो तीली जल न पाए, , मैंने फिर कोशिश की पर लौ नहीं जली. , अब मैं हुआ हैरान . माचिस आधे से ज्यादा खत्म हुई पर नतीजा शून्य , करे तो क्या करे , कोफ़्त सी होने लगी , गुस्सा आये पर जोर किस पर करे.

तभी मुझे एक विचार आया मैंने मंदिर में जलते दियो में से एक दिया वहां रख दू, मैं ऐसा करने जा रहा था की मुझे पुजारी आता दिखा, उसने भी मुझे पहचान लिया

पुजारी- तू तो वही है न

मैं- हाँ

पुजारी- तुझे कहा था न की नादानी मत करना

मैं- मंदिर तो सबका है तुम रोक नहीं सकते मुझे यहाँ आने से

उसने मुझे ऐसे देखा जैसे मैंने निहायत ही मुर्खता भरा सवाल कर लिया हो

पुजारी- नादान है तू अहंकारी , केवल दर्शनों के लिए तू आये ऐसी तेरी मंशा नहीं , कोई भी प्राणों का मोह त्याग कर ऐसा नहीं करेगा, शायद तेरी इच्छा यहाँ चोरी करने की है

मैं- इतना बुरा समय भी नहीं आया है मेरा की ये पाप करना पड़े

पुजारी -तो फिर क्यों आया यहाँ ,

मैं - कहा न दर्शन के लिए

पुजारी- एक बार और मैंने तुझे यहाँ देखा तो मैं राणाजी को बता दूंगा की अर्जुन्गढ़ का एक लड़का बार बार यहाँ आता है फिर तेरा नसीब

इस बकवास से मेरा दिमाग ख़राब हो रहा था , एक तो दिए की वजह से शर्मिंदगी थी और ऊपर से ये खाल खा रहा था

मैं- सुन, तुझे जिसे बुलाना है , बताना है जा अभी जा देर न कर, , किसी के बाप में दम नहीं जो मुझे रोक सके, और क्या ये गीत गा रहा है तू,

पुजारी को ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी,

मैं- अरे मंदिर तो सबका होता है , देवता के लिए कौन अपना कौन पराया , वो किसी में भेद नहीं करता तो तू कौन है , तू तो इस पद के लायक भी नहीं .

पुजारी- काश मैं तुझे समझा पाता , खैर अब मैं तुझे रोकूंगा नहीं यहाँ आने से

एक तो मेरा काम हुआ नहीं था ऊपर से ये ड्रामा , मेरा भी मन नहीं था रुकने का तो मैं वहां से बाहर सड़क पर आ गया. मैं वही एक पेड़ की छाया में बैठ गया .कुछ देर ऐसे ही बीती , की मुझे गाँव की तरफ से एक गाड़ी आती दिखी , जो कुछ ही देर में मेरे पास आ रुकी

“तुम हमेशा ऐसे ही बैठे रहते हो पेड़ के निचे ” प्रज्ञा ने मुकुराते हुए कहा

मैं- तुम भी तो ऐसे ही मिलती हो .

प्रज्ञा - आओ बैठो

मैं- नही, वापिस जाना है मुझे , जिस काम के लिए आया था वो हुआ ही नहीं

प्रज्ञा- मैं कुछ मदद करूँ , आओ तो सही

उसने दरवाजा खोला और मैं गाड़ी में बैठ गया. उसने गाड़ी चालू की

मैं- किधर जा रही हु

वो तुम कहो उधर ही चलते है

मैं- जंगल की तरफ

उसने गाड़ी उधर ही मोड़ दी.

प्रज्ञा- कल मैं तुम्हारे बारे में ही सोचती रही

मैं- वो भला.

वो- कैसे तुम अचानक से टपक पड़े और ऐसा लगा की जैसे बरसो का साथ है

मैं- चोट ठीक है

वो- हाँ, और कल मैंने नशा भी नहीं किया

मैं- बढ़िया है न , खुबसूरत औरते खुद ही एक नशा होती है फिर उनको भला नशे की क्या जरुरत

प्रज्ञा हंस पड़ी मेरी बात सुनकर, बोली- औरतो के दिल जीतने का हुनर है तुम्हारे अन्दर.

मैं- अपना दिल थाम के रखना फिर,

आधे जंगल में आने के बाद एक टूटे चबूतरे के पास मैंने उसे गाड़ी रोकने को कहा

मैं- यहाँ बैठते है .

वो-यहाँ

मैं- महलो की रानी, आओ तो सही कभी कभी ऐसी जगहों पर भी शांति मिलती है

वो- कबीर, ताना क्यों मारते हो

मैं- चलो फिर.

हम दोनों चबूतरे पर बैठ गए,

प्रज्ञा- कुछ परेशां से लगते हो

मैं- कुछ नहीं बस काम नहीं हुआ इसके लिए

वो- किस तरह का काम

मैं- बस जीने के लिए छोटे मोटे काम कर लेता हूँ

वो- चाहो तो हमारे यहाँ कर लो काम, मैं व्यवस्था कर देती हु,

मैं- तुमने राह चलते को इतना मान दिया, अपने साथ बिठाया यही बहुत है मेरे लिए

वो- ऐसी बात मत कहो कबीर, तुमने हुए उस छोटी सी मुलाकात ने ,वो थोडा सा समय जो हम साथ थे मैं इतना तो जान गयी हूँ की सच्चे इन्सान हो तुम , यदि मैं कुछ कर सकू तुम्हारे लिए तो.

मैं- मेरा एक सवाल है , क्या मैं तुम्हे बता सकता हूँ उसके बारे में

प्रज्ञा - अरे, बिलकुल.

मैं- मैं एक दिया जलाने की कोशिश कर रहा हूँ जो जल नहीं पा रहा ,

प्रज्ञा- क्यों भला,

मैं - दिखाता हूँ

मैंने जेब से दिया निकाला और बाती को तीली दिखाई और कसम से वो जल गया

प्रज्ञा- ये तो जल रहा है

मैं- हाँ पर तारा माता के तालाब की सीढियों पर क्यों नहीं जला ये.

प्रज्ञा- क्या तुम वहां पर गए थे .

मैं- हाँ पर ऐसे क्यों पूछ रही हो.

प्रज्ञा- वहां पर वो दिया नहीं जलेगा कबीर, तुमसे ही या मुझसे भी नहीं , किसी से भी नहीं .

मैं- पर क्यों,
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RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश - by desiaks - 12-07-2020, 12:11 PM

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