Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
12-07-2020, 12:12 PM,
#21
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#16

वैसे तो चुदाई का अपना ही आनन्द है पर जब किसी किसी नजदीकी रिश्ते वाले से ये सम्बन्ध बनते है तो चुदाई का मजा ही अलग होता है , दीन दुनिया भूलकर ताई लंड चूस रही थी, कुछ देर बात उसने मुह से निकाला और मेरे अंडकोष चूसने लगी, मेरे लिए एक नया अहसास था, गुदगुदाते हुए ऐसा मजा महसूस कर रहा था मैं की बता नहीं सकता.

कुछ देर बाद ताई उठ गयी मैं भी उठा और उसे अपने सीने से लगाते हुए चूमने लगा , मेरे हाथ उसकी गांड को सहलाने लगे, मसलने लगे, ताई की सांसे मेरी सांसो में घुलने लगी थी . ताई ने अपनी एक टांग उठा कर मेरी कमर पर रखी , और लंड को अपनी चूत पर टिका लिया,

वो कितना बर्दाश्त करती वो भी , घप्प से लंड चूत में घुस गया और खड़े खड़े चुदाई शुरू हो गयी,

दोनों हाथो में मोटे मोटे चुतड थामे मैं ताई की चूत में लंड अन्दर बाहर कर रहा था , उसने अपने दोनों हाथ मेरे कंधो पर रखे हुए थे और चुदाई का मजा ले रही थी .न जाने ऊपर वाले ने इन्सान को ये कैसी भूख दी थी, जिसके लिए वो हर रिश्ते-नाते को शर्मसार कर जाता है , उसे कुछ भी ख्याल नहीं रहता

और इसका उदाहरण हम दोनों थे, पर उस कमजोर लम्हे में ये सब बाते बेमानी थी, कुछ था तो बस कमरे में गूंजती वो चुदाई की आवाज जो तब ता क गूंजती रही जब तक की हमने अपनी पानी गर्मी बाहर नहीं निकाल दी. एक बार फिर हमने अपने अपने चरम सुख को प्राप्त कर लिया था.

चुदाई के बाद ताई ने अपने कपडे पहने , मैंने भी .

मैं- आज रात यही रुक जाओ न

ताई- नहीं रुक सकती, ब्याह का घर है , और मैं बताके भी नहीं आई, हाँ अगली बार जरुर रुक जाउंगी

मैं- ठीक है, चलो तुम्हे घर तक छोड़ आऊ

ताई ने हामी भरी , मैं ताई के साथ घर तक आया, मैंने दरवाजे के अन्दर निगाह डाली, एक नजर माँ को देखना चाहता था , पर मैं वापिस मुड़ गया. कहने को तो ये ईमारत मेरा ही घर थी, पर इस दहलीज और मेरे पैरो के दरमियान एक रेखा खिंची थी, जिसे बरसो पहले लांघ दिया था मैंने .

मेरी नजर ऊपर कोने वाले कमरे पर पड़ी, जो कभी मेरा होता था , पुरे घर में रौशनी थी बस एक उस हिस्से को छोड़कर, शायद गुजरे वक्त की तरह मुझे भी इस घर ने भुला दिया था . बीते सालो में मैंने एक भी इधर मुड के नहीं देखा था पर अब बार बार मेरा इधर आना जाना हो रहा था . क्या चाहती थी नियति मुझसे , आखिर मेरे तमाम सवालों के जवाब किसके पास था.

वापिस खेत पर आकर भी मुझे चैन नहीं था मेरी बेचैनी पागल कर रही थी मुझे, मैंने सोने की कोशिश की पर नींद रूठी थी, माथे पर पसीना था , एक घबराहट सी हो रही थी , ऐसा पहले कभी महसूस नहीं हुआ था , मैं कमरे से बाहर आया , मौसम ने अपना मिजाज बदला हुआ था , हवाए तेज चल रही थी ,

“काश तू आती मिलने, ” मेरे होंठो से जैसे एक आह सी निकली.

दिल ने एक बार फिर से पुजारी की लड़की को याद किया , उसका मासूम चेहरा आँखों के सामने आ गया. एक शोखी सी थी उस लड़की में, उसकी आँखों में झील सी गहराई थी , उसकी वो बेतकल्लुफी मुझे भा गयी थी.

पर मैं उसे क्यों याद कर रहा था ,मिलने का वादा करके भी वो आई नहीं थी , माना रही होंगी उसकी हजार मजबुरिया , समय नहीं मिला होगा पर एक दिन बाद, दो दिन बाद कभी तो आती, और मैं मैने तो सोच लिया था की उसे एक ख्वाब समझ भूल जाना था पर फिर क्यों याद आ रही थी मुझे वो.

“एक बार चलके तो देख , क्या पता मंदिर में मिल जाए वो . उसने कहा था जोत सँभालने आती है वो .”

“नहीं ” दिमाग ने कहा

“ चल तो सही, अपने यारो के लिए लोग न जाने क्या कर गए और तू थोड़े से इंतजार से घबरा गया ” दिल ने कहा

“जिस मंजिल पर जाना नहीं वो रास्ता क्या देखा ” दिमाग बोला.

दिल और दिमाग की कशमकश मुझे पागल करने लगी थी , और कहते है न की दिल से निकली आह न जाने क्या करवा दे, , मैंने एक बार फिर से मंदिर जाने का सोच लिया. सोच क्या लिया मैं चल पड़ा.

अँधेरी रात में, तेज हवा से जूझते हुए मैं रतनगढ़ की तरफ बढे जा रहा था , गाँव हमारा इलाका पीछे छूट गया था , मैं टूटे चबूतरे से कुछ दूर ही था की मेरी आखो ने एक लौ देखि, अँधेरी रात में शान से जलती लौ. मैं दौड़ पड़ा हाँफते हुए मैं पंहुचा , ये दिया था एक दिया जो टूटे चबूतरे पर जल रहा था.

हवाए इतनी तेज चल रही थी की मैंने बदन पर चादर लपेट रखी थी पर मजाल क्या इन गुस्ताख हवाओ की जो इस दिए पर अपना जोर दिखा सके, वो लौ इतनी शांत थी जैसे तालाब का शांत जल, उस दिए एक आभा थी जिसने मुझे अपने पास खींच लिया था, कोतुहल में मैंने उस दिए को उठा लिया और गजब हो गया.

अपने कंधो पीठ पर मैंने किसी को महसूस किया और फिर क्या हुआ मैं समझ पाता उस से पहले ही मैं धरती पर गिरा चीख रहा था , मेरी पीठ का मांस उधेडा जा रहा था

“आआआआआआआइ आआआआआआआआ ” मैं चीख रहा था, वो कोई जानवर था जो बेहद मजबूती से मुझे दबोचे मेरा मांस खा रहा था . मैं छुड़ाने की कोशिश कर रहा था ,क चीख रहा था पर मेरा जोर नहीं चल रहा था . बदन के पिछले हिस्से पर उसके पंजो की खरोचे महसूस हो रही थी, जैसे कोई मेरी पसलियों को खींचे जा रहा था .

और मैं बस रोये जा रहा था, बिलबिला रहा था दर्द से, चीखे जा रहा था .
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RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश - by desiaks - 12-07-2020, 12:12 PM

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