RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#17
झटके से आँखे खुल गयी, सांसे गहरी थी मेरी, रौशनी ने जैसे कुछ लम्हों के लिए चौंधिया था पर जब मैंने देखा तो पाया की मैं एक नर्म, मुलायम बिस्तर पर पड़ा था, हॉस्पिटल के बिस्तर पर. क्या मालूम दिन था या रात. इधर उधर देखा कमरे में कोई नहीं था, बदन थोडा सा हिला डुला तो दर्द ने जैसे मेरे वजूद पर कब्ज़ा कर लिया.बोलना चाहता था पर आवाज दर्द के तले दब गयी.
तभी दरवाजा खुला और एक नर्स अन्दर आई. मुझे होश में आया देख कर वो मुस्कुराई
मैं- कहाँ हु मैं
नर्स ने मुझे चुप रहने का इशारा करते हुए कहा- नहीं, अभी नहीं,
मैंने अपने आप पर नजर डाली और एक पल के लिए मेरी रूह कांप गयी, हालत देख कर पुरे बदन पर पट्टियों का ढेर लगा था ,
“क्या हुआ मुझे ” मैंने मरी सी आवाज में पूछा
तभी दरवाजा फिर से खुला और मैंने उसे देखा, जिन्दगी किसे कहते है मैंने उस कमजोर, बिखरे हुए लम्हों में जाना था . डबडबाई आँखों से उसने मुझे देखा और बिना किसी की परवाह किये दौड़ कर मेरे सीने से लग गयी वो . ये कैसा पल था दर्द भी था सकून भी . सीने पर सर रखे जैसे मेरी धड़कने सुन रही हो वो.
उसने मेरा हाथ अपने हाथ में लिया , उसके आंसू गिर रहे थे मेरी हथेली पर मैंने बोलना चाहा पर उसने गर्दन हिलाते हुए ना कहा. न जाने कैसे पल थे ये उसकी आँखों से पानी गिरता रहा , अपने तमाम जज्बात जैसे आज बहा देना चाहती थी वो ... मैं खुश था क्योंकि वो साथ थी .
“आँखे तरस गयी थी , बहुत इतंजार करवाया आँखे खोलने में ” उसने संजीदा आवाज में कहा
मैं बस मुस्कुरा दिया.
“कैसी हो ” मैं बस इतना कह पाया
वो- अब ठीक हूँ , बहुत घबरा गयी थी मैं, डर गयी थी
उसकी बात अधूरी रह गयी , नर्स ने बीच में टोक दिया
“अरे तुम लोग बाद में बाते करना, पहले इसे डॉक्टर को दिखा लेने दो ” उसने कहा
थोड़ी देर बाद डॉक्टर आया, उसने जांच की और फिर बाहर चला गया ,डॉक्टर के पीछे पीछे वो भी .
मैं- कितने दिन रुकना होगा यहाँ
नर्स- दिन , कितने महीने पूछो
मैं- पूरी बात बताओ मुझे
नर्स- तुम्हे किसी जानवर ने खाया था , काफी मांस नोच गया . जब तुम्हे यहाँ लाया गया था तो चंद सांसे बची थी, मैं तो हैरान हु की तुम बच गए. हालत बहुत बुरी थी, शायद ये तुम्हारे साथ आई लड़की की दुआओ का असर है जो तुम बच गए.
मैं- कितने गहरे जख्म है
नर्स- जख्म, मांस ही नहीं बचा तुम जख्मो की बात करते हो. पर तुम ज्यादा बाते न करो , शरीर पर जोर पड़ेगा.
मैंने आँखे मूँद ली, कुछ कुछ उस रात की याद आने लगी मुझे , और तभी मेरी आँख फिर खुल गयी , डर ने डरा दिया मुझे .बदन में एक सिरहन सी दौड़ गयी, उस रात के बारे में सोचते ही.
मैं- उसे बुला दो
नर्स- ठीक है
नर्स बहार चली गयी और थोड़ी देर बाद वो आई.
वो- तुम्हारे घर का पता दो, घरवालो को भी तुम्हारी फ़िक्र हो रही होगी, मैं उन्हें खबर करवा दूंगी .
मैं- मेरे पास बैठो जरा
वो- यही हूँ मैं
मैं- थकी हुई लगती हो
वो- हाँ, थकी तो हूँ पर अब नहीं , और तुमसे नाराज भी हूँ, क्या जरुरत थी तुम्हे जंगल में भटकने की , ये तो तुम्हारी किस्मत थी मैंने तुम्हारी चीखो को सुन लिया वर्ना तुम्हारा तो काम तमाम हो गया था
मैं- तुम्हारी याद आ रही थी , तुमसे मिलने आ रहा था
वो- तो दिन में आते, जंगल सुरक्षित नहीं है जानते तो हो न तुम
मैं- दिन में भी आता था, पर तुम मिली नहीं
वो- मैं बाहर थी , जिस रात ये हुआ उसी शाम मैं वापिस गाँव लौटी.
उसने एक नजर घडी पर डाली और बोली- मुझे जाना होगा, पर जल्दी ही आ जाउंगी, तब तक आराम करो. जल्दी से ठीक होना है तुम्हे.
दरवाजे पर जाके उसने फिर देखा मुझे मुड़कर
मैं- सुनो, नाम तो बताती जाओ.
वो मुस्कुराई और बोली- मेघा.
मेघा, मेघा मेघा न जाने कितनी देर मैं उस नाम को दोहराता रहा फिर मुझे नींद आ गयी. सुबह उठा , दवाई ली, नर्स ने थोडा बहुत खिलाया पिलाया. मैं इतना तो समझ गया था की ये हॉस्पिटल बहुत ही बढ़िया है और बढ़िया होने का मतलब था महंगा होना. इस बात ने मुझे थोड़ी फ़िक्र में डाल दिया .
मैंने नर्स से पूछा - मेरे इलाज में काफी पैसे लग गए होंगे.
नर्स- हाँ
मैं- सभी बिल दिखाओ मुझे
नर्स - बाद में
मैं- दिखाओ अभी
कुछ देर बाद वो एक फाइल लेके आई जिसमे सारा हिसाब किताब था .
मैंने फ़ाइल् देखि और मेरे चेहरे पर शिकन छा गयी.
“इसे ये दिखाने की क्या जरुरत थी ” मेघा ने अन्दर आते हुए नर्स को डांट दिया
नर्स- इन्होने ही मंगवाई थी .
मेघा- बाहर जाओ थोड़ी देर के लिए
मेघा- और तुम्हे ये सब की कोई फ़िक्र नहीं होनी चाहिए
मैं- पर मेघा
मेघा- मैंने कहा न ,
मैं- ये रकम बहुत बड़ी है मैं कैसे चूका पाउँगा
मेघा ने मेरे हाथ से फाइल ले ली और बोली- तुम्हारी दोस्त है तुम्हारे साथ , कुछ पैसे भर दिए है कुछ भर दूंगी
मैं- मेघा मेरी बात सुनो.
मेघा- तुम मेरी बात सुनो , मेरे लिए सबसे पहले तुम हो, ये लम्हे है जो तुम्हारे साथ जीने है मुझे, तुम्हारा ठीक होना जरूरी है समझ रहे होना तुम
उसकी आँखों में जैसे जादू था, जो मुझ पर खूब चलता था ,
“तुम्हारे लिए कुछ लायी हूँ ” उसने झोला खोलते हुए कहा
मैं- क्या
वो- खाना
अपने हाथो से वो खिलाने लगी मुझे, ये जीवन के ऐसे अनमोल पल थे जो हमारे अनजाने रिश्ते को एक मुकाम देने वाले थे एक नाम देने वाले थे. , वो घंटो मेरे साथ बैठती, बाते करती, मुझे कहानिया सुनाती , कभी दिन भर तो कभी रात रात ,कहने को वो हॉस्पिटल का कमरा था पर अब जैसे दुनिया था,
दिन ऐसे ही गुजर रहे थे, हालत थोड़ी ठीक हुई, मैं अब उठने, बैठने लगा था , उसके साथ ने न जाने कैसा असर किया था मुझ पर , पर न जाने क्यों मुझे ऐसा लगता था की मेघा के मन में कुछ तो है जो वो छुपा रही थी
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