RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#24
“तेरा बापू आ निकला तो ” कहा मैंने
मेघा- रोटिया सबकी एक सी ही होती है , चल आ, मालूम है मुझे भूखा है तू
मेघा ने अपना झोला उठाया और हम मंदिर के पीछे होते हुए जंगल की तरफ चल पड़े, थोड़ी दूर जाकर हम एक पेड़ के निचे बैठ गए.
मेघा- ले, रोटी है और चटनी है
मैं- बढ़िया , काश तू उम्र भर मेरे लिए रोटी बनाये
मेघा- सपने बहुत देखता है तू,
मैं- गरीब सपने ही देख सकता है
मेघा- ठीक ही है सपने है, टूटे भी तो क्या गम , आँख खुली और भूल गये
मैं- और यदि मैं इस सपने को हकीकत बनाना चाहू तो
मेघा ने अपने अंदाज में मेरी तरफ देखा और बोली- तेरी मेरी बात दोस्ती तक ही रहे तो बेहतर है , प्रीत न लगा
मैं- मेरा हाथ थामने से डरती है क्या
मेघा- डर होता तो तेरे साथ न होती , तुझसे दोस्ती की , पर हर रिश्ते की एक रेखा होती है कबीर,
मैं- फिर क्यों आई मेरी जिन्दगी में
मेघा- ले एक रोटी और ले
मैंने रोटी ली
मेघा- वैसे, तू इस तरफ मत आया कर गाँव के कई लोग इधर आने लगे है आजकल ,माहौल ठीक नहीं है तुझे कोई टोक न दे,
मैं- तुझे देखे बिना चैन भी तो नहीं आता मुझे, तू मान या न मान तेरे सिवा है ही कौन मेरा, जबसे मैंने तुझे देखा है कुछ और दीखता नहीं मुझे मैं क्या करू
मेघा- तेरी बाते मुझे समझ नहीं आती , वैसे मैं बहुत परेशां हु आजकल
मैं- क्यों भला
मेघा- वही प्रीत के वचन वाली कहानी
मैं- उसके बारे में क्या सोचना , जब इतने लोगो को फर्क नहीं पड़ता तो हमें भी नहीं पड़ना चाहिए.
मेघा- कबीर, मुझे लगता है वो सच है , इतिहास में हुई एक घटना
मैं- तो भी क्या फर्क पड़ता है, हमें मालूम भी तो नहीं कोई सिरा हाथ लगे तो कोई बात आगे बढे, मैंने भी बहुत लोगो से मालूमात की पर हाथ खाली
मेघा- चल छोड़, देर हुई मुझे चलना चाहिए.
मैं- फिर कब मिलेगी
मेघा- जल्दी ही
मेघा के जाने के बाद मैं भी अर्जुन्ग्गढ़ की तरफ्ब बढ़ गया, पुलिया पार करके मैंने मेन सड़क की तरफ जाने का सोचा, और उस तरफ चला ही था की मुझे एक जानी पहचानी गाड़ी दिखाई दी, ये मेरे पिता की गाड़ी थी . पर वो यहाँ इस बियाबान में क्या कर रहे थे . मैंने झाड़ियो के पास से देखा गाड़ी हिल रही थी,
भरी दोपहर में ये क्या हो रहा था क्या मेरे पिता किसी औरत को चोद रहे थे , पहली नजर में ऐसा ही लगता था और ऐसा ही था, मैंने और कोशिश की तो देखा की ताई , पिताजी की गोदी में नंगी बैठी थी,ये देख कर मेरे पैरो तले जमीन खिसक गयी,
बेशक ये सब मुझे नहीं देखना चाहिए था पर मैं जा भी नहीं सका, ताई के इस रूप के बारे में तो मैंने कभी कल्पना ही नहीं की थी , थोड़ी देर बाद अस्त व्यस्त हालत में वो दोनों गाड़ी स बाहर निकले और बाते करने लगे.
पिताजी- भाभी, तुम कबीर पर पूरा ध्यान नहीं दे रही हो, एक टींगर काबू नहीं आ रहा तुम्हारे, मैंने कहा था न चाहे तो सो जाना उसके साथ पर वो बात मालूम कर लेना , तुम तो जानती हो न कितना जरुरी है वो सब
ताई- तुम्हे क्या लगता है देवर जी, मैं कोशिश नहीं कर रही , उसे रिझाने की हर मुमकिन कोशिश कर रही हु, पर आजकल पता नहीं वो किधर गायब रहता है , ज्यादातर ताला ही होता है उसके कमरे पर
पिताजी-यही तो मेरी चिंता का विषय है , उसके कमरे की तलाशी भी ले ली हमने पर सब कोरा है
ताई- तुम्हे क्या लगता है उस विषय में जिज्ञासा नहीं हुई होगी, अपने सवालो के जवाब जरुर तलाश करेगा वो
पिताजी- काश वो नालायक घर छोड़ कर नहीं गया होता , तो नजरो के सामने रहता ,खबर रहती हमें
ताई- पर आखिर वो क्या वजह थी जिसकी वजह से उसने ये कदम उठाया,मैं जानना चाहती हूँ
पिताजी- जिद उसकी और क्या
पिताजी ने बात टाल दी थी पर मैं खुश था की उन्होंने ताई को वो घटना नहीं बताई पर दुःख इस बात का था की ताई किसी स्वार्थ के लिए मुझसे चुद रही थी .
अपने बिस्तर पर पड़ी प्रज्ञा की आँखे बंद थी पर तन सुलगा हुआ था , उसकी आँखों के सामने बार बार कबीर के साथ हुई चुदाई आ रही थी , ऐसा नहीं था की प्रज्ञा बहुत ही प्यासी औरत थी पर जबसे कबीर उसके जीवन में आया था बदल गयी थी वो. उसका हाथ सलवार के अन्दर से गुजरता हुआ चूत के छेद पर पहुच गया था .
आँखे बंद किये वो अपने भ्ग्नासे को आहिस्ता आहिस्ता रगड़ रही थी . की तभी निचे से आती आवाजो ने उसका ध्यान भटका दिया. उसने कपडे सही किये और निचे की तरफ चल पड़ी
“हुजुर, बहुत दिनों से अर्जुन्गढ़ का एक लड़का माता के मंदिर में आता है ” प्रज्ञा के कानो में पंडित की आवाज पड़ी तो वो तेजी से निचे आने लगी.
उसने देखा उसका पति और पंडित बाते कर रहे थे .
राणा- अर्जुनगढ़ का लड़का , वो भी हमारी जमीन पर क्या उसे डर नहीं , और मुझे बताने से पहले इस मामले से निपट क्यों नहीं लिए तुम पंडित
पंडित- हुकुम, आपने ही तो कहा है की भगवन का घर सबका है उसमे किसी तरह का भेद भाव न करो
राणा- तो फिर क्या औचित्य इस बात का,
पंडित- मैंने सोचा आपको खबर होनी चाहिए
राणा- नजर रखो उस पर, प्रयोजन क्या है उसका
पंडित- नजर है हुकुम वो बस आता है दर्शन करता है , जब तक उसका जी करता है बैठा रहता है और फिर वापिस चला जाता है .
राणा-कोई सिद्धि, तपस्या करने वाला है क्या
पंडित- नहीं हुकुम
राणा- उसे धमका के भगा दो, छोटे मोटे मामले खुद भी हल कर लिया करो
पंडित- डरता ही तो नहीं है ,इसीलिए आपके पास आया हूँ
राणा- फिर तो देखना पड़ेगा कौन है ऐसा विलक्ष्ण प्राणी जिसे किसी भी बात का खौफ नहीं है
“अवश्य ही ये कबीर होगा, मुझे सावधान करना होगा ”प्रज्ञा ने मन ही मन सोचा
राणा- पंडित, उसके बारे में मालूमात करो, हम जल्दी ही मिलेंगे उस छोकरे से
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