RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#25
एक ऐसी रात जिसमे सबकी नींद उडी हुई थी, सबके अपने अपने कारण थे, सब की आँखों में चिंता थी, करवटे बदल रहे थे, कबीर सोच रहा था की ताई किस चीज़ की जासूसी कर रही थी, प्रज्ञा कबीर को आगाह करने के बारे में सोच रही थी, मेघा के दिमाग में अपनी खोज थी, पंडित ये सोच रहा था की राणा को बताकर उसने ठीक किया या नहीं, और राणा अपनी हवेली से दूर शहर में होटल में किसी रांड की गांड मार रहा था .
पर वो ये नहीं जानते थे की नियति ने उन सब को एक ऐसे सूत्र में बांध दिया है जो उन सब की तकदीरो को ऐसे बदल देगा की सब तहस-नहस हो जायेगा, सुख शांति, हर्ष-उल्लास सब खत्म हो जायेगा . प्रज्ञा सावधानी से ऊपर से निचे आई वो उसी समय कबीर के पास जाना चाहती थी पर उसने देखा उसका बेटा जागा हुआ है, इतनी रात वो उसके सामने ऐसे नहीं निकल सकती थी तो वापिस मुड गयी
कबीर भी बेचैन था , उसे उम्मीद नहीं थी की ताई उसके बाप से चुदती होगी, ताई किसी स्वार्थ के कारन उसके बिस्तर पर आई थी इस बात ने गहरा झटका दिया था , पर करे तो क्या करे , वक्त की डोर तो उपरवाले के हाथ, वो जब ढीली करे तभी करे,
“आखिर मेरे पास ऐसा क्या है जिसके लिए ताई को जासूसी पर लगाया पिताजी ने , मैं तो सब कुछ हवेली छोड़ आया , किस तरह मैं उनकी किसी भी योजना का हिस्सा हूँ ” घूम फिर कर बस यही एक सवाल था , और पूरी रात ख़ामोशी से इसी सवाल पर कट गयी.
सुबह सुबह ही मैं सविता मैडम से मिलने चला गया.
“अरे कबीर, कितने दिनों बाद आये, मैं परेशां थी कही जाओ तो बता तो देते ” एक साँस में मैडम ने न जाने कितने सवाल कर दिए
मैं- तबियत ख़राब थी तो बस
मैडम- बताना था न
मैं- मैडम जी मुझे एक बात पता करनी थी .
मैडम- हाँ
मैं- क्या आप मुझे दोनों गाँवो की दुश्मनी का असली कारन बता सकती है .
मैडम- तुम कितनी बार मुझसे पूछोगे ये सब कबीर, और तुम्हे पता तो है न की मैं यहाँ की नहीं हूँ ये और बात है अब बस गयी हूँ यहाँ, खैर जाने दो नाश्ता करो पहले,
मैं- मास्टर जी दिखाई नहीं दे रहे ,
मैडम - तुम्हारे घर गए है ,तुम्हारे पिता पैसोके मामले में उन पर ही तो विश्वास करते है,
मैं- हम्म , मैडम जी खोये हुए इतिहास को कैसे तलाश किया जाये
मैडम- पुस्तकालय में बहुत किताबे है आके देख लो
मैं - मैं इस गाँव के इतिहास की बात कर रहा हूँ
मैडम- अपने बुजुर्गो से पूछो उनसे बेहतर कौन बताएगा
“बाबा , मैं बस इतना जानना चाहती हूँ की जब सबकी मन्नते यहाँ पूरी होती है तो मेरी क्यों नहीं होती ” मेघा ने पुजारी से पूछा
पुजारी- बिटिया, कोई यहाँ से खाली नहीं जाता, जरुर तुम्हारी मन्नत में स्वार्थ होगा.
मेघा- कैसा स्वार्थ बाबा,
पुजारी- ये तो तुम जानो या तुम्हारा मन , वैसे वो सबकी माँ है , सबकी झोली भरती है
मेघा- सो तो है बाबा. बाबा, ऐसी कोई पुस्तक तो होगी जिसमे अपने गाँव का इतिहास हो. मेरा मतलब ...............
“बिटिया, तुम्हारी खोज तुम्हारे जी का जंजाल न बन जाये ” पुजारी ने उसकी बात काट दी.
मेघा ने फिर कोई सवाल नहीं किया .
इधर प्रज्ञा कबीर के पास जाने को तैयार ही हो रही थी की उसके मायके से फ़ोन आया की उसकी मा बहुत बीमार है तो उसे उधर निकलना पड़ा . प्रज्ञा ने पहली बार खुद को बेबस महसूस किया पर मा के पास भी तो जाना था , इधर मैं मैडम के घर से अपने खेत पर जा रहा था की रस्ते पर मुझे एक गाड़ी दिखी, उसके पास हमारी नौकरानी खड़ी थी ,
मैं उधर गया.
मैं- क्या हुआ काकी
काकी- हुकुम, हम मंदिर जा रहे थे की गाड़ी ख़राब हो गयी , मैंने गाड़ी में देखा एक नयी नवेली औरत बैठी थी मैं समझ गया की ये मेरी भाभी ही होगी.
मैंने गाड़ी देखि , छोटी सी समस्या थी , कुछ देर में गाड़ी स्टार्ट हो गयी.
“ हो गयी काकी, ” इतना कह कर मैं आगे बढ़ा
“रुको लड़के, अपनी मेहनत का इनाम ले जाओ ” मेरे कानो में आवाज आई
मैं कुछ कहता इस से पहले भाभी गाड़ी से उतर आई और कुछ नोट मेरी हाथेली पर रख दिए.
मुझे थोडा गुस्सा सा भी आया और होंठो पर मुस्कराहट भी थी , मैंने वो नोट उसके ऊपर वारे और काकी के हाथ में दे दिए. अपना रास्ता पकड़ लिया.
“ये आपके देवर हैं छोटी मालकिन ” मैंने काकी को कहते सुना
और तभी उसे अपनी भूल का अहसास हुआ
“रुकिए देवर जी, हमसे भूल हुई हम पहचान नहीं पाए आपको ” भाभी ने मेरी तरफ आते हुए कहा
मैंने भी अपने हाथ जोड़ दिए,
मैं-आपका दोष नहीं भाभी , समय की बात है आप जाइये हवेली वाले छोटे लोगो के मुह नहीं लगा करते
मैं बस इतना कह पाया , और कुछ था भी तो नहीं , न उसके पास न मेरे पास , पर कहते है न तक़दीर जब गांड पर लात मारती है तो कुछ जोर से मारती है , और मेरे साथ भी ऐसा ही होने वाला था और इसका पता मुझे तब लगा जब मैं उस शाम तारा माता के मंदिर में पहुंचा
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