RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#37
सबके अपने अपने किरदार थे सबके अपने अपने सपने थे, मेघा और कबीर ने एक पौधा बोया था जिसे पेड़ बनाने के लिए न जाने कितने तुफानो से बचाना था, दोनों गाँवो की बरसो से ठंडी पड़ी आग सुलग गयी थी , जिसमे आने वाली पीढ़ी झुलस ने वाली थी, सपने टूटने थे या पुरे होने थे कोई नहीं जानता था सिवाय नियति के , वो नियति जिसने ये सारा खेल रचा था,
रतनगढ़ के लिए ये बहुत गहरा सदमा था, दर्जन भर घरो के दिए आज बुझ गए थे, किसी भी घर में चूल्हा नहीं जला , जली तो बस चिताए, शमशान में जगह थोड़ी पड़ गयी थी , पूरा गाँव आज एक साथ रोया था , ऐसा रुदन की स्वयं आसमान का कलेजा भी फट गया था वो भी फूट फूट कर रोने लगा था, दर्द बारिश बनकर बरसने लगा था.
बारिश की बूंदों ने जब बदन को भिगोया तो होश आया , सर बुरी तरह चकरा रहा था आँखे खुलना नहीं चाहती थी, खांसी उठी कलेजे में, दर्द से भरा था पूरा बदन, बड़ी मुश्किल से उठ कर बैठा , थोड़ी देर लगी दिमाग को दुरुर्स्त होने में पर जब आँखे कुछ देखने लायक हुई तो मेरी चीख निकल गयी,
उठ कर भाग जाना चाहता था पर पैरो को धरती ने जकड़ लिया था , बारिश के पानी से नहीं ये धरती खून से लाल हुई पड़ी थी , मेरी आँखों के सामने अनगिनत टुकड़े पड़े थे, मांस के टुकड़े , कोई छोटा कोई बड़ा, जैसे कोई कसाई अपना बचा हुआ मीट फेक गया हो, पर ये जानवरों के टुकड़े नहीं थे, ये इंसानों के टुकड़े थे,
“ये किसने किया ” मैंने अपने आप से सवाल किया
पर कोई जवाब नही था , कोई नहीं था सिवाय मेरे और उन टुकडो के , मेरी हड्डियों में एक दवाब महसूस कर रहा था मैं , एक खौफ था मेरे चेहरे पर, जैसे तैसे अपने बदन को घसीटते हुए मैं कमरे के अन्दर आया, और बिस्तर पर बैठ गया. अपनी हालत पर गौर किया तो मैंने पाया की मेरे जख्म, मेरे जख्म काले पड़े थे जैसे किसी ने दाग दिया हो उनको ये एक ऐसी घटना थी जिसने मुझे हिला कर रख दिया था,
अपने कपडे उतार कर मैंने शीशे में देखा, जगह जगह कुछ चिपका था , मैंने उस धूल को हाथ में लेकर सूंघ कर देखा, वो राख थी , गर्म राख, मैं बुरी तरह डर गया, दरवाजा बंद करके बैठ गया. खौफ ने मेरे ऊपर कब्ज़ा कर लिया.
रात के अँधेरे और कुछ घनघोर बरसात , मंदिर किसी खंडहर जैसा लग रहा था , और जब आस पास बिजली कडकती तो ऐसा दीखता की कोई उस पल उसे देखे तो दौरा पड़ जाये, चारो तरफ जब रात और पानी ने अपना कब्ज़ा किया था , लोग अपने अपने घरो में दुबके थे कोई था जो मंदिर में था, माँ तारा की मूर्ति के सामने
“माँ, हाँ न तू सबकी तो फिर मेरी तरफ क्यों नहीं देखती , सबके बारे में सोचती है न तू , तो फिर मेरा ख्याल क्यों नहीं है तुझे , मेरे भाग में ये क्यों लिखा तूने, दुखी तो मैं थी ही न, क्यों मुझे सुख के सपने दिखाए तूने अगर ये दर्द ही देना था, कैसी माँ है तू, क्या तेरा कलेजा नहीं पसीजता मेरी और से ,दुनिया की मन्नते पूरी करती है तू मेरे बारे में कब सोचेगी ” मूर्ति से सवाल कर रही थी वो .
अब भला मूर्ति क्या बोले, वो बस मुस्कुराती रही हमेशा की तरह
“आज तुझे मेरे सवालो का जवाब देना होगा, आज यहाँ से तब तक नहीं जाउंगी मैं जब तक तू मुझे नहीं बताती, आखिर क्या कसूर था मेरा, सबकी तकदीरे तूने लिखी है , मेरे दुःख का कारन भी बता मुझे , देख माँ मुझे मजबूर मत कर ” गुस्से से बोली वो
पर भला एक मूर्ति क्या बोले. बस मुस्कुराती रही जैसा उसे बनाया गया था .
“ठीक है माँ, तू हठ पर है तो अब मेरा हठ भी देख , ” जैसे कोई नागिन फुफकार उठी हो. गुस्से से भरी वो उठी और बाहर की तरफ चल पड़ी जैसे ही वो सीढियों से उतरी, एक तेज रौशनी ने पूरी मंदिर को अपने कब्ज़े में ले लिया. एक पल वो रौशनी चमकी और फिर एक तेज गर्जना हुई , एक बेहद तेज धमाका जिसकी गूँज उस रात जाग रहे हर एक इंसान ने सुनी , मंदिर पर बिजली गिर गई थी, पर उसने मुड कर नहीं देखा बस वो चलती रही .
अपनी खिड़की से बारिश को देखती प्रज्ञा के चेहरे पर मायूसी थी, बारिश उसे थोडा थोडा भिगो रही थी पर उसे परवाह नहीं थी, उसके दिमाग में उलझने थी, आने वाले कल की चिंता थी, आज जो रतनगढ़ में हुआ था उसे भी उसका बहुत दुःख था पर उसे किसी की फ़िक्र भी थी, uffffffffff ये कैसे बंधन थे, कैसे रिश्ते थे जिनके कोई नाम तो नहीं थे पर मान बहुत था उन नातो का
एक ऐसा ही नाता था उसका और कबीर का, जिसे समाज के सामने स्वीकारा नहीं जा सकता था और अपनी रूह से झुठलाया भी नहीं जा सकता था . जिस तरह से वो और कबीर एक दुसरे के करीब आए थे, कबीर केवल प्रज्ञा के लिए जिस्म की आग बुझाने का जरिया नहीं था बल्कि उसके लिए एक दोस्त था, एक ऐसा साथी जो उसे समझता था, प्रज्ञा ये भी जानती थी की आने वाला वक्त उसकी दोस्ती की कड़ी परीक्षा लेगा.
पर एक और थी जिसकी आँखों से भी नींद रूठी हुई थी, जब वो बापिस गाँव आई तो मालूम हुआ क्या काण्ड हुआ है , उसका दिल बैठ गया उसे इन लाशो के गिरने का दुःख था पर फ़िक्र अपने यार की भी थी , ये मेघा थी जो अपने बिस्तर पर बैठे हुए तमाम घटना का अवलोकन कर रही थी, वो भी जानती थी की हालात अब और मुश्किल हो जायेंगे.
तीन अलग अलग लोग जो एक दुसरे से जुड़े थे, एक दुसरे के लिए जीते थे, एक दुसरे संग जीना चाहते थे, एक दुसरे की परवाह करते थे , एक कल का इंतज़ार कर रहे थे , उस कल का जो अपने साथ न जाने क्या लाने वाला था .................
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