RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#39
अपनी वापसी में तमाम रस्ते प्रज्ञा सोचती रही की कौन लड़की होगी जिसको कबीर से मुहब्बत हुई होगी, जिसके बारे में कभी उसने बताया नहीं,पर वो ये क्यों सोच रही है उसके दिल ने पूछा उस से और बस उसने गहरी साँस ली .
वो सीधा मंदिर गयी, गाँव से और भी लोग आ गए थे उसने मलबे को साफ़ करवाना शुरू किया , स्तिथि का जायजा लेने लगी,
दूसरी तरफ अर्जुनगढ़ में भी गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था , कबीर के पिता दो चार और लोगो के साथ बैठे थे, रतनगढ़ में हुए काण्ड की खबर इधर भी आ गयी थी .
मास्टर- हुकुम, मामला बहुत संगीन है , आप कहे तो पंचायत बुला ले
ठाकुर- नहीं, पंचायत के बस का नहीं ये सब , राणा वैसे भी कुछ नहीं सुनेगा
मास्टर- तो आगे क्या
ठाकुर- अपने हर एक आदमी की सुरक्षा की जिम्मेवारी मेरी है
गाँव वाला- हुकुम आपकी दया है , पर कुंवर सा से बात करनी भी जरुरी है
ठाकुर- हम देखेंगे
मास्टर- मुझे नहीं लगता कबीर अकेला इतना सब कर सकता है , उसके पास पूरा मौका था सुमेर को मारने का और उस दिन उसे कोई भी नहीं रोकता तो फिर वो क्यों मारेगा उसे, हाँ उसका दिन रात रतनगढ़ में जाना संदेह पैदा करता है पर एक अकेला दर्जन भर से ज्यादा लोगो को ऐसे नहीं मार सकता
गाँव वालो ने भी हामी भरी
ठाकुर- इस छोकरे ने जीना दूभर कर दिया है, कुछ करना होगा जल्दी ही
मैंने अपने कमरे पर ताला लगाया और प्रज्ञा के बाग़ वाले ठिकाने की तरफ चल दिया , मैंने एक दूसरा रास्ता लिया , मैं फिलहाल किसी से भी उलझना नहीं चाहता था . मैंने घने जंगल की तरफ से जाने का सोचा था , आहिस्ता आहिस्ता मैं चले जा रहा था , झाडिया घनी होने लगी थी
“अनजान इलाको में यु बेमतलब नहीं घूमना चाहिए मुसाफिर ” मेरे कानो में ये आवाज पड़ी और मैं रुक गया , ये आवाज मेघा की थी मैंने मुड कर देखा
मैं- तुम यहाँ , कैसे
वो- तुम्हे नहीं मालूम
मैं- पर तुम्हे कैसे मालूम मैं ये रास्ता लूँगा, और किधर जा रहा हूँ
मेघा-किस्मत, मेरे राजा किस्मत, मैंने खुद ये रास्ता लिया ताकि तुम्हारे पास आ सकू, तुमसे मिलना बेहद जरुरी था.
मैं- मैं भी तुमसे मिलना चाहता था तुम्हे कुछ बताना चाहता था
मेघा- वो बाद में, मेरे साथ चलो अभी
मैं- पर कहाँ
मेघा- आओ तो सही तुम
करीब बीस पच्चीस मिनट बाद हम उस जगह पर खड़े थे जिसे मेघा ने खोजा था और मैं उसे दाद दिए बिना नहीं रह सका
“बहुत बढ़िया, दूर है पर सुरक्षित है और सबसे बड़ा सवाल किसकी है ये जगह ” मैंने कहा
मेघा- मैं क्या जानू
मेघा मुझे उस कमरे तक ले आई,
“मैंने दरवाजा खोलने की कोशिश की थी पर खुला नहीं मुझसे ” उसने कहा
मैं- हटो देखता हूँ
मैंने दरवाजे को हल्का सा धक्का दिया और वो बड़े आराम से खुल गया
“कल तो नहीं खुला था ” मेघा ने जैसे शिकायत करते हुए कहा
हम अन्दर गए, हालत बहुत खस्ता थी , एक चारपाई थी टूटी सी, सडा बिस्तर था उस पर , जिसे दीमक चाट गयी थी लगभग, दीवारों पर जालो की भरमार थी , मैंने थोड़ी सी सफाई की फिर छानबीन शुरू की , दीवारों में छोटे छोटे आले थे, एक में कुछ कपडे रखे थे जिन्हें मैं टुकड़े कहू तो ज्यादा ठीक रहे गा .
“न जाने कितने दिनों से बंद पड़ा है ये ” मेघा बोली
मैं- सो तो है
हमने देखा दिवार पर कुछ तस्वीरे थी जो वक्त की मार आगे धुंधला गयी थी
“साफ करके देखो जरा ” मैंने मेघा से कहा
उसने सर हिलाया और तस्वीरों को लेकर बाहर चली गयी . मैं और देखने लगा कोने में कुछ बक्से थे मैंने उत्सुकता वश उन्हें खोला और मेरी आँखे फटी की फटी रह गयी,
“मेघा ,जल्दी आ ” मैंने चिल्लाते हुए कहा
“क्या हुआ , अरे ये ”
...........................
“ये तो, ये तो सोना है कबीर ” मेघा ने कहा
मैं- हाँ ये सोना है
उन बक्सों में बहुत सा सोना था, दरअसल वो बक्से भरे थे सोने की ईंटो से, जैसी ईंटो को हम मकान बनाने में इस्तेमाल करते है वैसी ईंटो से, इतने सोने ने हमारे दिमाग को भन्ना दिया .
हमने एक एक ईंट उठाई और देखने लगे, पुराणी ईंटे थी पर क्या फर्क पड़ता है सोना तो सोना ही होता है .
“तुम सही कहते हो कबीर, इस जंगल ने न जाने क्या क्या छुपाया हुआ है ” बोली वो
मैं- किसका होगा ये
मेघा- किसी का भी हो, अपने को क्या वैसे भी सोना मिलना शुभ नहीं होता , इन्हें वापिस रख दो .
हम बाहर आके बैठ गए.
मैं- मेघा मुझे कुछ कहना है
वो- सुन रही हूँ
मैं- ये जो हालात हुए है , मैं तुम्हारी कसम खाके कहता हूँ मैंने नहीं मारा सुमेर को और उन बाकियों को
मेघा- जानती हूँ इसीलिए तुम्हारे साथ हूँ
उसने मेरा हाथ थामा और बोली- हर कदम तुम्हारे साथ रहूंगी, जितना तुमको जाना है जानती हु तुम कुछ गलत नहीं करोगे, पर सवाल ये है की उनको किसी ने तो मारा है सुमेर का तो मालूम नहीं पर उन बाकियों को किसी औरत ने मारा है,
मेघा ने मुझे रतनगढ़ में हुए वाकये को बताया
मैं- तुमने देखा उसे
मेघा- नहीं मुझे किसी और से मालूम हुआ ये
मैं तो अब उसे ढूँढना पड़ेगा. इस प्रीत की डोर ने ऐसा उलझाया है की अब क्या कहूँ
मेघा- पर उसने हमारी डोर भी तो बाँधी है , हमें भी तो इस कहानी ने ही मिलाया है न , पर फ़िलहाल हमें इस जगह को ऐसा बनाना होगा की हम यहाँ जी सके, कुछ लम्हे साथ बिता सके,
मैं- हाँ
दूर रतनगढ़ में फ़ोन की घंटी बज रही थी , नौकर ने फोन उठाया
“मालकिन शहर से फ़ोन है ”
प्रज्ञा ने जैसे ही दूसरी तरफ से बात सुनी उसके माथे पर पसीने आ गए.
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