RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#40
दूसरी तरफ से जो कुछ भी कहा गया , प्रज्ञा के चेहरे के भाव बता रहे थे की बिलकुल भी अच्छी खबर नहीं थी
“और आप मुझे ये अब बता रहे है , हद होती है लापरवाही की वैसे ही मेरी जान को कम परेशानी नहीं थी और अब ये एक और , खैर जैसे ही कुछ पता लगे मुझे तुरंत सूचना दे, सिर्फ मुझे ” झल्लाते हुए प्रज्ञा ने फ़ोन काटा और माथा पकड़ के बैठ गयी.
“मैं क्या करती सरकार, कोई और चारा भी तो नहीं था , वो मार देते उसे , लगभग मर ही गया था वो , जानती हु मैंने गलत किया पर क्या करती ” दिवार की तरफ देखते हुए उसने कहा .
“मैं जानती हु, इस गलती की और सजा मिलेगी मुझे, ऐसे लोगो के बीच नहीं जाना चाहिए था , पर उसे नहीं बचाती तो भी गलत होता, तुम तो जानते हो ” उसने अपनी बात पूरी की .
“मुझसे नहीं होता, मैं करू तो क्या करू, ये तन्हाई बर्दाश्त नहीं होती, तमाम वादे झूठे लगने लगे है जी तो करता जिस आग में मैं जल रही हूँ ज़माने को जला दूँ उसमे, रस्मे, कसमे सब बेमानी है तुम भी मैं भी ” हताश स्वर में बोली वो
उसके रुदन में बहुत दर्द था ऐसा दर्द जिसे समझने वाला कोई नहीं था
दूसरी तरफ रतनगढ़ में ._
सारा गाँव चौपाल पर जमा था, राणा तमाम लोगो के बीच बैठा था ,
राणा- जो भी हुआ है वो नहीं होना था , बहुत गलत हुआ है और मैं आप सब गाँव वालो को विश्वास दिलाता हूँ इसका बदला लिया जायेगा, रतनगढ़ की तरफ जो भी आँख उठेगी हम उस सर को ही काट देंगे, आज हमारे रोने का दिन है , पर वो दिन भी आएगा जब हम हसेंगे, और दुनिया रोएगी, उस लड़के की तलाश करो , उसे घसीटते हुए यहाँ लाओ,
“हुकुम, एक औरत थी वो, वो ही लायी थी यहाँ सरो की पोटली . ” एक गाँव वाला बोला
राणा की आँखे अचम्भे से फ़ैल गयी
राणा- एक औरत, तुम कह रहे हो एक औरत हमारे लडको के कटे सर यहाँ लायी और तुम सब देखते रहे, हिजड़ो के तरह, क्या तुम्हारा खून उबला नहीं, एक औरत , एक औरत ऐसी गुस्ताखी कर गयी और तुम सब देखते रहे ,
“उस लड़के की साथी ही रही होगी वो , ढूंढो उसे भी , शुरू उन्होंने किया है खत्म हम करेंगे ” राणा ने गरजते हुए कहा
“मैत्री की जो छोटी सी कोशिश हुई थी अर्जुनगढ़ से वो खत्म समझो, उधर का कुत्ता भी अगर मिल जाए, मार डालो उसें, मेरे एक एक आदमी के बदले दस दस सर भेजो उन्हें, ”
क्रोध, इंसान का सबसे बड़ा शत्रु होता है , क्रोध मानव को प्रेरित करता है बिना सोचे निर्णय लेने के , और अक्सर वो निर्णय उसके खिलाफ ही जाती है , राणा को उस समय ऐसा निर्णय करना था जो दोनों गाँवो की की नफरत को भुलाने में मदद कर सकता था , यदि वो न्याय कर्ता था तो ये कैसा न्याय था जिसमे बिना दुसरे पक्ष को सुने फैसला दिया था उसने,
जब वो हवेली पहुंचा तो रात आधी बीतने को थी पर प्रज्ञा को चैन नहीं था, बेचैनी ने जगाया था उसे, जैसे ही मालूम हुआ राणा लौट आया हैं,नंगे पाँव ही वो दौड़ पड़ी और बस राणा के सीने से लग गयी, उफनती सांसो ने राणा के दिल में खलबली मचा दी .
“ठीक है हम, ” उसने बस इतना कहा
पर काश वो उस घड़ी प्रज्ञा की सवाल पूछती धडकनों को समझ सकता तो उसे अहसास होता दिल अपने थे प्रीत पराई हो गयी थी , राणा की आँखों के सामने प्रज्ञा के रूप में वो आइना था जिसका सच वो कभी नहीं देखना चाहेगा.
“क्या हुआ वहां ” घबराई आवाज में पूछा प्रज्ञा ने
राणा- अभी कहा कुछ हुआ, आगे होगा, उन लडको की मौत जाया नहीं जाएगी
प्रज्ञा- गुस्ताखी माफ़, हुकुम हो तो कुछ कहूँ
राणा- तुम्हे इजाजत मांगने की कब से जरुरत हो गयी
प्रज्ञा- क्योंकि मैं अपने पति से नहीं राणाजी से बात कर रही हूँ इस वक्त
राणा- कहो क्या कहना है .
प्रज्ञा- मैं नहीं जानती आपने क्या फैसला किया है गाँव में, आपने जो निर्णय लिया है उस पर हमेशा की तरह कोई शक नहीं मुझे, पर फिर भी मेरा एक सवाल है , क्या आपको लगता है वो एक लड़का इतने लोगो को मार डालेगा.
राणा- अकेला नहीं था वो, उसकी एक साथी भी थी
प्रज्ञा के सामने राणा ने जैसे बम फोड़ दिया था . कबीर की साथी .......... कौन उसके दिमाग में हलचल होने लगी थी .
राणा- तुम्हारे हाथो की चाय पीने का मन है, छत पर है हम,
राणा आगे बढ़ गया रह गयी प्रज्ञा अपना माथा पकडे, उसके दिल दिमाग में बस एक सवाल था कौन थी कबीर की साथी, या वो लड़की जिसके बारे में कबीर ने उसे इशारा किया था . खैर चाय लिए वो छत पर पहुंची , उसने देखा राणा एक टक चाँद को देखे जा रहा था .
“क्या देख रहे हो उस चाँद में ” पूछा प्रज्ञा ने
राणा- बस तुम्हारी ही बात पर विचार कर रहा था
प्रज्ञा ने उसे कप दिया और बोली- मेरी बात पर
राणा- हाँ, तुम्हारी बात पर, तुम्हारी बात वैसे है गौर करने लायक, उस लड़के के पास पूरा मौका था , तीज वाले दिन यदि वो चाहता तो सुमेर को सबके सामने मार देता, पर उसने ऐसा नहीं किया , उसके कहे शब्द मेरे कानो में आज भी गूँज रहे है
प्रज्ञा- कैसे शब्द,
राणा- उसने कहा था की मैं इसे मारना नहीं चाहता, मेरा कोई बैर नहीं इस से , मैं बस उस अहंकार को हराना चाहता हूँ जो नफरत बनकर तुम सब के दिलो में बैठा है ”
उसकी बाते बहुत गहरी थी , प्रज्ञा, बहुत गहरी, और साथ ही मेरे पास उसपर शक करने का कारण भी है, उसने ये भी कहा था की सुमेर ये ज़ख्म उधार रहा . . ..
प्रज्ञा- वैसे तो आपसे इस विषय पर कोई भी बात करना मेरे अधिकार के बाहर है , मुझे ये भी विश्वास है की आपके हाथो से कभी कोई गलत फैसला नहीं होगा, पर एक सच ये भी है की सुमेर और उसके दोस्त लोग आवारा थे,नालायक थे उनके बहुत से किस्से आप जानते है
राणा- पर थे तो अपने ही , ये सारा गाँव एक परिवार है और मुखिया होने के नाते मुझे सबका सोचना नहीं
प्रज्ञा- वो लड़का बस मंदिर आना चाहता था, ऐसा सुना मैंने
राणा- तुम जानती हो न , हमने कभी किसी में भेदभाव किया नहीं , उस से भी नहीं करते, उसे हमारे पास आना चाहिए था .
प्रज्ञा- सो तो है
राणा- ये अर्जुन्ग्गढ़ वाले हमेशा से ऐसी हरकते करते आये है की फिर खून खराबा ही हुआ है ,
प्रज्ञा ने आगे कुछ नहीं कहा, अपने वो नहीं चाहती थी की उसकी किसी भी बात से राणा को ऐसा न लगे की वो कबीर का पक्ष ले रही थी , बस वो भी उस चाँद को देखती रही .
मेरी आँख अचानक से खुल गयी , शायद कोइ सपना देखा था मैंने, बदन पसीना पसीना हुआ था , बाहर आके मैंने पानी पिने के लिए मटका देखा पर वो खाली था , शायद नौकरानी उसे भरना भूल गयी थी
मैंने बाग़ का दरवाजा खोला और बाहर आया, चारो तरफ एक ख़ामोशी थी , रात न जाने कितनी बीती थी कितनी बाकी थी, चाँद पूरा रोशन था, कुछ देर खड़ा रहा और फिर वापिस जाने लगा ही था की ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मेरे कानो ने कुछ सुना, ये कैसी आवाज थी ......................
|