RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
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मालूम हुआ की कुछ रोज पहले ही उसकी मौत हो गयी है , मैंने अपना माथा पीट लिया. जिस भी रस्ते पर चलने की कोशिश करता था तक़दीर उसे झट से बंद कर देती थी , खैर हम वापिस होटल आये. प्रज्ञा ने खाना मंगवा लिया, भूख तो लग ही रही थी तो मैंने भी छक से खाना खाया .
प्रज्ञा- मैं तुम्हे छोड़ दूंगी थोड़ी देर में निकलते है
मैं- ठीक है ,
प्रज्ञा- पर मैं तुमसे बहुत कुछ पूछना चाहती हु,
मैं- बताता हूँ,
मैंने उसे सब बाते बताई बस उस नयी जगह के बारे में छुपा लिया. बहुत देर तक वो सोचती रही उन तस्वीरों को देखती रही
“कुछ दिखाऊ तुम्हे ” मैंने कहा
प्रज्ञा- क्या
मैंने जेब से सोने का एक छोटा टुकड़ा निकाला और उसकी हथेली पर रख दिया
प्रज्ञा- ये कहाँ से लाये तुम
मैं- मिला मुझे
प्रज्ञा- कबीर, सोने का मिलना शुभ नहीं होता दुर्भाग्य लाता है , जिसने भी इसका लालच किया है बर्बादी को गले लगाया है , जहाँ से मिला था ये वाही फेक देना इसे,
मैं - जानता हु पर तुम इसे देखो गौर से. क्या ये पुराना सोना नहीं है
प्रज्ञा ने उसे देखा और फिर बोली- तुम्हे ये कहाँ से मिला,
“बस ऐसे ही रस्ते पर मिला,” मैंने झूठ बोला
प्रज्ञा- जानते हो पड़े सोने को सुभ क्यों नहीं मानते
मैं- नहीं , तुम बताओ
प्रज्ञा- लोगो का ऐसा मानना है बल्कि ऐसी कई धारणाओं में बताया है की सोने का इस्तेमाल तंत्र विद्या में किया जाता है , कारण इसकी शुद्धता, सोना, मांस और शराब तन्त्र में इनका इस्तेमाल इसलिए ही करते है क्योंकि ये शुद्ध होते है . इसी अंदेशे के साथ की कही ये तंत्र में इस्तेमाल न हुआ हो , लोग परहेज करते है मिले सोने को अपनाने से
मैं- हम्म
प्रज्ञा- कबीर, परेशानिया सबके जीवन में होती है , मेरे तुम्हारे, लेकिन मुझे ऐसा लगता है तुमने एक सुनी सुनाई कहानी को बहुत ज्यादा सीरियस ले लिया है ,
मैं- मेरा तुमसे मिलना, मेरी जिन्दगी में यूँ तुम्हारा आना , हमारा रिश्ता ऐसा होना क्या लगता है ये सब कहानी है , मेरी हकीकत जानते हुए भी तुम मेरी जिन्दगी में ऐसे आई की ये जिन्दगी , इस जिन्दगी का अहम् हिस्स्सा तुम हो गयी हो. मेरे होने में तुम्हारा भी हिस्सा है प्रज्ञा, क्या ये भी एक कहानी है, और मेरा ये मानना है की हर कहानी कभी न कभी तो हकीकत रही ही होगी,
और ये कहानी, अब मेरी जिन्दगी का एक ऐसा सच बन चुकी है जिसको जानना मेरे लिए बहुत जरुरी है , मेरे भाग ने मुझे जब इस से जोड़ा है तो कुछ सोच कर ही जोड़ा होगा न
प्रज्ञा- जानते हो कबीर,तुम मुझे इतने अच्छे क्यों लगते हो क्योंकि तुम मैं हूँ मैं तुम्हारे अंदर खुद को देखती हूँ,
कुछ देर बाद हम लोग शहर से निकल गए. सुनी सड़क पर गाड़ी सरपट दौड़ रही थी , मैंने शीशा थोडा निचे किया और हवा को आजादी दी मेरे चेहरे को चूमने की, मैंने प्रज्ञा से कहा की मुझे टूटे चबूतरे पर छोड़ दे दरअसल मैं उसी जगह फिर जाना चाहता था , वो मान नहीं रही थी पर मैंने जिद की और वही उतर गया .
अँधेरे में मैं टहलते हुए उसी जगह पर आ गया पर वहां ख़ामोशी छाई हुई थी , मैंने कमरे को खोल कर देखा, और फिर बाहर आकर सीढियों पर देखा , एक गहरी ख़ामोशी जिसे बस मेरी सांसे चुनोती दे रही थी ,सब कुछ मेरे सामने हो कर भी छुपा हुआ था, करने को कुछ था नहीं मैं थोड़ी देर जमीन पर लेट सा गया . खाना थोडा ज्यादा खा लिया था मैंने तो नींद सी आ गयी.
न जाने कितनी देर मैं सोया था पर उसी रुबाब की आवाज से मैं जाग गया, मेरी आँखों के सामने वही नजारा था वो ठीक उसी जगह बैठी थी , बस आज कोई दिए नहीं जल रहे थे, क्या मालूम उसे मेरी मोजुदगी का भान था या नहीं या उसे परवाह नहीं थी , बस वो खोयी थी खुद में
और मैं इतंजार करता रहा की कब वो उसे बजाना बंद करेगी, पर जैसे घंटे बीते वो न रुके .
और फिर जैसे ही चाँद को आगोश में लिया बादलो ने उसकी उंगलिया हट गयी रुबाब से.
“दुसरो की चीज़े लेना ठीक नहीं होती , ” उसने बिना मेरी तरफ देखे कहा
तो उसे मालूम था की मैं वहां हु,
“माफ़ी चाहूँगा ” कहते हुए मैं उसके पास गया और वो सोने का टुकड़ा उसके सामने रख दिया
वो- ufffffffffff ये इन्सान की मोहमाया, न जाने क्यों हम इन बेतुकी चीजों पर मरते है , मेरा जो लिया है वो दो
मैं- क्या ,
वो- तस्वीरे
मैं- ओह, मैंने झोले से वो तस्वीरे निकाली और रख दी,
“मैं बस मालूम करना चाहता था की ये किसकी तस्वीरे है ” मैंने कहा
वो- हम्म, वो क्या करोगे जानकर तुम, सुनो तुम्हे सोना चाहिए तो ले लो यहाँ से और फिर मत आना यहाँ , मैं हर बार इतनी सरल नहीं होती .
मैं- लालच होता तो पहले ही ले गया होता इस माया को,
वो- क्या चाहिए फिर
मैं- अधूरी कहानी पूरा करना चाहता हूँ
मेरी बात सुनकर उसके चेहरे पर ना जाने क्यों हंसी आ गयी ,और फिर वो पागलो की तरह हसने लगी , जोर जोर से बहुत देर तक हंसती रही फिर बोली- इस जहाँ में कुछ भी मुकम्मल नहीं है , न मैं न तुम न वो बाते, न फरियादे, न मोहब्बते, सब एक मोह है , तुम जाओ यहाँ से और अपनी उस माशूका को भी कह देना की यहाँ न आये, एक और प्रेम कहानी की शुरुआत यहाँ से हो मैं नहीं चाहती,
“और ये जो ताबीज तुमने गले में पहना है , इसका बोझ नहीं उठा पाओगे तुम, जहाँ से लिया था वही रख देना उसे, ” उसने अपनी बात पूरी की
मैं- कौन हो आप,
वो- दास्ताँ जिसे भुला दिया .............
दो पल के लिए मेरी पलके झपकी और वहां कोई नहीं था , सिवाय मेरे,
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