RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
खैर ये एक और रात थी जब मेरी दिलरुबा मेरे पास थी , आशिक लोग समझ सकते है दिल का क्या हाल होता है जब वो साथ होती है , खाने के बाद हम बाहर आके बैठ गयी आसमान में चाँद था तारे थे,
मेघा- जानते हो कबीर, मैंने कभी नहीं सोचा था इतने खुस्किस्मत दिन भी होंगे मेरे जीवन में
मैं- सब मेहरबानी है तुम्हारी , तुम मेरा हाथ नहीं पकडती तो मुझे ये मुकाम नहीं मिलता
मेघा- यही बात मुझे कहनी चाहिए
मैं- देखो इन हवाओ को , रश्क होता है जब तुम्हे छूती है ये
मेघा- बहाने ढूंढ रहे हो
मैं- बहाने क्या, मैं तो कभी भी छू सकता हूँ तुम्हे
मेघा- सो तो है मेरे दिलबर , पर ऐसी बाते न करो कुछ होता है मुझे
मैं - - क्या होता है बताओ जरा
मेघा- बस होता है कुछ
मैंने उसका हाथ पकड़ा , “क्या होता है बताओ ” पूछा
मेघा- मुझसे ही कहलवाना चाहते हो , बड़े शरराती हो तुम
मैं ठीक है न बताओ .
वो हौले से मेरे आगोश में आई और लिपट गयी मुझ से उसकी सांसे मेरे होंठो पर टकराने लगी, बहुत कम दुरी थी हमारे होंठो के बीच , इतनी कम की जरा भी होंठ हिले तो छू जाये आपस में , पर फिर वो अलग हो गयी .
मैं- सोते है .
उसने सर हिलाया . बड़े सकूं वाली रात थी वो, पर रात थी बीत गयी, सुबह उठ कर बस दातुन ही कर रहा था मैं , मैंने एक गाड़ी आते देखा ये हमारे घर की गाड़ी थी , मेरी नींद की खुमारी टूटी भी नहीं थी और ये इधर आ रही थी , मैंने मुह धोया तब तक गाड़ी आ चुकी थी , मैंने देखा मेरी माँ और भाभी थे,
“इतनी सुबह सुबह आप लो ग , सब ठीक तो है न ” मैंने पूछा
माँ- तुम्हे हमेशा शिकायत रही है न की मैं तुमसे मिलने नहीं आई लो मैं आ गयी और आज तुम्हे वापिस घर लेके ही जाउंगी
मैं- भाभी आपने बताया न कल माँ को
मैंने शिकायत करते हुए कहा
माँ- ये नहीं बताती तो भी मुझे मालूम नहीं है क्या , मुझे नहीं मालूम क्या जीने के लिए कितनी मेहनत करते हो तुम , पर अब ये नहीं चलेगा मेरा बेटा ये दुःख नहीं उठाएगा , तुम अभी घर चलोगे
मैं- आप जानती हो माँ, वो अब मेरा घर नहीं है
माँ- मैं बस इतना जानती हु की तुम मेरे बेटे हो ,स समझ रहे हो न तुम
मैं इस से पहले की जवाब देता अन्दर से मेघा की आवाज आई “कबीर, चाय बन गयी है ”
और उस पल मुझे भान हुआ की मैं बिलकुल भूल गया था की मेघा भी है मेरे साथ , ये बहुत अत्यप्र्त्याषित स्तिथि थी ,
“चाय कबीर, ” अपने हाथो में कप लिए मेघा बाहर आई , हम तीनो ने उसे देखा , उसने हमें देखा , अजीब सी स्तिथि थी हम सबके लिए , अब कहे तो क्या कहे, करे तो क्या करे.
“अच्छा तो ये कारण था देवर जी ” भाभी ने हस्ते हुए कहा
मेघा ने कप निचे रखा और सर पर चुन्नी ओढ़ी .
मैं - आओ
मेघा पास आई ,
मैं- ये मेघा है , मेघा ये मेरी माँ है और ये भाभी
मेघा ने माँ के पांव छुए,
मैं- तो बात ये हा माँ
मैं- रहने दे, तू कह नहीं पायेगा तेरी माँ हु समझ गयी
मै बस मुस्कुरा दिया.
मेघा- मैं चलती हु कबीर,
माँ- रुको बेटी, मुझे देखने तो दो जरा
माँ मेघा के पास आई और बोली- बेटी, आई तो इसे लेने थी पर अब चाहूंगी की इसके साथ साथ अपनी छोटी बहु को भी ले जाऊ,
मेघा- मांजी
माँ- कुछ कहने की जरुरत नहीं माँ हु सब मालूम है मुझे ,
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