RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#51
न जाने आज ये कैसी सुबह हुई थी, हलकी सी ठंडी शुरू हो गयी थी पर आज सब गर्माने वाला था, मेघा का माथा घुमा हुआ था , बड़े चाव से लायी थी वो उस लिबास को ,जी भर कर देखा भी नहीं था उसे की वो गायब .
“हो न हो ये उसी का काम है,आखिर उसे मेरे से परेशानी क्या है , मैंने क्या किया है उसका, समझाना पड़ेगा उसे ” मेघा गुस्से से बोली
इधर प्रज्ञा सुबह ही मंदिर आ पहुची थी , पुजारी की बातो ने उसे सकते में डाला हुआ था , एक सामान्य सी मूर्ति को खिसका क्यों नहीं पा रहे थे लोग मिलकर, उसने भी कोशिश की पर बेकार, पूरी शक्ति लगाकर भी नाकाम रही प्रज्ञा,
“हे माँ, क्यों परीक्षा ले रही हो , ” उसने जैसे विनती करते हुए कहा पर वो मूर्ति खामोश थी जैसे वो हमेशा से थी .
पुजारी- मुझे लगता है किसी सिद्ध तांत्रिक की सहायता लेनी चाहिए, क्या मालूम कोई भूल हुई हो
प्रज्ञा- मालूम करो , बुलाओ जिसे भी बुलाना है , खंडित मंदिर अशुभ है गाँव वैसे ही मुसीबत में है , एक तो इन मोरो को उडाओ यहाँ से कितना बोल रहे है ये, न जाने क्या करवाके मानेंगे ये
प्रज्ञा का दिल आज बहुत जोर से धडक रहा था न उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था , जैसे किसी अनिष्ट की आशंका हो रही हो उसे, दूसरी तरफ मेघा की आँखों में अंगारे उतर रहे थे, अपना झोला टाँगे तेज तेज कदमो से चलते हुए वो उसी खामोश जगह की तरफ जा रही थी ,जंगल में आज अजीब सी ख़ामोशी थी ,बेशक थोड़ी ठण्ड थी पर सब पेड़ जैसे कुम्हला गए थे .
मेघा ने जैसे ही सीढियो पर पैर रखा उसे झटका सा लगा वो गिर गयी .
वो उठी फिर पैर रखा और फिर गिर गयी .
“मैं देखती हु तेरे बंधन को ” मेघा के होंठ कुछ बुदबुदाये और एक हवा सी चल पड़ी .
अब उसने पैर रखा कुछ नहीं हुआ , वो आगे बढ़ने लगी .सब कुछ पहले जैसा ही था , जैसा वो पिछली बार आई थी , कमरे का दरवाजा खुला था मेघा जब दरवाजे पर पहुंची तो कुण्डी में उसकी बांह उलझ गयी और उसकी नजर दीमक खाए दरवाजे पर पड़ी, एक छोटा सा दिल था जो किसी ने उकेरा था ,
मेघा ने बड़ी गौर से देखा उसे , अब इश्क वाले तो समझ ही लेते है जज्बातों की कहानी को
“कोई प्रेम कहानी तो यहाँ भी बनी है, ”उसने अपने आप से कहा
मेघा- पर ये किसके नाम है, इस दीमक को भी इधर ही लगना था , क्या लिखा है ये, शायद न है या कुछ और मेघा देख ही रही थी की उसकी आँखों में एक चमक पड़ी , छत पर किसी छेद से रौशनी उस जोड़े की चांदी पर पड़ी थी जो वहां उस टूटी खाट पर पड़ा था .
मेघा कमरे में गयी , जोड़े को देखते ही उसकी आँखे चमक गयी, और नारी मन देखिये, उसने बिन कुछ सोचे समझे उसे उठा लिया, उस जोड़े ने जैसे मन्त्र मुग्ध कर दिया था मेघा को .
“अब लेके दिखाए इसको मुझसे वो ” मेघा ने वापिस उस जोड़े को अपने झोले में डाला और वहां से निकलने को बाहर आई , पर सामने वो बैठी थी , मेघा के कदम ठिठक गए.
“मैंने तुझसे कहा था छोरी, इस राह न मुडियो ”
मेघा- मैंने भी कहा था न की आउंगी , कोई रोक के दिखाए , और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे इस लिबास को चुराने की ,
वो- तुम्हारे लिबास की , तुम्हारे, बेशर्म लड़की तू मुझे कह रही है , जबकि चुराया तूने इसे,
मेघा- पाया है मैंने इसे , पसीना बहाया , खुदाई की तब मिला मुझे ये
वो- चोरी चोरी होती है, और एक बार फिर तू फिर वही गलती कर रही है , मैं तुझे माफ़ी दे दूंगी इसे वापिस रख दे, और मुड जा
मेघा- मैंने कहा न ये मेरा है और लेके जाउंगी इसे, कुछ दिनों में ब्याह करने वाली हु मैं, और जब मैं फेरे लुंगी तो इस जोड़े में ही लुंगी
वो- किस अधिकार से
मेघा- हक़ से , मेरे हक़ से
वो- नादान है तू,
मेघा- नादानी ही सही, पर इसे तो मैं ले जाउंगी ही
वो- उफ्फ्फ ये अहंकार
मेघा- राजपूतानी हु, नसों में खून की जगह अहंकार ही दौड़ता है
वो- हम्म्म, ये बात है तो जा फिर , जा लेके जा इसे
उसने इतना कहा और अपना मुह दूसरी दिशा में कर लिया. मेघा के चेहरे पर एक दंभ का भाव आ गया , वो तन कर चली पर क्या वो सीढिया पर कर पाई, नहीं,
“ये बंधन लगा कर तुम रोक नहीं पाओगी मुझे यूँ तोड़ दूंगी मैं इन्हें ” मेघा गुस्से से चिल्लाई
पर वो शांत रही , उसने देखा भी नहीं मेघा की तरफ ,
मेघा ने प्रयास किया पर असफल, फिर कोशिश फिर नाकामी मेघा का चेहरा क्रोध से जलने लगा ,
मेघा- मुझे मजबूर न करो, जाने को मुझे खोल ये बंधन
वो- राजपूतानी , क्या हुआ तेरे अहंकार में इतनी शक्ति भी न रही की एक छोटे से बंधन को खोल सके
उसकी वो उपहास पूर्ण बात मेघा को अन्दर तक चीर गयी.
मेघा- ठीक है फिर, आज फैसला कर ही लेते है तुम्हे लगता है न की ये सब तुम्हारा है , रहा होगा किसी ज़माने में पर ये दौर, ये वक्त ये आज मेरा है , और मेरा आज मुझसे कोई नहीं छीन सकता . न जाने तुम क्या सोचती हो , पर मैं तुम्हे आमंत्रित करती हु, मैं जीती तो ये जोड़ा मेरा और तुम यहाँ इस जगह पर कदम नहीं रखोगी, ये मेरा होगा
उसने आसमान की तरफ देखा और बोली- क्यों गुस्ताखी करती है लाडो ,एक लिबास के लिए इतनी बड़ी बाद क्यों कहती है , ये तो तेरी उद्द्नता है , हाथ जोड़ कर मांग लेती मैं दुआ के साथ देती पर तेरी नसों में बहता अहंकार बेताब है इस धरती की प्यास बुझाने को , जा ले जा ये जोड़ा और चली जा ,
मेघा- तुम्हे शौक है न आजमाइश करने का आज मैं करुँगी तुम्हारी आजमाइश, माँ तारा की सौगंध मैं पीछे नहीं हटूंगी,
मेघा ने अपनी तलवार खींच ली
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