RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#53
मैं करू तो क्या करू, जाऊ तो कहाँ जाऊ, कुछ न सूझे मुझे, मेरी दुनिया मेरे सामने मेघा के रूप में बिखरी पड़ी थी , उसकी आँखे बंद थी , खून बह रहा था, उसे जगाऊ पर वो जागे न , ये कैसी घडी थी कैसा आलम था, हम था और छूटता दामन था,
उसे होस्पिटल लेके जाना था मैंने उसे उठाया पर मेघा ने मेरा हाथ पकड़ लिया.
“कबीर, ”
“हा, मेघा , तू फ़िक्र मत कर कुछ नहीं होने दूंगा मैं तुझे , कुछ नहीं होने दूंगा , मैं लेके चल रहा हूँ होस्पिटल कुछ नहीं होगा तुझे ” मैंने कहा
मेघा- कबीर, मेरी बात सुनो ,
मैं- हां,
मेघा- ये पल बहुत थोड़े है , और इन पलो में मैं तुम्हारे साथ रहना चाहती हु
मैं तुम जिंदगी भर मेरे साथ रहोगी , मेरी प्रीत हो तुम और मेरे होते ये प्रीत टूट जाये, हो नहीं सकता मैं होने ही नहीं दूंगा.
मेघा- मेरी एक बात पूरी करोगे कबीर
मैं- कहो,
मेघा-मैं सुहागन मरना चाहती हूँ कबीर , मुझे पूरी कर दो कबीर, अपनी बना दो मुझे,
मेरी आँखों से आंसू गिरने लगे,
“तुम थोड़ी हिम्मत रखो मेघा, थोड़ी कोशिश करो मैं कुछ नहीं होने दूंगा तुम्हे, मैं ले चलता हु तुम्हे ” मैंने रोते हुए कहा
मेघा- डॉक्टर का मर्ज नहीं है ये कबीर, ,और इतना समय भी नहीं मेरे पास ,
मेघा ने अपने हाथ मेरे आगे जोड़ दिए,
उपरवाले ने न जाने किस कलम से प्रेमियों का नसीब लिखा था, न जाने कैसी हाय थी प्रेम कहानियो को , आखिर क्यों प्रेमियों को ही हर परीक्षा देनी पड़ती थी
“मैं तुझे कुछ नहीं होने दूंगा, तुझे जीना होगा मेरे साथ, मेरे लिए, आने वाले कल के जो खूबसूरत सपने देखे है वो मैं तेरे बिना नहीं जिऊंगा मैं ” मैंने कहा
मेघा- मेरी मांग भर दो, इतनी साँसे तो बाकी है मेरे अन्दर फेरे ले सकू . मैं सुहागन मरूंगी कबीर, तुम्हारी सुहागन
मैं क्या कहता उसे , जैसे तैसे करके उठी वो. कभी सोचा नहीं था की जब वो मेरी बनेगी तो हालात ऐसे होंगे, जिस चेहरे पर नूर होना था, जो बदन सजा होना था खुशियों से बहारो से , वो रक्त से सना था . मैंने उसे अपनी बाँहों में थामा , दिल रोने लगा था , जिन्दगी दूर जो जा रही थी मुझसे , पास पड़े पत्थर से ऊँगली को फोड़ा मैंने और अपनी ऊँगली से उसकी मांग भर दी मैंने,
जिस मांग को मैं चादं तारो से , इस जहाँ की हर ख़ुशी से भर देना चाहता था उसे ऐसे भरना पड़ा था मुझे, उसने मेरी तरफ देखा . उसकी आँखों में फेरो का सपना था . हथेली मेरी जेब पर पड़ी तो भान हुआ मेरी जेब में दिया था ,
मेरे दादा वाला दिया जिसे मैंने जेब में रख लिया था ताकि उस रुबाब वाली से कुछ पूछ सकूँ . मैंने वो बाहर निकाला, मैं जानता था की वो जलता नहीं है पर मेघा के लिए मैं एक कोशिश कर ही सकता था .
पर नसीब देखो, वो कहते है न की समय से पहले कुछ नहीं होता , शायद आज ही वो समय था , वो समय जिसकी चाह थी , मेरी उंगलियों से टपकता खून जैसे ही उस दिए पर पड़ा वो झप्प से फदाफड़ाने लगा. बिन बाती के रोशन होने लगा . मैंने ऊँगली को निचोड़ा उस दिए में, रक्त से भर दिया उसे पूरा . वो रोशन हो गया था, बिन बाती के ही रोशन था वो.
मैंने वो दिया चबूतरे पर रखा, उस हैरानी के लिए मेरे पास अब समय नहीं था मैंने मेघा का हाथ पकड़ा वो मुझे देख कर मुस्कुराई, मैं रो पड़ा. हम फेरे लेने लगे, और जैसे ही हमारे फेरे बस होने को ही थे एक तेज धमाका हुआ हम दोनों गिर गए चबूतरे से निचे, तक़दीर न जाने इस मुश्किल घड़ी में भी मुझे न जाने क्या क्या दिखाना चाहती थी ,
धुआ छंटा तो मैंने देखा , चबूतरा टुकड़े टुकड़े होकर बिखरा था और उसकी तली में कुछ था, खांसते हुए मैंने देखा , वो शायद एक मजार थी , एक मजार जिस पर चबूतरा बना दिया गया था. .वो दिया उस मजार के पास रोशन था , धमाके का उस पर कुछ भी असर नहीं हुआ था .
अद्भुद मंजर था , कोई और समय होता तो मेरे लिए कोतुहल का विषय जरुर होता पर फिलहाल मेरी प्राथमिकता मेघा थी , मैं दौड़ कर गया उसे अपनी बाँहों में लिया, बेहोश थी , नब्ज़ चल रही थी, थोड़ी राहत हुई,
मैंने देखा मजार के पास एक छोटी सी मटकी थी, मटकी के ढक्कन पर एक धागा था , मैंने उसे हाथ में उठाया , मटकी में थोडा सा पानी था ,
“तुम जो भी , जो भी तुम्हारी कहानी है, मैं विनती करता हु, ये तुम्हारे दर पर असाह्य है, मैं इतना तो जान गया हु, की इस दिए से तुम्हारा सम्बन्ध है और दिए से है तो मेरे से भी है, यदि तुम मेरे कुछ लगते हो तो, ये मेरी पत्नी है अब, इसे बचा लो. बचा लो ” मैंने विनती की
तभी खांसते हुए मेघा की आँख खुली , “पानी , पानी थोडा पानी ” वो बस इतना ही कह सकी ,
मैंने तुरंत वो मटकी उसके होंठो से लगा दी, वो धागा मेरे हाथ से उसके हाथ पर गिरा और ठीक तभी ऐसा कुछ हुआ जिसकी मुझे बिलकुल उम्मीद नहीं थी, मेघा के गले से जैसे ही पानी की घूँट निचे उतरी, उसका बदन चमकने लगा, जैसे चांदी सुलग गयी हो, धुआ धुँआ होने लगा. और फिर मेरे हाथ में बस खाल सी ही रह गयी, एक अजीब सी खाल जो बहुत बड़ी थी , चांदी सी चमकती हुई .
धीरे धीरे सब जैसे ठहर गया, सब कुछ यहाँ तक शायद मेरी धडकने भी, बस मैं था , वो मजार थी पर वो चली गयी थी,, न जाने कहाँ पर वो चली गयी थी ..............
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