RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#
उसके होंठो का रस जो मेरे मुह में गिर रहा था वो केवल एक चुम्बन नहीं था , मैंने प्यार महसूस किया, प्रज्ञा ने बेशक कुछ नहीं कहा था , वो हमेशा भागती थी इस अनजाने सवाल से पर , जिस तरह से उसने मुझे अपनी बाँहों में जकड़ा हुआ था, वो समा जाना चाहती थी मुझ में , पर मैं उसकी मजबुरिया समझता था , उसके गले में किसी और के नाम का मंगलसूत्र था.
खैर उस लम्बे चुम्बन के बाद हम अलग हुए. हमने पूरी हवेली को छान मारा पर सिवाय उस डायरी के कुछ और नहीं मिला. इतिहास की सबसे बड़ी कमी यही होती है की उसका क्या सच है क्या झूठ कौन जाने,
“तुम्हे शहर के लिए निकलना चाहिए,” प्रज्ञा ने कहा
मैं- सही कहती हो.
प्रज्ञा- मेरी गाड़ी ले जाओ
मैं- नहीं, कोई पहचान लेगा और मैं नहीं चाहता की मेरी वजह से तुम्हे सवालो के जवाब देने पड़े
प्रज्ञा- हम्म, सुनो होटल चले जाना , वहां तुम्हे पैसे मिल जायेंगे जरुरत पड़ेगी
मैं- ठीक है .
करीब घंटे भर बाद मैं प्रज्ञा के घर से निकल गया , गाँव के अड्डे पर आकर मैने बस पकड़ी और शहर के लिए निकल गया . सबसे पहले मैं वहां गया जहाँ प्रज्ञा ने मुझे जाने का कहा था, डायरी दिखाई , मालूम हुआ की पूरी तरह से तो नहीं पर जितना हो सकेगा वो कोशिश करेंगे .
दिमाग में बस एक ही सवाल था की कामिनी के साथ वो कौन था , अगर उस के बारे में कुछ मालूम हो जाये तो बात बन जाये,
अब शहर में कुछ और काम तो था नहीं मुझे वापिस लौटना ही था , मैं पैदल ही बस अड्डे की तरफ बढ़ रहा था की पास से एक गाड़ी आकर गुजरी, मेरी धड़कने जैसे थम सी गयी, मैंने उसे देखा गाड़ी में ,मैंने मेघा को देखा . नहीं ये मेरा वहम नहीं था , वो मेघा ही थी .
“मेघा, मेघा ” मैं जोर से चिल्लाया पर उसे सुना नहीं . मैं गाड़ी के पीछे भागा पर सरपट दौड़ती गाड़ी मेरी पहुच से दूर हो गयी. हांफते हुए भी मेरे चेहरे पर ज़माने भर की ख़ुशी थी , उसे देखना भी अपने आप में जन्नत था, वो ठीक थी .ये बहुत बड़ी बात थी मेरे लिए.
दिल का हिरन दौड़ने लगा था.
मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था की काश मेरे पास गाड़ी होती तो मैं उसे रोक पाता पर साथ ही एक सवाल भी था की वो मिलने क्यों नहीं आई. मेघा के बारे में सोचते सोचते मैं खेत पर आया . करने को हमेशा की तरह ही कुछ खास नहीं था, मेरी खेती भी इस सब में बर्बाद ही थी. किसी चीज़ में दिल न लगे, ख्याल आये तो बस मेघा के ,
देखते देखते रात घिरने लगी थी , दिल किया की उसी जगह पर चलू शायद मेघा आये वहां पर उसे देखने के बाद उस से दूर रहना मुश्किल हो रहा था . रस्ते में मैंने मजार पर दिया जलाया और दुआ मांगी मेघा से मिलने की , मैं अपने ठिकाने की तरफ जा ही रहा था की मेरे कानो में चीख पड़ी . एक लड़की या औरत की चीख थी , मेरे कान खड़े हो गए मैं दौड़ा उस तरफ . कुछ दूर जाके मैंने देखा
कोई उस लड़की से जोर जबरदस्ती करने की कोशिश कर रहा था , मैंने टोर्च जलाई और जब उस चेहरे पर मेरी नजर पड़ी थी मैं हैरान रह गया , वो करण था मेरा भाई करण , मैं दौड़ा उसकी तरफ
“भाई, भाई छोड़ दे इसे ये पाप मत कर छोड़ इसे ” मैंने लड़की को करण से छुडाते हुए कहा
उसने मुझे देखा, और बोला- चल भाग चूतिये यहाँ से. ये मेरा माल है और मैं इसके साथ जो चाहे करूँ तुझे क्या है ये पूरा गाँव मेरी मिलिकियत है , यहाँ की हर चूत पर मेरा हक़ है तू निकल यहाँ से
मैं- भाई, तू मालिक है इस गाँव का और मालिक का काम होता है अपने लोगो की सुरक्षा करना , और तू अपने लोगो की इज्जत से खेल रहा है
“तू सिखाएगा मुझे, तू ” कर्ण ने गुस्से में मुझे थप्पड़ मार दिया.
मैंने अपमान सह लिया .
मैं- तुझे मारना है तो मुझे मार ले, इस लड़की को जाने दे.
कर्ण- इस दो टके की रांड के लिए तू अब मेरे से जुबान लादयेगा , तेरी क्या औकात है मेरे सामने, मैं दिखाता हु तुझे तेरी औकात , तू यही रुक तेरिया आँखों के सामने ही चोदुंगा इसे, इसकी चीखे सुन तू . साला मुझसे जुबान लडाता है .
कर्ण ने एक झटके में उस लड़की का ब्लाउज फाड़ दिया. और उसकी चूची मसलने लगा.
हुकुम बचाओ, मेरी लाज आपके हाथो में है ” लड़की ने रोते हुए कहा
मेरे कानो में ये शब्द आज से नहीं तीन साल से गूँज रहे थे, आँखों के सामने तीन साल पहले का मंजर घुमने लगा. आंसू बहने लगे,
मैं- भाई, तेरे पास क्या नहीं है , तुझे जो चाहिए तू रख ले, तू चाहे तो मेरे हिस्से की सब जमीन जायदाद रख ले पर इसे जाने दे
भाई- कबीर, भाग जा यहाँ से कही ऐसा न हो की इसकी चूत से पहले मैं तेरा खून कर दू,
कर्ण ने अपने हाथ उस लड़की के लहंगे की तरफ बढ़ाये की मैंने उसका हाथ पकड लिया.
“भाई तू नशे में है तुझे समझ नहीं आ रहा , तू मेरे साथ घर चल सुबह बात करेंगे ” मैंने उसे फिर से रोकते हुए कहा
कर्ण ने मुझे एक लात मारी और उसके लहंगे को खोल दिया , उसे पटक दिया धरती पर उसे चोदने की कोशिश करने लगा. मैं इस घड़ी को टालना चाहता था , क्योंकि बरसो पहले मैं टाल नहीं पाया था , मेरा कल आज बनकर फिर मेरी परीक्षा ले रहा था .
पर मैंने तब भी सही किया था और आज भी मुझे सही ही करना था, मैंने कर्ण को उस लड़की के ऊपर से खींच लिया और उसे एक पेड़ के साहरे खड़ा किया.
“बस बहुत हुआ, इस से पहले की मैं भूल जाऊं, तू चला जा यहाँ से ,तू नशे में है , पर मैं नहीं मैं विनती करता हु, भाई तू घर चला जा ”मैंने कहा
कर्ण- अब समझा, तेरा दिल आ गया है इस लड़की पर चल तू भी क्या याद करेगा मैं चोद लू इसे फिर तू भी चढ़ लेना
कर्ण उस लड़की की तरफ फिर बढ़ा मैंने उसका हाथ पकड़ लिया
“भाई, मेरे सब्र का इम्तिहान मत ले ”
|