RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#64
“कबीर मैं तुम्हारी अहसानमंद हु मेरी लाज बचाने के लिए तुमने न जाने क्या क्या कुर्बान कर दिया. घर बार सब छोड़ दिया, जब इस हाल में तुम्हे देखती हु तो दिल दुखता है मेरा ” सविता ने कहा
मैं- नसीब है मैडम जी,
सविता- पर कही न कही मैं दोषी भी तो हूँ
मैं- कोई और भी होती तो भी मैं उसके लिए ऐसा ही करता , पर फिलहाल मेरी प्राथमिकता है की तुम्हे ताई से दूर रखा जाए, मैं उस पर एक मिनट का भी भरोसा नहीं कर सकता, वो पूरा जोर लगाएंगी तुम्हे ढूंढने का
सविता- मैं ध्यान रखूंगी,
मैं- हमेशा अपने पास बन्दूक रखना जब भी तुम्हे लगे की तुम्हे खतरा है बेहिचक गोली चला देना बाकि मैं देख लूँगा.
सविता- जब तुम साथ हो तो मुझे क्या खतरा होगा,
मैं- ये ठीक है पर हर समय भी तो मैं साथ नहीं हो सकता न , अब तक तो मैं निश्चिन्त था पर अब जब आग लग ही गयी है तो जल्दी ही धुआ भी दिखाई देगा, मेरी जिन्दगी में बहुत कम लोग है और मैं नहीं चाहता की उनमे से भी कोई कम हो जाये
मैंने सविता का हाथ पकड़ा और कहा - वादा करो तुम, अगर कोई ऐसी परिस्तिथि आई जब तुम अकेली इस खतरे का सामना करोगी तो , बेहिचक तुम निर्णय लोगी.
सविता- हाँ कबीर,
मै- ठीक है तो फिर मैं चलता हूँ अपना ख्याल रखना ,और चूँकि ताई तुम्हारी खास सहेली है ध्यान देना उसके व्यवहार पर, उसकी बातो पर
मै उठ कर खड़ा हुआ की सविता ने मेरा हाथ पकड़ लिया.
“रुको कबीर, ” सविता बोली
मैं- क्या हुआ .
सविता- कुछ नहीं मैं चाहती हु की तुम आज रात मेरे साथ रहो, मेरे पास रहो ,
सविता का आँचल थोडा सा सरक गया मेरी निगाह उसके उन्नत वक्षो पर पड़ी .
मैं- अगर मुझे ये करना होता तो कभी का कर सकता था न
सविता- जानती हु कबीर, पर मेरी इच्छा है , मैं ये करना चाहती हु
सविता आगे बढ़ी और मेरे होंठो पर अपने होंठ रख दिए. प्यासे होंठो से सुर्ख लबो की रगड़ ने बदन को हिला कर रख दिया. सविता अपने आप में हुस्न का एक बम थी , जैसे जैसे वो चूमती जा रही थी मेरे हाथ उसकी गोल गांड तक पहुच गए . मैंने उसके कुलहो को दबाया.
सविता की साडी उतार कर फेक दी मैंने , बलाउज और काले पेटीकोट में उसका गोरा बदन कहर ढा रहा था . ब्लाउज फाड़ कर बाहर आने को बेताब उसकी पञ्च पांच किलो की चुचिया. किसी को भी पागल कर दे, मैंने अपनी पेंट खोल दी.
सविता की नजर मेरे लंड पर पड़ी. मुस्कुराते हुए वो मेरे पास आई और उसे अपनी मुट्ठी में भर लिया. नर्म उंगलियों के स्पर्श मात्र ने ही मेरे तन में आग सुलगा दी. मैंने उसे अपने आगे खड़ी की और उसकी चुचियो को मसलने लगा. बलाउज को उतार फेंका . मैंने उसके कंधो को चूमा.
सिसकारी भरते हुए वो लंड को हिला रही थी मैंने अपनी उंगलिया पेटीकोट के नाड़े में फंसाई और संमर्मारी जांघो से रगड़ खाते हुए वो सविता के पैरो में आ गिरा. मैंने कभी सोचा नहीं था की सविता को चोदने का दिन आएगा. मैंने कभी इस नजर से देखा ही नहीं उसे.
“सीईई ” सविता आहे भरने लगी थी उसके अपनी जांघे खोली और मैंने चूत को अपनी मुट्ठी में भर लिया, जैसे एक छोटी भट्टी दहक रही हो.
“बहुत गर्म हो तुम,”
“बहुत दिनों से किआ नहीं न ” सविता बोली
मैं- मास्टर जी की रूचि नहीं है क्या
सविता- समय कहाँ है हमेशा से तो तुम्हारे पिताजी के साथ घूमते रहते है , वो तो बाहर मुह मार लेते होंगे मैं प्यासी रह जाती हु
मैं- पहले बता देती ऐसी बात थी तो
सविता- तुम कब समझे मेरे इशारे, हार कर आज मुझे खुल कर कहना ही पड़ा.
सविता ने अपने हाथ घुटनों पर रखे और झुक गयी उसकी बड़ी सी गांड देख कर मैं तो पागल हो गया. मैंने लंड को चूत के मुहाने पर रखा और उसकी कमर को थामते हुए धक्का लगा दिया. चूँकि सविता के बच्चा नहीं हुआ था तो चूत में दम था. मेरे लंड ने जैसे ही अपनी जगह बनाई मैं उसे पेलने लगा.
मेरे धक्को के घर्षण से उसकी चूत का पानी जांघो तक बहने लगा. वो आह आह कर रही थी मैं उसे पेल रहा था . सविता के पैर मस्ती के मारे डगमगाने लगे थे, पुच की आवाज से लंड बाहर निकल आया.
सविता- बेड पर चलो
वो मेरे आगे आगे अपनी गांड मटकाते हुए चल रही थी, ऐसा मादक द्रश्य देख कर मैं और उत्तेजित हो गया. बिस्तर पर लेटते ही उसने अपनी जांघे फैलाई मैंने उसकी जांघो को अपनी जांघो पर चढ़ा लिया. और एक बार फिर हम एक दुसरे में समां गए. मैं बार बार उसके होंठो को चूम रहा था फिर मैंने उसके निप्पल को मुह में भर लिया.
सविता का पूरा बदन ऐंठ गया मेरी इस हरकत पर उसने मुझे कस कर भींच लिया अपनी बाहों में और कुछ ही देर में हम दोनों साथ साथ झड़ गए. उसका बदन बुरी तरह कांप रहा था . कुछ देर हम एक दुसरे से लिपटे रहे फिर अलग हो गए.
सविता शायद बाथरूम में चली गयी, मैं लेटा रहा . की तभी मेरा फ़ोन बज उठा, दुनिया में बस एक ही थी जिसका फ़ोन मुझे आता था , वो थी प्रज्ञा मैंने तुरंत फ़ोन उठाया
मैं- हाँ,
प्रज्ञा- कबीर, कहाँ हो, मुझे अभी तुमसे मिलना है
मैं- अभी पर क्यों कैसे
प्रज्ञा- कोई सवाल नहीं , मैंने कहा न अभी के अभी मिलना है
मैं- ठीक है जगह बताओ
प्रज्ञा- मैं अनपरा में हु, तुम यही से पिक करो मुझे
मैं- ठीक है जल्दी ही पहुचता हूँ
मैंने फटाफट अपने कपडे पहने तबतक सविता आ गयी .
सविता- क्या हुआ,
मैं- मुझे जाना होगा बहुत जरुरी है
सविता- कहाँ जा रहे हो
मैं- मिलके बताता हु
मैंने बाहर निकलते हुए कहा , तभी मुझे एक बात ध्यान आई
मैं- तुम्हारी गाड़ी मिल सकती है क्या
सविता- हाँ क्यों नहीं, उधर मेज पर रखी है चाबी.
मैंने सविता का माथा चूमा और उसे अपना ध्यान रखने को कहा .
गाड़ी स्टार्ट करते ही मैंने गति बढ़ा दी. आखिर ऐसा क्या हुआ था जो मुझे प्रज्ञा ने तुरंत ही अनपरा बुलाया था . दिल जोरो से धडकने लगा था .
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