RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#69
रात भर हम दोनों एक दुसरे में समाये रहे खोये रहे, जब तक बदन में उर्जा के कतरे बचे हम अपने जिस्मो की प्यास बुझाते रहे, न जाने कब फिर नींद आई पर किसे मालुम था की आने वाला वक्त हमारे नसीब में क्या लेकर आएगा. इसका अहसास सुबह हुआ जब मेरे कानो में वो आवाज पड़ी जिसे मैं भुला न सका था
“तो ये चल रहा है यहाँ पर ,
मेरी आँख झट से खुल गयी , इस आवाज को मैं लाखो में सुन सकता था पहचान सकता था .मैं झटके से बिस्तर से उठ खड़ा हुआ , मेरे हडबडाने से प्रज्ञा भी जाग गयी, हमारे बदन से चादर उतर गयी और उसकी आँखे और जल गई.
मेरे लिए ये सुबह कयामत से कम नहीं थी ,
“मेरी बात सुनो मेघा, मेरी बात सुनो तुम गलत समझ गयी हो .”
“मेरे प्यार को इस बिस्तर पर रौंद कर मुझसे ही कहते हो, मैं तुमसे थोडा क्या दूर हुई बेवफाई पर उतर आये तुम तो. और तुम, छि, घिन्न आ रही है मुझे तुम्हे देख कर ” मेघा एक सांस में बोल गयी
“मेरी पीठ पीछे मेरे प्यार की ये रुसवाई, मेरे अपनों के हाथो वाह ” मेघा ने कहा
प्रज्ञा ने तब तक अपने कपडे पहन लिए थे .
प्रज्ञा- मेघा, मेरी बात सुनो,
प्रज्ञा ने जैसे ही मेघा का नाम लिया मैं जान गया ये जानती है आपस में
“क्या सुनु मैं, तुमको मुह मारने के लिए मेरा यार ही मिला था माँ ” आँखों में आंसू लिए मेघा ने कहा
जैसे ही उसने माँ कहा मेरे कदमो तले जमीं सरक गयी.
प्रज्ञा की आँखों से आंसू गिरने लगे.
मैं- मेघा , प्रज्ञा की कोई गलती नहीं है , ये सब दोष मेरा है .
प्रज्ञा ने उपहास से ताली बजाई- हम्म, तो ऐसा क्या मिल गया मेरी माँ में जो मैं तुम्हे न दे सकी , मोहब्बत की बड़ी बड़ी बाते यूँ भुला दी , अरे थोडा दूर क्या हुई, हमें तो रुसवा कर दिया तुमने कबीर, एक हम थे जो दिन रात तड़प रहे थे तुम्हारे लिए, जानते हो कितना खुश थी मैं, जब तुम संग फेरे लिए थे मैंने , ये लॉकेट तुम्हारा मंगलसूत्र समझ कर पहना था मैंने ,
और मेरा सबकुछ मेरे अपने ही लूट गए, जिस्म की भूख थी मुझसे कहा तो होता कबीर तुमने मैं सलवार खोल देती . और माँ तुम माना की हमारे बीच हजार फासले थी , एक घर तो डाकिन भी छोड़ देती है तुमने तो बेटी का घर ही खा लिया
प्रज्ञा- मेघा , मैं सब समझाती हूँ सुनो मेरी बात , मैं तुम्हे सब बताती हूँ
मेघा- नहीं सुनना मुझे कुछ ,अब क्या बाकी रहा कहने और सुनने को . तनहा मैं पहले भी थी , आगे भी रह लुंगी,
मेघा की आँखों से आंसू गिरने लगे, मैं आगे बढ़ा उसे सँभालने को पर उसने मुझे रोक दिया.
“कोई जरुरत नहीं कबीर, सब ख़तम हो गया. ”
मेघा ने वो लॉकेट अपने गले से उतारा और मेरे चेहरे पर फेक दिया. मुड़ी वो और चल दी, मैं उसके पीछे भागा ,
“तुम ऐसे नहीं जा सकती , तुम्हे सुनना होगा, तुम्हे समझना होगा , बात सिर्फ तुम्हारी जिन्दगी की नहीं है हमारी जिन्दगी की है मेघा ” मैंने कहा
मेघा- हमारी जिन्दगी, हमारी जिदंगी को तो तुमने मेरी माँ के साथ बिस्तर में रौंद दिया है कबीर, धोखा किया है तुमने मेरे प्रेम से , मैं बस आ ही गयी थी तुमसे मिलने को , तुम्हारे पास, तुम्हारे साथ जीने को पर अब कहाँ जिन्दगी है . रास्ता छोड़ो मेरा ,आज से अभी से , इसी वक्त से हमारी राहे जुदा होती है .
मैं उसके आगे खड़ा हो गया .
“जाने नहीं दूंगा तुम्हे ”
मेघा- मैंने कहा न हाथ छोड़ो मेरा
मैं- नहीं
मेघा ने मुझे धक्का दिया , ये धक्का इतनी जोर का था की मैं प्रज्ञा की कार से जा टकराया , इतनी शक्ति से फेका था उसने मुझे की पसलिया कड़क गयी, जब तक मैंने संभाला खुद को मेघा जा चुकी थी . मुझे प्रज्ञा को संभालना था मैं ऊपर गया वो अपना माथा पकडे बैठी थी, आँखे सुजा ली थी उसने,
मैं- गयी वो
प्रज्ञा कुछ न बोली
मैं- प्रज्ञा,
प्रज्ञा- तुमने मुझे बताया क्यों नहीं मेघा के साथ रिश्ता है तुम्हारा काश मुझे मालूम होता तो ये सब नहीं करती मैं
मैं- मुझे कहाँ मालूम था वो तुम्हारी बेटी है , झूठ बोल कर मिली थी वो मुझे .
प्रज्ञा- अनर्थ हो गया कबीर, अपनी बेटी की नजरो से गिर गयी मैं .
मैं- कुछ नहीं हुआ है ऐसा, और कौन सा गुनाह किया है तुमने , अभी वो गुस्सा है जब शांत हो गी समझेगी वो .
प्रज्ञा- वो क्या कह रही थी , तुम दोनों ने शादी कर ली
मैं- प्रज्ञा मैं तुम्हे सब कुछ बताता हूँ पर तुम रोना बंद करो , मैंने पानी की बोतल दी उसे, उसने कुछ घूँट भरे .
मैंने उसे बताना शुरू किया हर वो बात जो मेरे और मेघा के बीच हुई थी, कैसे वो मुझे मिली, हमारी जान पहचान हुई कैसे हम करीब आये, कैसे उसने अपना परिचय छुपाया, हर के बात मैंने प्रज्ञा के सामने खोल दी.
मैंने वो लॉकेट फर्श से उठाया और अपने गले में पहन लिया.
प्रज्ञा- कबीर, मुझे भूलना होगा तुम्हे, मुझसे दूर होना होना होगा, हम दोनों के लिए सही रहेगा ये,
मैं- क्या कह रही हो तुम, तुमसे दूर हो जाऊ
प्र्य्गा- तुमने ठीक सुना, मैं अपनी बेटी का हक़ नही मार सकती, मुझे ख़ुशी है की उसने एक बहुत नेक इन्सान का हाथ पकड़ा है पर उसकी ख़ुशी के लिए, तुम्हारी आने वाली जिन्दगी के लिए तुम्हे भूलना होगा मुझे
मैं- तुम्हे भूल जाऊ ये हो नहीं सकता, तुमने ही तो थामा है मुझे बेशक मेरी मोहब्बत है मेघा पर प्यार तो तुमसे भी है न , मैं बात करूँगा उस से समझाऊंगा उसे, तुम मेरी दोस्त हो. साथी हो. मेरे हर दुःख दर्द को समझा है तुमने मैं कैसे दूर हो पाउँगा तुमसे, तुमसे जुदा होना पड़ा न मुझे तो फिर जीना नहीं है मुझे जान दे दूंगा मैं
प्रज्ञा- समझते क्यों नहीं तुम कबीर, मैं अपनी ख़ुशी के लिए बेटी के दामन को दुखो से नहीं भर सकती,
मैं- तुम कहती थी न जब कभी ऐसा दिन आयेगा तो तुम मेरे आगे खड़ी हो जाओगी प्रज्ञा वो दिन आ गया है , आ गया है वो दिन
प्रज्ञा मेरे सीने से लग गयी और फूट फूट कर रोने लगी.
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