RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#70
मैं प्रज्ञा को दिलासा तो दे रहा था पर जानता था की डोर हाथ से फिसल गयी है , मेघा बहुत ज्यादा गुस्से में थी और आने वाला समय प्रज्ञा के लिए आसान नहीं होने वाला था , उसे हर पल अपनी बेटी की सवाल पूछती निगाहों का सामना करना पड़ेगा. उसे अपनी बेटी द्वारा तिरस्कार सहना पड़ेगा. प्रज्ञा की ग्रहस्थी दांव पर लग गयी थी और क्या होगा जब ये हकीकत राणाजी को मालुम होगी.
प्रज्ञा ने बहुत साथ दिया था ,एक वो ही तो थी जिसने हर एक कदम पर थामा था मुझे, एक वो ही तो थी जो मेरी हमराह थी, जिसके बूते मैं आज तक यहाँ पहुंचा था .एक वो ही तो थी जो मेरी थी . और इस हालात में मैं उसे अकेला छोड़ दूँ ये मेरी खुदगर्जी ही होगी.
“सब ठीक हो जायेगा, मैं संभाल लूँगा ” मैंने उस से कहा
प्रज्ञा- क्या संभाल लोगे तुम, बात हाथ से निकल गयी है कबीर, ऐसी आग लगी है कबीर जिसमे अब झुलसना ही है , अभी तो केवल धुआ उठा है जब लपटे उठेंगी तो सब जलेंगे.
मैं- अगर जलना पड़ा तो भी तुम्हारे साथ ही जलूँगा , बेशक मेघा जान है मेरी पर तुम भी तो आन हो मेरी, मान हो मेरा तुम , और तुम्हारी इज्जत पर जरा भी आंच आये ऐसा मैं होने नहीं दूंगा .
मैंने उसे अपनी बाँहों में भींच लिया. पर मैं जानता था की आने वाला समय मुश्किलें बढ़ा देगा मेरी.
नसीब ने भी क्या खूब खेल खेला था मेरे साथ, जिन्दगी में आई भी तो दो माँ बेटी, अब मैं सफाई भी अगर दू तो क्या दूँ मेघा को . जिस हालत में उसने हमें देखा था कहने को कुछ रह भी तो नहीं गया था . मैंने प्रज्ञा को वापिस जाने को कहा , मैं वहीँ रुक गया . मैं देव गढ़ को और जानना चाहता था .
प्रज्ञा के जाने के बाद एक गहरी ख़ामोशी छा गयी इस घर में . जिस बिस्तर पर एक खूबसूरत रात हमने बितायी थी उसी पर बैठे मैं सोचता रहा , मेरा सबसे पहला सवाल ये ही था की मेघा आखिर यहाँ क्या कर रही थी , क्या उसे मालूम था यहाँ के बारे में, न जाने मुझसे क्या क्या छुपाया हुआ था उसने .
दूसरा वो तस्वीर जो मुझे दराज से मिली थी , मैं उसके बारे में बात करना चाहता था क्योंकि बात ही ऐसी थी पर ये रायता फ़ैल गया था जिसे समेटना बेहद जरुरी था. जितना मैं मेरे सर पर जोर डालता मेरा सर उतना दुखता, कुछ परछाई मुझ पर हावी होने की कोशिश कर रही थी.
मैंने वो तस्वीर फिर देखि, हु ब हु मेरे जैसी पर क्या मैं था , और अगर था भी तो कैसे, आस पास के पुरे इलाके को छान मारा मैंने ये गलिया, ये रस्ते, गाँव में अगर आबादी होती तो कोई न कोई मिल जाता जो मुझे कुछ बता सके.
सोचते सोचते न जाने कब आँख लग गयी, होश आया तो मैं अँधेरे कमरे में पड़ा था , बाहर आके देखा आसमान में तारे खिले थे, चाँद मेरी तरह तनहा सा था . सामने एक खाट बिछी थी , जिस पर कुछ बर्तन रखे थे , मैंने हटा कर देखा, खाना था , एक दम गर्मागर्म, खुसबू सूंघते ही मुझे अहसास हुआ की किस कद्र भूखा था मैं ,पर कौन रख गया ये खाना .
मैं खाना खाने बैठ गया , दो चार निवाले तोड़े थे की मुझे वही पायल की आवाज सुनाई दी, सीढियों से कोई आ रहा था ,इ क पल लगा मेघा है पर नहीं ये वो रुबाब वाली थी .
“पानी,” उसने लोटा मेरे पास रखा और मुंडेर पर बैठ गयी.
मैं- आप का घर है ये,
वो- कह सकते है
मैं- मुझे जगा दिया होता
वो- कोई बात नहीं, पहले तुम खाना खा लो, फिर बात करेंगे.
मैंने जल्दी से खाना खत्म किया.
वो- तो आखिर तुम आ ही गए, देर से ही सही लौट तो आये
मैं- समझा नहीं
वो- अक्सर सीधी बाते कम समझ आया करती है
मैं- तो आप ही समझा दो, बहुत उलझा हु मैं
वो- उलझन तो कोई नहीं है बस एक फ़साना है , एक अधूरी कहानी है , एक वादा है शुरू तुमसे हुई थी अंजाम तुम्हारा है .
मैं- पर मुझे नहीं मालूम कुछ
वो- घर आ गए हो, वो वक्त भी आ जायेगा. तुम्हारा यहाँ रहना सुरक्षित है , हर जरुरत की चीज़ मिल जाएगी तुम्हे, ये तुम्हारा घर है
मैं- पर कैसे मैं तो अर्जुन्गढ़ का हूँ न
वो- नहीं कुंवर, अर्जुन्गढ़ बस इसलिए है की देवगढ़ है , तुम हो
मैं- और रतनगढ़
वो- कुछ नहीं , अर्जुन्गढ़ का एक हिस्सा भर है वो, एक ज़माने में अर्जुन गढ़ ही था वो बाद में गाँव के दो हिस्से हो गए.
मैं- तो देवगढ़ का क्या रिश्ता है अर्जुन्गढ़ से
वो- प्रीत का , प्रीत का रिश्ता है , एक कहानी लिखी गयी थी जिसके किरदार कहीं खो गए.
मैं- आप तो सब जानती है न मुझे बताती क्यों नहीं फिर
वो- बता दूंगी, सब बता दूंगी . फिलहाल तो मैं ये कहूँगी की तुम जोगन से दूर रहो,
मैं- किस जोगन से
वो- जान जाओगे, जानते हो कुंवर, इस दुनिया में सबसे मुश्किल क्या है
मैं क्या
वो- प्रेम, प्रेम करना और उसे निभाना सबसे मुश्किल होता है प्रेम अपने साथ कभी खुशिया नहीं लाता, वो तुम्हे देता है असीम दुःख, और अनगिनत परीक्षा , तुम्हारे मन को देखा है मैंने ये जो प्रेम है न मुझे इसमें दुविधा है , खैर, जाने दो, हम फिर कभी बात करेंगे इस बारे में. तुम आराम करो
उसने बर्तन समेटे और जाने लगी.
मैं- कहाँ जा रही है आप
वो- जहाँ नसीब ले जाए
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