RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#72
मैंने मुड कर देखा राणाजी चले आ रहे थे ,
“तुम्हे यहाँ नहीं आना चाहिए था , जो दर्द तुमने इस गाँव को दिया है मैं अगर खाल भी खींच लू तो कम रहेगा ” राणा बोला
मैं- न पहले कोई हुआ जो मुझे रोक पाया, न आगे कोई पैदा होगा जो मेरे कदमो को रोक सके, रही बात इस गाँव की तो जब दिलो में नफरते भरी होंगी तो क्या मिलेगा सिवाय दर्द के .
राणा- ये किताबी बाते.
मैं- किताबी बाते तो ये हैं राणा की यहाँ तू ये रोना रो रहा है और पीछे मेरे बाप के साथ मिलकर कोई घोटाला कर रहा है . देख जरा तेरे लोगो की आंखो में, तू कोई उम्मीद नहीं दे पाया इनको, इस गाँव की आन बाण के लिए अगर तू जीता न, तो मैं कभी भी तेरी पहुँच से दूर नहीं था , तूने कोशिश ही नहीं की और अब समय बीत गया है,
राणा- गुस्ताख, तू जनता नहीं तू किस से बात कर रहा है ,
मैं- मुझे ये झूठी हेकड़ी मत दिखा राणा, तेरा जोर इन मजलूमों पर चलता होगा मुझ पर नहीं
राणा- जिन्दा नहीं जायेगा तू यहाँ से आज
मैं- कौन रोकेगा मुझे, ये मंदिर मेरा है , मैं इसका कोई कोशिश तो करे
राणा- कोशिश क्या करनी तेरी जान हमारी मुट्ठी में है , तुझे तो भान भी नहीं मौत कितने करीब है तेरे
मैं- ठीक है फिर , तू भी यही है और मैं भी यहीं हूँ , तेरा सारा गाँव आज तमाशा देखेगा तेरी पगड़ी यही गिरेगी मेरी ठोकर में, ये जो मूंछे पैनाये हुए हैं न तु, आज के बाद इनको मरोड़ नहीं पायेगा तू , आजा मैं भी देखू जोर तेरी बाजुओ का .
“रतनगढ़ अभी इतना कमजोर भी नहीं हुआ है की तुम्हारे लिए राणाजी को हथियार उठाने पड़े, अभी जिन्दा हैं राणाजी की पगड़ी को सँभालने वाले ”
ये आवाज, इस आवाज पर ही तो मर मिटा था मैं, मदमस्त हाथी सी चली आ रही थी मेघा, उसे देखते ही जैसे मैं तमाम जहाँ को भूल गया था , कोई और लम्हा होता तो बाँहों में भर लेता उसे, पर आज नसीब देखो हमारी ही मोहब्बत हमें रुसवा करने आई थी . जिन आँखों में अपने लिए झील की ठंडक देखि थी , वो आँखे आज नफरत से जल रही थी,
माना की मेरी गलती थी , पर बात इतनी भी नहीं थी की , पर अब क्या कहे , फिलहाल तो यूँ थे की कुछ कर नहीं सकते थे .
“तुम्हारे लिए मैं ही काफी हूँ ” मेघा बोली
मैं- सही कहा , जानता हूँ मैं इस बात को
मेघा- बढ़िया, तो चुन लो अपने हथियार , जितने चाहिए उठा लो, कहीं फिर अफ़सोस न हो तुम्हे .
मैं- तुम जानती हो , तुम्हारे आगे ये सब फिजूल है .
मेघा- क्या हुआ निकल गयी हेकड़ी, ये रतनगढ़ की मिटटी है अच्छे अच्छे घुटने टेक गए यहाँ पर , क्या कहा था तुमने राणाजी की पगड़ी तुम्हारे कदमो में होगी, सोच भी कैसे लिया तुमने , ये मान है मेरा, और मेरे मान को कोई छू भी दे उस से पहले वो हाथ जिस्म से जुदा कर दूंगी मैं .
किसी जहरीली नागिन सी फुफकार रही थी मेघा, मैं जानता था की नाराज है वो मुझसे
मैं- तेरी नाराजगी समझता हूँ , एक मौका दे मैं सब समझाता हु तुम्हे
मेघा- मौका दूंगी, मेरे बाप के पैर पकड़ ले, नाक रगड कर माफ़ी मांग ले तो मौका दूंगी,
बड़ी जोर से चुभी थी ये बात कलेजे को कोई और होता उसकी जगह से तो सर धड से अलग कर देता पर सामने मेघा थी अब उस से कहता तो क्या कहता .
मैं- तू भी जानती है इस मंदिर से मेरा नाता, मैं आऊंगा यहाँ आज आया हूँ बार बार आऊंगा
मेघा- क्योंकि तब मैं चाहती थी , अब नहीं चाहती
मैं- तू समझती क्यों नहीं हैं मेरी बात को
मेघा- दुश्मनों की बात को क्या समझना , ये बहाने मत बना कबीर, तू भी जानता है तू कायर है , मर्द होता तो मेरी चुनोती स्वीकार कर लेता अब तक .
मैं- क्या है तेरी चुनोती, तू अपनी भड़ास उतरना चाहती है मुझ पर, तू साबित करना चाहती है की तू सही हैं मैं गलत हूँ . पर क्रोध ने तेरी आँखों पर वो पट्टी बांध दी है जो खुलना मुश्किल है , अगर तेरी मर्जी यही हैं तो ठीक है आ तू भी कर ले अपनी चाह पूरी,
जब कभी लिखा जायेगा तो ये दिन भी लिखा जाएगा की कैसे तेरे हठ ने सब झुलसा दिया , अगर तेरी आग ऐसे बुझती है तो कर ले कोशिश , वादा है तुझे निराश नहीं करूँगा.
आँखों से आंसू गिरने को बेताब थे पर अब मेरा भी हठ था, गिरने नहीं दिया उनको पी गया उनको, जब मोहब्बत ने ही सोच लिया था की ज़माने के आगे रुसवा होना है तो ठीक है न तमाशा फिर बड़ा होना चाहिए, जब आग में दिल के अरमान जलने वाले हो तो धुआ फिर गहरा होना चाहिए की नहीं .
मेघा ने पहला वार किया, उसकी तलवार मेरी बाह को चीर गयी, मैंने रोकने की कोशिश नहीं की, जिस बाह के घेरे में सोया करती थी उसी को घायल कर गयी थी वो .
मैं- मजा नहीं आया मेरी जाना
मेरी मुस्कराहट ने उसे और गुस्सा दिला दिया , पर इस बार मैंने वार बचा लिया.
“कौशल कम है तुम्हारा ”
मेघा- जितना है बहुत है
उसने मेरी जांघ पर वार किया, मैं तिलमिलाया और न चाहते हुए भी मैंने अपनी तलवार की मूठ उसकी पीठ पर दे मारी, अब जख्म उसे दू भी तो लगना मेरे कलेजे पर ही था .
शाम रात में बदलने लगी थी , तलवारे खून से सनी थी , कुछ जखम मेरे थे और उसके जख्म भी मेरे ही थे, पूरा रतनगढ़ ही जैसे जमा हो गया था .
मैं- कर क्यों नहीं देती ख़तम ये तमाशा, ले मार दे मुझे, अपने हाथो से विधवा हो जा तू ,
मेघा- कुछ नहीं लगता तू मेरा .
इस बार उसकी तलवार पसली में घुस गयी, चीखा मैं
मेघा- मैं जानती हूँ तू बस मेरा मन रखने को कर रहा है ये सब , मेरी नहीं तो उन लम्हों का मान रख ले, कब तक कायरो का नकाब ओढ़े रखेगा
मैं- तेरे पास मौका है कर दे ख़तम बुझा ले आपनी नफरत की आग .
मेघा कुछ नहीं बोली, बस उसकी त्रीवता और बढ़ गयी . उसकी शक्ति पल पल बढती जा रही थी , जितना उसका गुस्सा बढ़ रहा था उतना वो पागल हो रही थी, इस बार जो हमारी तलवारे आपस में भिड़ी मेरी वाली दो टुकडो में बिखर गयी , उसने मेरी छाती में मारा और मैं सामने एक पिल्लर से जा टकराया.
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