RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#74
नफरतो ने ऐसा तंदूर सुलगा दिया था की मोहबत धुआ बन कर जल गयी थी , तीन लोग एक डोर से बंधे थे , डोर थी की ऐसी उलझी थी कोई राह दिख नहीं रही थी , दिल टूटे थे दर्द था पर आह नहीं थी और कहे भी तो किस से हाल अपने दिल का , दिल अपना था प्रीत पराई हो गयी थी .
डूबती आँखों और कांपती उंगलियों से मैंने प्रज्ञा का फ़ोन मिलाया.
“कबीर, क्या हुआ है तुम्हारे और मेघा के बीच , ” एक ही सांस में बोल गयी वो
मैं- मेघा कैसी है
प्रज्ञा- खुद को कमरे में बंद किये हुए है .तुम ठीक तो हो न
मैं- हाँ , ठीक हु न कोई फ़िक्र नहीं
प्रज्ञा- क्या फ़िक्र नहीं , जिस तरह वो आई थी मेरा दिल बैठा जा रहा है , मैंने चंपा को भेज दिया है जल्दी ही तुम तक पहुँच जाएगी वो ,
मैं- मेघा का ख्याल रखो, उसे जरुरत है तुम्हारी
प्रज्ञा- तुम दोनों की जरूरत है मुझे, मैं जिस्म हूँ मेरी जान हो तुम , औरत मुझे तुम दोनों साथ चाहिए, राणाजी है तो ज्यादा बात नहीं हो पायेगी, मैंने चंपा को सब समझा दिया है
किसी जन्म में कुछ तो अच्छा किया होगा जो प्रज्ञा का साथ मिला था मुझे , मैंने फोन को अपने सीने से लगा लिया जैसे प्रज्ञा सुन रही हो मेरी धडकने, कुछ देर बाद चंपा आ गयी. उसने मुझे उठाया और गाड़ी में पटक दिया.
वो मुझे देवगढ़ ले आई थी ,
“मालकिन ने कहा की यहाँ से सुरक्षित कुछ नहीं ”
मैं- हम्म,
मैंने कपडे उतारे और अपने जख्म देखने लगा. ये अजीब से थे, तलवार इतनी गहरी उतरी थी पर फिर भी बस चीरे से ही थे, मैंने चंपा से बॉक्स लिया उअर मरहम पट्टी करने लगा.
मैं- तुम चाहो तो जा सकती हो.
चंपा- मालकिन ने साथ रहने को कहा है .
मैं थोड़ी देर लेट गया . आँख ऐसी लगी की फिर सीधा अगली दोपहर को ही आँख खुली . चंपा ने चाय नाश्ता करवाया, एक बार फिर मैंने कामिनी की डायरी निकाली और पढने लगा. मैंने बैग से वो तस्वीर निकाली वो पुराणी तस्वीर , जो कहने को अतीत थी पर मेरे आज को हिला देने वाली शक्ति रखती थी. कुछ सोच कर मैंने वो तस्वीर प्रज्ञा को दिखने का निर्णय लिया.
पर उस से पहले मैं रुबाब वाली से मिलना चाहता था मैं जैसे भी करके उस से सवाल जवाब करना चाहता था . उसने हर बार मुझे आगाह किया था की मैं मेघा से दूर रहूँ और पिछले कुछ समय में जब जब मेघा मुझे मिली थी कुछ न कुछ अनिष्ट हुआ ही था . उसका स्नेह उसका वो अपनापन खो गया था , बेशक दोष मेरा भी था मैं उसके दिल को भी समझ रहा था कोई भी औरत ऐसा ही करेगी और हमारे मामले में तो उसकी माँ उसके यार के साथ थी .
पर अब ये जैसे बीती बाते थी मुझे हर हाल में मालूम करना था की मेघा के मन में क्या चल रहा था और दोनों ठाकुर मिल कर क्या करने वाले थे . इसलिए रुबाब वाली का मिलना बहुत जरुरी था . दो तीन दिन ऐसे ही गुजर गए.
मैंने एक बार अर्जुन गढ़ जाने का सोचा , मेरे बाप पर नजर रखने के लिए मुझे सविता की मदद चाहिए थी , देर शाम मैं सविता के घर पहुंचा , हलके से मैंने दरवाजा खोला घर में सन्नाटा था, मैं सविता के कमरे की तरफ बढ़ा और मैंने जो देखा , यकीं नहीं आया, सविता मेरे बाप से चुद रही थी . दोनों लगे हुए थे एक दुसरे से. मैं ओट में हो गया. कुछ देर बाद चुदाई खत्म हो गयी और वो बाते करने लगे.
“उस काम का क्या हुआ ” पिताजी ने पूछा
सविता- चारा डाल दिया है , तुम जानते हो कितना मानता है वो मुझे पर समस्या ये है की वो मिल नहीं रहा मुझे, खेत पर भी रोज दो चक्कर लगाती हूँ पर वो रहता ही नहीं है , और तुम उसके नए ठिकाने के बारे में मालूम कर नहीं पाए हो
पिताजी- तेज बहुत है वो, रतनगढ़ के राणा की लड़की को फसा लिया है उसने ज्यादातर उसके साथ ही रहता है पर कहाँ मिलता है कब मिलता है मेरे आदमी भी मालूम नहीं कर पा रहे है . पर तुम से मिलने जरुर आएगा वो .
सविता- मैं खोद लुंगी बाते उस से , चूत में बहुत दम होता है
पिताजी- हाँ जानता हूँ, चल मैं निकलता हूँ मास्टर आने ही वाला होगा .
सविता ने भी अपने कपडे पहन लिए. मैं पिछले दरवाजे की तरफ चल दिया. सविता भी चुतिया बना रही थी , जिन्दगी में साला जो भी मिल रहा था सब धोखेबाज , साले सब चोर, इस रांड के लिए मैंने सब कुछ त्याग दिया और ये मेरे बाप के लिए काम कर रही थी .
मेरे चारो तरफ एक जाल बुना गया था जिसमे मैं फंस गया था पर किसलिए ये कौन बताएगा. जी तो किया की अभी सविता की गर्दन पकड़ लू पर खुद को रोक लिया. मैंने मास्टर को उठाने का सोचा, अब वही बताएगा जो बताये .
थोडा समय लगा पर मैं उसे जंगल में ले आया.
मास्टर- कबीर, बेटा ये क्या है , कैसी हरकत है ये
मैं- मास्टर, मेरे पास समय नहीं है और न तेरे पास मैं बस तुमसे कुछ सवाल करूँगा, तुम्हे जवाब देने है ,
मास्टर- ये हरकत महंगी पड़ेगी तुम्हे, मैं हुकुम से शिकायत करूँगा
मैं- मास्टर, गांड में डाल अपनी धमकी को, तेरे पास दो रस्ते है ये तो मुझे जवाब दे या फिर मैं तुझे मार दू मर्जी तेरी है
मास्टर कुछ सोचता उस से पहले ही मैंने उसके कंधे में चाकू घुसेड दिया.
चिलाने लगा वो मैंने आधा इंच चाकू और सरका दिया
मैं- जितनी देर तू लगाएगा मैं उतनी ही जल्दी करूँगा
मास्टर- क्या पूछना है तुम्हे
मैं- मेरा बाप क्या खुराफात कर रहा है
मास्टर- नहीं मालूम
मैं- तुझे नहीं मालूम तो किसको मालूम, ठीक है मत बता
मैंने उसकी पेंट खोली और उसके लिंग की खाल को थोडा सा काट दिया. दर्द से बिलबिला गया वो
मैं- बता इतना सोना किसलिए ख़रीदा है , रतनगढ़ के ठाकुर से क्या डील हुई है.
मैंने लिंग की खाल को और काटा, खून बहने लगा.
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