RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
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“देख मास्टर, मेरे पास वक्त की कमी है तो मामले को जल्दी एडजस्ट कर , कहीं ऐसा न हो की फिर जिन्दगी रहे न रहे ” मैंने मास्टर की छाती पर चाकू से निशान बनाते हुए कहा
मास्टर- मुझे नहीं मालूम
मैं- देख मास्टर, तू भी जानता है की तू एक ऐसे आदमी के लिए अपनी जान को दांव पर लगा रहा है जो समय आने पर तेरी गांड पर भी लात मार देगा. तेरी वफ़ादारी क्या काम आएगी फिर, और मैं तो केवल एक बात पूछ रहा हूँ की उस सोने का क्या करने वाले है वो लोग , अब इतनी सी बात के लिए जान देना चाहता है तो तेरी मर्जी, वैसे भी तू रहे न रहे किसी को क्या फर्क पड़ता है , सविता तो चुद ही रही है मेरे बाप से
मास्टर ने आँखे फाड़ कर देखा मुझे और बोला- तुझे कैसे पता ये
मैं- मेरी छोड़, तू अपनी सोच कैसे चुतिया के जैसे जिन्दगी गुजार रहा है तू, मेरी बात मान
मास्टर- ठीक है , सुनो, दोनों गाँव बहुत जल्दी एक हो जायेंगे, रूठा हुआ परिवार एक हो जायेगा , रतनगढ़ अर्जुन्गढ़ का ही हिस्सा है बहुत समय पहले बंटवारे में भाई अलग हो गए थे , ठाकुर जगन सिंह की औलाद ने रतनगढ़ को बसाया था ,
मैं- कौन जगन सिंह
मास्टर- पुराणी बात है पर अब सब एक हो रहा है ,
मैं- तो हम , मेरा मतलब ये सब एक खून है ,
मास्टर- हाँ,
मेरे दिमाग के पुर्जे हिल गए थे क्योंकि मेघा और मेरा रिश्ता उलझ जाने वाला था अगर सब एक ही वंश बेल के हिस्से है तो .
मैं- पर ये अलग क्यों हुए थे .
मास्टर- ज़माने पहले देवगढ़ के ठाकुर कुंदन ने अर्जुन्गढ़ की आयत से प्रेम किया था , विवाह किया था , ऐसा कहते है की फिर कुंदन ने देवगढ़ छोड़ दिया और अर्जुन्गढ़ में बस गया. चूँकि आयत के मायके वालो से कुंदन की दुश्मनी थी और आयत वारिस थी , तुम तो जानते हो की ठाकुरों का इतिहास जमीन और जोरू के मामले में ठीक नहीं रहा कभी
वैसे भी आयत अर्जुन्गढ़ में नहीं बसना चाहती थी पर कुंदन आ गया तो फिर घटनाये कुछ ऐसी हुई की जगनसिंह के परिवार को अर्जुन गढ़ चोदना पड़ा और उन्होंने रतनगढ़ गाँव बसा लिया . तबसे ही दोनों गाँवो में खून खराबा होने लगा.
मैं- और देव गढ़
मास्टर- क्या
मैं- देव गढ़ का क्या हुआ
मास्टर- पता नहीं, लोग कहते है की अचानक ही सब खत्म हो गया एक रात गाँव वाले गाँव छोड़ गए .
मैं- हम्म, पर इसमें दोनों ठाकुर कहाँ फिट होते है
मास्टर- मैंने कहा न खून एक हो गया है , दोनों ठाकुर मिल कर एक महा अनुष्ठान करने जा रहे है
मैं- किसलिए
मास्टर- ये नहीं मालूम मुझे पर शायद कोई गड़े धन का चक्कर है . मैंने सुना था की ठाकुर कुंदन के पास कुछ ऐसा था जिसने उसके यश को चोगुना कर दिया था, कुंदन का बहुत नाम था उन दिनों, कहते है की खुद शिव ने माँ तारा के माध्यम से कुंदन को वरदान दिया था .
मैं- और उसी वरदान के लिए दोनों ठाकुर अब इतिहास दोहराने की कोशिश कर रहे है , हैं न
मास्टर- हाँ और साथ ही एक खजाने के लिए भी,
मैं- कैसा खजाना
मास्टर- अब तुम इतने नादान भी नहीं हो कबीर, जानते हो तुम
मैं- मंदिर के तालाब वाला
मास्टर- हाँ
मैं- पर उसे छूना असंभव है ,नहारविरो की आन है उस पर
मास्टर- जल्दी ही आन टूटेगी ,पीर साहब की मजार खुल गयी, आन का पहला सुरक्षा चक्र टुटा , दूसरा चक्र टुटा मंदिर खंडित होने से , रही बात नाह्र्विरो की तो , पहले भी उन्हें साधा गया है और जो काम एक बार हुआ वो फिर भी हो सकता है
मैं- फिर करेगा कौन
मास्टर- जिसके भाग में खजाना है पीर साहब की मजार को बहुत पहले छुपा दिया गया था क्योंकि वो एक पाक जगह थी, एक कहानी शुरू हुई थी वहां से , एक दास्ताँ जिस पर समय ने कलम चलाई थी .
मैं- और क्या थी वो दास्ताँ
पर इस से पहले की मास्टर कुछ जवाब देता, उसे उलटी आई, खून की उलटी और कुछ देर में ही उसके प्राण साथ छोड़ गए. न जाने क्यों दुःख नहीं हुआ मुझे.
मैं वहां से चल पड़ा, अपने खेत पर आया तो देखा सारा सामान बिखरा हुआ था , किसी ने तलाशी ली थी वहां पर , एक बात तो थी की अब इस इलाके में मैं सुरक्षित नहीं था मुझे देव गढ़ जाना चाहिए था ,पैदल आना जाना थोडा मुश्किल था तो मैंने चंपा से एक गाड़ी के लिए कहा,
आँखों में जरा भी नींद नहीं थी, मैं सोच रहा था की आखिर क्या करने जा रहे है , किस प्रकार का अनुष्ठान करेंगे और ठाकुर कुंदन को क्या वरदान मिला था . दिल में एक रोमांच सा चढ़ गया था , मैं सोचने लगा क्या जिन्दगी रही होगी उन लोगो की , क्या कहानी होगी कुंदन और आयत की , कैसे जिए होंगे उन्होंने वो प्रेम के लम्हे ,कुंदन का ये घर न जाने क्यों मुझे महकता सा लग रहा था .
फिर मेरा ध्यान मास्टर की मौत पर गया, अचानक से उलटी हुई और मर गया वो. कैसे, किसी ने तांत्रिक वार किया होगा उस पर , अब मुझे खुद पर कोफ़्त हुई, मुझे तभी उसके शरीर की जांच करनी चाहिए थी , इतनी बड़ी बेवकूफी कैसे कर दी मैंने, और एक महत्वपूर्ण बात और मेर्रे बाप और सविता के अवैध संबंधो की बात सुन कर भी मास्टर विचलित नहीं हुआ था .
कुछ सोच कर मैंने कल सविता से मिलने का सोचा , इस से पहले मास्टर की मौत का सबको मालूम हो मैं सविता से मिल लेना चाहता था .
अपने ख्यालो में गुम था की एक आवाज ने मेरा ध्यान भंग कर दिया
“सोये नहीं तुम अभी तक ”
मैंने देखा दरवाजे पर रुबाब वाली खड़ी थी .
मैं- कब आई
वो- जब तुम सोच रहे थे
मैं- हाँ वो मैं ठाकुर कुंदन और आयत की कहानी के बारे में सोच रहा था .
वो- हम्म, क्या सोचा
मैं- यही की कैसे रहे होंगे वो लोग, कैसे जिए होंगे उन्होंने वो लम्हे कैसी होगी वो प्रेम कहानी जिसकी सब बात करते है
वो- पर वो कहानी कुंदन और आयत की थी ही नहीं .
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