RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
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ये क्या हो रहा था मेरे साथ , कैसी उलझने थी जो सुलझने का नाम ही नहीं ले रही थी , सबसे पहले मैं देव गढ़ गया मैंने वो तस्वीरे दिवार से उतार कर गाड़ी में डाली और शहर चल दिया. एक सबसे खास तस्वीर को दुबारा से बनवाना चाहता था मैं , आने जाने और स्टूडियो में दिन ख़राब हो गया पर अच्छी बात ये थी की उन्होंने कोशिश करने का बोला था .
वापसी में रात घिरने लगी थी , मेरी धड़कने बहुत बढ़ी हुई थी मैं पीर साहब की माजर पर रुका कुछ देर, मेरे सर का दर्द अभी भी बना हुआ था मुझे अपने चारो तरफ अजीब सी परछाई दिख रही थी जैसे कोई लड़की भाग रही हो , मैं उसके पीछे भाग रहा हूँ, हवा में उड़ता दुपट्टा , तमाम तरह के विचित्र चित्र सामने आ रहे थे .
मैं वहां पर बैठ गया, थोडी राहत मिली, मैंने फ़ोन निकाल कर प्रज्ञा का नंबर घुमाया पर जवाब अभी भी वही था , फोन बंद था उसका. और मेरा उस से मिलना बहुत जरुरी था मैंने रतनगढ़ जाने का सोचा, पर मेघा भी होगी वहां पर , प्रज्ञा के लिए कही और जलील करने वाले हालात न हो जाये.
और राणा अगर हवेली में हुआ तो. मैंने गलती की दिन में ही चंपा के हाथ संदेसा भिजवा देना चाहिए था पर वो कहते है न जब दिलबर से मिलने का जनून हो तो फिर लोक लाज की दुहाई नहीं लगती, मैंने गाड़ी रतनगढ़ की तरफ मोड़ दी. हवेली से थोडा दूर मैंने एक साइड में गाड़ी लगाई और आगे चल पड़ा. प्रज्ञा ने मुझे एक बार बताया था की उसका कमरा पहली मंजिल पर है,
एक चक्कर लगा कर मैंने पहरेदारो को देखा और जुगाड़ लगा कर दीवार फांद गया. अन्दर दाखिल तो हो गया था पर ऊपर जाना अभी भी मुश्किल था पर किस्मत की बात देखो पिछली दीवारों पर शयद पुताई करवाई होगी सीढ़ी वही पर छूटी हुई थी मैं बड़ी मुश्किल से चढ़ पाया. पहले कमरे को खोल कर देखा कोई नहीं था, फिर मैं दुसरे की तरफ बढ़ा और दरवाजा खोलते ही जैसे जन्नत मेरे सामने थी,
प्रज्ञा अभी अभी नहा कर निकली थी, गुलाबी बदन पर टपकती पानी की बूंदे, भीगे खुले बाल मैं अपना दिल हार बैठा कोई और लम्हा होता तो अब तक उसे बाँहों में भर चूका होता. पर अभी बात दूसरी थी दौर दूसरा था .
उसने जैसे ही मुझे देखा, घबरा गयी वो उसके बदन में कम्पन महसूस किया मैंने .
“तुम यहाँ ” दबी सी आवाज में बोली वो
प्रज्ञा ने दरवाजे की कुण्डी लगाई और बोली- तुम्हे यहाँ नहीं होना चाहिए था , हालात ठीक नहीं है किसी को मालूम हुआ तो जिन्दा नहीं छोड़ेंगे तुम्हे .
मैं- शांत हो जाओ, बैठो मेरे पास .
मैंने उसके धडकते दिल को महसूस किया
मैं- अभी चला जाऊंगा, जानता हूँ मेरी वजह से तुम्हे भी परेशानी उठानी पड़ रही है पर मेरा एक सवाल है तुमसे जिसके जवाब के लिए तुम्हारे पास आना पड़ा
प्रज्ञा- क्या .
मैंने जेब से वो फोटू निकाली और प्रज्ञा के सामने रख दी. उसने तस्वीर को देखा और बोली - झूठ है ये ,
मैं- अपना झूठ किसी और का सच भी तो हो सकता है न
प्रज्ञा- क्या कहना चाहते हो
मैं- इस तस्वीर की सच्चाई जानना चाहता हूँ
प्रज्ञा- हमने कभी नहीं खिंचवाई ये तस्वीर जानते हो तुम
मैं- प्रज्ञा, ये तस्वीर अपनी नहीं है , ये ठाकुर कुंदन की है और साथ में जो है या तो आयत है या पूजा .
प्रज्ञा- तो तुम ये कहना चाहते हो की मैं इन दोनों में से एक हूँ
मैं- नहीं, पर हम दोनों की शक्लो का इस तस्वीर में मोजूद लोगो से मिलना कोई इत्तेफाक नहीं .
प्रज्ञा- मुझे नहीं मालूम
मैं- मेरी आँखों में देखो, तुम्हारा मुझसे मिलना करीब आना , दोस्ती होना क्या ये कोई इशारा नहीं था उपरवाले का
प्रज्ञा- कबीर, मेरा परिवार है ,
मैं- और ये तस्वीर कुंदन का परिवार
प्रज्ञा- न तुम कुंदन हो न मैं कोई और
मैं- क्या मालूम पिछले जन्म की कोई अधूरी डोर जो तुम्हारे और मेरे बिच
प्रज्ञा- फ़िलहाल तो मैं इस डोर से बंधी हु
उसने अपना मंगलसूत्र मुझे दिखाया.
मैं- मैं बस इतना जानता हूँ प्रज्ञा की अगर इस तस्वीर में जरा भी सच्चाई है तो मैं तुम्हे ले जाऊंगा अपने साथ , आयत या पूजा तब भी कुंदन की थी अब भी उसकी ही होंगी, ये जो झूठी कसमे, रस्मे है तोड़ दूंगा मैं .
प्रज्ञा- चुप रहो तुम, बकवास मत करो. तुम मेरी बेटी के पति हो, तुम्हारा सुख उसके साथ है और अगर तुम्हारी बात में जरा भी सच्चाई है तो भी मैं तुम्हारे साथ नहीं आउंगी , मेघा का हक़ उसको ही मिलेगा.उसकी ख़ुशी नहीं छीन सकती मैं
मैं- और तुम्हारी ख़ुशी , हमारी ख़ुशी .
इतिहास कह रहा है की कभी न कभी तुम मेरी थी , और अगर तब मेरी थी तो अब भी मेरी ही रहोगी, माना ये अजीब है पर सच और होनी को कोई नहीं टाल सकता, बेशक तुम्हे कुछ याद नहीं पर अगर डोर सच्ची है तो वो पल जल्दी ही आएगा.
प्रज्ञा- मुझे किस दुविधा में डाल रहे हो तुम, पहले ही मेरे दो टुकड़े हो चुके है कबीर, एक हिस्सा इस घर में है एक तुम्हारे पास , मैं सह नहीं पाउंगी.
मैंने उसे अपनी बाँहों में भर लिया.
“तुम जाओ यहाँ से मैं जल्दी ही देव गढ़ आउंगी ”
मैंने जाने के लिए दरवाजा खोला की तभी वो आ लिपटी मुझसे और अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए. बेहद सकूं था उसकी बाँहों में. जिस तरह से मैं आया था उसी तरह से वहां से निकल लिया. वापसी में मैंने देखा की मजार पर दिया जल रहा था , मतलब मेघा आई होगी, पर मैं रुका नहीं गाड़ी मैंने देवगढ़ के रस्ते पर मोड़ दी.
देवगढ़ की सीम में पहुँचते ही मैंने देखा की मेरे पिता की गाडी भी उसी तरफ जा रही है मैंने अपनी रफ़्तार थोड़ी कम कर ली और लाइट बंद कर ली. पीछा करने लगा मैं उनका. गाड़ी कुंदन के घर की तरफ नहीं गयी बल्कि किसी और तरफ गयी, थोडा आगे जाकर गाड़ी रुक गयी . दो लोग उतरे उसमे से.
एक मेरा बाप और दूसरी ताई, ये दोनों यहाँ क्या कर रहे थे मैं भी गाड़ी से उतरा और उनके पीछे चल पड़ा. ताई की मटकती गांड जिसका दीवाना हो गया था मैं बहुत जानलेवा थी. पैदल चलते चलते वो लोग एक पुराने मकान के पास पहुंचे. जब तक मैं पहुंचा वो अन्दर जा चुके थे.
मैं भी अन्दर जाने को था ही की किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा .
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