Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
12-07-2020, 12:20 PM,
#87
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#

देवगढ़,

मेघा भरी दोपहर में आँगन में खड़ी थी,खुले बाल नीला लहंगा और सफ़ेद ब्लाउज , कमर तक आये गीले बाल , जैसे कोई प्यासा पानी के मटके की तरफ देखता है ठीक उसी तरह से वो चोबारे को देख रही थी उसी चोबारे को जो कभी उसका होता था.

“घर ” उसके होंठ हौले से बुदबुदाए.

दूसरी तरफ कुछ और लोग थे , और ये लोग थे मैं और प्रज्ञा , मेरी आयत , मेरी बाँहों में लिपटी वो सीने से सर टिकाये धडकनों को सुन रही थी ,

“सुनो ” मैंने कहा

“अभी नहीं ” उसने हौले से कहा

“अभी मुझे बस इस आगोश में रहना है अपने यार के संग ” प्रज्ञा ने कसमसाते हुए कहा

मैं- अब कभी जुदा मत होना

वो- नहीं, अब कभी नहीं .

मैं- देवगढ़ चले ,

वो- जरुर, पर ऐसे नहीं ठीक वैसे ही जैसे तब ले गए थे, मुझे अपनी बना कर . उस घर में मैं पहले भी ब्याहता गयी थी आज भी वैसे ही जाउंगी, मेरे दिलबर बहुत तड्पी हूँ मैं, बहुत सताया है तेरे इश्क ने, मैं तो कुछ भी नहीं थी सिवाय एक रूह के, तुमने मुझे अहसास करवाया जिन्दगी क्या होती है , तुम्हारे इश्क ने मुझे वो बनाया जो मैं कभी थी ही नहीं , मुझे घर ले चलो पर उसी तरह से, मेरी मांग में अपने नाम का सिन्दूर भर के.

मैं- तो देर किस बात की चल फिर,

वो- मुझे ले चल मंदिर, ले चल

सांझ होते होते हम लाल मंदिर आ पहुंचे,

“कितनी शामे, हमने बस इन्ही सीढियों पर बितायी ” बोली आयत

मैं- और न जाने कितनी आने वाली शामे फिर बिताएंगे, हम अपनी मोहब्बत का इतिहास तो न लिख सके, पर मेरी सरकार मेरा वादा है ये जिंदगानी तेरी बाँहों में, तेरी पनाहों में बितानी है मुझे,

अपनी गोद में उठा कर उसे मैं लाया उसी मूर्ति के सामने जो कभी गवाह थी हमारी मोहब्बत की , और आज फिर मोहब्बत ही हमें फिर उसे ले आई थी , मैंने थाली में पड़ा सिंदूर प्रज्ञा की मांग में भर दिया. एक बार फिर मैंने उसे अपनी बना लिया था .

आयत- मेरा मंगलसूत्र कहाँ है

मैं- रुको जरा

मैंने अपने गले से वो लॉकेट उतारा और आयत के गले में पहना दिया. , जी चाहता था की वक्त यही थम जाए और सदा बस मैं उसके साथ कैद हो जाऊ ताकि फिर कोई कभी हमें जुदा न कर सके. हमने माथा टेका और देवगढ़ के लिए चल पड़े.

“सब बदल गया है वक्त बहुत आगे बढ़ गया है ” उसने शीशे से बाहर देखते हुए कहा

चाहे सब बदल जाये पर एक सच नहीं बदल सकता की तुम मेरी हो मैं तेरा , बहुत सताया है तक़दीर ने हमें पर अब और नहीं अब हम अपनी नयी दुनिया बसायेंगे जिसमे बस तुम होंगी और मैं

“अब रुलाएगा क्या मुझे , कैसे शुक्रिया अदा करूँ मैं उस रब का जिसने मेरी झोली में तेरे रूप में सितारे भर दिए , शीशे की तरह मैं बिखरी थी टूट कर तूने मुझे आइना बनाया, ” रुंधे गले बोली वो .

उसने अपना सर मेरे काँधे पर टिका दिया , और आँखे मूँद ली, एक बार फिर मेरा अतीत मेरी आँखों के सामने आ गया ,वो भी एक शाम थी जब मैं उसे देवगढ़ ले गया था ये भी एक शाम थी समय जैसे फिर खुद को दोहरा रहा था ,

किस्मत ने हमें दुबारा मिलाया था, जो ख़ुशी , जो जिन्दगी हम तब जी नहीं पाए थे वो ख़ुशी जीने का फिर मौका दिया था , पर हर चीज़ की कोई कीमत होती है इसकी भी थी , मेरा जोरो से धडकता दिल मुझे बार बार उस तस्वीर की याद दिला रहा था जो गाडी में पीछे रखी थी , सुख की चाहत में मैं ये तो नहीं भूल सकता था की सुख और दुःख तो हमेशा साथ साथ ही चलते थे.

पर मैं जीना चाहता था ,अपनी जान के साथ अपनी सरकार के साथ अपनी आयत की बाँहों में जीना चाहता था , वो तमाम खुशिया जो तब उसे नहीं दे पाया था मैं उसे अब देना चाहता था , पर क्या ये इतना आसान था........पर कहते हैं न अँधेरा कितना भी गहरा क्यों न हो रौशनी की एक किरण उसे हटा ही देती है ,

हम भी एक नयी शुरुआत करने जा रहे थे, कुछ चीजों को मैं बदल नहीं सकता था पर एक नयी शुरुआत कर सकता था , जल्दी ही हमारी गाड़ी देवगढ़ आ पहुंची थी , हमारे घर के सामने , मुस्कुराते हुए आयत गाड़ी से उतरी और चोखट की मिटटी को अपने माथे से लगाया .

“आज कोई नहीं है तेरा स्वागत करने को” मैंने कहा

वो-तुम तो हो न मेरे पास, मैं अपनी मोहब्बत से फिर जिन्दा कर दूंगी इस घर को, तुम मेरी शक्ति हो तुम साथ थे तो हमने बंजर जमीं में फसल उगा दी थी , हम फिर कोशिश करेंगे , हम फिर नयी दुनिया बसायेंगे, हम फिर से इस गाँव को बसायेंगे, देवगढ़ ठाकुर कुंदन का था आगे भी रहेगा, ठाकुर लौट आया लोग भी आ जायेंगे.

मैं-गलत देवगढ़ अकेले कुंदन का नहीं उसके साथ आयत का भी है , मेरा नाम हमेशा तेरे बाद लिया जायेगा. तू जानती है .

वो- हाँ सरकार जानती हूँ .

मैं- तो अपने पावन कदम रख आगे और इस घर को फिर घर बना दे .

मैंने उसका हाथ पकड़ा और घर के अन्दर ले आया. आँखों के सामने न जाने क्या क्या घूम रहा था , जैसे बस कल की ही बात लगती थी जब दुल्हन के उस लाल जोड़े में मैं उसे लाया था अपनी बना कर . और उसके स्वागत में ये घर किसी महल सा सजा था और आरती की थाली लिए खड़ी थी , जस्सी ,मेरी भाभी जस्सी , इस घर की बड़ी बहु
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RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश - by desiaks - 12-07-2020, 12:20 PM

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