Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
12-07-2020, 12:20 PM,
#88
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
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तमाम बातो को भूल कर हम एक नयी दुनिया बसाने जा रहे थे पर क्या ये इतना आसान था, और फिर वो मोहब्बत ही क्या जो बार बार किसी कसौटी पर तोली ना जाए, आज की रात भी कुछ ऐसी ही थी जब शायद इस कहानी का अंत होना था ,आज की रात एक नयी कहानी लिखने वाली थी , ये रात ही थी जो बताएगी की सुख किसका, दुःख किसके भाग का, आयत और कुंदन की कहानी का भाग ये रात ही लिखने वाली थी .

मैं अपनी जान का हाथ पकडे आँगन में खड़ा था , कभी मैं उस चाँद को देखता जो आसमान में था कभी मैं उस चाँद को देखता जो बाँहों में था . पर अभी चाँद के साथ बिजली भी आनी थी बल्कि यूँ कहूँ की आ चुकी थी , सीढियों से उतर कर वो आ रही थी अब मैं क्या कहूँ उसके बारे में और क्या ही कहूँ मैं उसे मेघा कहूँ या जस्सी, ठकुराइन जसप्रीत.

उसे देखते ही मेरा दिल जोरो से धडक उठा , चाँद रात में मैंने उसकी आँखों में वो चमक देखि, वो चमक जिसके ताप को मैं पहले भी सह चूका था .

“तो वक्त ने फिर से हमें उसी जगह लाकर खड़ा कर दिया. नसीब के निराले खेल ”जस्सी ने हमारे पास आते हुए कहा

“जस्सी, ” मेरे होंठो से निकला

“हाँ, जस्सी , मैं ठकुराइन जसप्रीत , इस घर की मालकिन, इस गाँव की मालकिन ” उसने बड़े दंभ से कहा

मैंने एक नजर आयत को देखा और बोला- हाँ सब तुम्हारा ही है, पहले भी तुम्हारा ही था आज भी और हमेशा ही रहेगा ,

जस्सी- खोखली बाते , मेरा तो सब कुछ होकर भी नहीं हुआ. मुझसे तो सब लूट ले गयी ये

मैं- मैं तुम्हारा कभी नहीं था , हो ही नहीं सकता था तुम्हारा , मैंने कभी देखा नहीं तुम्हे उस नजर से, बेशक हम एक दुसरे के बहुत करीब थे, पर ये दिल हमेशा आयात के लिए धड़का तब भी आज भी .

“नफरत है मुझे इस नाम से , सुना तुमने नफरत है मुझे, कल की छोरी न जाने कहा से आई और इस घर को बर्बाद कर गयी सब कुछ छीन गयी ” जस्सी ने गुस्से से कहा

“मैंने कभी कुछ नहीं छीना किसी से, मुझे जरुरत ही नहीं थी इस ऐश की इस धन संपदा की , मैं तो भटकती रूह थी जिसे जिन्दगी दी मेरे सरकार ने , मुझे तब भी कुछ नहीं चाहिए था आज भी नहीं, तुम रखो सब मैं कुंदन को लेकर कही और चली जाउंगी , कही भी रह लेंगे हम ” आयत ने कहा

जस्सी- मुर्ख, तुझे क्या लगता है मुझे इस भौतिक सुख की चाह है , नियति देखो मुझे इस जन्म में अपनी सबसे बड़ी दुश्मन के गर्भ से पैदा किया , कुछ कुछ संकेत मुझे हमेशा मिलते रहे मेरे इतिहास के पर देख पीर साहब की मजार टूटी और मेरी याद उस कैद से आजाद हो गयी , जस्सी लौट आई, और अब तो पीर साहब भी कुछ नहीं कर सकते कुंदन ने उनको साक्षी मानकर ही फेरे लिए है मेरे साथ , अब उसकी ब्याहता मैं हु तू नहीं

जस्सी हसने लगी .

“धोखा, तूने धोखा किया, छल से मेरे नाम का सिंदूर भरा है तूने अपनी मांग में ,तू अपना ये हठ छोड़ दे, तूने जो भी किया मैं भूलता हु पिछली बातो को जस्सी मेरे लिए सबसे बढ़के थी , उसका स्थान वाही रहने दे, इतना भी मत गिरो की अंत में कुछ शेष न रहे, ” मैंने उस से कहा

“कुंदन जस्सी का था और रहेगा, मियन तब तुम्हे न पा सकी अब जरुर पाऊँगी पति हो तुम मेरे अब और सिंदूर के मान को तो माँ तारा भी नहीं झुठला सकती ” जस्सी ने कहा

मैं- झूठ हमेशा झूठ होता है , कुंदन की सांसे अगर किसी की है तो बस आयत की

मैंने आयत का हाथ पकड़ा और कहा - चलो, यहाँ से हम कही और रह लेंगे.

मैं दरवाजे तक पहुंचा भी नहीं था की वो झटके से बंद हो गया . मैंने मुड कर देखा जस्सी हमारी तरफ आ रही थी .

“नहीं कुंदन कब तक ये चूहे बिल्ली का खेल खेलोगे, आज फैसला कर ही लेते है हम तीनो के नसीब का फैसला ” जस्सी ने कहा

मैं- कुंदन क्या कोई सामान है की आधा आधा बाँट लिया या फिर तुम अपने हिसाब से तय करोगी, कुंदन सिर्फ आयत का है और रहेगा

जस्सी- मुझे गुस्सा दिला रहे हो तुम

मैं- गुस्सा तो पहले भी किया था न तुमने सब बर्बाद कर दिया. ये मत भूलो की याददाश्त केवल तुम्हारी ही वापिस आई है मेरी भी आई है और ये तो मैं फिर भी उन यादो को दिल के किसी कोने में दफना रहा हूँ क्योंकि इतिहास की नफरत पर कभी भी भविष्य का सुख नहीं मिल सकता , मुझे आज भी याद है पूजा, उस बेचारी का क्या कसूर था , पाप कम नहीं है तुम्हारे .

जस्सी- तो एक और पाप सही, तब तुम्हे नहीं पा सकी थी अब पा लुंगी

“तब तुमने धोखा किया था जस्सी, तब कुंदन अकेला था अब नहीं अब उसके साथ उसकी ढाल है ,तुम्हे आजमाइश करनी है कर लो प्रीत की डोर टूटी जरुर थी पर धागे उलझे रहे , और मैं आयत अपनी डोर को वापिस बाँध दूंगी ” आयत मेरे आगे आकर खड़ी हो गयी.

“मुझे तू न पहले समझ पायी थी न आज समझ पायेगी , मेनका की बेटी हु मैं ,जिस ताकत पर तुझे नाज है आयत उस से न जाने कितनी शक्तिशाली हूँ मैं , तू तब भी नहीं टिक पाई थी आज भी नहीं ” जस्सी बोली

“मैंने कभी अभिमान नहीं किया, और करती भी किसलिए मैं तो कुछ भी नहीं थी बिखरी हुई रेत थी मैं जिसे कुंदन ने आकार दिया. मैंने तो अपनी सब ताकत माँ तारा के आगे रख दी थी की मैं कुंदन के साथ जी सकू, सब कुछ तब भी तुम्हारा ही था जस्सी और आज भी है , और जैसा कुंदन ने कहा हम कही दूर चले जायेंगे ” आयत ने कहा

जस्सी- दूर तो तुम्हे जाना ही है मेरे और कुंदन से दूर,

जस्सी ने अपने हाथ हिलाए और आयत को एक झटका सा लगा .

“जस्सी, छोड़ उसे याद रखना उसे अगर कुछ भी हुआ तो ठीक नहीं रहेगा ” चीखा मैं

“तुम दूर हो जाओ कुंदन, अगर ये यही चाहती है तो ठीक है अब बात मेरी और इसकी है बेशक तब मैं छल से हारी थी पर आज नहीं ” आयत ने उठते हुए कहा .

अगले ही पल जैसे वहां पर तूफ़ान आ गया , आसमान में बिजलिया कड़कने लगी , दोनों के हाथो में तलवार आ गयी और शुरू हो गया प्रलय , जस्सी की नफरत को मैंने तब भी रोकने की कोशिश की थी जस्सी ने पूजा को जहर दे दिया था , आयत के गर्भ को गिरा दिया था , नफरत तो बहुत थी मुझे उस से पर मैं फिर भी एक नयी शुरुआत करना चाहता था , और अब देखना था की क्या होता है .

घाव उनके बदन पर हो रहे थे पर दर्द मुझे हो रहा था , आयत और जस्सी के वार जब भी दाए बाये होते देवगढ़ और थोडा टूट जाता, अब मैं समझा था इस गाँव का विनाश कैसे हुआ था .

हुकुम सिंह और अर्जुन के वारिस आपस में लड़ रहे थे , अगर वो दोनों आज यहाँ होते तो क्या देखते , शुक्र है की वो दोनों नहीं थे आज, तभी जस्सी ने एक ऐसा प्रहार किया आयत पर वो धरती पर गिर गयी पेट पकड़ लिया उसने अपना

“आयत , ” मैं चीखते हुए भागा उसकी तरफ.

उठाया उसे.

मैं- ठीक है तू.

“हाँ मेरे सरकार, ठीक हूँ ” उसने थूक गटकते हुए कहा

“हार मान ले आयत और चली जा कुंदन को छोड़ कर यहाँ से , ” जस्सी ने कहा

मैंने आयत की तलवार उठाई और बोला- चल जस्सी , मुझे जीत ले अगर तूने जीत लिया तो मैं तेरा . बस बहुत हुआ इस कहानी को खत्म करते है

“नहीं कुंदन नहीं ” आयत चीखी

मैं- अपने प्यार पर भरोसा रख ,तेरे लिए लाल मंदिर जीत लिया था मैंने इसे अबिमान है खुद की असीमित ताकत पर , इस कहानी का अंत ऐसे ही होना है मेरी सरकार, जस्सी और कुंदन ही लिखेंगे ये अंतिम पन्ने,

मैंने आयत का माथा चूमा और तलवार उठा ली .

मेरे दिमाग में हर एक बात घूम रही थी , हर एक बात पूजा की टूटती साँसे, अपने वंश को ख़त्म होते देखा था मैंने, आयत की लाश और खुद को जान , मेरी मन में इतनी नफरत किसी ज़माने ने अंगार के लिए हुई थी जब उसने आयत को रखैल बनाने को कहा था .

जस्सी का पहला वार ठीक मेरे कलेजे के ऊपर लगा.

मैं- बढ़िया, इस दिल से मिटा दे तेरी तमाम यादो को बहुत बढ़िया, आ और वार कर .

जस्सी फिर मेरी तरफ बढ़ी इस बार मेरे पैर को चीर दिया उसने,

“झुक जा कुंदन ” उसने कहा

मैं- कुंदन को तू मोहब्बत से झुका सकती थी जस्सी, नफरते तो तूने देखि नहीं मेरी,

जैसे ही जस्सी घूमी मैंने उसकी पीठ को चीर दिया. वो घूमी और मैंने अपनी तलवार उसके पेट में उतार दी, एक पल को जैसे सब थम गया और फिर उसका बदन चमकने लगा. सुनहरी होने लगी वो तंत्र का प्रयोग कर रही थी वो , आग की लौ सा दहकने लगा उसका बदन

“अप्सरा सिद्धि ” चीखी आयत

भागते हुए आयत ने मुझे अपने आगोश ने ले लिया . जस्सी का सारा स्वरूप बदल गया था शोलो सी दाहक रही थी वो .

उसने आयत को धक्का दिया और दूर फेक दिया. जस्सी ने अपनी ऊँगली मेरे कंधे पर रखी , जैसे लावा सब चीजो को चीर जाता है ठीक वैसे ही मेरा मांस गलने लगा. मैं चीखने लगा , जस्सी पर मेरा कोई जोर नहीं चल रहा था .

“जस्सी, छोड़ उसे ” आयत ने जस्सी पर वार किया पर उसे को फर्क नहीं पड़ा.

“तू ले जाएगी कुंदन को मुझसे दूर तू, देख मुझे, तू जीतेगी मुझे मैं सर्वशक्तिशाली, मैं ९ ग्रह विजेता, मैं अप्सरा सिद्ध करने वाली, तू जीतेगी मुझसे जस्सी चीखते हुए आयत को मारने लगी उसका जिस्म खून से भीगने लगा. ”

मैंने जस्सी का हाथ पकड़ा और उसे आयत से दूर किया.

मैं- जस्सी मान जा , मान जा अपने अंत को मत ललकार,

जस्सी- मेरा अंत , कौन करेगा मेरा अंत,

मैं- तू अभिमान में भूल गयी है की प्रेम से बड़ी कोई शक्ति नहीं , तू जानती है आयत ने अपनी सारी शक्तिया माँ तारा के आगे रख दी थी ताकि वो मेरे संग जी सके और मोहब्बत ने उसे वो वरदान दिया था जिसमे तेरा अंत था , तेरी नियति शायद यही था , तेरे पाप का घड़ा भर गया जस्सी ,

मैंने आयत का हाथ पकड़ा और बोला- एक होने का समय आ गया है , मेरी आँखों में देखो , मैंने आयत के गले में पड़े लॉकेट की जंजीर को तोड़ दिया और आयत को अपनी बाँहों में कस लिया. हम दोनों एक हो रहे थे अर्धनारीश्वर हो रहे थे हम

“असंभव , ये नहीं हो सकता ” जस्सी चीखी

मैं अब आधा कुंदन था आधी आयत.

मैं- काश तू प्रेम को समझ पाती

क्रोध में अंधी जस्सी ने मुझ पर वार किया पर बेकार था , अतीत की नफरत ने वर्तमान की मुहब्बत पर वजन डाल दिया था , मैंने जस्सी की छाती को फाड़ दिया और उसके कलेजे को बाहर खींच लिया. उसके कलेजे को खाता रहा मैं उसके बदन के टुकड़े टुकड़े कर दिए. उसका अंत ऐसे ही होना था .
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RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश - by desiaks - 12-07-2020, 12:20 PM

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