RE: Gandi Sex kahani दस जनवरी की रात
"मैं कह चुका हूँ योर ऑनर ! मैंने कत्ल किया है, मैं कोई सफाई नहीं देना चाहता और न ही यह मुकदमा आगे चलाना चाहता हूँ । वैशाली तुम्हें यहाँ अदालत में नहीं आना चाहिये था, तुम घर जाओ ।"
वैशाली सुबकती हुई कटघरे से बाहर आई और फिर अदालत से ही बाहर चली गई ।
अदालत ने अगली कार्यवाही के लिए तारीख दे दी ।
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नेहरू नगर, मुम्बई गोरेगाँव ।
उसी नगर की एक चाल में वैशाली का निवास था ।
उदास मन से वैशाली घर पहुंची । घर में अपाहिज बाप और माँ थी । उस समय घर में एक और अजनबी शख्स मौजूद था ।
वैशाली ने इस व्यक्ति को देखा, वह अधेड़ और दुबला-पतला आदमी था । सिर के आधे बाल उड़े हुये थे ।
"बेटी ये हैं करुण पटेल, सोमू के दोस्त ।"
"मेरे कू करुण पटेल बोलता ।" वह व्यक्ति बोला, "तुम सोमू का बैन वैशाली होता ना ।"
"हाँ, मैं ही वैशाली हूँ । मगर आपको पहले कभी सोमू के साथ देखा नहीं ।"
"कभी अपुन तुम्हारे घर आया ही नहीं, देखेगा किधर से और अगर हम पहले आ गया होता, तो भी गड़बड़ होता ।"
"क्या मतलब ?"
"अभी कुछ दिन पहले तुम्हारे भाई ने हमको एक लाख रुपया दिया था । हम उसका पूरा सेफ्टी किया, इधर पुलिस वाला लोग आया होगा, उनको एक लाख रुपया का रिकवरी करना था । अब मामला फिनिश है, सोमू ने इकबाले जुर्म कर लिया । अब पुलिस को सबूत जुटाने का जरूरत नहीं पड़ेगा । देखो बैन तुम्हारा डैडी भी सेठ के यहाँ काम करता था, फैक्ट्री में टांग कट गया, तो उसको पूरा हर्जाना देना होता था कि नहीं ?"
"तो क्या सोमू ने सचमुच… ?"
"अरे अब आलतू-फालतू नहीं सोचने का । सेठ का मर्डर करके सोमू ने ठीक किया, साला ऐसा लोग को जिन्दा रहने का कोई हक नहीं । अरे उसकू फांसी नहीं होगा और दस बारह साल अन्दर भी रहेगा, तो कोई फर्क नहीं पड़ता । तुम अपना शादी धूमधाम से मनाओ और किसी पचड़े में नहीं पड़ने का ।"
"लेकिन मेरा दिल कहता है, मेरा भाई कातिल नहीं हो सकता ।"
"दिल क्या कहता है बैन, उसको छोड़ो । अपुन की बात पर भरोसा करो, वोही कत्ल किया है, माल हमको दे गया था । हम उसकी अमानत लेके आया है । हम तुम्हारा मम्मी डैडी को भी बरोबर समझा दिया, किसी लफड़े में पड़ेगा, तो पुलिस तुमको भी तंग करेगा । इसलिये चुप लगाके काम करने का, तुम्हारा डैडी ममी ने जो रिश्ता देखा है, उन छोकरा लोग को बोलो कि शादी का तारीख पक्की करें । पीछे मुड़के नहीं देखने का है । काहे को देखना भई, इस दुनिया में मेहनत मजदूरी से कमाने वाला सारी जिन्दगी इतना नहीं कमा सकता कि अपनी बेटी का शादी धूमधाम से कर दे । नोट इसी माफिक आता है ।"
"बेटी ! अब हमारी फिक्र दूर हो गई, सिर का बोझ उतर गया । तेरे हाथ पीले हो जायेंगे, तो हमारा बोझ उतर जायेगा । सोमू के जेल से आने तक हम किसी तरह गुजारा कर ही लेंगे ।
"अच्छा हम चलता, कभी जरूरत पड़े तो बताना । हमने माई को अपना एड्रेस दे दिया है । ओ.के. वैशाली बैन, हम तुम्हारी शादी पर भी आयेगा ।"
करुण पटेल चलता बना ।
उसके जाने के बाद वैशाली ने पूछा ।
"रुपया कहाँ है माँ ?"
"सम्भाल के रख दिया है ।"
"रुपया मेरे हवाले कर दो माँ ।"
"क्यों, तू क्या करेगी ?"
"शादी तो मेरी होगी न, किसी बैंक में जमा कर दूंगी । "
वैशाली की माँ पार्वती देवी अपनी बेटी की मंशा नहीं भांप पायी । उसकी सुन्दर सुशील बेटी यूँ भी पढ़ी लिखी थी, बी.ए. करने के बाद एल.एल.बी. कर रही थी । लेकिन माँ इस बात को भी अच्छी तरह जानती थी, बेटी चाहे जितनी पढ़ लिख जाये पराया धन ही होती है और निष्ठुर समाज में बिना दान दहेज के पढ़ी लिखी लड़की का भी विवाह नहीं होता बल्कि पढ़ लिखने के बाद तो उसके लिये वर और भी महँगा पड़ता है ।"
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