RE: Gandi Sex kahani दस जनवरी की रात
"बेटी, तू इस पैसे को जमा कर आ, हमें कोई ऐतराज नहीं । वैसे भी घर में इतना पैसा रखना ठीक नहीं, जमाना बड़ा खराब है ।"
पार्वती देवी ने रुपयों से भरा ब्रीफकेस वैशाली के सामने रख दिया ।
वैशाली ने ब्रीफकेस खोला । ब्रीफकेस में नये नोटों की गड्डियां रखी थी, वैशाली ने उन्हें गिना, वह एक लाख थे । उसने ब्रीफकेस बन्द किया ।
"माँ, मैं थोड़ी देर में लौट आऊंगी ।"
"रुपया सम्भालकर ले जाना बेटी ।" अपाहिज पिता जानकीदास ने कहा ।
"आप चिन्ता न करें डैडी ।"
वैशाली चाल से बाहर निकली । उसने बस से जाने की बजाय ऑटो किया और ऑटो में बैठ गई ।
"किधर जाने का मैडम ।" ऑटो वाले ने पूछा ।
"थाने चलो ।"
"ठाणे, ठाणे तो इधर से बहुत दूर पड़ेला ।" ड्राइवर ने आश्चर्य से वैशाली को घूरा ।
"ठाणे नहीं पुलिस स्टेशन ।"
ऑटो वाले ने वैशाली को जरा चौंककर देखा, फिर गर्दन हिलाई और ऑटो स्टार्ट कर दिया ।
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दो दिन पहले ही इंस्पेक्टर विजय ने गोरेगांव पुलिस स्टेशन का चार्ज सम्भाला था । गोरेगांव में फिलहाल क्रिमिनल्स का ऐसा कोई गैंग नहीं था, जो उसे अपनी विशेष प्रतिभा का परिचय देना पड़ता ।
विजय अपने जूनियर ऑफिसर सब-इंस्पेक्टर बलदेव से इलाके के छंटे छटाये बदमाशों का ब्यौरा प्राप्त कर रहा था ।
"दारू के अड्डे वालों का तो हफ्ता बंधा ही रहता है सर ।"
"हूँ ।"
"वैसे तो इलाके में हड़कम्प मच ही गया है, बदमाश लोग इलाका छोड़ रहे हैं, सबको पता है कि आपके इलाके में ये लोग धंधा नहीं कर सकते । हमने नकली दारू वालों को बता दिया है कि धंधा समेट लें, जुए के अड्डे भी बन्द हो गये हैं ।"
"ये लोग क्या अपनी सोर्स इस्तेमाल नहीं करते ।"
"आपके नाम के सामने कोई सोर्स नहीं चलती सबको पता है ।"
इंस्पेक्टर विजय अभी यह सब रिकार्ड्स देख ही रहा था कि एक सिपाही ने आकर सूचना दी कि कोई लड़की मिलना चाहती है ।
"अन्दर भेज दो ।" विजय ने कहा ।
कुछ ही सेकंड बाद हरे सूट में सजी संवरी वैशाली ने जैसे स्टेशन इंचार्ज के कक्ष में हरियाली फैला दी । विजय ने वैशाली को देखा तो देखता रह गया । वैशाली ने भी विजय को देखा तो ठगी-सी रह गई ।
"बलदेव !" विजय को सहसा कुछ आभास हुआ,"जरा तुम बाहर जाओ ।"
बलदेव ने वैशाली को सिर से पाँव तक देखा । उसकी कुछ समझ में नहीं आया, फिर भी वह उठकर बाहर चला गया ।
"बैठिये ।" विजय ने सन्नाटा भंग किया ।
वैशाली ने विजय के चेहरे से दृष्टि हटाई, "अ… आप मेरा मतलब… ।"
"हाँ, मैं विजय ही हूँ ।" विजय के होंठों पर मुस्कान आ गई, "बैठिये !"
वैशाली कुर्सी पर बैठ गई ।
"हाँ, मुझे तो यकीन ही नहीं आ रहा है ।"
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