RE: Gandi Sex kahani दस जनवरी की रात
बलदेव ने जिधर रिवॉल्वर होने का इशारा किया था, विजय उधर ही मुड़ गया । कमरे के दरवाजे से कोई तीन फुट दूर कालीन पर रिवॉल्वर पड़ी थी । विजय ने रिवॉल्वर को रूमाल में लपेटकर बलदेव को थमा दिया ।
"फिंगरप्रिंट और फोटो डिपार्टमेंट को फोन करो ।"
बलदेव कमरे में रखे फोन की तरफ बढ़ा ।
"इधर नहीं बाहर से, ड्राइंगरूम में फोन की टेबल है, किसी चीज को छूना नहीं, दस्ताने पहन लो ।
विजय ने स्वयं भी दस्ताने लिए ।
दो सिपाही ड्राइंगरूम के अन्दर हीरालाल के दायें चुपचाप इस तरह खड़े थे, जैसे ऑफिसर का हुक्म मिलते ही उसे धर दबोचेंगे ।
विजय ने कमरे का निरीक्षण शुरू किया । इस कमरे में कोई खिड़की नहीं थी । ऊपर वेन्टीलेशन था, परन्तु वहीं एग्जास्ट लगा था । कमरे में आने-जाने का एकमात्र रास्ता वही दरवाजा था । जिससे होकर विजय स्वयं अन्दर आया था ।
कुछ देर बाद विजय ड्राइंगरूम में आ गया ।
"तुम्हारा नाम हीरालाल है ?"
"हीरालाल जेठानी ।" हीरालाल अपने चश्मे का एंगल दुरुस्त करते हुए बोला ।
"जेठानी ।"
"जी ।"
"तुम मृतक के पड़ोसी हो ।"
"बराबर वाला फ्लैट अपना ही है ।"
"पूरी बात बताओ ।" विजय एक कुर्सी पर बैठ गया ।
अपना फ्रेन्ड जगाधरी बहुत अच्छा आदमी था नी, सण्डे का दिन हमारा छुट्टी का दिन होता, दोनों यार शतरंज खेलता और दारू पीता, हम शतरंज खेलता, कबी वो जीतता कबी हम जीतता, कबी हम जीतता कबी वो, शतरंज भी अजीब खेल है सांई! हम दोनों बिल्कुल बराबर का खिलाड़ी, एकदम बराबर का । कबी वो जीतता कबी… ।"
"मुझे तुम्हारी शतरंज की जीत हार से कुछ लेना-देना नहीं समझे ।" विजय ने बीच में उसे टोकते हुए कहा, "तुम आज यहाँ शतरंज खेलने आये थे और तुमने यहाँ आकर दारू पी थी ।"
"कसम खाके बोलता सांई, आज दारू नहीं पी, अरे पीता किसके साथ, जगाधरी तो रहा नहीं, आप दारू की बात करता ।" हीरालाल की आंखों में एकाएक आँसू छलक आए, "हम दोनों हफ्ते में एक दिन पीता, बस एक दिन । अब तो हफ्ते में एक दिन क्या महीने में भी एक दिन पीना नहीं होयेगा सांई । "
"शटअप !"
हीरालाल इस प्रकार चुप हो गया, जैसे ब्रेक लग गया हो ।
"जो मैं पूछता हूँ, बस उतना ही जवाब देना, वरना अन्दर कर दूँगा ।"
हीरालाल के चेहरे से हवाइयां उड़ने लगीं ।
"आज तुम यहाँ शतरंज खेलने आये थे ।"
"आज नहीं खेला, ठीक वक्त पर जब मैं आया, घंटी बजाया फ्लैट की, तभी अन्दर गोली चलने का आवाज हुआ, पहले मैं समझा कोई पटाखा छूटा होगा, हड़बड़ाहट में मैंने दरवाजे पर धक्का मारा, दरवाजा खुला था, जगाधरी को पुकारता हुआ उस कमरे के अन्दर घुसा तो देखा सांई ! बस जो देखा, कभी नहीं देखा पहले । मेरा यार राम को प्यारा हो गया नी । मैं उसका हालत देखके भागा और सबसे पेले आपको फोन किया नी ।"
"क्या उस वक्त तक जगाधरी मर चुका था ?"
"देखने से यही लगता था, अबी जैसा देखने से लगता ।"
"तुम्हारे अलावा कमरे में और कोई नहीं गया ?"
"नहीं जी, मैं तो यहीं से फोन मिलाया, फिर दरवाजा बन्द करके बाहर बैठ गया, मैं सोचा के गोली चलाने वाला अन्दर ही कहीं छिप गया होयेगा, मैं दरवाजे पे डट गया सांई । मेरे यार को मारके साला निकल के दिखाता बाहर, मैं ही उसका खोपड़ा तोड़ देता ।"
"कातिल को तुमने नहीं देखा ।"
"देखता तो वो यहाँ लम्बा न पड़ा होता ?"
"इस फ्लैट में जगाधरी के अलावा कौन रहता था ?"
"एक नौकर था बस, वो भी दो दिन से छुट्टी पे गया है । उसका यहाँ कोई नहीं था, यह बात जगाधरी ने मुझे बताया था सांई ।"
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