RE: Gandi Sex kahani दस जनवरी की रात
वैशाली कोर्ट से लौटी, तो विजय से जाकर मिली ।
दोनों एक रेस्टोरेंट में बैठे थे ।
"शादी के बाद क्या ऐसा ही होता है विजय ?"
"ऐसा क्या ?"
"बीवी क्लबों में जाती हो । बिना हसबैंड के शराब पीती हो । और फिर झगड़ा, छोटी-छोटी बात पर झगड़ा । लाइफ में क्या पैसा इतना जरूरी है कि पति-पत्नी में दरार डाल दे ?''
''पता नहीं तुम क्या बहकी-बहकी बातें कर रहे हो ?''
''दरअसल मैंने आज भैया-भाभी की सब बातें सुन ली थीं । फ्लैट का दरवाजा खुला था, मैं अंदर आ गई थी और मैंने उनकी सब बातें सुन लीं ।''
''भैया-भाभी ?"
''रोमेश भैया की ।"
''ओह ! क्या हुआ था ?" विजय ने पूछा ।
''हाजी बशीर एक लाख रुपये लेकर आया था, उसका कोई आदमी बंद हो गया है, रोमेश भैया बता रहे थे, तुम्हारे थाने का केस है ।''
''अच्छा ! अच्छा !! करीमुल्ला की बात कर रहा होगा । रात उसने एक आदमी को नशे में गोली मार दी, हमें भी उसकी बहुत दिनों से तलाश थी, मगर यह बशीर वहाँ कैसे पहुंच गया ?''
वैशाली ने सारी बातें बता डालीं ।
''ओह ! तो यह बात थी ।'' विजय ने गहरी सांस ली ।
''क्या हम लोग इसमें कुछ कर सकते हैं, कोई ऐसा काम जो रोमेश भैया और भाभी में झगड़ा ही ना हो ।''
''एक काम हो सकता है ।'' विजय ने कुछ सोचकर कहा, ''रोमेश की मैरिज एनिवर्सरी आने वाली है, इस मौके पर एक पार्टी की जाये और फिर रोमेश के हाथों एक गिफ्ट भाभी को दिलवाया जाये, गिफ्ट पाते ही सारा लफड़ा ही खत्म हो जायेगा ।''
''ऐसा क्या ?''
''अरे जानेमन, कभी-कभी छोटी बात भी बड़ा रूप धारण कर लेती है, एक बार सीमा भाभी ने झावेरी वालों के यहाँ एक अंगूठी पसंद की थी, उस वक्त रोमेश के पास भुगतान के लिए पैसे न थे और उसने वादा किया कि शादी की आने वाली सालगिरह पर एक अंगूठी ला देगा । यह अंगूठी रोमेश आज तक नहीं खरीद सका । कभी-कभार तो इस अंगूठी का किस्सा ही तकरार का कारण बन जाता है, अंगूठी मिलते ही भाभी खुश हो जायेगी और बस टेंशन खत्म ।''
''मगर वह अंगूठी है कितने की ?''
''उस वक्त तो पचास हज़ार की थी, अब ज्यादा से ज्यादा साठ हज़ार की हो गई होगी ।''
''इतने पैसे आएंगे कहाँ से ?"
"कोई चक्कर तो चलाना ही होगा ।''
☐☐☐
अगले हफ्ते रोमेश से विजय की मुलाकात हुई ।
"गुरु ।'' विजय बोला, ''कुछ मदद करोगे ।''
"तुम्हारा तो कोई-ना-कोई मरता ही रहता है, अब कौन मर गया ?''
"कोई नहीं यार, बस कुछ रुपयों की जरूरत आ पड़ी ।''
"रुपए और मेरे पास ।'' रोमेश ने गर्दन झटकी ।
''अबे यार, अर्जेंट मामला है । किसी की जिंदगी मौत का सवाल है । मुझे हर हालत में साठ हज़ार का इंतजाम करना है । तुम बताओ कितना कर सकते हो ? एक महीने बाद तुम चाहे मुझसे साठ के साठ हज़ार ले लेना । ज्यादा भी ले लेना, चलेगा ।''
रोमेश कुछ देर तक सोचता रहा, शादी की सालगिरह एक माह बाद आने वाली थी । कैलाश वर्मा ने उसे तीस हज़ार दिये थे, बाकी दस बाद में देने को कहा था । तीस हज़ार विजय के काम आ गये, तो उससे जरूरत पड़ने पर साठ ले सकता था और साठ हज़ार में सीमा के लिए अंगूठी खरीदकर प्रेजेंट दे सकता था ।
''तीस हज़ार में काम चल जायेगा ?''
''बेशक चलेगा, दौड़कर चलेगा ।''
''ठीक है तीस दिये ।''
विजय जानता था, रोमेश स्वाभिमानी व्यक्ति है । अगर विजय उसकी स्थिति को भांपते हुए तीस हज़ार की मदद की पेशकश करता, तो शायद रोमेश ऑफर ठुकरा देता । न ही वह किसी से उधार मांगने वाला था । लेकिन इस तरह से दाँव फेंककर विजय ने उसे चक्रव्यूह में फांस लिया था ।
''साठ हज़ार खर्च करके मुझे एक लाख बीस हज़ार मिल जायेगा, जिसमें से साठ हज़ार तुम्हारा समझो, क्योंकि आधी रकम तुम्हारी है ।''
"मैं तुमसे तुम्हारा बिजनेस नहीं पूछूंगा कि ऐसा कौन सा धंधा है ? जाहिर है तुम कोई खोटा धंधा तो करोगे नहीं, मुझे एक महीने में रिटर्न कर देना । साठ ही लूँगा । और ध्यान रखना, मैं कभी किसी से उधार नहीं पकड़ता ।''
"मुझे मालूम है ।"
विजय ने यह पंगा ले तो लिया था, अब उसके सामने समस्या यह थी कि बाकी के तीस का इंतजाम कैसे करे ? उसकी ऊपर की कोई कमाई तो थी नहीं । उसके सामने अब दो विकल्प थे । उसकी माँ ने बहू के लिए कुछ आभूषण बनवाए हुए थे । पिता का स्वर्गवास हुए तो चार साल गुजर चुके थे । विजय का एक भाई और था,जो छोटा था और बड़ौदा में इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त कर रहा था । उसका भार भी विजय के कंधों पर होता था । माँ ने अपनी सारी कमाई से बस एक मकान बनाया था और बहू के लिए जेवर जोड़े थे । इन आभूषणों की स्वामिनी तो वैशाली थी । माँ ने भी वैशाली को पसंद कर लिया था और जल्दी उसकी सगाई होने वाली थी । अड़चन सिर्फ यह थी कि वैशाली शादी से पहले कोई मुकदमा लड़कर जीतना चाहती थी । वैशाली रोमेश की असिस्टेंट थी और रोमेश के मुकदमे को देखती थी । व्यक्तिगत रूप से अभी तक उसे कोई केस मिला भी नहीं था ।
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