RE: Gandi Sex kahani दस जनवरी की रात
रोमेश ने सात जनवरी को पुनः जे. एन. को फोन किया ।
"जनार्दन नागारेड्डी, तुम्हें पता लग ही चुका होगा कि मैं दस तारीख को मुम्बई से बाहर रहूँगा । लेकिन तुम्हारे लिए यह कोई खुश होने की बात नहीं है । मैं चाहे दूर रहूँ या करीब, मौत तो तुम्हारी आनी ही है । दो दिन और काट लो, फिर सब खत्म हो जायेगा ।"
"तेरे को मैं दस तारीख के बाद पागलखाने भिजवाऊंगा ।" जे.एन. बोला, "इतनी बकवास करने पर भी तू जिन्दा है, यह शुक्र कर ।"
"तू सावंत का हत्यारा है ।"
"तू सावंत का मामा लगता है या कोई रिश्ते नाते वाला ?"
"तूने और भी न जाने कितने लोगों को मरवाया होगा ? "
"तू बस अपनी खैर मना, अभी तो तू मुझे चेतावनी देता फिर रहा है, मैंने अगर आँख भी घुमा दी न तेरी तरफ, तो तू दुनिया में नहीं रहेगा । बस बहुत हो गया, अब मेरे को फोन मत करना, वरना मेरा पारा सिर से गुजर जायेगा ।"
जे.एन. ने फोन काट दिया ।
"साला मुझे मारेगा, पागल हो गया है ।" जे. एन. ने अपने चारों सरकारी कमाण्डो को बुलाया, "यहाँ तुम चारों का क्या काम है ?"
"दस तारीख की रात तक आपकी हिफाजत करना ।" कमाण्डो में से एक बोला ।
"हाँ, हिफाजत करना । मगर यह मत समझना कि सिर्फ तुम चार ही मेरी हिफाजत पर हो । तुम्हारे पीछे मेरे आदमी भी रहेंगे और अगर मुझे कुछ हो गया, तो मेरे आदमी तुम चारों को भूनकर रख देंगे, समझे कि नहीं ?"
"अपनी जान बचानी है, तो मैं सलामत रह । हमेशा साये की तरह मेरे साथ लगे रहना ।"
"ओ.के. सर ! हमारे रहते परिन्दा भी आपको पर नहीं मार सकता । "
"हूँ ।" जे.एन. आगे बढ़ गया और फिर सीधा अपने बैडरूम में चला गया ।
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आठ तारीख को वह एकदम तरोताजा था । चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी । उसके बैडरूम के बाहर दो कमाण्डो चौकसी करते रहे । सुबह सोने वाले पहरेदार उठ गये और रात वाले सो गये ।
यूँ तो जे.एन. के बंगले में जबरदस्त सिक्योरिटी थी । उसके प्राइवेट गार्ड्स भी थे, बंगले में किसी का घुसना एकदम असम्भव था ।
फोन रोमेश ने आठ जनवरी को भी किया, लेकिन जे.एन. अब उसके फोनों को ज्यादा ध्यान नहीं देता था । नौ तारीख को जरुर उसके दिमाग में हलचल थी, कहीं सचमुच उस वकील ने कोई प्लान तो नहीं बना रखा है ।
"वह अपने हाथों से मेरा कत्ल करेगा । क्या यह सम्भव है ?" अपने आपसे जे.एन. ने सवाल किया, "वह भी तारीख बताकर, नामुमकिन । इतना बड़ा बेवकूफ तो नहीं था वो ।"
"मगर वह तो नौ को ही दिल्ली जाने वाला है ।" जे.एन. के मन ने उत्तर दिया ।
जनार्दन नागारेड्डी ने फैसला किया कि वह रोमेश को मुम्बई से बाहर जाते हुए जरूर देखेगा । अतः वह राजधानी के समय मुम्बई सेन्ट्रल पहुंच गया । राजधानी एक्सप्रेस कुल चार स्टेशनों पर रुकती थी । अठारह घंटे बाद वह दिल्ली पहुंच जाती थी । ग्यारह-बारह बजे दिल्ली पहुंचेगा, फिर रात को चित्रा क्लब में अपनी बीवी से मिलेगा । नामुमकिन ! फिर वह मुम्बई कैसे पहुंच सकता था ?
और अगर वह मुम्बई में होगा भी, तो क्या बिगाड़ लेगा ?
जे.एन. खुद रिवॉल्वर रखता था और अच्छा निशानेबाज भी था ।
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रेलवे स्टेशन पर वैशाली और विजय, रोमेश को विदा करने आये थे ।
राजधानी प्लेटफार्म पर आ गई थी और यात्री चढ़ रहे थे । रोमेश भी अपनी सीट पर जा बैठा । रस्मी बातें होती रही ।
"कुछ भी हो, मैं तुम दोनों की शादी में जरूर शामिल होऊंगा ।" रोमेश काफी खुश था ।
दूर खड़ा जे.एन. यह सब देख रहा था ।
जे.एन. के पास ही मायादास भी खड़ा था और उनके गार्ड्स भी मौजूद थे । रोमेश की दृष्टि प्लेटफार्म पर दूर तक दौड़ती चली गई । फिर उसकी निगाह जे.एन. पर ठहर गई ।
"अपना ख्याल रखना ।" ट्रेन का ग्रीन सिग्नल होते ही विजय ने कहा ।
"हाँ, तुम भी मेरी बातों का ध्यान रखना । हमेशा एक ईमानदार होनहार पुलिस ऑफिसर की तरह काम करना । अगर कभी मुझे कत्ल के जुर्म में गिरफ्तार करना पड़े, तो संकोच मत करना । कर्तव्य के आगे रिश्ते नातों का कोई महत्व नहीं रहता ।"
रोमेश ने उस पर एक अजीब-सी मुस्कराहट डाली ।
गाड़ी चल पड़ी ।
रोमेश ने हाथ हिलाया, गाड़ी सरकती हुई आहिस्ता-आहिस्ताउस तरफ बढ़ी, जिधर जे.एन. खड़ा था ।
रोमेश ने हाथ हिलाकर उसे भी बाय किया और फिर ए.सी. डोर में दाखिल हो गया ।
गाड़ी धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ती जा रही थी ।
विजय ने गहरी सांस ली और फिर सीधा जे.एन. के पास पहुँचा ।
"सब ठीक है ?" विजय ने कहा ।
"गुड !" जे.एन. की बजाय मायादास ने उत्तर दिया और फिर वह लोग मुड़ गये ।
राजधानी ने तब तक पूरी रफ्तार पकड़ ली थी ।
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