RE: Gandi Sex kahani दस जनवरी की रात
रोमेश ने दिल्ली फोन मिलाया ।
उसने फोन कैलाश वर्मा को मिलाया था ।
कैलाश वर्मा घर पर मिल गया ।
"हैलो, मैं रोमेश बोल रहा हूँ ।"
"हाँ रोमेश, मैं तो तुम्हें याद ही कर रहा था ।"
"अब मैंने वह पेशा छोड़ दिया है, अब न तो मैं किसी के लिए जासूसी करता हूँ, न ही वकालत ।"
"यह बात नहीं है यार, मैं तो तुम्हारे आर्ट की दाद देना चाहता था । तुमने किस सफाई से जे.एन. का क़त्ल किया और ऐसे कामों की तो बड़ी मोटी रकम मिल सकती है, करोगे ?"
"नो मिस्टर कैलाश वर्मा ! मुझे यह काम इसलिये करना पड़ा, क्योंकि तुमने जे.एन. को बचा लिया था । खैर छोड़ो, मैं फिलहाल तुम्हारी एजेन्सी से एक काम लेना चाहता हूँ । काम की फीस मिलेगी ।"
"बोलो ।"
"दिल्ली में मेरी पत्नी सीमा कहीं रहती है ।" रोमेश बोला, "तुम तो सीमा से मिल चुके हो न ।"
"हाँ, शक्ल से अच्छी तरह वाफिक हूँ । मगर बात क्या है ? "
"सीमा आजकल दिल्ली में है, मुझे सिर्फ एक सूत्र का पता है, उसी के सहारे तुम सीमा का अता-पता निकालो । वह आजकल मुझसे अलग रह रही है ।"
"अच्छा-अच्छा ! यह बात है, सूत्र बताओ ।"
"होटल डिलोरा में उसका आना-जाना है । वह एक अच्छी सिंगर भी है । हो सकता है कि वहाँ आती हो । उसने दस जनवरी की रात वहाँ एक रूम भी बुक किया हुआ था, आगे तुम खुद पता लगाओ ।"
"तुम मुझे उसका एक फोटो तुरन्त भेज दो, बाकी मुझ पर छोड़ दो ।"
"काम जल्दी करना है ।"
"जल्दी ही होगा ।"
"फीस ?"
"अपने लोग खो जायें, तो उन्हें खोजकर घर पहुंचाने में बड़ा सुख मिलता है रोमेश ! यही सुख और खुशी मेरी फीस है । मैंने एक बार तुम्हें बहुत नाराज कर दिया था, शायद नाराजगी दूर करने का मौका मेरे हाथ आ गया है ।"
कैलाश वर्मा ने वह काम जल्दी ही कर डाला ।
एक सप्ताह में ही उसका फोन आ गया ।
"भाभी यहाँ नहीं है । वह कुछ दिन राजौरी गार्डन में रहीं, उसके बाद मुम्बई लौट गयीं । दिल्ली में उसकी एक खास सहेली रहती है, उससे मुम्बई का एक पता मिला है । नोट कर लो, शायद सीमा भाभी उसी पते पर मिल जायेगी ।"
रोमेश ने मुम्बई के पते पर मालूम किया ।
पता लगा सीमा मुम्बई में ही है और उसी फ्लैट पर रहती है, जिसका पता कैलाश वर्मा ने दिया था ।
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हल्की बरसात हो रही थी ।
आकाश पर सुबह से बादल छाये हुए थे ।
रोमेश एक टैक्सी में बैठा था । टैक्सी में नोटों से भरा सूटकेस रखा था । वह कोलाबा के क्षेत्र में एक इमारत के सामने रुका । इमारत की पहली मंजिल पर उसकी दृष्टि ठहर गई । टैक्सी से बाहर कदम रखने से पहले वह फ्लैट का जायजा ले लेना चाहता था ।
रात के ग्यारह बज रहे थे ।
दिन भर से वह प्रतीक्षा कर रहा था कि बारिश रुक जाये, तो वह चले । लेकिन बारिश ने रुकने का नाम नहीं लिया । बेताबी इतनी बढ़ चुकी थी कि वह अपने को रोक भी न सका और उसी रात को ही चल पड़ा । उसने क़त्ल की सारी कमाई सूटकेस में भर ली थी और अब वह ये सारी रकम सीमा को देने जा रहा था ।
फ्लैट की खिड़की पर रोशनी थी ।
खिड़की पर एक स्त्री का साया खड़ा था ।
"शायद वह हर रात मेरा इसी तरह से इंतजार करती होगी ।"
"उसे भी तो हमारी मुहब्बत की यादें सताती होंगी ।"
"वह भी तो मेरी तरह तन्हाई में रोती होगी ।"
"उसको हम कितना प्रेम करते थे ।"
रोमेश देखते ही पहचान गया कि खिड़की पर खड़ी स्त्री उसकी पत्नी सीमा ही है । वह हसीन ख्यालों में खो गया, इतनी दौलत उसने चाही थी । मनचाही दौलत देखकर वह कितनी खुश होगी, उसे बांह में समेट लेगी और ?
तभी रोमेश को एक झटका-सा लगा ।
खिड़की पर धीरे-धीरे एक पुरुष साया उभरा । उसे देखकर रोमेश के छक्के ही छूट गये, पुरुष ने स्त्री को बांहों में लिया । दोनों खिड़की से हटते चले गये ।
"हैं, यह कौन था ?"
"कहीं ऐसा तो नहीं, वह औरत सीमा न हो ।"
"देखना चाहिये छिपकर ।"
रोमेश ने टैक्सी का भुगतान किया, सूटकेस को उठाया और नीचे उतर गया । वह रेनकोट पहने हुए था । इमारत का गेट पार करके वह अन्दर चला गया और फिर शीघ्र ही उस फ्लैट तक पहुंच गया । उसने दरवाजे पर कान लगा दिये । फ्लैट का दरवाजा अन्दर से बन्द था, फिर भी अन्दर से हँसने की आवाजें बाहर तक पहुंच रही थी । हँसने की आवाज सीमा की थी । वह खिलखिलाकर हँस रही थी ।
फिर एक पुरुष का स्वर सुनाई दिया, वो कुछ कह रहा था ।
रोमेश ने की-होल से झांककर देखा, अन्दर रोशनी थी । रोशनी में जो कुछ रोमेश ने देखा, उसके तो छक्के ही छूट गये । उसकी पत्नी किसी पुरुष की बांहों में थी, दोनो एक-दूसरे को बेतहाशा चूम रहे थे । रोमेश का शरीर सर से पाँव तक कांप गया । उसने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि उससे क़त्ल करवाने वाला शंकर नागारेड्डी उसकी बीवी का आशिक है और उसकी बीवी इस काम में शामिल है । उसके सामने सारे चेहरे घूमने लगे, कैसे सब कुछ हुआ ?
उसकी बीवी का घर छोड़कर जाना और पच्चीस लाख की रकम की मांग करना, फिर शंकर का आना और पच्चीस लाख की डील करना, तो क्या उसकी बीवी सीमा पहले से ही शंकर से मिली हुई थी ? क्या मायादास ने भी नाटक ही किया था, ताकि ऐसी परिस्थिति खड़ी की जा सके ?
"मैं अपने आपको कितना चतुर खिलाड़ी समझ रहा था और यहाँ तो खुद मेरी बीवी ने मुझे मात दे दी ।"
रोमेश पर जुनून सवार हो गया । उसने दरवाजे पर ठोकरें मारनी शुरू कर दीं । धाड़-धाड़ की आवाजें इमारत में गूँजने लगीं । रोमेश तब तक पागलों की तरह टक्करें मारता रहा, जब तक दरवाजा टूट न गया । दरवाजा तोड़ते ही रोमेश आंधी तूफान की तरह अंदर घुसा ।
"खबरदार आगे मत बढ़ना ।" शंकर ने रोमेश की तरफ रिवॉल्वर तान दी ।
"तो यह है उस सवाल का जवाब कि तुमको कैसे पता चला कि मैं पच्चीस लाख के लिए कुछ भी कर सकता हूँ ।"
"हाँ, और मैं वह रकम वापिस भी चाहता था । तुम इस रकम को सीमा के हवाले करते और सीमा मुझे दे देती । लेकिन इस रकम को हम अब तुम्हें दान करते हैं । जाओ यहाँ से ।"
"साले ।" रोमेश ने पास रखा सूटकेस उछाला ।
शंकर ने फायर किया, उसी समय सूटकेस शंकर के हाथ से टकराया, सूटकेस के साथ-साथ रिवॉल्वर भी जमीन पर आ गिरी । रोमेश का ध्यान रिवॉल्वर पर था । उसका अनुमान था कि शंकर दोबारा रिवॉल्वर पर झपटेगा, इसलिये रोमेश ने रिवॉल्वर पर ही छलांग लगाई । रिवॉल्वर रोमेश ने अपने काबू में तो कर ली, लेकिन तब तक शंकर टूटे दरवाजे के रास्ते छलांग लगाकर भाग चुका था । रोमेश दरवाजे तक आया, लेकिन तब तक शंकर उसकी दृष्टि से ओझल हो गया ।
रोमेश हांफ रहा था ।
उसने शंकर का पीछा करना व्यर्थ समझा ।
वह टूटे दरवाजे से पलटा ।
सामने उसकी बीवी खड़ी थी । उसकी बेवफा बीवी, वह बीवी जिसने उसे कहीं का न छोड़ा था, जिसे वह बहुत प्यार करता था, जिसके लिए उसने अपने आदर्शों का खून कर दिया था । रोमेश का हाथ धीरे-धीरे उठने लगा ।
रिवॉल्वर की नाल उठ रही थी, ज्यों-ज्यों उसका हाथ सीमा की तरफ उठता जा रहा था, उसका चेहरा जर्द पड़ता जा रहा था । फिर वह सूखे पत्ते की तरह कांपती पीछे हटी, कहाँ तक हटती, चंद कदम के फासले पर ही तो दीवार थी, वह दीवार से जा लगी ।
रिवॉल्वर वाला हाथ पूरी तरह तन गया था ।
रोमेश की आँखों में खून उतर आया था ।
"नहीं ।" सीमा के मुंह से निकला, "नहीं, मुझे माफ कर दो ।"
"धांय ।" एक गोली चली ।
सीमा के मुंह से चीख निकली ।
"धांय धांय धांय ।"
रोमेश ने पूरी रिवॉल्वर खाली कर डाली । रिवॉल्वर की सारी गोलियां ख़ाली होने पर भी वह ट्रिगर दबाता रहा, पिट ! पिट !! पिट !!!
खून से लहूलुहान सीमा फर्श पर ढेर हो गई थी ।
रोमेश का हाथ धीरे-धीरे नीचे आता चला गया । खट की आवाज हुई । रिवॉल्वर फर्श पर आ गिरी । कुछ देर तक रोमेश खामोश खड़ा रहा । सूटकेस खुला हुआ था, कमरे में नोट बिखरे पड़े थे । रोमेश ने जुनूनी हालत में नोटों को फाड़-फाड़कर सीमा की लाश पर फेंकना शुरू कर दिया ।
"यह ले, पच्चीस लाख की दौलत ! तुझे यही चाहिये था न, ले ।"
वह नोट फेंकता रहा ।
टूटे हुए खुले दरवाजे के बाहर कुछ चेहरे नजर आ रहे थे ।
रोमेश, सीमा की लाश पर गिरकर रोने लगा । फूट-फूटकर रोता रहा । फिर उसने धीरे-धीरे खुद को शव से हटाया और टेलीफोन के करीब पहुँचा । टेलीफोन पर वह पुलिस को फोन करने लगा ।
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