RE: Gandi Sex kahani दस जनवरी की रात
"आज पहला दिन गुजर गया दोस्त ।"
रोमेश चुप रहा, उसने कोई उत्तर नहीं दिया ।
"आज मैं तुम्हें पहली खबर बताने आया हूँ । पहली जोरदार खबर यह है एडवोकेट साहब कि हमने उस शख्स का पता लगा लिया है, जो उस फ्लैट में आपके आने से पहले आपकी पत्नी के साथ मौजूद था । उसका नाम है- शंकर नागारेड्डी ।"
विजय इतना कहकर मुस्कराता हुआ वापिस लौट गया ।
रोमेश ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की ।
वह चुप रहा ।
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एक दिन और गुजर गया ।
विजय एक बार फिर लॉकअप के सामने था । उसने हवलदार से कहा कि ताला खोलो । लॉकअप का ताला खोला गया, विजय अन्दर दाखिल हो गया ।
"एडवोकेट रोमेश सक्सेना साहब, आपके लिए दूसरी खबर है, वह रकम जो फ्लैट में बिखरी पड़ी थी उसके बारे में एक अनुमान है कि वह पच्चीस लाख रुपया आपको शंकर नागारेड्डी ने दिया था । हम शंकर नागारेड्डी को तलाश कर रहे हैं, वह अन्डरग्राउंड हो गया है । मगर हम उसे सरकारी गवाह बना लेंगे और वह सरकारी गवाह बनना भी चाहेगा, वरना हम थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करके उससे उगलवा लेंगे कि उसने यह रकम आपको क्यों दी ।"
विजय रूककर रोमेश के खामोश चेहरे को देखता रहा, जिस पर कोई भाव नहीं था ।
"ऐनी क्वेश्चन ?" विजय ने पूछा ।
रोमेश ने कोई प्रश्न नहीं किया ।
"नो क्वेश्चन ?" विजय ने गर्दन हिलाई और बाहर निकल गया । एक बार फिर लॉकअप पर ताला पड़ गया ।
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तीसरा दिन गुजर गया ।
विजय एक बार फिर लॉकअप में दाखिल हुआ ।
"मेरे साथ वैशाली भी काम कर रही है । वैशाली अब सरकारी वकील बन गई हैं । अगली बीस तारीख को हमारी शादी होने वाली है, ये रहा निमंत्रण ।" विजय ने रोमेश को निमंत्रण दिया ।
"इस तारीख को तुम पैरोल पर छूट सकते हो रोमेश ।"
रोमेश कुछ नहीं बोला ।
"इस खुशी के मौके पर मैं तुम्हें कोई बुरी खबर नहीं सुनाना चाहता । हालात कुछ भी हो, तुम्हें शादी में शरीक होना है ।"
रोमेश ने कोई उत्तर नहीं दिया । कार्ड उसके हाथ में थमाकर गर्दन हिलाता बाहर निकल गया ।
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चौथा दिन भी बीत गया ।
रोमेश का मौन व्रत अभी टूटा नहीं था ।
"आज की खबर बहुत जोरदार है रोमेश सक्सेना ?" विजय ने लॉकअप में कदम रखते हुए कहा, "शंकर नागारेड्डी सरकारी गवाह बन गया है और उसने हमें बताया कि उसने पच्चीस लाख रुपया तुम्हें जे.एन. की हत्या के लिए दिया था । उसका तुम्हारी पत्नी से भी लगाव था । अब यह बात भी समझ में आ गई कि तुमने अपनी पत्नी की हत्या क्यों कर डाली । तुम्हारी बीवी यह कहकर तुम्हारी जिन्दगी से रुखसत हो गई कि अगर तुम उसे फिर से पाना चाहते हो, तो उसके एकाउन्ट में पच्चीस लाख रुपया जमा करना होगा और शंकर यह रकम लेकर आ गया । तुमने जे.एन. के क़त्ल का ठेका ले लिया, शर्त यह थी कि तुम्हें क़त्ल के जुर्म में गिरफ्तार भी होना है और बरी भी, तुमने शर्त पूरी कर दी ।"
विजय लॉकअप में टहलता रहा ।
"बाद में तुम यह रुपया लेकर अपनी पत्नी के पास पहुंचे, वह लोग यह सोच भी नहीं सकते थे कि तुम उस फ्लैट तक पहुंच जाओगे । वह एक दूसरे से शादी करने का प्रोग्राम बनाये बैठे थे । सीमा यह चाहती थी कि पहले पच्चीस लाख की रकम भी तुमसे ले ली जाये, उसके बाद वह शंकर से शादी कर लेती और तुम हाथ मलते रह जाते ।"
रोमेश चुप रहा ।
"तुमने बड़ी जल्दी अपनी पत्नी का पता निकाला और जा पहुंचे उस जगह, जहाँ तुम्हारी बीवी किसी और की बांहों में मौजूद थी और फिर तुमने अपनी बीवी को बेरहमी से मार डाला । शंकर नागारेड्डी अपना लाइसेन्सशुदा रिवॉल्वर छोड़ गया था, जिसकी पहली गोली उसने तुम पर चलाई, तुम बच गये, शंकर को भागने का मौका मिल गया । वरना तुम उसका भी खून कर डालते । हो सकता है, तुम अभी भी यह तीसरा खून करने का इरादा रखते हो ।"
रोमेश चुप रहा ।
"मैं चाहता था कि जिस तरह तुम अदालत में बहस करते हो, उसी तरह यहाँ भी करो । लेकिन लगता है, तुम्हारा मौन व्रत फाँसी के फंदे पर ही टूटेगा ।"
इतना कहकर विजय बाहर निकल गया ।
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"अब यह बात तो साफ है कि इस काम के लिए दो आदमियों का इस्तेमाल हुआ ।" विजय ने कहा ।
"दूसरा कौन ?" वैशाली बोली, "क्या कोई हमशक्ल था ?"
"मेरे ख्याल से यह डबल रोल वाला मामला हरगिज न था, जेल के अन्दर तो रोमेश ही था, यह पक्के तौर पर प्रमाणिक है ।"
"कैसे कह सकते हो विजय ?"
"साफ सी बात है, हमने रोमेश को राजधानी में बिठाया । राजधानी बड़ौदा से पहले कहीं रुकी ही नहीं । रामानुज ने रोमेश को बड़ौदा में पुलिस के हैण्डओवर कर दिया । जहाँ से रोमेश को जेल भेज दिया गया । जब किसी आदमी को सजा होती है, तो उसके फोटो और फिंगर प्रिंट उतारे जाते हैं । जेल में दाखिल होते समय भी फिंगर प्रिंट लिये जाते हैं । रोमेश सक्सेना दस जनवरी को जेल में था । अब हमें यह पता लगाना है कि मौका-ए-वारदात पर कौन शख्स पहुँचा । लेकिन अगर वह शख्स कोई और था, तो माया देवी ने उसे रोमेश क्यों बताया ? क्या वह सचमुच रोमेश का हमशक्ल था ? अगर वह रोमेश का हमशक्ल नहीं था, तो क्या माया देवी भी इस प्लान में शामिल थी ।"
"थोड़ी देर के लिए मैं अपने आपको रोमेश समझ लेता हूँ । मेरी पत्नी पच्चीस लाख की डिमांड करके मुझे छोड़कर चली गई और मैं उसे हर कीमत पर हासिल करना चाहता हूँ । नागारेड्डी को भी उसके किये का सबक पढ़ाना चाहता हूँ । कानून उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता । कानून की निगाह में वह फाँसी का मुजरिम है, किन्तु उसे एक दिन की भी सजा नहीं हो सकती । मेरे मन में एक जबरदस्त हलचल हो रही है, मैं फैसला नहीं कर पा रहा हूँ कि जनार्दन नागारेड्डी को क्या सजा दूं या दिलवाऊं और कैसे ? "
विजय खड़ा हुआ और टहलने लगा ।
"तभी शंकर आता है ।" वैशाली बोली, "और जनार्दन नागारेड्डी की हत्या के लिये पच्चीस लाख देने की बात करता है ।"
"कुछ देर के लिये मैं धर्म संकट में पड़ता हूँ, फिर सौदा स्वीकार कर लेता हूँ । सौदा यह है कि मुझे क़त्ल करके खुद को बरी भी करना है, इसका मतलब यह हुआ कि मुझे गिरफ्तार भी किया जायेगा । अब मैं पूरा प्लान बनाता हूँ और सबसे पहले तुम्हें अपने करीब से हटाता हूँ, नौकर को चले जाने के लिये कहता हूँ । अब मैं खास प्लान बनाता हूँ कि मुझे यह काम किस तरह करना है ।"
विजय बैठकर सोचने लगा ।
"चारों गवाहों के बयानों से पता चलता है कि रोमेश पहले ही इनसे मिलकर इन्हें अपने केस के लिये गवाह बना चुका था । इसका मतलब रोमेश यह चाहता था कि पुलिस को वह उस ट्रैक पर ले जाये, जो वह चाहता है । उसने गवाह खुद इसीलिये तैयार किए और पुलिस ठीक उसी ट्रैक पर दौड़ पड़ी, जिस पर रोमेश यानि मैं दौड़ना चाहता था ।"
"और ट्रैक में यह था कि पुलिस इस केस को एक ही दृष्टिकोण से इन्वेस्टीगेट करे । यानि सबको पहले से ही एक लाइन दी गयी, यह कि अगर जे.एन. का मर्डर हुआ, तो रोमेश ही करेगा । रोमेश के अलावा कोई कर ही नहीं सकता । पुलिस को भी इसका पहले ही पता था, इसलिये मर्डर स्पॉट से इंस्पेक्टर विजय तुरंत रोमेश के फ्लैट पर पहुंचा । जहाँ उसे एक आवाज सुनाई दी, रुक जाओ विजय, और इंस्पेक्टर विजय ने एक पल के लिये भी यह नहीं सोचा कि वह आवाज रिकॉर्ड की हुई भी हो सकती है ।"
"माई गॉड !" विजय उछल पड़ा, "यकीनन वह आवाज टेप की हुई थी, खिड़की के पास एक स्पीकर रखा था । मुझे ध्यान है, उसने एक ही तो डायलॉग बोला था, लेकिन वो शख्स जिसे मैंने खिड़की पर देखा ।"
विजय रुका और फिर उछल पड़ा, "चलो मेरे साथ, हम जरा उस डिपार्टमेंटल स्टोर में चलते हैं, जहाँ रोमेश ने कॉस्ट्यूम खरीदा था ।"
विजय और वैशाली डिपार्टमेन्टल स्टोर में पहुंच गये ।
चंदू सेल्स कांउटर पर मौजूद था । इंस्पेक्टर विजय को देखते ही वह चौंका ।
"सर आप कैसे, क्या फिर कोई झगड़ा हो गया ?" चंदू घबरा गया ।
"हमें वह ड्रेस चाहिये, जो तुमने रोमेश को दी थी ।"
"क… क्यों साहब ? क… क्या आपको भी ?"
"हाँ, हमें भी उसी तरह एक खून करना है, जैसे रोमेश ने किया । हम भी बरी होकर दिखायेंगे ।”
"ब… बाप रे ! क… क्या मुझे फिर से गवाही देनी होगी ?"
"तुमने ही गवाही दी थी चंदू ! मैं तुम्हें झुठी गवाही देने के जुर्म में गिरफ्तार कर सकता हूँ ।"
"म… मैंने झूठी गवाही नहीं दी सर ! वह ही वो सब कहकर गया था ।"
"बस ड्रेस निकालो ।" विजय ने पुलिस के रौब में कहा, "मेरा मतलब है, वैसी ही ड्रेस ।"
"द… देता हूँ ।" चंदू अन्दर गया, वह बड़बड़ा रहा था, "लगता है सारे शहर के खूनी अब मेरी ही दुकान से ड्रेस खरीदा करेंगे और मैं रोज अदालत में गवाही देने के लिये खड़ा रहूँगा ।"
चंदू ने ओवरकोट, पैंट, शर्ट, सब लाकर रख दिया ।
"मैं जरा यह ड्रेस चैंज करके देखता हूँ ।" विजय बराबर में बने एक केबिन में दाखिल हो गया, जो ड्रेस चैंज करने के ही काम में इस्तेमाल होता था । जब वह बाहर निकला, तो ठीक उसी गेटअप में था, जिसमें रोमेश ने क़त्ल किया था ।
विजय ने ड्रेस का मुआयना किया और शॉप से बाहर निकल गया ।
"तुमने एक बात गौर किया वैशाली ?" रास्ते में विजय ने कहा ।
"क्या ?"
"रोमेश ने कॉस्ट्यूम चुनते समय मफलर भी रखा था, जबकि वह मफलर हमें बरामद नहीं हुआ । उसकी वजह क्या हो सकती है ? वार्निंग के अनुसार उसने सारे कपड़े बरामद कराये, फिर मफलर क्यों नहीं करवाया और इस मफलर का क्या इस्तेमाल था, मैं आज रात इस मफलर का इस्तेमाल करना चाहता हूँ ।"
रात के ठीक दस बजे विजय एक मोटर साईकिल द्वारा माया देवी के फ्लैट पर पहुँचा । उसने फ्लैट की बेल बजाई, कुछ ही पल में द्वार खुला । दरवाजा खोलने वाली माया की नौकरानी थी ।
नौकरानी ने चीख मारी, "तुम !"
वह दरवाजा बन्द करना चाहती थी, लेकिन विजय ने दरवाजे के बीच अपनी टांग फंसा दी । नौकरानी बदहवास पलटकर भागी ।
"मालकिन ! मालकिन !! वह फिर आ गया ।" नौकरानी अभी भी चीखे जा रही थी ।
"कौन आ गया ?" माया की आवाज सुनाई दी ।
तब तक विजय अन्दर कदम रख चुका था, वह ड्राइंगरूम में कमर पर हाथ रखे और टांगे फैलाये खड़ा था, तभी माया देवी ने ड्राइंगरूम में कदम रखा ।
"तुम !" वह चीख पड़ी, "रोमेश सक्सेना, तुम ! मैं अभी पुलिस को फोन करती हूँ, तुम यहाँ क्यों आये ? क्या फिर किसी का खून ?"
विजय ने सिर से हेट उतारा और फिर चेहरे से मफलर । अब विजय को सामने देखकर माया भी हैरान हो गयी । वह हैरत से फटी आँखों से विजय को देख रही थी ।
"अ… आप ?"
"हाँ, मैं !"
"म… मगर… ब… बैठिये ।"
विजय बैठ गया ।
"मगर यह सब क्या है ?"
"मैं एक शक दूर करना चाहता था ।"
"क्या ? "
"माया देवी अगर आपने पुलिस को बयान देते वक्त यह बताया होता कि फ्लैट में दाखिल होने वाले रोमेश ने अपना चेहरा मफलर में छिपाया हुआ था, तो कहानी कुछ और बनती । मैं अदालत में कभी केस न डालता और सबसे पहले यह जानने की कौशिश करता कि जिस रोमेश सक्सेना का आपने चेहरा नहीं देखा, वह दरअसल रोमेश ही था या कोई और ।"
"त… तो क्या वह रोमेश नहीं था ?"
"नहीं मैडम, वह कोई और था ।"
"मगर उससे पहले जब रोमेश मिला था, तो वह धमकी देकर गया था, उसने यही ड्रेस पहना हुआ था ।"
"सारा धोखा ड्रेस का ही तो है, पहली बार यहाँ आया और तुम्हें गवाह बनाने के लिये कह गया । क्या उस वक्त भी उसने चेहरा मफलर में ढ़का हुआ था ?"
"नहीं, लेकिन वापिस जाते समय उसने चेहरा मफलर में छिपा लिया । उस वक्त मैंने यह समझा कि हो सकता है, वह अपना चेहरा छिपाना चाहता हो । ताकि कोई राह चलता शख्स उसकी शिनाख्त न कर बैठे । क़त्ल की रात वह इसी तरह मफलर लपेटे था ।"
"और तुमने केवल उसका गेटअप देखकर यह समझ लिया कि वह रोमेश है । लेकिन वह कोई और था । जिसकी कद-काठी हूबहू रोमेश से मिलती थी, हो सकता है कि उसकी चाल ढाल भी रोमेश जैसी हो । यह भी हो सकता है कि उसने रोमेश की आवाज की नक़ल करने की भी प्रैक्टिस भी कर ली हो ।"
विजय उठ खड़ा हुआ ।
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