Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
12-13-2020, 02:38 PM,
#29
RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
उसने मेरे लंड को निशाना बनाया और एक ही बार में मेरे लंड को अपनी कमसिन चूत में उतारती चली गयी, सुर्र्र्रर्र्र्रर्र्र.की आवाज के साथ मेरा पप्पू उसकी पिंकी के अन्दर घुसता चला गया. म्म्म्मम्म्म्मम्म....आनंद के मारे उसकी ऑंखें बंद होती चली गयी.
पास सो रही ऋतू को अंदाजा भी नहीं था की हम सुबह-२ फिर से चूत लंड खेल रहे हैं.
नेहा मेरा लंड अपने तरीके से अपनी चूत के अन्दर ले रही थी, वो ऊपर तक उठकर आती और मेरे लंड के सुपाडे को अपनी चूत के होंठो से रगडती और फिर उसे अन्दर डालती, इस तरह से वो हर बार पूरी तरह से मेरे लंड को अन्दर बाहर कर रही थी, उसकी चूत के रस से काफी चिकनाई हो गयी थी, इसलिए आज कल जितनी तकलीफ नहीं हो रही थी बल्कि उसे आज मजे आ रहे थे.
उसके बाल्स जैसे चुचे मेरी आँखों के सामने उछल रहे थे, मैंने उन्हें पकड़ा और मसल दिया, वो सिहर उठी और अपनी ऑंखें खोलकर मुझे देखा और फिर झटके से मेरे होंठो को दबोचकर उन्हें अपना अमृत पिलाने लगी.
उसके धक्के तेज होने लगे और अंत में आकर वो जोरो से हांफती हुई झड़ने लगी, मैंने भी अपनी स्पीड बड़ाई और 8 -10 धक्को के बाद मैं भी झड़ने लगा...उसकी कोमल चूत के अन्दर ही.
वो धीरे से उठी और मेरे साइड में लुडक गयी, और मेरा लंड अपने मुंह में डालकर चूसने लगी और उसे साफ़ करके अपनी चूत में इकठ्ठा हुए मेरे रस में उंगलियाँ डालकर उसे भी चाटने लगी. फिर वो उठी और बाथरूम में चली गयी.
मैं थोडा ऊपर हुआ और सो रही नंगी ऋतू के साथ जाकर लेट गया, उसने भी अपना सर मेरे कंधे पर टिका दिया और मुझसे चिपककर सो गयी. मैं बेड पर पड़ा अपनी नंगी बहन को अपनी बाँहों में लिए अपनी किस्मत को सराह रहा था.
9 बजे तक ऋतू भी उठ गयी और मेरे लंड को अपने हाथ में पकड़कर मेरे होंठो पर एक मीठी सी पप्पी दी और बोली "गुड मोर्निंग जानू"...जैसे कोई नव-विवाहित अपने पति को बोलती है.
मैंने भी उसे जवाब दिया और चूम लिया. मैंने नेहा को भी उठाया और उसे भी उसी अंदाज में गुड मोर्निंग बोला.
हम जल्दी से उठे और कपडे पहन कर बाहर की तरफ चल दिए, बाहर मम्मी पापा, चाचू-चाची सेंट्रल टेबल पर बैठे न्यूज़ पेपर के साथ-२ चाय पी रहे थे.
हमें देखकर पापा बोले : "अरे बच्चो गुड मोर्निंग, कैसी रही तुम्हारी रात, नींद तो ठीक से आई ना ?"
मैं : "गुड मोर्निंग पापा , हाँ हमें बहुत बढ़िया नींद आई, मैं तो घोड़े बेच कर सोया"
ऋतू : "और मैं भी, मुझे तो सोने के बाद पता ही नहीं चला की मैं हूँ कहा.."
नेहा भी कहाँ पीछे रहने वाली थी :" और मेरा तो अभी भी उठने को मन नहीं कर रहा था, कितनी प्यारी नींद आई कल रात" वो हलके से मुस्कुरायी और हम दोनों की तरफ देखकर एक आँख मार दी.
मम्मी : "अरे इन पहाड़ो पर ऐसी ही नींद आती है...अभी तो पुरे दस दिन पड़े है, अपनी नींद का पूरा मजा लो बच्चों..हा हा .."
मैं : "मम्मी-पापा, हमें इस बात की बहुत ख़ुशी है की इस बार आप लोग हमें भी अपने साथ लाये, थैंक्स ए लोट."
पापा : "यू आर वेल्कम बेटा, चलो अब जल्दी से नहा धो लो और फिर हमें बाहर जाकर सभी लोगो के साथ नाश्ता करना है"
हम सभी नहाने लगे, मेरी पेनी नजरें ये बात पता करने की कोशिश कर रही थी की ये दोनों जोड़े कल रात वाली बात का किसी भी तरह से जिक्र कर रहे है या नहीं...पर वो सब अपने में मस्त थे, उन्होंने कोई भी ऐसा इशारा नहीं किया.
तैयार होने के बाद हम सभी बाहर आ गए और नाश्ता किया, हम तीनो एक कोने में जाकर टेबल पर बैठ गए, वहां हमारी उम्र के और भी बच्चे थे, बात करने से पता चला की वो सभी भी पहली बार इस जगह पर आये हैं, और ये भी की यहाँ की असोसियेशन ने बच्चे लाने की छूट पहली बार ही दी है. हम तीनो ने नाश्ता किया और वहीँ टहलने लगे, ऋतू ने नेहा को गर्भनिरोधक गोलियां दी और उन्हें लेने का तरीका भी बताया. वो भी ये गोलियां पिछले 15 दिनों से ले रही थी, और वो जानती थी की नेहा को भी अब इनकी जरुरत है.
नेहा गोली लेने वापिस अपने रूम में चली गयी, मैं और ऋतू थोड़ी और आगे चल दिए, पहाड़ी इलाका होने की वजह से काफी घनी झाड़ियाँ थी थोड़ी उचाई पर, ऋतू ने कहा की चलो वहां चलते हैं, हम २० मिनट की चढाई के बाद वहां पहुंचे और एक बड़ी सी चट्टान पर पहुँच कर बैठ गए, चट्टान के दूसरी तरफ गहरी खायी थी, वहां का प्राकर्तिक नजारा देखकर मैं मंत्रमुग्ध सा हो गया और अपने साथ लाये डिजिकैम से हसीं वादियों के फोटो लेने लगा.
"जरा इस नज़ारे की भी फोटो ले लो" मेरे पीछे से ऋतू की मीठी आवाज आई
मैंने पीछे मुड कर देखा तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी .....ऋतू उस बड़ी सी चट्टान पर मादरजात नंगी लेटी थी. उसने कब अपने कपडे उतारे और यहाँ क्यों उतारे मेरी समझ में कुछ नहीं आया...उसने अपनी एक ऊँगली अपनी चूत में डाली और अपना रस खुद ही चूसते हुए मुझे फिर बोली "कैसा लगा ये नजारा....?"
"ये क्या पागलपन है ऋतू, कोई आ जाएगा, यहाँ ये सब करना ठीक नहीं है...." पर मेरा लंड ये सब तर्क नहीं मान रहा था, वो तो अंगड़ाई लेकर चल दिया अपने पुरे साइज़ में आने के लिए.
ऋतू : "कोई नहीं आएगा यहाँ...हम काफी ऊपर हैं अगर कोई आएगा भी तो दूर से आता हुआ दिख जाएगा...और अगर आ भी गया तो उन्हें कोनसा मालुम चलेगा की हम दोनों भाई बहन है, मुझे हमेशा से ये इच्छा थी की मैं खुले में सेक्स के मजे लूं, आज मौका भी है और दस्तूर भी"
मैंने उसकी बाते ध्यान से सुनी, अब मेरे ना कहने का कोई सवाल ही नहीं था, मैंने बिजली की तेजी से अपने कपडे उतारे और नंगा हो गया, मेरा खड़ा हुआ लंड देखकर उसकी नजर काफी खुन्कार हो गयी और उसकी जीभ लपलपाने लगी मेरा लंड अपने मुंह में लेने के लिए..
मैंने अपना कैमरा उठाया और उसकी तरफ देखा, वो समझ गयी और उसने चट्टान पर लेटे-२ एक सेक्सी पोस लिया और मैंने उसकी फोटो खींच ली, बड़ी सेक्सी तस्वीर आई थी, फिर उसने अपनी टाँगे चोडी करी और अपनी उँगलियों से अपनी चूत के कपाट खोले, मैंने झट से उसका वो पोस कैमरे में कैद कर लिया, फिर तो तरह-२ से उसने तस्वीरे खिंचवाई. उसकी रस टपकाती चूत से साफ़ पता चल रहा था की वो अब काफी उत्तेजित हो चुकी थी, मेरा लंड भी अब दर्द कर रहा था, मैं आगे बड़ा और अपना लम्बा बम्बू उसके मुंह में ठूस दिया....
"ले भेन की लोड़ी...चूस अपने भाई का लंड...साली हरामजादी....कुतिया....चूस मेरे लंड को....आज मैं तेरी चूत का ऐसा हाल करूँगा की अपनी फटी हुई चूत लेकर तो पुरे शहर में घुमती फिरेगी...आआआआआअह्ह्ह्ह" उसने मेरी गन्दी गालियों से उत्तेजित होते हुए मेरे लंड को किसी भूखी कुतिया की तरह लपका और काट खाया.
उस ठंडी चट्टान पर मैंने अपने हिप्स टिका दिए और वो अपने चूचो के बल मेरे पीछे से होती हुई मेरे लंड को चूस रही थी, मैंने अपना हाथ पीछे करके उसकी गांड में एक ऊँगली डाल दी....
आआआआआआआअह्ह्ह.म्म्म्मम्म्म्मम्म .उसने रसीली आवाज निकाली, ठंडी हवा के झोंको ने माहोल को और हसीं बना दिया था. मुझे भी इस खुले आसमान के नीचे नंगे खड़े होकर अपना लंड चुस्वाने में मजा आ रहा था.
ऋतू काफी तेजी से मेरे लंड को चूस रही थी, चुसे भी क्यों न, आज उसकी एक सेक्रेट फंतासी जो पूरी हो रही थी.
साआआआआले भेन्चोद.....हरामी कुत्ते.....अपनी बहन को तुने अपने लम्बे लंड का दीवाना बना दिया है....मादरचोद...जी करता है तेरे लंड को खा जाऊं ....आज में तेरा सारा रस पी जाउंगी...साले गांडू...जब से तुने मेरी गांड मारी है, उसमे खुजली हो रही है....भेन के लोडे...आज फिर से मेरी गांड मार...."
मैंने उसे गुडिया की तरह उठाया और अपना लंड उसकी दहकती हुई भट्टी जैसी गांड में पेल दिया.....
आआआआय्य्य्यीईई .......आआआआअह्ह्ह ..........
उसकी चीख पूरी वादियों में गूँज गयी, मैंने उसे चुप करने के लिए अपने होंठ उसके मुंह से चिपका दिए.
आज मुझे भी गाली देने और सुनने में काफी मजा आ रहा था, आज तक ज्यादातर हमने चुपचाप सेक्स किया था, घरवालों को आवाज न सुनाई दे जाए इस डर से, पर यहाँ ऐसी कोई परेशानी नहीं थी इसलिए हम दोनों काफी जोर से सिस्कारियां भी ले रहे थे और एक दुसरे को गन्दी-२ गालियाँ भी दे रहे थे.
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