RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
ले साली कुतिया...हरामजादी...मेरे लंड से चुदवाने के बाद अब तेरी नजर अपने बाप के मोटे लंड पर है....मैं सब जानता हूँ...तू अपनी रसीली चूत में अब अपने बाप का लंड लेना चाहती है...छिनाल.....और उसके बाद चाचू से भी चुदवायेगी...है ना.....और फिर वापिस शहर जाकर मेरे सभी दोस्तों से भी जिनसे अभी तक तुने अपनी चूत ही चटवाई है ...बोल रंडी..."
"हाँ हाँ.....चुद्वुंगी अपने बाप के मोटे लंड से और अपने चाचू के काले सांप से...साले कुत्ते.....तू भी तो अपनी माँ की चूचियां चुसना चाहता है और अपने मुंह से उनकी चूत चाटना चाहता है ....और चाची मिल गयी तो उसकी चूत के परखच्चे उदा देगा तू अपने इस डंडे जैसे लंड से..साला भडवा...अपनी बहन को पूरी दुनिया से चुदवाने की बात करता है...तू मेरे लिए लंड का इंतजाम करता जा और मैं चुदवा-२ कर तेरे लिए पैसो का अम्बार लगा दूंगी..."
ये सब बातें हमारे मुंह से कैसे निकल रही थी हमें भी मालुम नहीं था, पर ये जरूर मालूम था की इन सबसे चुदाई का मजा दुगुना हो गया था.
मेरा लंड अब किसी रेल इंजीन की तरह उसकी कसावदार गांड को खोलने में लगा हुआ था, उसका एक हाथ अपनी चूत मसल रहा था, मेरे दोनों हाथ उसके गोल चूचो पर थे और मैं ऋतू के निप्प्ल्स पर अपने अंगूठे और ऊँगली का दबाव बनाये उन्हें पूरी तरह दबा रहा था.
उसके चुतड हवा में लटके हुए थे और पीठ कठोर चट्टान पर, मैं जमीन पर खड़ा उसकी टांगो को पकडे धक्के लगा रहा था.
"ले चुद साली...बड़ा शोंक है ना खुले में चुदने का..आज अपनी गांड में मेरा लंड ले और मजे कर कुतिया..." मैंने हाँफते हुए कहा.
"मेरा बस चले तो मैं पूरी जिंदगी तेरे लंड को अपनी चूत या गांड में लिए पड़ी रहूँ इन पहाड़ियों पर...चोद साले...मार मेरी गांड...फाड़ दे अपनी बहन की गांड आज अपने मुसल जैसे लोडे से....मार कुत्ते.....भेन के लोडे.....चोद मेरी गांड को...आआआआआआआआअह्ह्ह्ह .. हयीईईईईईईईई .......आआअह्ह्ह्ह.......
उसकी चूत में से रस की धार बह निकली....उसका रस बह कर मेरे लंड को गीला कर रहा था, उसके गीलेपन से और चिकनाहट आ गयी और मैंने भी अपनी स्पीड तेज कर दी.....
ले छिनाल......आआआआआआआआह......ले मेरा रस अपनी मोटी गांड में..... आआह्ह्ह......हुन्न्न्नन्न्न्न आआआआआआ,,,,... मेरे मुंह से अजीब तरह की हुंकार निकल रही थी..
मेरा लंड उसकी गांड में काफी देर तक होली खेलता रहा और फिर मैं उसकी छातियों पर अपना सर टिका कर हांफने लगा.उसने मेरे सर पर अपना हाथ रखा और होले-२ मुझे सहलाने लगी....
मेरा लंड फिसल कर बाहर आ गया.
मैंने नीचे देखा तो उसकी गांड में से मेरा रस बहकर चट्टान पर गिर रहा था....उसकी चूत में से भी काफी पानी निकला था, ऐसा लग रहा था की वहां किसी ने एक कप पानी डाला हो...इतनी गीली जगह हो गयी थी.
ऋतू उठी और मेरे लंड को चूस कर साफ़ कर दिया, फिर अपनी गांड से बह रहे मेरे रस को इकठ्ठा किया और उसे भी चाट गयी....मेरी हैरानी की सीमा न रही जब उसने वहां चट्टान पर गिरे मेरे वीर्य पर भी अपनी जीभ रख दी और उसे भी चाटने लगी..और बोली "ये तो मेरा टोनिक है.." और मुझे एक आँख मार दी.
उसे चट्टान से रस चाटते देखकर मेरे मुंह से अनायास ही निकला " साली कुतिया..." और हम दोनों की हंसी निकल गयी.
फिर हम दोनों ने जल्दी से अपने कपडे पहने और नीचे की तरफ चल दिए.
हम दोनों नीचे पहुंचे और वापिस टेबल पर आ कर बैठ गए और भीड़ का हिस्सा बन गए, किसी को भी मालुम नहीं चला की हम दोनों कहाँ थे और हमने क्या किया.
टेबल पर मैंने देखा की दो लडकियां बैठी है, एक ही उम्र की... वो शायद जुड़वाँ बहने थी, क्योंकि उनका चेहरा काफी हद तक एक दुसरे से मिलता था, ऋतू ने उनसे बात करनी शुरू की.
ऋतू : "हाय मेरा नाम ऋतू है..और ये है मेरा भाई अशोक"
"हाय ऋतू, मेरा नाम मोनी है और ये मेरी जुड़वाँ बहिन सोनी" एक लड़की ने बोला.
वो दोनों बातें कर रहे थे और मैं अपनी आँखों से उन्हें चोदने में...मेरा मतलब है तोलने में लग गया..दोनों ने जींस और टी शर्ट पहन रखी थी, दोनों काफी गोरी चिट्टी थीं, एक सामान मोटी-मोटी छातियाँ, पतली कमर, फैले हुए कुल्हे और स्किन टाईट जींस से उभरती उनकी मोटी-२ टांगे. वो देखने से किसी बड़े घर की लग रही थी. सोनी जो चुपचाप बैठी हुई थी, मेरी तरफ देखकर मुस्कुरा दी, मैंने भी उसे स्माईल पास की.
फिर हमने काफी देर तक एक दुसरे से बात की, उन्होंने बताया की वो भी पहली बार यहाँ आई हैं, उनके पापा काफी बड़े बिज़नेसमैन है, उनका कॉटेज सामने ही था, मैंने कुछ सोचकर उनसे कहा चलो हमें भी अपना रूम दिखाओ. और हम उनके साथ चल पड़े, अन्दर जाकर देखा तो वो बिलकुल हमारे कॉटेज जैसा ही था, मैंने शीशे के पास जाकर देखा और उसे थोडा हिलाया, दूसरी तरफ का नजारा मेरे सामने था, मैं समझ गया की यहाँ हर कॉटेज ऐसे ही बना हुआ है, जिसमे शीशा हटाने से दुसरे रूम में देख सकते हैं.
हमने थोड़ी देर बातें करी और वापिस लौट आये. मेरे दिमाग में अलग -२ तरह के विचार आ रहे थे.
शाम को हम सभी बच्चो के लिए रंगा-रंग कार्यक्रम था, हम सब वहां जाकर बैठ गए, थोड़ी देर में ही मैंने पेशाब का बहाना बनाया और वहां से बाहर आ गया, और पास के ही एक कॉटेज में जहाँ से रौशनी आ रही थी, चुपके से घुस गया. ड्राविंग रूम में कोई नहीं था, एक बेडरूम में से रौशनी आ रही थी, मैं उसके साथ वाले रूम में घुस गया, वहां कोई नहीं था, मैंने जल्दी से दिवार पर लगे शीशे को हटाया और दूसरी तरफ देखा, मेरा अंदाजा सही था, वहां भी ओर्गी चल रही थी, २ औरतें और २ मर्द एक ही पलंग पर चुदाई समारोह चला रहे थे.
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