RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
मेरा तो लोडा बेठने का नाम ही नहीं ले रहा था ...सोनिया और अनीता को देखकर.
मम्मी अनीता को लेकर किचन में चली गयी और सोनिया झाड़ू लेकर कमरे में सफाई करने लगी.मैं सोफे पर बैठा हुआ उसके भरे हुए शरीर को देखकर अपनी आँखें सेक रहा था, बैठकर सफाई करने की वजह से उसकी कसी हुई पिंडलियाँ मेरी आँखों के सामने थी,
ये काम करने वाली लड़कियां और औरतें कितनी गठीली होती है, ये तो बॉडी बिल्डिंग की प्रतियोगिता में भी हिस्सा ले सकती है और जीत भी जायेंगी.. वो झाड़ू लगाती हुई मेरे पास तक आई और मेरी तरफ देखकर बोली "बाबु...अपना पैर उठाना जरा..."
मैंने चोंककर उसे देखा और अपने दोनों पैर उठा दिए और वो मेरे सामने झुक कर सोफे के नीचे तक झाड़ू घुमाती हुई सफाई करने लगी, मेरा मन कर रहा था की अभी अपना लंड बाहर निकलूं और घुसेड दूँ उसके मुंह में..
मैंने उसकी तरफ देखा तो पाया की उसके ब्लाउस से झांकते उसके उरोज़ बाहर की तरफ छलांग मारने को तैयार है, मेरे तो मुंह में पानी आ गया, बड़ी मुश्किल से मैंने अपने हाथों को काबू में किया, वो बड़ी बेफिक्र होकर सफाई कर रही थी, उसने मेरी तरफ देखा भी नहीं.
मेरा लंड अपने पुरे शबाब में आकर मेरी पेंट में खड़ा हो चूका था, और उसकी वजह से मैं अभी खड़ा भी नहीं हो सकता था, तो मैंने वहीँ बैठे रहना उचित समझा. थोड़ी ही देर में जब वो टीवी के पीछे की तरफ का हिस्सा साफ़ कर रही थी तो उसकी फैली हुई गांड देखकर तो मैं उसका दीवाना सा हो गया, मैंने इतनी दिलकश गांड आज तक नहीं देखी थी.
जैसे आम का रस भरा हुआ हो उसकी गांड में, अब तो मेरे मन में उसको पाने के प्लान बनने लगे थे. वो सफाई करती हुई दुसरे कमरे में चली गयी और मैं भागकर ऊपर की तरफ चल दिया, ऋतू के कमरे से उसकी चीखों की आवाज आ रही थी, मैंने दरवाजा खोला तो पाया की वो घोड़ी बनी हुई अयान से अपनी गांड मरवा रही है...ऋतू ने जैसे ही मुझे देखा तो बोली "भाई .....आओ न....तुम भी...अह्ह्ह्हह्ह मेरी चूत में अपना लंड डाल दो...नाआअ...."
मेरा मन अब उस नौकरानी की तरफ ज्यादा था सो मैंने उसे मना करते हुए कहा..."अभी नहीं ऋतू...और नीचे नयी नौकरानी आई है...तुम अपनी चीखे थोडा धीरे मारो जरा..नहीं तो वो ना जाने क्या सोचेगी...." और ये कहते हुए मैं ऊपर की तरफ चल दिया.
ऊपर छत्त पर जाकर मैंने चारों तरफ देखा और फिर जल्दी से अपनी पेंट को खोलकर अपने लंड को जींस में सही तरह से एडजस्ट किया. और तभी मेरी नजर साथ वाले प्लाट पर पड़ी..जहाँ पर काम चल रहा था, और मैं किनारे पर जाकर नीचे वाली झुग्गी की तरफ देखने लगा जहाँ उन काम वालों ने नहाने के लिए बाथरूम बनाये हुए थे...
और मेरी किस्मत अच्छी थी की वहां वही लड़की जिसे मैंने दो दिन पहले भी नहाते हुए देखा था, नहा रही थी, पर आज वो अकेली नहीं थी, उसके साथ वहीँ पर काम करने वाला एक अधेड़ उम्र का आदमी भी था, जो शायद उसके बाप या दादा की उम्र का था, मैं ये देखकर चोंक गया पर फिर मजे लेने के लिए उन्हें गौर से देखने लगा और मैंने अपना लंड भी बाहर निकाल लिया और उसे आगे पीछे करने लगा उन्हें देखकर. वो लड़की घबरा रही थी और बार बार उचक कर बाहर देख रही थी की कोई आ तो नहीं रहा उस तरफ..पर उनकी झुग्गी सबसे हटकर थी और काफी दूर भी, बाकी के मजदूर दूसरी तरफ काम कर रहे थे,
और शायद बुड्ढ़े को मौका मिला होगा इस नयी कच्ची कलि के रसीले योवन को चूसने का तो वो आ धमका होगा अन्दर ही..जहाँ वो लड़की नंगी होकर नहा रही थी. उस लड़की का शरीर बिलकुल काले रंग का था और उसकी छाती पर लगे उभार लगभग चीकू जितने ही थे और उनपर लगे निप्पल्स अंगूर के दानो जैसे..
बुड्ढे ने उन अंगूरों को चूसा और उसकी चूत के अन्दर अपनी ऊँगली डालकर उसे अपनी ताकतवर बाजुओं से ऊपर उठा लिया...वो मचल रही थी उसकी बाँहों में, और फिर उसने उस बुड्ढे के मुंह में अपनी जीभ डालकर उसे चूमना शुरू कर दिया, बुड्ढे का लंड काफी मोटा था, पता नहीं ये लड़की उसे अन्दर ले भी पाएगी या नहीं, और जैसा मैंने सोचा था वैसा ही हुआ, जैसे ही बुड्ढे ने उसकी चूत में अपना लंड डाला वो रोने लगी, पर उसने कोई परवाह नहीं की और उसकी कमर पकड़कर अपना पूरा लंड डाल दिया..
वो चीखती रही और बुड्ढा अपना काम करता रहा, और जल्दी ही वो लड़की भी मजे ले लेकर अपनी चूत से उसके लंड को चुदवाने लगी... और फिर बुड्ढे ने अपना रस उसकी कुंवारी चूत में ही डाल दिया..और फिर लंड को पानी से साफ़ करके, एक धोती पहनकर वो बाहर चला गया.
अब तक मेरा लंड भी झड़ने के काफी करीब था, और जैसे ही मैंने उस लड़की को अपनी चूत के अन्दर से ऊँगली डालकर उसे चाटते हुए देखा तो मेरे लंड से गाड़े वीर्य की पिचकारियाँ निकल कर दीवार पर गिरने लगी...
और मैं दीवार का सहारा लेकर हांफने लगा, मैंने अपना लंड अन्दर किया ही था की मेरे पीछे से आवाज आई "अरे बाबु...तुम ऊपर क्या कर रहे हो.."
मैंने मूड कर देखा तो सोनी खड़ी थी वहां अपने हाथ में कपडे की बाल्टी लिए, मशीन से कपडे निकाल कर वो उन्हें ऊपर लायी थी धुप में सुखाने के लिए.
मैंने उसे कहा "कुछ नहीं...मैं बस ऐसे ही आया था..यहाँ "
वो मुस्कुरा दी और कपडे उछाल कर तार पर डालने लगी.
उसने अपनी साडी को अपने पेट से लपेट रखा था, क्या सपाट पेट था उसका, अगर थोड़ी देर पहले आई होती न छत्त पर तो मैं उसको वहीँ पकड़ कर चोद देता . पर मैं इसके मजे धीरे-२ लेना चाहता था, और उसकी मर्जी से ही..वो बोली " बाबु...आपने हमारा नुकसान करा दिया आज....
मैं : "मैंने तुम्हारा नुकसान कराया...कैसे...? "
सोनिया : "वो हमारी पगार को आपने 3500 कर दी...मैंने कहा था न की मुझे पहली जगह पर 5000 मिलते थे, जहाँ मैं अपनी माँ के साथ काम करती थी."
मैं : "अरे..इसमें निराश होने वाली बात नहीं है...अगर तुम चाहती हो तो मैं तुम्हे अलग से अपनी तरफ से 2000 और दे दूंगा..." और ये कहकर मैंने अपने पर्स से 2000 निकाल कर उसकी तरफ बड़ा दिए.
छुट्टियों से पहले , ऋतू के साथ मिलकर, काफी पैसे जमा कर चूका था मैं, इसलिए मेरी जेब में रुपयों की कोई कमी नहीं रहती थी अब. उसकी आँखों में चमक आ गयी उन्हें देखकर, वो बोली "पर आप ऐसा क्यों करेंगे...अपनी मम्मी से क्या बोलेंगे..."
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