Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
12-13-2020, 02:58 PM,
RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
अनीता की आवाज सुनते ही सोनिया झाड़ू मारने लगी और मैं मोनिटर बंद करके बेड पर बैठ गया.
वो अन्दर आई और सोनी से बोली "दीदी..नीचे चलो..खाना तैयार है...और आशु बाबु..आप भी नीचे चलो, खाना खा लो."
मेरा तो मन कर रहा था की इस कुतिया को ही खा लू इस समय, साली ने सारा मूड खराब कर दिया.
मैंने उसे कहा, "ठीक है, तुम जाओ..मैं थोड़ी देर में आता हूँ..." मेरी बात से निराशा साफ़ झलक रही थी. और मुझे लगा की मेरी बात सुनकर शायद अनीता को कुछ शक सा हो गया है, क्योंकि सोनी बिना कुछ बोले उससे आँख मिलाये बिना , काम करती जा रही थी.
खेर, मेरी बात सुनकर, अनीता नीचे चली गयी, और मैं जल्दी से सोनी की तरफ मुड़ा और उसकी बाहें पकड़कर उसे दीवार से सटा दिया. उसके दोनों हाथ मैंने उसके सर से ऊपर करके दीवार से चिपका दिए, जिसकी वजह से उसके उभार और ज्यादा बाहर निकल कर बाहर की और आ गए.
"नहीं...बाबू...अभी नहीं...कोई आ जाएगा...छोड़ दो मुझे...सब नीचे बुला रहे है....मत करो न....." वो दीवार से चिपकी हुई कसमसा रही थी.
मैंने गौर से पहली बार उसे देखा, उसका चेहरा मेरे बिलकुल सामने था, गहरा रंग, काली आँखें, मोटे होंठ, पतली सुराहीदार गर्दन जिसपर उसकी पतली नसें चमक रही थी, पसीने की वजह से.. और उसके शरीर से उठती एक अजीब तरह की महक मुझे मदहोश सा किये जा रही थी, मैं जानता था की मैं अभी उसे चोद नहीं सकता, पर पहले ही दिन मैंने उसे अपना लंड दिखा दिया और वो चूसने को भी तैयार थी,
ये मेरे लिए काफी अच्छे संकेत थे, अभी समय कम था इसलिए कुछ ज्यादा नहीं कर सकता था, पर मैं उसे चखना तो चाहता था, इसलिए मैंने अपने होंठ आगे बढाये..
उसकी गरम साँसे मेरे चेहरे से टकरा रही थी, वो मना तो कर रही थी, पर अपने शरीर से कुछ ज्यादा विरोध नहीं कर रही थी, शायद वो भी चाहती थी की मैं उसे मजे दूं..जैसे मैं चाहता था की मैं उसके मजे लूं.
उसकी आँखें अभी तक लाल थी, मैंने उससे कहा "चुप रहो...कोई नहीं आएगा...बस एक बार मुझे चूम लेने दो...तुम्हारे ये शरबती होंठ..." और ये कहते हुए मैंने अपने होंठ आगे किये...और उसके ठन्डे होंठों को हलके से चूमा. वो थरथराने लगी,
मैंने सोचा, अभी समय है, इसको चोद ही देता हूँ, पर न जाने क्यों, में उसके मजे धीरे-२ लेना चाहता था, इसलिए अपना इरादा बदल दिया और उसके होंठों पर अपने होंठों का शिकंजा कस लिया और उन्हें चूसने लगा.
सही में, शरबत जैसे ही थे उसके होंठ, बड़े ही मीठे, मुलायम और अनछुए से...मैंने अपनी जीभ निकाल कर उसके मुंह में डाल दी, वो समझ नहीं पायी की वो उसका क्या करे,
और फिर मैंने जब उसकी जीभ कुरेद कर बाहर निकली और उसे चूसने लगा तो वो समझ गयी और अगली बार जैसे ही मैंने जीभ अन्दर डाली, उसने उसकी मसाज करनी शुरू कर दी अपने होंठों से.
मेरी चौड़ी छाती उसके उभारों से टकरा रही थी, मैंने उसके हाथ छोड दिए और हाथ सीधे उसके मुम्मो पर जमा दिए, अन्दर उसने ब्रा नहीं पहनी हुई थी, बल्कि पतली सी शमीज / बनियान जैसी कोई चीज थी, उसके गोल मटोल गुब्बारे मेरे हाथों में ऐसे लग रहे थे जैसे उनमे पानी भरा हो और मेरे ज्यादा दबाने से वो फट ना जाए, मैंने उन्हें हलके-२ से दबाना शुरू किया तो उसके होंठों का गीलापन बढता चला गया और उनसे एक अजीब तरह की मिठास निकलने लगी, मैंने उन्हें और जोर से चुसना शुरू कर दिया..
"ऊऊओह बाबू......क्या कर रहे हूऊऊ........अह्ह्ह्हह्ह ..."
सोनिया पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी, उसने अपनी बाँहों से मेरी कमर को जकड़ा हुआ था, और मेरी पीठ पर अपने नन्हे हाथ घुमा रही थी, मैंने हाथ नीचे करे और उसकी मोरनी जैसी फैली हुई गांड को अपने हाथ में पकड़ा और उसे सहलाना शुरू कर दिया, और जैसे ही मैंने उसकी चूत पर हाथ रखा तो उसका पूरा शरीर कांपा और उसने अपने सूट के अन्दर ही पानी छोड दिया. मेरा पूरा हाथ गीला हो गया, मैंने उसको सुंघा तो मैं समझ गया की वो नीचे से भी उतनी ही मीठी है जितनी ऊपर से.
वो गहरी साँसे ले रही थी, झड़ने के बाद. उसे बड़ी शर्म भी आ रही थी, वो बोली "सोरी....वो मेरा...पेशाब...निकल गया...." नादान कही की. मैंने उसे समझाया की ये तो उसका रस है जो मजे की वजह से निकला है...और उसे मर्द और औरत के झड़ने के बारे में बताया.. वो हैरानी से मेरी बातें सुनती रही, मुझे लग रहा था की अब ये मेरा कर्त्तव्य है की इस भोली भाली सी लड़की को सेक्स का सारा ज्ञान मैं ही दूं...
मैंने उसे बाथरूम में जाकर साफ होने को कहा और मैं नीचे चला गया. खाना खाने.
हम सब ने बैठकर खाना खाया, अनीता सच में काफी स्वादिष्ट खाना बनाती है, सभी उसकी तारीफ कर रहे थे, हमारे खाने के बाद उन दोनों बहनों ने भी किचन में जाकर खाना खाया.और फिर सभी लोग सुस्ताने के लिए (चुदाई के लिए) अपने-२ कमरे की तरफ चल दिए.
दीपा आंटी ने मुझे इशारे से अपने कमरे में चलने को कहा, पर मैंने उन्हें मना कर दिया, तो उन्होंने अपने बेटे को बुलाया और अन्दर चली गयी.
मेरा ध्यान तो सोनी की तरफ ही था, उसकी नजर जब भी मुझसे मिलती तो उसके होंठों पर एक मुस्कान आ जाती, उसे शायद बड़ा मजा आया था आज के खेल में.
मैं वहीँ बैठा टीवी देख रहा था, सोनी और अनीता किचन में बर्तन साफ़ कर रही थी, थोड़ी देर बाद मम्मी ने उससे कहा की कपडे सूख गए होंगे, ऊपर जाकर उन्हें उतार लाओ.
वो जैसे ही ऊपर गयी, मैं भी उसके पीछे - चल दिया.
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