RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
उसने अपनी गांड को अयान के मुंह पर घिसना शुरू कर दिया, एक बार तो लगा की ऋतू कहीं अपनी मोटे चूतड़ों में फंसा कर उसका दम ही न घोट दे..
अयान ने भी अपने मुंह के साथ साथ अपने लंड की स्पीड बड़ा दी और जल्द ही उसके लंड ने अन्नू की चूत में बीज देने शुरू कर दिए...
"अह्ह्ह्हह्ह.....बड़ा गर्म है रे तेरा पानी बाबु.....अह्ह्ह्हह्ह मजा आ गया...चूत तृप्त हो गयी रे......"
उसकी चूत के साथ -२ मैंने उसकी गांड को भी तृप्त करने के लिए, पीछे से सिंचाई करनी शुरू कर दी...और एक के बाद एक कई पिचकारियाँ वहां चला दी.... आनंद के मारे जब वो झड़ने लगी तो उसके मुंह से सिवाए सिस्कारियों के कुछ और न निकला.. "स्स्स्सस्स्स्स म्मम्मम्मम अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह"
हम सभी चुदाई के बाद खड़े हुए और मुस्कुराते हुए कपडे पहन कर नीचे आ गए,
नीचे आकर मम्मी ने मुझे कोने में ले जाकर सब कुछ उगलवा लिया, अब उनकी चूत में भी खुजली होने लगी थी,
वो भी चाहती थी की ये नयी नौकरानी उनकी चूत चाटे, मैंने उन्हें आश्वासन दिया की उनका ये काम मैं जल्दी ही करवा दूंगा. सोनिया ने अपनी बहन से पुछा की इतनी देर से वो कहाँ थी...??
तो मैंने उससे कहा की वो ऊपर स्टोर रूम की सफाई कर रही थी.
सोनिया : "पर साहब...ये काम तो मेरा था.......आप मुझे कह देते...."
मैंने अन्नू की तरफ अर्थपूर्ण दृष्टि से देखकर मुस्कुराते हुए कहा "हाँ...मुझे पता है...कल तुम कर देना वहां की सफाई..."
वो कुछ समझी नहीं पर अन्नू मेरी बात सुनकर मुस्कुरा दी...वो समझ चुकी थी की कल होली वाले दिन उसकी बहन की चुदाई तो अब होकर ही रहेगी..
शाम को खाना बनाकर, सफाई करके वो दोनों बहने वापिस चली गयी, और उस रात हम सभी जल्दी ही सो गए, क्योंकि अगले दिन होली जो थी,..
*****
सुबह ढोल की आवाज से मेरी नींद खुल गयी.
बाहर गली में होली का हुडदंग शुरू हो चूका था, मैंने उठा और बाकी सभी को भी उठाया,
मम्मी पहले से ही उठ चुकी थी और सभी के लिए नाश्ते में ब्रेड पकोड़े बनाने में लगी हुई थी, वो जानती थी की नहाना तो सभी को होली के बाद ही है. सभी ने होली के लिए पुराने कपडे पहन लिए और बाहर निकल कर गली के लोगों के साथ एक दुसरे को रंग लगाने लगे.
अन्दर आकर हम सभी ने नाश्ता किया, तभी फ़ोन की घंटी बजी, पापा ने फ़ोन उठाया ,
वो फ़ोन अजय चाचू का था, उन्होंने एक दुसरे को होली के लिए विश किया, फिर आरती चाची ने भी, अजय चाचू के साथ हमारे दादाजी, विशम्भर, भी रहते हैं, उनकी उम्र लगभग 70 साल की है, उनकी पुश्तेनी जमीन है, इंदोर के पास, होशंगाबाद में, जहाँ की खेतीबारी वो अभी तक देखते हैं, उन्होंने भी बारी-२ से सभी को विश किया.
मम्मी : "डेडी जी...कितना टाइम हो गया है...आप को यहाँ आये हुए...आपको छोटी बहु की तीमारदारी काफी पसंद आ गयी है ....मेरी तो जैसे आपको याद ही नहीं आती.."
दादाजी : "अरे...बहु ऐसी बात नहीं है...वो क्या है न...फसल का टाइम है...होली के बाद कटाई भी करवानी है, उसके बाद मैं पक्का आऊंगा..अजय तो मुझे भी अपने साथ केम्प पर चलने को कह रहा था, पर फसल की वजह से जा नहीं पाया, मैं वादा करता हूँ की जल्दी ही आऊंगा दिल्ली....खुश... !!
और आशु और ऋतू कैसे हैं...उन्हें मेरा प्यार देना...खुश रहो सब...होली मुबारक हो सभी को..." और थोड़ी देर और बात करने के बाद उन्होंने फ़ोन रख दिया..
मम्मी ने दादाजी के आने के बारे में सभी को बताया, ऋतू ये बात सुनकर काफी खुश हुई, वो उनकी लाडली जो थी.
तभी बेल बजी और मैं दरवाजा खोलने गया..सामने अनीता और सोनिया खड़ी थी, पूरी तरह से रंग में नहाई हुई..
मैंने रंगों में भीगी हुई दोनों बहनों को ऊपर से नीचे की तरफ देखा, लगता था की वो अपने मोहल्ले में काफी होली खेलकर और रास्ते भर रंगों में नहाते हुए आई थी. सोनिया ने सफ़ेद रंग का सूट पहना हुआ था और अन्नू ने जींस और टी शर्ट,
रंगे होने की वजह से उसकी टी शर्ट का रंग सही तरह से पता नहीं चल पा रहा था..पर दोनों बड़ी मस्त लग रही थी उस समय. अन्नू ने मुझे देखकर आँख मार दी और सोनी शरमाते हुए बोली "होली मुबारक हो बाबु..." और दोनों अन्दर आ गयी, मैंने पीछे से अन्नू के गोल चूतडों पर हाथ मारकर उसकी गर्मी महसूस करने की कोशिश की.
अन्दर आकर उन्होंने सभी को होली विश किया और मम्मी ने उन दोनों को भी ब्रेड पकोड़े और गुजिया खाने को दी, उसके बाद अन्नू किचन समेटने में और सोनी घर की सफाई में लग गयी.
मैंने सोनी को धीरे से कहा "अरे...तुम सफाई क्यों कर रही हो...अभी तो होली शुरू हुई है...अभी काफी गन्दगी फेलेगी, तुम्हारी सारी मेहनत खराब हो जायेगी...बाद में करना ये सब..."
उसने मेरी बात मानकर झाड़ू रख दिया, मैंने ऋतू, सुरभि और अयान को अपनी तरफ बुलाया और इशारे से सोनी को रंग लगाने को कहा, वो मेरी बात समझ गए और अगले ही पल ऋतू और सुरभि, जो सुबह से ही बड़े अच्छे मूड में थी, ने दोनों तरफ से बेचारी सोनी को घेर लिया और उसके ऊपर रंग लगाने लगे..
वो बचने के लिए इधर उधर भागने लगी..और अंत में मेरे पीछे छुपकर खड़ी हो गयी और पीछे से मेरा कुरता पकड़कर बोली "मुझे बचा लो बाबु...मैं पहले से ही काफी भीग चुकी हूँ....मेरी तबीयत खराब हो जायेगी आज...बचा लो न..."
मैंने रोबीली आवाज में सभी को रोकते हुए कहा "रुक जाओ....क्या कर रहे हो...किसी से जबरदस्ती नहीं करते..."
और फिर उसकी तरफ मुंह करके कहा "पर होली में तो ये सब चलता है न...." और ये कहते ही मैंने अपने हाथों में छुपा हुआ पानी के रंग का डब्बा उसके सर के ऊपर डाल दिया,
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