RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
साथ खड़ी हुई सोनी की चाय तो कब की बन चुकी थी, वो अब हमारे बीच चल रहे खेल को देखकर गर्म होने लगी और उसकी बनायीं हुई चाय ठंडी. मौसी ने उसे बेसब्री से हम दोनों की तरफ देखते हुए पाया और फिर जब उनकी नजर उसकी ताजा चुदी चूत पर गयी तो उनके मुंह में भी पानी आ गया, अभी थोड़ी देर पहले वो गर्म चाय पीना चाह रही थी और अब वो गर्म चूत का स्वाद लेना चाहती थी..
उन्होंने सोनी को इशारे से अपनी तरफ बुलाया , और जैसे ही सोनी उनके पास गयी उन्होंने उसके होंठों को चुसना शुरू कर दिया.. वो घबरा गयी, थोड़ी देर पहले ही मौसी उसे गाली दे रही थी और अब प्यार कर रही है...पर मौसी के चूसने से उसकी चूत में से और गर्मी निकलने लगी तो उसे भी मजा आने लगा,
मौसी ने अपना हाथ नीचे करके उसकी चूत पर लगाया और ढेर सारा शहद इकठ्ठा करके उसे चाट लिया, बड़ा अच्छा स्वाद था सोनी की रसीली चूत का...
उन्होंने मुझे पीछे किया और सोनी को अपनी जगह पर स्लेब पर बिठाया, और उसकी टांगे चौडी करके उसकी चूत पर अपने होंठ टिका दिए...और फिर सर पीछे करके मुझे इशारे से उन्हें पीछे से चोदने को कहा...
मैंने उनकी मोटी गांड को थामा और अपना लंड उनकी चूत के रस में डुबोकर गिला किया, और फिर चूत के छेद पर उसे फिर से टीका कर एक झटका मारा, और मेरा लंड उनकी चूत के अन्दर सरकता चला गया.
"अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह अयीईईई ............जरा धीरे बेटा.....अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह " और फिर से उन्होंने अपना मुंह सोनी की चूत में डाल दिया और चूसने लगी वहां का रस. सोनी ने भी अपना सर पीछे करके मजे लेने शुरू कर दिए थे, उसकी ताज़ा चुदी चूत पर मौसी की जीभ ऐसे लग रही थी, जैसे कोई दूध में डुबोकर रुई लगा रहा हो..उसे काफी गुदगुदी भी हो रही थी और रोचक तरंगे भी उठ रही थी उसकी चूत के अन्दर से. उसने हिम्मत करके मौसी के सर को पकड़ा और उन्हें अपनी चूत पर घिसना शुरू कर दिया, जैसे गाजर को घिस रही हो हलवा बनाने के लिए. और हलवा तो बन ही रहा था उसकी चूत का, बाकी रही बात मिठास की तो वो उसकी चूत के अन्दर से अपने आप बाहर निकल रही थी.
मेरे लंड पर अब मौसी के रस की सफेदी दिखाई देने लगी थी, मैंने उनकी चूत में अपने लंड को तेजी से धकेलना शुरू कर दिया..
मेरे हर धक्के से वो भी आगे की और सरक जाती और उनके आगे लेटी हुई सोनी की चूत में उनकी जीभ थोडा और अन्दर चली जाती. कुल मिलकर हम सभी को काफी मजा आ रहा था.
बाहर से मम्मी की चीखों की आवाज तेज हो गयी, शायद वो झड़ने वाली थी..
"आह्ह्हह्ह्ह्ह हान्न और तेज चोदो मुझे,......अह्ह्ह्हह्ह डालो और अन्दर तक....अह्ह्ह....."और उनके साथ ही साथ हरीश अंकल के हुंकारने की आवाजें भी आने लगी, वो दोनों एक दुसरे के ऊपर झड़ चुके थे.
बाहर से अयान और ऋतू की चीखे तो बंद ही नहीं हो रही थी, ऋतू अब अयान के लंड के ऊपर बैठ कर उछाल रही थी , जिसकी वजह से वो शायद कई बार झड चुकी थी.
सोनी भी काफी देर से अपने अन्दर एक सेलाब सी लेकर बैठी थी, जैसे ही उसका सैलाब टूटा उसके गाड़े रस के पीछे -२ उसका पेशाब भी बाहर की और निकलने लगा, दीपा आंटी के लिए ये नया अनुभव था, उन्होंने थोड़ी देर तक तो उसके रस को अपने होंठों से चूसा पर जैसे ही कसेला सा पेशाब का स्वाद उनके मुंह में आया वो पीछे हो गयी,
उनके चेहरे पर सीधा सोनी की गर्म चूत से निकलते हुए प्रेशर की बोछार पड़ी और उनका पूरा चेहरा भीग गया, उन्होंने अपना चेहरा नीचे कर लिया और उनके सर के ऊपर से होती हुई सुनहरे रंग की पिचकारी उनकी पीठ को भिगोने लगी और फिर सीधा मेरे लंड के ऊपर गिरने लगी…
बड़ा ही अजीब सा दृश्य था, कोई अगर हमारी फोटो लेता तो सामने स्लेब पर लेटी हुई सोनी की चूत से निकलती पिचकारी, दीपा आंटी की पीठ के ऊपर से होती हुई मेरे लंड को भिगो रही थी जो उनकी चूत में था,
लंड को थोडा और गीलापन मिल गया और मैंने उनकी चौडी गांड को पकड़ कर उनकी चूत में और तेजी से धक्के मारने शुरू कर दिए.....
"आआआआअ अह्ह्ह अहह आआ आआ आआ आया आआ ......."
दीपा आंटी के मुंह से सिर्फ लम्बी आँहे ही निकल रही थी.. और अंत में मेरे लंड ने भी उनकी गीली चूत से निकलते हुए रस की गर्माहट पाकर झड़ना शुरू कर दिया और मैंने अपना सारा वीर्य उनकी चूत में दान कर दिया.
सभी झड़ने के बाद नोर्मल हुए और मैंने इशारा करके सोनी को अपने सामने बेठने को कहा, वो महारानी सिंहासन से नीचे उतरी और मेरे सामने बैठ कर मेरे लंड को साफ़ करने लगी,
और फिर मैंने उसका सर पकड़कर दीपा मौसी की चूत पर लगाया और उसने वहां से हम दोनों का मिला जुला रस चाटकर उनकी चूत को भी चकाचक बना दिया. फिर मैंने उसे वहां की सफाई करने को कहा और मैं दीपा आंटी के साथ बाहर आ गया.
ऋतू और अयान भी झड चुके थे, और एक दुसरे को साफ़ करने में लगे हुए थे 69 के पोज़ में
पापा और सुरभि दुसरे कमरे से बाहर निकले , और उनके पीछे-२ अन्नू भी, मैंने अन्नू को सभी के लिए दोबारा चाय बनाने को कहा और हम सभी वहीँ सोफे पर नंगे बैठकर टीवी देखने लगे.
शाम को खाना बनाने के बाद अन्नू ने अपने मोबाइल से किसी को फ़ोन किया, और फिर अपनी दीदी से बोली "बाबूजी तो अभी तक नहीं आये गाँव से...कह रहे हैं कल आयेंगे.."
उनके पिताजी होली के लिए अपने गाँव गए थे, पर किसी कारणवश वो वहीँ रह गए, ये सुनकर मैंने पापा की तरफ देखा, वो भी सोनी की चूत मारना चाहते थे, उन्होंने उन दोनों से कहा "तुम एक काम करो...तुम अकेले क्या करोगी घर पर रहकर ...आज रात यहीं रह जाओ, कल जब तुम्हारे बाबूजी आ जायेंगे तो चली जाना...."
उन दोनों ने एक दुसरे की तरफ देखा और फिर हंस कर उनसे कहा. "ठीक है...जैसा आप कहें...मालिक."
आज की रात कुछ ख़ास होने वाली थी, क्योंकि कल हरीश अंकल की फॅमिली भी चली जायेगी, इसलिए उनकी आखिरी रात थी हमारे घर पर आज, इसलिए पापा ने कहा की आज सभी ड्राविंग रूम में ही नीचे बिस्तर लगा कर एक साथ सोंयेगे...सभी को ये सुझाव पसंद आया और खाना खाने के बाद मैंने और अयान ने मिलकर डायनिंग टेबल और सोफा हटाया, और सुरभि और ऋतू ने नीचे बिस्तर लगाया..
सभी तो पहले से ही नंगे थे, पापा ने सोनी को अपने पास बुलाया और उसके मोटे और शानदार चुचे दबाने लगे.
अयान ने अन्नू को, हरीश अंकल ने सुरभि को, मैंने ऋतू और मम्मी को चोदना शुरू किया..
उस रात कोई नहीं सोया... सभी ने बारी-२ से सोनिया और अनीता की चूत मारी, और साथ ही साथ सुरभि, ऋतू, दीपा और मम्मी की भी. ठनके ने बाद हम सभी लगभग पांच बजे सोये, जब मेरी आँख खुली तो बारह बजने वाली थे, सभी लोग गहरी नींद में नंगे एक दुसरे में घुसे सो रहे थे.
हरीश अंकल की ट्रेन 4 बजे की थी , वो तैयारी करने लगे और दोबारा जल्दी मिलने का वादा करके वो रवाना हुए,
पर जाने से पहले सभी ने एक दुसरे की दोबारा चुदाई भी करी और उन्होंने हम सभी का धन्यवाद भी किया जिसकी वजह से वो सभी इस तरह के मजे ले पाए और आगे भी लेंगे..
अगले दिन सन्डे था, सभी ने आराम किया,
रात को ऋतू मेरे कमरे में ही सोयी.
अगले दिन से हमारे कॉलेज खुल रहे थे. मुझे काफी उत्सुक्तता थी क्योंकि मैं अब विशाल और सन्नी को आगे के मजे भी दिलाना चाहता था. और ऋतू की सहेलियों से भी पुरे मजे लेना चाहता था.
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