RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
अगले दिन मैं और पापा कार लेकर स्टेशन गए सुबह आठ बजे ,जब ट्रेन आई और दादाजी ट्रेन में से उतरे ..दादाजी को देखकर पापा आगे गए और उन्होंने और मैंने उनके पैर छुए .
दादाजी मुझे देखकर बड़े खुश हुए, वो बिलकुल नहीं बदले थे, वैसे ही खुशमिजाज, हट्टे-कट्टे, धोती कुरता पहने, मोटी और घनी मूंछे जिनमे सफ़ेद बाल ज्यादा थे और सर पर शानदार पगड़ी..
हम सभी वापिस आये, दरवाजा मम्मी ने खोला , मैं तो उनका बदला हुआ रूप देखकर हैरान रह गया. उन्होंने हरे रंग की साडी पहनी हुई थी, और अपने सर पर पल्लू डाला हुआ था, उन्होंने झुककर अपने ससुर के पैर छुए और दादाजी ने उन्हें सुखी रहने का आशीर्वाद दिया.
दादाजी :"अरे बहु, मैं तुम्हारे लिए खासतोर से गाँव का अचार लाया हूँ, ये ले..और ऋतू कहाँ है..?
मम्मी : "पिताजी, वो तो अभी स्कूल चली गयी, शाम तक आ जायेगी, आप थक गए होंगे, आप नहा धोकर आइये, मैं आपके लिए खाना लगाती हूँ.
और मम्मी ने सोनी को आवाज लगायी "सोनिईईई....ओ सोनिई ....पिताजी का सामान ले जा...और उनके लिए गर्म पानी लगा दे.."
सोनी मम्मी की आवाज सुनकर दौड़ी चली आई, वो ऊपर मेरे कमरे की सफाई कर रही थी, नीचे उतरते वक़्त उसके हिलते हुए मुम्मे देखकर मेरे मुंह और लंड में पानी आ गया, जैसे ही वो नीचे आई, दादाजी की नजर उसकी छाती पर पड़ी..
दादाजी : "कोन है ये...नौकरानी है क्या..."
मम्मी ने सहमते हुए हाँ में सर हिलाया.
दादाजी : "अरे..तेरे पास दुपट्टा नहीं है क्या...जवान लड़की है, और घर में बिना दुप्पट्टे के घूम रही है...कुछ सिखाया नहीं है तेरे घर वालों ने... और बहु, तुने भी कुछ नहीं कहा, तुझे तो इतनी समझ होनी चाहिए की इसे समझाए....."
और अगले दस मिनट तक दादाजी ने सोनी और मम्मी की तो जैसे ले ली.....वो बोलते जा रहे थे, और गाँव और शहर में कितना फर्क है, ये सब बताते जा रहे थे, मम्मी और सोनी अपना सर झुकाए उनकी बात सुन रहे थे, पापा तो कमरे से बाहर ही चले गए, उनकी इतनी हिम्मत नहीं थी की बीच में पड़कर अपनी शामत बुलाये..
वैसे मम्मी को तो दादाजी के बारे में मालुम ही था, पर सोनी को उनके सामने लाने से पहले वो उसे बताना भूल गयी की बिना चुन्नी के उनके सामने न जाना... सोनी ने पूरा लेक्चर सुनने के बाद अपना दुप्पट्टा उठाया और उन्हें अपने पर्वतों पर ओढ कर उन्हें दुनिया की नजरों से ओझल कर दिया..
दादाजी नहाने चले गए, और मम्मी ने गहरी सांस लेकर मेरी तरफ देखा और कहा "आशु बेटा...देखा, मैं इसी बात से डर रही थी...
मुझे मालुम था की ये कुछ ना कुछ नुक्स जरुर निकाल लेंगे...कुछ कर बेटा...तुने तो पहले भी कई बार ऐसे काम किये हैं, इन्हें भी तू ही संभाल सकता है.."
मैं उनका इशारा समझ रहा था. मैंने मजे लेने के लिए उनसे पूछा..
मैं : "यानी, मैं दादाजी को भी अपने चुदाई के खेल में शामिल कर लूँ, मतलब आप अपने ससुर से चुदाई करवाना चाहती हैं..हूँ.." मैंने मसखरी वाले लहजे में उनकी आँखों में आँखें डालकर कहा.
मेरी बात सुनकर किचन में खड़ी अन्नू, जो खाना बना रही थी, वो भी मुस्कुराने लगी.
मम्मी : "अब मैं क्या करूँ, जब से खुल कर लंड मिलने लगा है, इस तरह घुट कर जीना तो मैं भूल ही गयी हूँ,
अभी तो पिताजी लगभग पंद्रह दिन तक रहेंगे, उनके सामने हमेशा ये साडी और चुदाई भी सिर्फ तेरे पापा से, वो भी रात को... !! ना बाबा ना..मुझे तो ये सोचकर भी चक्कर आ रहे हैं, मैं तो तेरा लंड लिए बिना वैसे भी नहीं रह सकती और जब से ये अन्नू ने मेरी चूत की मालिश करके उसे चुसना शुरू किया है, मैं तो इसकी अडिक्ट हो गयी हूँ, मैं कैसे रहूंगी इतने दिनों तक इन सबके बिना..."
उनकी आँखों में निराशा के भाव थे.
मैं :"आप फ़िक्र मत करो मम्मी...मैं कुछ करता हूँ...जल्दी ही आपकी चुदाई का इन्तजाम करता हूँ....."
मेरी बात सुनकर वो थोडा नोर्मल हुई..
मैं कॉलेज के लिए लेट हो गया था, मैंने जल्दी से नाश्ता किया और बाईक उठा कर चल दिया, कॉलेज में पहुँचते ही सन्नी और विशाल ने मुझे घेर लिया और आज का प्रोग्राम पूछने लगे..
मैंने उन्हें सारी बात बताई और कहा की अगले 15 दिनों तक के लिए अब सब भूल जाओ...मेरी बात सुनते ही सन्नी बोला "यार...ऐसा मत बोल...तुझे और पैसे चाहिए तो वो बोल, पर कसम से, जब से मैंने ऋतू की चूत मारी है, मेरे दिलो दिमाग में सिर्फ उसकी चूत की तस्वीरे ही घूम रही है, मेरे लंड को अगर उसकी चूत ना मिली तो मैं ना जाने क्या कर डालूं...तू कुछ भी कर, मुझे ऋतू की चूत मारनी ही है, अगर तू चाहे तो उसे लेकर मेरे फार्म हाउस पर आ जा. वहां कोई नहीं होता.."
मैं जानता था की सन्नी एक बड़े घर का बेटा है, और उसका महरोली में एक फार्म हॉउस भी है, जो काफी बड़ा है, उसमे एक हिस्से में बड़े-२ कमरे, पीछे स्विमिंग पूल और उसके पीछे स्टोर रूम जैसा एक और कमरा..हम कई बार वहां जाकर मस्ती करते थे, बीयर पीते थे.. पर मुझे मालुम था की ऋतू अगर स्कूल के अलावा ज्यादा देर तक बाहर रही तो दादाजी उसके लिए भी बोलेंगे..
पर जैसे ही सन्नी ने अपने फार्म हॉउस के बारे में कहा, मेरे दिमाग में एक खतरनाक ख़याल आने लगा...मैंने उन्हें कहा की मैं थोड़ी देर में उनसे मिलता हूँ और ये कहकर मैं केफेटेरिया में गया और चाय लेकर एक कोने में बैठ गया..
अब मैंने अपनी योजना बनानी शुरू की, कैसे क्या होगा, और कब होगा,.. पर इसके लिए मुझे सन्नी और विशाल की जरुरत पड़ेगी..घर पर तो सभी तैयार हो जायेंगे, मम्मी तो पहले से तैयार है कुछ भी करने को, उन्हें तो बस खुल कर चुदाई करवानी है, चाहे वो मेरे लंड से हो या उनके ससुर के लंड से..ऋतू भी मेरी बात नहीं टालेगी और रही बात पापा की तो उन्हें मम्मी संभाल लेगी, वैसे वो भी मना नहीं करेंगे..
मैंने मन ही मन पूरी योजना बनायीं और वापिस सन्नी और विशाल के पास चल दिया, सन्नी और विशाल को जब मैंने अपना प्लान बताया तो वो भी सकते में आ गए, पर ऋतू की चूत मारने के लालच में वो दोनों जल्दी ही मेरा साथ देने के लिए तैयार हो गए.
अगले दिन का प्लान बनाकर मैं शाम को वापिस घर आ गया, थोड़ी ही देर में ऋतू भी आ गयी, उसने स्कूल ड्रेस पहनी हुई थी, इसलिए वो दादाजी के प्रकोप से बच गयी, वर्ना जैसे कपडे वो घर पर पहनती है उन्हें देखकर दादाजी उसकी भी क्लास लगा देते.
दादाजी को देखते ही ऋतू उछलती हुई उनके पास आई और उनके गले लग गयी..
दादाजी "ओरी पगली...कितनी बड़ी हो गयी है रे...कैसी है मेरी बिटिया रानी.."
ऋतू : "अच्छी हूँ...दादाजी, आप सुनाओ, इस बार बड़े दिनों के बाद मेरी याद आई..हूँ..."
वैसे तो मन ही मन उन्हें कोस रही थी, पर मुंह से कुछ और निकल रहा था..आखिर उसकी चूत पर भी तो ढक्कन लगने वाला था, 15 दिनों के लिए...जो उसे भी बर्दाश्त नहीं था.
वैसे मैं जानता था, मम्मी के पास तो पापा हैं, अन्नू और सोनी भी कहीं बाहर मुंह मार लेंगी, पर ऋतू बेचारी, उसका क्या, वो तो चुदाई के लिए पूरी तरह से मेरे ऊपर निर्भर थी,
पापा से भी वो चुदाई नहीं करवा सकती थी, दादाजी के रहते..अगर रात को वो मेरे कमरे में पकड़ी गयी तो हम सबकी शामत आ जायेगी..
|