RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
मैं : "अरे...दादाजी...ये हम कहाँ है....और मेरे कपडे...मेरे कपडे कहाँ है...आपके भी नहीं है...और ये ..ये देखो..ऋतू और मम्मी के भी...ये हो क्या रहा है..." मैंने हडबडाहट में कहा.
दादाजी : "बेटा....मैं भी यही सोच रहा हूँ..." और फिर वो जोर से चिल्लाये..."ओये....कोई है...क्या...भेन चोदो...किसने हमें यहाँ बंद किया है....सामने आओ...तुम्हारी माँ की चूत साले ..." दादाजी के मुंह से गालियों की बौछार सी होने लगी...
उनकी तेज आवाज सुनकर मम्मी और ऋतू भी अपनी बेहोशी से जाग गए...उन्हें मालुम तो था की उनका अपहरण योजना के अनुसार हुआ है...पर दादाजी को दिखाने के लिए उन्होंने डरने का नाटक किया...
मम्मी : "हे भगवान्.....ये हम कहाँ है....और मेरे कपडे....मेरे कपडे कहाँ गए...बाबूजी...आशु...मेरे कपडे नहीं है..और ऋतू के भी...किसने किया ये घिनोना काम...."
ऋतू : "मम्मी.....मुझे बड़ा डर लग रहा है....भैय्या ...दादाजी...कुछ करो...." और वो रोने का नाटक करने लगी...
तभी कमरे की लाइट जल उठी ...पुरे कमरे में उजाला फेल गया..
तेज रौशनी में देखने के लायक होते ही सबसे पहले दादाजी की नजरे मम्मी और ऋतू पर गयी और अगले ही पल उन्होंने अपना सर घुमा कर दूसरी तरफ कर लिया... मैंने देखा की मम्मी और ऋतू एक दुसरे के साथ चिपकी खड़ी हैं...जैसे शर्मा रही हो...और उनकी ब्रा और पेंटी से झांकता उनका शरीर बड़ा ही आकर्षक लग रहा था...
खासकर मम्मी का, जिन्होंने जान बुझकर छोटी सी ब्रा पहनी थी जिसमे उनके मोटे मुम्मे समां नहीं पा रहे थे और नीचे थोंग था जिसका पतला सा धागा उनकी गांड के ढकने में असमर्थ सा लग रहा था...
कुल मिला कर वो दोनों बड़ी ही सेक्सी लग रही थी, ना जाने सन्नी और विशाल ने उनके कपडे उतारते हुए अपने आप पर कैसे काबू रखा होगा,
अगर पापा वहां न होते उनके साथ तो शायद वो एक-२ बार तो मम्मी और ऋतू की चूत मार ही लेते बेहोशी की हालत में...
दादाजी ने जब अपनी बहु और पोती के लगभग नग्न हालत में देखा तो वो फिर से चिल्लाने लगे...
"ओये...भेन के लोड़ो...कोण है...किसने ये सब किया है....हमारे कपडे उतार कर यहाँ क्यों बंद किया है...खोलो ये दरवाजा....क्या चाहते हो तुम...खोलो...." और उन्होंने दरवाजे पर लाते मारना शुरू कर दिया...पर ये सब बेकार था, क्योंकि वो दरवाजा काफी मोटा और मजबूत था, दादाजी की सेहत और बलिष्ट शरीर का ध्यान रखते हुए ही मैंने वो कमरा चुना था जिस पर ऐसा मोटा दरवाजा था...
वो दरअसल फार्म हाउस के पीछे वाला कमरा था, जिसमे वहां का नौकर रहता था, एक कोने में लकड़ी का एक बेड था, जिसपर दो तकिये थे, और नीचे सिर्फ एक चादर, कोने में ही एक पानी की टंकी थी, जिसमे पीने का पानी बाहर से आता था,उसके ऊपर एक शावर भी लगा था, साथ ही खुली सी किचन भी थी, जिसका सामान हमने पहले से ही हटा दिया था, साथ ही एक छोटी सी टॉयलेट बनी हुई थी, जिसपर दरवाजा तो था पर अन्दर से कुण्डी नहीं थी..
कमरे में रौशनी के बाद स्पीकर में से विशाल की मोटी और बदली हुई सी खुंखार आवाज गूंजी...
"हा हा हा.....हा हा हा......ओये बुड्ढे...ज्यादा उछल मत.....तू जानता नहीं है शायद...तू अब मेरी कैद में है...मैं वही मैडमेन हूँ, जिसकी चर्चा आजकल हर जगह हो रही है... अगर मेरे बारे में जानना है तो अपने परिवार वालों से पूछ ले...हा हा......हा ...."
दादाजी ने मेरी तरफ देखा...
मैंने डरने वाला मुंह बनाया और कहा "दादाजी... ये ...ये तो मेडमेन है...आजकल इसका बड़ा डर फेला हुआ है...ये तो साईको है...ये परिवार वालों को उठा लेता है...और अपनी मनमानी करता है..."
दादाजी : "कैसी मनमानी...?"
मैं : "पता नहीं...दादाजी...पर मैंने ये सुना है की ये किसी को नुक्सान नहीं पहुंचाता...."
दादाजी (गुस्से में) : "नुकसान नहीं पहुंचाता...ये क्या है फिर....हमें इस कमरे में बंद कर दिया , हमारी बहु बेटी के कपडे उतार दिए...ये क्या नुक्सान नहीं है ...."
और फिर वो ऊपर कैमरे की तरफ देखकर चिल्लाये : "तुम चाहते क्या हो.... ये सब करने का मतलब क्या है आखिर..."
आवाज : "मैं क्या चाहता हूँ, ये मैं जल्दी ही बता दूंगा...पर एक वादा करता हूँ, तुम सब अगर मेरा कहना मानते रहो तो मैं तुम्हे जल्दी ही यहाँ से आजाद कर दूंगा....वर्ना किसी को तुम लोगो की लाश भी नहीं मिलेगी..."
उसकी आवाज सुनकर दादाजी का चेहरा देखने लायक था, वो डर से गए...
आवाज : "पहले तुम लोग कुछ खा पी लो...फिर बात करते हैं....
" और फिर ऊपर से रोशनदान खुला और उसमे से एक रस्सी में बंधा हुआ थेला नीचे आने लगा, मैंने भागकर थेला खोल लिया, उसमे पिज्जा और कोल्ड ड्रिंक थी, साथ ही चिप्स के भी पेकेट थे, भूख तो बड़ी तेज लगी थी, मैंने पेकेट खोले और बीच में बैठ गया.
मैं : "मम्मी, ऋतू, तुम आओ यहाँ और कुछ खा लो...."
दादाजी (तेज आवाज में ) : "ये क्या कर रहा है आशु...उनकी हालत तो देख...उन्होंने कपडे नहीं पहने हुए..अपनी माँ और बहन को ऐसी हालत में तू कैसे देख सकता है उन्हें ,
तू यहाँ आ और दूसरी तरफ मुंह करले , मेरी तरह....बहु और ऋतू वहां दूसरी तरफ मुंह करके खा लेंगी...और हम यहाँ..."
मैं : "दादाजी...आप क्या बात कर रहे हैं...माना की हम सभी ऐसी हालत में यहाँ पर हैं, पर ऐसे रूल बना कर इस छोटे से कमरे में और मुश्किल पैदा मत करो...
माफ़ करना दादाजी...पर हमें नहीं मालुम की हम यहाँ कब तक रह पायेंगे...और एक ही कमरे में एक दुसरे से मुंह मोड़कर बैठना कब तक हो पायेगा...मुझसे ये नहीं होगा..."
ऋतू : "हाँ...दादाजी...और फिर हम लोग तो परिवार वाले हैं...ऐसा करने से क्या प्रोब्लम हो सकती है..."
मम्मी भी धीमी सी आवाज में बोली : "ये बच्चे ठीक कह रहे है बाबूजी...आप फिकर मत करो..अब हालात ही ऐसे हैं जो हमारे हाथ में नहीं है..तो हम कर भी क्या सकते हैं...
और इस तरह कब तक बैठेंगे..ये इन सबका हल नहीं है बाबूजी..आप तो इस कमीने से जिसने हमें यहाँ कैद किया है, पूछो की ये चाहता क्या है...और हमें कब तक यहाँ इस हालत में रहना होगा."
दादाजी (कुछ सोचते हुए) : "तुम ठीक कहती हो बहु...पर इस तरह से तुम्हे देखना...मेरा मतलब है...चलो कोई बात नहीं...अगर तुम कहती हो तो..."
उन्होंने ऊपर कैमरे की तरफ मुंह करते हुए कहा "और ये क्या चाहता है...ये तो वही जाने " और फिर अपनी गहरी नजर मम्मी की छोटी सी ब्रा के ऊपर जमा दी. और जब उन्होंने मम्मी की तरफ मुंह घुमाया , पता नहीं क्यों पर मुझे महसूस हुआ की शायद दादाजी भी यही चाहते थे...बस दुसरे के मुंह से सुनना चाहते थे. मम्मी ने उन्हें अपने अर्धनग्न शरीर को घूरते देखा तो वो भी शर्म से सिमटने के बजाये अपनी मोटी छाती तानकर अपनी सुन्दरता का प्रदर्शन करने लगी अपने ससुर के सामने..
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