RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
अगली सुबह जब मेरी नींद खुली तो मैंने देखा की दादाजी मेरे साथ नहीं हैं, मैंने टॉयलेट की तरफ देखा तो वहां का दरवाजा बंद था, यानी वो अन्दर थे. ऋतू और मम्मी एक दुसरे के साथ ऊपर पलंग पर सो रही थी, मम्मी तिरछी होकर सो रही थी जिसकी वजह से उनकी फूली हुई गांड ऊपर की तरफ निकल कर बड़ी आकर्षक लग रही थी,
वैसे भी उन्होंने सिर्फ एक थोंग ही पहना हुआ था, पीछे का हिस्सा उनकी गांड की दरार में घुस कर गायब हो चूका था, इसलिए गांड का हर पहलु साफ़-२ दिखाई दे रहा था. उनकी पीठ मेरी तरफ थी , मतलब अगर दादाजी टॉयलेट से बाहर निकले तो उनके नजर सबसे पहले सामने लेटी मम्मी की तरफ ही जायेगी. मैं दादाजी का एक्सप्रेशन देखना चाहता था, इसलिए मैं भी टॉयलेट की तरफ मुंह करके सो गया, अपनी ऑंखें मैंने ऐसे बंद करी की मुझे थोडा बहुत दिखाई देता रहे.
थोड़ी ही देर में दादाजी बाहर निकले, उन्होंने कोने में लगी हुई टंकी से हाथ धोये और जैसे ही वो घुमे, उनकी नजर मम्मी की नंगी गांड पर गयी, मम्मी की पेंटी का धागा तो उनकी गांड पहले ही खा कर निगल चुकी थी, उन्हें एक बार तो लगा की मम्मी नंगी है नीचे से, ऊपर भी सिर्फ ब्रा के स्ट्रेप थे, ऊपर से नीचे तक देखने में उनकी संगमरमर जैसी कमर बड़ी ही दिलकश लग रही थी, दादाजी तो उन्हें देखते ही रह गए, वो थोडा आगे आये, मेरी तरफ देखा, मैंने झट से अपनी आँखें मूंद ली और हलकी सी स्नोरिंग करने लगा, जिससे उन्हें लगे की मैं गहरी नींद में हूँ.
मेरी तरफ से निश्चिन्त होकर उन्होंने फिर से मम्मी के शरीर को अपनी पारखी नजरों से चोदना शुरू कर दिया, वो उन्हें ऐसे देख रहे थे मानो अपनी आँखों से उन्हें चाट रहे हो, हर एक हिस्से को बड़े गौर से देख रहे थे,
वो बिलकुल मेरे आगे खड़े थे और मैंने जब ऊपर देखा तो उनके धारीदार कच्छे के अन्दर से उठता हुआ उनका काला लंड किसी लम्बे सांप जैसा दिखा, मैं उसे पूरी तरह तो नहीं देख पा रहा था, पर ये अंदाजा तो हो ही चूका था की वो मेरे और पापा से भी लम्बा है.
दादाजी खड़े हुए मम्मी के शरीर का रसपान कर रहे थे, यानी वो भी वही चाहते थे जो हम उनसे करवाना चाहते हैं, अब मेरे लिए रास्ता काफी आसान हो गया था.. पर तभी दादाजी को ना जाने क्या हुआ, उन्होंने एकदम से अपना सर घुमा लिया और दूसरी तरफ देखकर धीरे धीरे राम राम राम राम...करने लगे....
शायद उन्हें अपनी सोच पर आत्मग्लानी हो रही थी..पर वो बेचारे कर भी क्या सकते थे, जब किसी के सामने अर्धनग्न स्त्री लेटी हो तो अच्छे-२ का लंड खड़ा हो जाता है...फिर लंड ये नहीं देखता की सामने लेटी हुई उसकी बहु है या बेटी..
मैंने मन ही मन सोचा, बुढऊ का मन कुछ और कह रहा है और लंड कुछ और...अब देखना है की मन और लंड की लडाई में कोन जीतता है. वो सीधे टंकी के पास गए और वो ऊपर से नलका खोलकर नीचे बैठकर ठन्डे पानी से नहाने लगे,
अभी इतनी गर्मी नहीं आई थी की सीधा ठंडा पानी अपने सर पर डाल लिया जाए, हम तो घर पर अभी भी हल्का गर्म पानी मिलाकर नहाते हैं, पर यहाँ तो शायद ठन्डे पानी से ही नहाना होगा, ये तो मैंने सोचा भी नहीं था...पर कोई बात नहीं, दो-चार दिन की ही बात है...देखी जायेगी.
ठन्डे पानी में उनकी कंपकपी छूट रही थी, पर फिर भी वो बैठे रहे, शायद अपने आप को सजा दे रहे थे..
थोड़ी देर बाद ही वो मुड़े , अब उनका खड़ा हुआ लंड बैठ चूका था..और वो भी शांत से लग रहे थे, और अब वो मम्मी की तरफ देख भी नहीं रहे थे.
उन्होंने कोने में लटका हुआ टॉवेल उठाया और अपना शरीर सुखाने लगे.
पानी की आवाज सुनकर मम्मी भी जाग चुकी थी..वो एक मादक सी अंगडाई लेती हुई उठी..और फिर उन्होंने अपनी गांड में फंसी अपनी पेंटी को बाहर निकाला, अपनी ब्रा को ठीक किया और पीछे मुड़ी,
दादाजी नहा कर एक कोने में बैठे हुए, दूसरी तरफ मुंह करके, जाप कर रहे थे, उनकी आँखें बंद थी, मम्मी ने मेरी तरफ देखा, मैंने अपनी आँखें खोली और उन्हें गुड मोर्निंग कहा..और मैं भी खड़ा हो गया.
मम्मी झट से उठकर टॉयलेट की तरफ भागी, उन्हें शायद प्रेशर आया था. मैं भी उठा, मेरा लंड मेरे से पहले ही उठा हुआ था, शुक्र है की दादाजी का चेहरा दूसरी तरफ था, वर्ना वो मेरे अंडरवीअर में खड़े लंड को देखकर जरुर मुझे डांटते..
मैंने ऋतू की तरफ देखा, और मेरे होश उड़ गए, उसकी ब्रा निकल चुकी थी और वो ऊपर से नंगी थी..और उसके तने हुए बूब्स ऊपर की तरफ मुंह करे जैसे खाने की दावत दे रहे थे..
मैं तो घबरा गया, मम्मी के पीछे सोने की वजह से शायद दादाजी उसके नंगे बूब्स नहीं देख पाए होंगे..अगर देख लेते तो ग़जब हो जाता, वैसे भी उनकी नजर अपनी बहु से आगे बड़ी ही नहीं थी. उसी में ही उनका बुरा हाल हो गया था.
दादाजी पूजा पाठ कर रहे थे..अगर उन्होंने इस तरफ देखा तो क्या होगा..हम दादाजी को उत्तेजित तो करना चाहते थे, पर धीरे-२, इस तरह से एकदम से नंगा करके नहीं, ऐसे तो वो भड़क जायेंगे, जैसा अभी थोड़ी देर पहले हुआ जब उन्होंने मम्मी के नंगे चुतड देखकर अपने आप पर काबू पाया, ऐसे तो हमारा सारा खेल खराब हो जाएगा, सब कुछ प्राकृतिक तरीके से होना चाहिए, ताकि उन्हें हमारी चालाकी समझ ना आये.,
हम ये भी चाहते थे की वो खुद अपनी तरफ से पहल करे ना की हम.. मैं जल्दी से ऋतू के पास गया और उसे हिलाकर उठाया..
धीरे से उसके कान में कहा "...ऋतू....ओ..ऋतू..उठ.."
मेरे हिलाने से उसके दोनों पर्वत मेरी आँखों के सामने ऐसे हिल रहे थे जैसे उनकी सतह में भूकंप आया हो..और उनकी चोटियाँ , जो पिंक कलर की थी, एकदम से तन कर खड़ी हुई थी..इस नज़ारे को एकदम पास से देखकर मेरा लंड जोक्की से बाहर झाँकने लगा. मेरी आवाज सुनकर ऋतू ने बड़े सेक्सी स्टाईल में अपनी आँखें खोली..मुझे अपनी आँखों के सामने पाकर वो मुस्कुरायी और मेरे गले में अपनी बाहें डालकर मुझे अपनी तरफ खींच लिया...
पगली, शायद वो भूल गयी थी की हम अपने बेड पर नहीं है..बल्कि यहाँ एक बंद कमरे में है, और हमारा अपहरण हुआ है...और दादाजी भी वहीँ है.. मैंने भगवान् का फिर से शुक्र मनाया की दादाजी का चेहरा दूसरी तरफ था, वर्ना इस ऋतू की बच्ची ने तो आज मरवा ही दिया था..
मैंने उसकी बाहें अपनी गर्दन से निकाली और उसे कहा "ऋतू...होश में आओ...याद नहीं हम कहाँ है...और ये अपनी ब्रा पहनो...खुल गयी है..." वो सारी स्थिति समझी और जल्दी से सॉरी बोलते हुए अपनी ब्रा को उठाया और अपने मुम्मो को उनमे वापिस ठूंस दिया.. मैंने कैमरे की तरफ नजर घुमाई, मुझे मालुम था की सन्नी और विशाल सुबह-२ ऋतू के मुम्मो के दर्शन करके अपनी मुठ मार रहे होंगे.
थोड़ी ही देर में दादाजी की पूजा ख़त्म हुई और वो हमारी तरफ मुड़े, मैंने और ऋतू ने दादाजी को गुड मोर्निंग कहा, उन्होंने अनमने मन से हमारी विश का जवाब दिया, वो काफी व्याकुल से लग रहे थे.
तभी मम्मी भी टॉयलेट से बाहर आ गयी, वो झुककर नीचे लगी टूटी से हाथ धो रही थी, जिसकी वजह से उनकी गांड हमारी तरफ निशाना बनाकर, अपने हुस्न के गोले दाग रही थी, मैं तो उनकी फैली हुई गांड का हमेशा से दीवाना रहा हूँ, मैंने दादाजी की तरफ देखा, वो चोरी-२ अपनी नजरें इधर-उधर से घुमा फिर कर मम्मी को ही देख रहे थे...
फिर उसके बाद मैं और ऋतू भी फ्रेश होकर आ गए, थोड़ी देर में ही ऊपर के रोशनदान से एक थैला आया, वो हमारा नाश्ता था, जिसमे आलू के परांठे और दही थी, साथ में पानी की बोतल और प्लेट्स..
मैं परांठा खाते ही समझ गया की ये तो अन्नू के हाथ के बनाये हुए परांठे है. बेचारी को सुबह-२ इतनी दूर आना पड़ा होगा, या शायद रात की चुदाई के बाद दोनों वापिस भी गयी होंगी या नहीं ?
हम खाना खा कर बैठे तो दादाजी ने फिर से ऊपर मुंह करके (कैमरे की तरफ) जोर से कहा : "तुम अपनी मंशा में कभी कामयाब नहीं हो पाओगे...जो तुम चाहते हो वो होने वाला नहीं है, हमें छोड़ दो,
हम वादा करते हैं की हम किसी को कुछ नहीं बताएँगे...और अगर तुम चाहो तो हम तुम्हे मुंह मांगे पैसे भी दे सकते हैं.."
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